उपभोक्ता के शोषण से आप क्या समझते हैं? - upabhokta ke shoshan se aap kya samajhate hain?

उपभोक्ता की परिभाषा | Consumer Meaning in Hindi: उपभोक्ता किसे कहते है, उपभोक्ता की मीनिंग डेफिनिशन इसका अर्थ – जब व्यक्ति किसी वस्तु या सेवा का मूल्य देकर उसे प्राप्त करके उपभोग करता है अर्थात लाभ लेता है. तो वह उपभोक्ता कहलाता हैं. अन्य शब्दों में किसी वस्तु या सेवा का प्रतिफल चुकाकर उसे प्राप्त कर अंतिम उपयोगकर्ता उपभोक्ता कहा जाता हैं. उपभोक्ता का अर्थ व परिभाषा Consumer Meaning पर आपकों अधिक जानकारी दे रहे है.

उपभोक्ता के शोषण से आप क्या समझते हैं? - upabhokta ke shoshan se aap kya samajhate hain?

उपभोक्ता का अर्थ व परिभाषा (Meaning and Definition of Consumer)

  • जब व्यक्ति किसी वस्तु या सेवा का मूल्य देकर उसे प्राप्त करके उपभोग करता अर्थात लाभ लेता है तो वह उपभोक्ता कहलाता है.
  • उपभोक्ता अधिनियम 1986 में सेवा के बदले भुगतान करने वाला, आंशिक भुगतान का वचन देने वाला या विलम्बित भुगतान करने वाला व्यक्ति ही उपभोक्ता माना गया है.
  • उपभोक्ता अधिनियम के अनुसार व्यक्ति शब्द में सम्मिलित है- पंजीकृत या अपंजीकृत फर्म, संयुक्त हिन्दू परिवार, सहकारी संस्था, व्यक्तियों का समूह.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के अनुसार उपभोक्ता कौन है?

अब देश में कंज्यूमर एक्ट 1986 के स्थान पर नया कानून उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 लागू हैं. अधिनियम की धारा 2 (7) में उपभोक्ता को फिर से परिभाषित किया गया हैं.

इस अधिनियम के अनुसार वह व्यक्ति जो किसी सेवा या उत्पाद के शुल्क अदा कर सेवा या वस्तु प्राप्त करता हैं वह उपभोक्ता हैं. इसमें ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों तरह के लेन देन शामिल हैं.

जो लोग वस्तुओं के पुनः विक्रय के उद्देश्य से माल खरीदते है अथवा व्यावसायिक उद्देश्य से वस्तु या सेवा की खरीद करते है वे उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आएगे.

उपभोक्ता शोषण के कारण (consumer abuse causes)

  • जब व्यक्ति किसी वस्तु या सेवा का प्रतिफल भुगतान पर लेने या भाड़े पर लेने पर क्रेता के मूल्य के अनुसार वस्तु या सेवा से लाभ सुविधा प्राप्त नहीं होती है तो ऐसी स्थिति को उपभोक्ता का शोषण कहा जाता है.
  • उपभोक्ता का यह शोषण वस्तु या सेवा की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता तथा मानक पर ध्यान दिए बिना खरीदने, सही वस्तु या सेवा का चयन न करने वस्तु या सेवा की पूर्ण जानकारी न होने, प्रचार पर विश्वास करने, खरीदी वस्तु की रसीद बिल क्रय संविदा न लेने, उपभोक्ता का अशिक्षित होने आदि कारण से होता है.

उपभोक्ता शोषण के प्रकार (different ways of consumer exploitation)

  • उपभोक्ता शोषण को दो वर्गों में बांटा गया है- माल/ वस्तु के रूप में शोषण, सेवा के रूप में शोषण
  • माल/वस्तु शोषण में तोल, मात्रा, वजन तथा माप में कमी, किस्म का गलत होना, मिलावट होना, अधिक मूल्य वसूल करना, वस्तु असुरक्षित होना, क्षमता व गुणवत्ता में कमी, वस्तु के दोषों को छिपाना व् कृत्रिम अभाव उत्पन्न कर अधिक मूल्य पर माल खरीदने के लिए उपभोक्ता को मजबूर करना आदि शामिल है.
  • सेवा शोषण में सेवा का असुरक्षित व दोषपूर्ण होना, सुविधा के द्वारा लाभ के स्थान पर हानि पहुचाना, गुणवत्तायुक्त संतोषजनक सेवा प्रदान नहीं करना, शारीरिक मानसिक बौद्धिक क्षति पहुचाना आदि.

उपभोक्ता अधिकार (consumer rights in india)

  • उपभोक्ता संरक्षण का क्षेत्र माल विक्रय अधिनियम 1930 से शुरू माना जाता है. इसके बाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1956 पारित किया गया.
  • उपभोक्ता अधिनियम 1986 की धारा 6 में उपभोक्ताओ के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु निम्नलिखित अधिकारों का प्रावधान किया गया है.
  1. परिसंकट मय माल के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार
  2. सूचना का अधिकार
  3. माल विभिन्न प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर पाने का अधिकार
  4. उचित फोरमों के समक्ष ध्यान पाने का अधिकार
  5. अनैतिक शोषण के विरुद्ध परितोष प्राप्त करने का अधिकार
  6. उपभोक्ता शिक्षा पाने का अधिकार

उपभोक्ता के कर्तव्य

  • उपभोक्ता को शोषण से बचने हेतु क्रय की गई वस्तु सेवा के मूल्यों के भुगतान की रसीद/बिल/ क्रय संविदा आवश्यक रूप से प्राप्त करनी चाहिए.
  • वस्तु की पूर्ण जानकारी, गुणवत्ता चिह्न (ISI,AG,ISO,FPO, ECO) को देखकर ही खरीद करनी चाहिए.
  • वस्तु सेवा में दोष मिलने पर तुरंत विक्रेता को सूचित करना चाहिए, शिकायत की पुष्टि में दस्तावेज व प्रमाण जुटाने चाहिए तथा शिकायत पर ध्यान न देने पर उपभोक्ता न्यायालय या राज्य सरकार/ उपभोक्ता संगठन/मंच में शिकायत करनी चाहिए.

