Dharmnirpekshta Ki VisheshtayeinPradeep Chawla on 04-09-2018 Show धर्मनिपेक्षता का अर्थ :- इसका अर्थ है देश में सभी धर्मो के बीच समानता तथा राज्य द्वारा किसी धर्म भी के लिए पक्षपात नहीं करना | धर्मनिरपेक्ष राज्य कि विशेषताए:- 1. सभी धर्मो के बीच समानता होता है | 2. कानून द्वारा किसी धर्म का पक्षपात नहीं होता है | 3. सभी धर्मो के लोग को अपने धर्म के पालन तथा प्रचार और प्रसार की आजादी होती है | 4. राज्यों द्वारा किसी भी धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं किया जाता | धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल : 1. धर्म और राज्यों का एक - दूसरे के मामले मे हस्त्क्षेप न करने कि अटल नीति होती है | 2. व्यक्ति और उसके अधिकारों को केंद्रीय महत्व दिया जाता है | 3. समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान दिया जाता है | 4. विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता, एक मुख्य सरोकार होता है | धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल : 1. राज्यों द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति | 2. एक धर्म के भिन्न-भिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना | 3. अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों पर ध्यान देना | 4. व्यक्ति और धार्मिक समुदायों दोनों के अधिकारों का संरक्षण देना | भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचनाएँ : 1. ये धर्म विरोधी हैं | 2. ये पश्चिम से आयातित है | 3. अल्पसंख्यकवाद पर ज्यादा केन्द्रित है | 4. बहुत अधिक हस्तक्षेप 5. इसे वोट बैंक कि राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जाता है | धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएँ:- 1. किसी एक समुदाय का अन्य समुदाय पर वर्चस्व नहीं होना चाहिए | 2. एक ही धार्मिक समुदाय के भीतर व्यक्ति के किसी एक समूह का दुसरे समूह पर हावी होना उचित नहीं है | 3. किसी भी व्यक्ति को धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए | धर्मनिरपेक्ष समाज के लिए आवश्यक बातें : 1. भिन्न धर्मो के अनुयायियों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो | 2. किसी एक धार्मिक समुदायों के भीतर सभी वर्ग तथा समूहों की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार समान रूप से प्राप्त हो | 3. नास्तिकों को भी जीवित रहने और उन्नति के उतने ही अधिकार हो जितने किसी भी मजहब के मानने वाले को हो | 4. धर्म व्यक्ति के जीवन का एक निजि मामला है | हिन्दुत्व, इस्लाम और इसाई को एक निजी विषय ही रखा जाये किसी भी स्थिति मे धर्म का सार्वजनिक वाद-विवाद का विषय न बनाया जाए और न ही उसमें राजननैतिक प्रवेश होने दिया जाए | भारत मे धर्मनिरपेक्षता :- भारत के संविधान में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के लिए आवश्यक सभी बातें शामिल की गई हैं | 1. संविधान द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को अंतःकरण कि स्वंतत्रता तथा किसी भी धर्म को मानने या उस पर आचरण करने का अधिकार प्रदान किया है | 2. पूर्णतया राज्यकोष से संचलित किसी भी शिक्षण संस्थान मे कोई भी धार्मिक शिक्षा नहीं दी जायेगी | 3. सभी धार्मिक समुदायों को चल और अचल संपत्ति अर्जित करने और उस पर अपना स्वामित्व बनाए रखने का अधिकार होगा | 4. ऐसा कोई कर न वसूला जाए जिसका उद्देश्य किसी भी धर्म समूह व समुदाय को धार्मिक सहायता प्रदान करता हो | धर्मनिरपेक्षता का पश्चिमी मॉडल :- धर्मनिरपेक्ष राज्य पादरियों द्वारा नहीं चलाया जाता है और नाही इसका कोई सरकारी या स्थापित धर्म संघ होता है | फ्रांसीसी क्रांति के बाद फ्रांस में धर्मनिरपेक्षवाद एक आन्दोलन के रूप मे बदला गया था | संयुक्त राज्य अमेरिका भी शुरू से धर्मनिरपेक्ष राज्य रहा है | संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में कहा गया है कि अमेरिकी कांग्रेस ऐसा कोई कानून पारित नहीं करेगी जो धर्मसंघ की स्थापना करता हो या किसी धर्म को मानने कि स्वतंत्रता पर रोक लगाता हो | धर्मनिरपेक्ष राज्य में राज्य की भूमिका : 1. राज्य धर्म के मामले में तथस्ट या निरपेक्ष रहता है और किसी भी धार्मिक संस्था का कोई भी सहायता या लाभ प्रदान नहीं करता | 2. राज्य धार्मिक संगठनों के क्रियाकलाप में हस्तक्षेप नहीं करता | 3. प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो, सबकों एक जैसे अधिकार प्रदान किए जाते है | भारतीय धर्मनिरपेक्षवाद पश्चिमी धर्मनिरपेक्षवाद से भिन्न है :- 1. राज्य तथा धर्म के बीच पृथककारी कोई दिवार नहीं है - हमारे संविधान राज्य को धर्म से पूर्ण रूप से अलग नहीं करता, भारत में राज्यों विभिन्न धार्मिक समुदायों के आर्थिक वित्तीय राजनैतिक या अन्य क्रियाकलापों को नियमित करने कि अनुमति दी गयी है | 2. धार्मिक और भाषीय समूहों के अधिकार - व्यक्ति को अतःकरण की स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है इसके साथ ही संविधान धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों रक्षा करता है ताकि वह गरिमा के साथ जीवन व्यतीत कर सके | 3. किसी धर्म परिवर्तन पर रोक - धर्म के प्रचार का अर्थ है कि धार्मिक मान्यतओं को किसी अन्य व्यक्तियों तक पहुँचाने का अधिकार या अपने धर्म के सिद्धांतो कि व्याख्या करना | आधुनिक समय में धर्मनिरपेक्ष राज्य कि आवश्यकता के कारण :- 1. व्यक्ति अपनी धार्मिक पहचान के प्रति अत्याधिक संवेदनशील होता है इसलिए वह किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह के हिंसापूर्ण व्यवहार के खिलाफ सुरक्षा प्राप्त करना चाहेगा | 2. धार्मिक स्वतंत्रता किसी भी सभ्य समाज की प्रमुख विशेषता है | 3. धर्म निरपेक्ष राज्य नास्तिकों के भी जीवन और संपत्ति की रक्षा करेगा और उन्हें अपने जीवन शैली और जीवन जीने का अधिकार प्रदान करेगा | 4. धर्मनिरपेक्ष राज्य, राजनैतिक दृष्टि से ज्यादा स्थायी होते है | भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचनायें : 1. यह धर्म विरोधी राष्ट्र है - भारत विभाजन के फलस्वरुप हमने पाकिस्तान के गठन होते देखा जहा इस्लाम का वर्चस्व है यदि तर्क के आधार पर देखा जाये तो भारत के लिए उचित था कि वह स्वम् को हिन्दू राज्य घोषित कर देता 2. धर्मनिरपेक्ष पश्चिमी देशो कि अवधारणा - युरोपिए राज्य में जहाँ इशाई धर्म का बोल बाला है धर्मनिरपेक्षवाद का अर्थ है की राज्य ईसाई चर्च के आधीन नहीं है इसके पश्चात देशो में समाज को धर्मनिरपेक्ष बनाने का अर्थ है इसमें एक ऐसा रूप प्रदान करना जिससे यह धर्म को नियंत्रण में न रखे 3. अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता को बढावा देने के खतरे - संविधान द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के कुछ लोगो को विशेषाधिकार प्रदान किए गए है आलोचको का कहना है कि धर्म के आधार पर किसी भी विशेष सुविधा या अधिकार प्राप्त करना गलत है 4. अन्य धर्मो कि तुलना मे एक धर्म के मामलो मे बहुत ज्यादा हस्ताक्षेप - राज्य ने हिन्दू विवाह अधिनियम विशेष विवाह अधिनियम जैसे कानून द्वारा हिन्दू समाज में सुधार लाने कि चेष्टा की | 5. धर्मनिरपेक्षता वोट बैंक राजनीति का एक हथियार - वोटरों की सर्वाधिक संख्या को लुभाने के लिए राजनितिक दल भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में धर्मनिरपेक्षता को एक राजनितिक हथियार बना लिए हैं | राजनितिक शक्ति पर कब्जा ज़माने के लिए धर्म और जाति का प्रयोग करते हैं | Pradeep Chawla on 04-09-2018 धर्मनिपेक्षता का अर्थ :- इसका अर्थ है देश में सभी धर्मो के बीच समानता तथा राज्य द्वारा किसी धर्म भी के लिए पक्षपात नहीं करना | धर्मनिरपेक्ष राज्य कि विशेषताए:- 1. सभी धर्मो के बीच समानता होता है | 2. कानून द्वारा किसी धर्म का पक्षपात नहीं होता है | 3. सभी धर्मो के लोग को अपने धर्म के पालन तथा प्रचार और प्रसार की आजादी होती है | 4. राज्यों द्वारा किसी भी धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं किया जाता | धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल : 1. धर्म और राज्यों का एक - दूसरे के मामले मे हस्त्क्षेप न करने कि अटल नीति होती है | 