उपभोक्ता विवाद निवारण के उपाय (Consumer Dispute Redressal Measures)

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986, 24 दिसम्बर 1986 को पारित किया गया, इसी कारण 24 दिसम्बर को उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है.
  • उपभोक्ता विवाद का निस्तारण राष्ट्रीय स्तर, राज्य स्तर व जिला स्तर पर होता है.
  • राजस्थान में राज्य उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1987 में पारित कर दो स्तरीय व्यवस्था की गई है राज्य स्तरीय व जिला स्तरीय.

उपभोक्ता विवाद के निवारण के उपाय (Consumer dispute redressal provisions)

  • वस्तु/ सेवा का मूल्य तथा हर्जाने के लिए चाही गई राशि 20 लाख से कम होने पर जिला फॉर्म में, 20 लाख से अधिक व 1 करोड़ से कम होने पर राज्य आयोग में तथा वस्तु/सेवा का मूल्य 1 करोड़ से अधिक होने पर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में शिकायत की जा सकती है.
  • वाद में निर्णय के विरुद्ध अपील करने हेतु जिला फोरम द्वारा 90 दिन की अवधि में निर्णय नहीं देने पर राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग में, राज्य संरक्षण आयोग के निर्णय के विरुद्ध राष्ट्रीय आयोग में तथा राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील करने का प्रावधान है.

उपभोक्ता शिकायत दर्ज करने के लिए भुगतान किया जाने वाला शुल्क

किसी भी फोरम में जब उपभोक्ता अपनी शिकायत ले जाकर वाद दायर करता हैं तो उन्हें किस स्तर पर कितना शुल्क अदा करना होगा, यह उसकी जानकारी दी गई हैं. नयें एक्ट में अब पांच लाख रु तक के वाददायर करने को निशुल्क बना दिया हैं.

जिला आयोग
5 लाख रुपये तक कोई नहीं
5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक 200 रुपये
10 लाख रुपये से 20 लाख रुपये तक रुपये 400
20 लाख रुपये से 50 लाख रुपये तक 1,000 रुपये
50 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक 2,000 रुपये
राज्य आयोग
1 करोड़ रुपये से 2 करोड़ रुपये तक 2,500 रुपये
2 करोड़ रुपये से 4 करोड़ रुपये तक रुपये 3,000
4 करोड़ रुपये से 6 करोड़ रुपये तक रुपये 4,000
6 करोड़ रुपये से 8 करोड़ रुपये तक रुपये 5,000
8 करोड़ रुपये से 10 करोड़ रुपये तक रुपये 6,000
 
राष्ट्रीय आयोग
10 करोड़ रुपये से अधिक रु 7,500

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उपभोक्ता शोषण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- उपभोक्ता शोषण से अभिप्राय कम वज़न तौलना, अधिक कीमत वसूलना, मिलावटी एवं दोषपूर्ण वस्तुएँ बेचना, भ्रमित विज्ञापन देकर उपभोक्ता को गुमराह करना आदि है।

उपभोक्ता शोषण से आप क्या समझते हैं और उपभोक्ता शोषण के क्या कारण हैं?

उत्तर: उपभोक्ताओं के शोषण के कारण या कारक हैं: (1) सीमित जानकारी (2) सीमित आपूर्ति (3) सीमित प्रतियोगिता (4) कम साक्षरता (5) सौदेबाजी की शक्ति का अभाव (6) पेश की जाने वाली अनियमित कीमतें (7) भ्रामक विज्ञापन ( 8) एकता की कमी और (9) बोझिल और समय लेने वाली कानूनी कार्यवाही।

उपभोक्ता शोषण क्या है इसके प्रमुख कारण को बताएं?

उपभोक्ता के शोषण के लिए उत्तरदायी मुख्य कारक.
सीमित सूचना : उत्पाद के विभिन्न पहलू यानी मूल्य, गुणवत्ता, घटक, उपयोग की स्थितियाँ आदि के बारे में सूचना के अभाव में उपभोक्ता गलत वस्तु खरीदने के लिए उत्तरदायी होते हैं तथा पैसों की हानि होती है।.
गलत सूचना : पूर्ण तथा सही सूचना के अभाव में उपभोक्ता शोषण का शिकार होते है।.

उपभोक्ता शोषण क्या है और इसके प्रकार

अर्थ। उपभोक्ता - एक व्यक्ति जो वस्तुओं और सेवाओं के बदले में भुगतान करके आपूर्तिकर्ता द्वारा प्रदान की जाने वाली वस्तुओं या सेवाओं का लाभ उठाता है। शोषण - एक व्यक्ति जिसे किसी भी तरह से (जैसे धोखाधड़ी, गलतबयानी, जबरदस्ती, फर्जी सूचना) या किसी व्यक्ति द्वारा धोखा दिया गया है, शोषण किया हुआ कहा जाता है