2. व्यक्ति और उसके अधिकारों को केंद्रीय महत्व दिया जाता है | 3. समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान दिया जाता है | 4. विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता, एक मुख्य सरोकार होता है | धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल : 1. राज्यों द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति | 2. एक धर्म के भिन्न-भिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना | 3. अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों पर ध्यान देना | 4. व्यक्ति और धार्मिक समुदायों दोनों के अधिकारों का संरक्षण देना | भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचनाएँ : 1. ये धर्म विरोधी हैं | 2. ये पश्चिम से आयातित है | 3. अल्पसंख्यकवाद पर ज्यादा केन्द्रित है | 4. बहुत अधिक हस्तक्षेप 5. इसे वोट बैंक कि राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जाता है | धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएँ:- 1. किसी एक समुदाय का अन्य समुदाय पर वर्चस्व नहीं होना चाहिए | 2. एक ही धार्मिक समुदाय के भीतर व्यक्ति के किसी एक समूह का दुसरे समूह पर हावी होना उचित नहीं है | 3. किसी भी व्यक्ति को धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए | धर्मनिरपेक्ष समाज के लिए आवश्यक बातें : 1. भिन्न धर्मो के अनुयायियों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो | 2. किसी एक धार्मिक समुदायों के भीतर सभी वर्ग तथा समूहों की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार समान रूप से प्राप्त हो | 3. नास्तिकों को भी जीवित रहने और उन्नति के उतने ही अधिकार हो जितने किसी भी मजहब के मानने वाले को हो | 4. धर्म व्यक्ति के जीवन का एक निजि मामला है | हिन्दुत्व, इस्लाम और इसाई को एक निजी विषय ही रखा जाये किसी भी स्थिति मे धर्म का सार्वजनिक वाद-विवाद का विषय न बनाया जाए और न ही उसमें राजननैतिक प्रवेश होने दिया जाए | भारत मे धर्मनिरपेक्षता :- भारत के संविधान में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के लिए आवश्यक सभी बातें शामिल की गई हैं | 1. संविधान द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को अंतःकरण कि स्वंतत्रता तथा किसी भी धर्म को मानने या उस पर आचरण करने का अधिकार प्रदान किया है | 2. पूर्णतया राज्यकोष से संचलित किसी भी शिक्षण संस्थान मे कोई भी धार्मिक शिक्षा नहीं दी जायेगी | 3. सभी धार्मिक समुदायों को चल और अचल संपत्ति अर्जित करने और उस पर अपना स्वामित्व बनाए रखने का अधिकार होगा | 4. ऐसा कोई कर न वसूला जाए जिसका उद्देश्य किसी भी धर्म समूह व समुदाय को धार्मिक सहायता प्रदान करता हो | धर्मनिरपेक्षता का पश्चिमी मॉडल :- धर्मनिरपेक्ष राज्य पादरियों द्वारा नहीं चलाया जाता है और नाही इसका कोई सरकारी या स्थापित धर्म संघ होता है | फ्रांसीसी क्रांति के बाद फ्रांस में धर्मनिरपेक्षवाद एक आन्दोलन के रूप मे बदला गया था | संयुक्त राज्य अमेरिका भी शुरू से धर्मनिरपेक्ष राज्य रहा है | संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में कहा गया है कि अमेरिकी कांग्रेस ऐसा कोई कानून पारित नहीं करेगी जो धर्मसंघ की स्थापना करता हो या किसी धर्म को मानने कि स्वतंत्रता पर रोक लगाता हो | धर्मनिरपेक्ष राज्य में राज्य की भूमिका : 1. राज्य धर्म के मामले में तथस्ट या निरपेक्ष रहता है और किसी भी धार्मिक संस्था का कोई भी सहायता या लाभ प्रदान नहीं करता | 2. राज्य धार्मिक संगठनों के क्रियाकलाप में हस्तक्षेप नहीं करता | 3. प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो, सबकों एक जैसे अधिकार प्रदान किए जाते है | भारतीय धर्मनिरपेक्षवाद पश्चिमी धर्मनिरपेक्षवाद से भिन्न है :- 1. राज्य तथा धर्म के बीच पृथककारी कोई दिवार नहीं है - हमारे संविधान राज्य को धर्म से पूर्ण रूप से अलग नहीं करता, भारत में राज्यों विभिन्न धार्मिक समुदायों के आर्थिक वित्तीय राजनैतिक या अन्य क्रियाकलापों को नियमित करने कि अनुमति दी गयी है | 2. धार्मिक और भाषीय समूहों के अधिकार - व्यक्ति को अतःकरण की स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है इसके साथ ही संविधान धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों रक्षा करता है ताकि वह गरिमा के साथ जीवन व्यतीत कर सके | 3. किसी धर्म परिवर्तन पर रोक - धर्म के प्रचार का अर्थ है कि धार्मिक मान्यतओं को किसी अन्य व्यक्तियों तक पहुँचाने का अधिकार या अपने धर्म के सिद्धांतो कि व्याख्या करना | आधुनिक समय में धर्मनिरपेक्ष राज्य कि आवश्यकता के कारण :- 1. व्यक्ति अपनी धार्मिक पहचान के प्रति अत्याधिक संवेदनशील होता है इसलिए वह किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह के हिंसापूर्ण व्यवहार के खिलाफ सुरक्षा प्राप्त करना चाहेगा | 2. धार्मिक स्वतंत्रता किसी भी सभ्य समाज की प्रमुख विशेषता है | 3. धर्म निरपेक्ष राज्य नास्तिकों के भी जीवन और संपत्ति की रक्षा करेगा और उन्हें अपने जीवन शैली और जीवन जीने का अधिकार प्रदान करेगा | 4. धर्मनिरपेक्ष राज्य, राजनैतिक दृष्टि से ज्यादा स्थायी होते है | भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचनायें : 1. यह धर्म विरोधी राष्ट्र है - भारत विभाजन के फलस्वरुप हमने पाकिस्तान के गठन होते देखा जहा इस्लाम का वर्चस्व है यदि तर्क के आधार पर देखा जाये तो भारत के लिए उचित था कि वह स्वम् को हिन्दू राज्य घोषित कर देता 2. धर्मनिरपेक्ष पश्चिमी देशो कि अवधारणा - युरोपिए राज्य में जहाँ इशाई धर्म का बोल बाला है धर्मनिरपेक्षवाद का अर्थ है की राज्य ईसाई चर्च के आधीन नहीं है इसके पश्चात देशो में समाज को धर्मनिरपेक्ष बनाने का अर्थ है इसमें एक ऐसा रूप प्रदान करना जिससे यह धर्म को नियंत्रण में न रखे 3. अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता को बढावा देने के खतरे - संविधान द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के कुछ लोगो को विशेषाधिकार प्रदान किए गए है आलोचको का कहना है कि धर्म के आधार पर किसी भी विशेष सुविधा या अधिकार प्राप्त करना गलत है 4. अन्य धर्मो कि तुलना मे एक धर्म के मामलो मे बहुत ज्यादा हस्ताक्षेप - राज्य ने हिन्दू विवाह अधिनियम विशेष विवाह अधिनियम जैसे कानून द्वारा हिन्दू समाज में सुधार लाने कि चेष्टा की | 5. धर्मनिरपेक्षता वोट बैंक राजनीति का एक हथियार - वोटरों की सर्वाधिक संख्या को लुभाने के लिए राजनितिक दल भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में धर्मनिरपेक्षता को एक राजनितिक हथियार बना लिए हैं | राजनितिक शक्ति पर कब्जा ज़माने के लिए धर्म और जाति का प्रयोग करते हैं |
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धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं इसके प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें?धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य राजनीति या किसी गैर-धार्मिक मामले से धर्म को दूर रखे तथा सरकार धर्म के आधार पर किसी से भी कोई भेदभाव न करे। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी के धर्म का विरोध करना नहीं है बल्कि सभी को अपने धार्मिक विश्वासों एवं मान्यताओं को पूरी आज़ादी से मानने की छूट देता है।
धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान की अनुपम विशेषता है कैसे?⇒ भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द की बजाय पंथनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग 1976 में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया है। ⇒ संविधान के अधीन भारत एक पंथनिरपेक्ष राज्य हैं, ऐसा राज्य जो सभी धर्मों के प्रति तटस्थता और निष्पक्षता का भाव रखता है।
धर्मनिरपेक्ष राज्य की विशेषता कौन कौन सी है?धर्मनिरपेक्ष राज्य कि विशेषताए:-. सभी धर्मो के बीच समानता होता है |. कानून द्वारा किसी धर्म का पक्षपात नहीं होता है |. सभी धर्मो के लोग को अपने धर्म के पालन तथा प्रचार और प्रसार की आजादी होती है |. राज्यों द्वारा किसी भी धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं किया जाता |. |