एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 हिंदी वसंत अध्याय 14 लोकगीत के प्रश्नों के उत्तर पीडीएफ तथा विडियो के माध्यम से यहाँ से सत्र 2022-23 के लिए प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 6 हिंदी के पाठ 14 में हमें विभिन्न लोकगीतों के बारे में बताया गया है। विडियो समाधान के माध्यम से भी पाठ को विस्तार से समझाया गया है। निबंध में लोकगीतों के किन पक्षों की चर्चा की गई है? बिन्दुओं के रूप में उन्हें लिखो।निबंध में लोकगीतों के निम्न रूपों की चर्चा की गई है। जैसे – गुजरात के दलीय गायन के बारे में आप क्या जानते है? हमारे यहाँ स्त्रियों के खास गीत कौन-कौन से हैं?स्त्रियों के खास गीत हैं: त्योहारों पर नदियों में नहाते समय के, नहाने जाते हुए राह के, विवाह के, मटकोड़, ज्यौनार के, संबंधियों के लिए प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि सभी अवसरों के अलग-अलग गीत हैं, जो स्त्रियाँ गाती हैं। इन अवसरों पर कुछ आज से ही नहीं बल्कि महाकवि कालिदास ने भी अपने ग्रंथों में उनके गीतों का हवाला दिया है। सोहर, बानी, सेहरा आदि उनके अनंत गानों में से कुछ हैं। ‘बिदेसिया’ लोकगीत का प्रचार कैसे हुआ था? निबंध के आधार पर और अपने अनुभव के आधार पर यदि तुम्हें लोकगीत सुनने के मौके मिले हैं तो तुम लोकगीतों की कौन सी विशेषताएँ बता सकते हो?लोकगीत आंचलिक भाषा में गाए जाते हैं, जिससे वहाँ के रीति-रिवाज व रहन-सहन की जानकारी मिलती है। ये त्याहारों व विषेष अवसरों पर गाए जाते हैं। ये अपन मूल प्रकृति में ही गाए जाते हैं। इसलिए इन्हें गाने के लिए किसी विषेष संगीत साधना की जरूरत नहीं होती है। ये सामूहिक गीत होते हैं इसलिए समूह में गाए जाते हैं, जिससे लोगों में उत्साह और जोश दिखाई देता है। लोकगीत कौन-कौन सी भाषा व बोलियों में गाए जाते हैं? ‘पर सारे देश के..अपने-अपने विद्यापति हैं’ इस वाक्य का क्या अर्थ है? पाठ पढ़कर मालूम करो और लिखो।विद्यापति मैथिल भाषा के प्रसिद्ध कवि हैं। मिथिलांचल में घर-घर में उनके लोकगीत गाए जाते हैं, इसीलिए उन्हें मैथिल कोकिल कहा जाता है। हमारे पूरे देश में अलग-अलग प्रांतों के अपनी-अपनी भाषा के कवि हैं। उनके गीत घर-घर में गाए जाते हैं। वे अपनी इसी कला के द्धारा अपने समाज व साहित्य में प्रसिद्ध हैं। इसीलिए, लेखक ने कहा है कि सारे देश के अपने-अपने विद्यापति हैं। देहाती गीतों की रचना किस आधार पर हुई? इनसे जुड़े कुछ रागों के नाम क्या हैं? ब्रज भूमि का लोकप्रिय लोकगीत ‘रसिया’ होता है। जिसे दल में गया जाता है। इसमें स्त्रियों की भूमिका अधिक होती है। यह ब्रज भाषा में गया जाने वाला लोकगीत है। वास्तविक
लोकगीत क्या है, इसके कितने प्रकार होते है? NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 14 लोक गीत These NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 14 लोक गीत Questions and Answers are prepared by our highly skilled subject experts. लोक गीत NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 14Class 6 Hindi Chapter 14 लोक गीत Textbook Questions and Answersनिबंध से प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. अनमान और कल्पना प्रश्न 1. प्रश्न 2. कुछ करने को प्रश्न
1. प्रश्न 2. भारत के मानचित्र में भारत के नक्शे में पाठ में चर्चित राज्यों के लोक गीत और नृत्य दिखाओ। भाषा की बात प्रश्न 1. लोक कल्याण – साहित्य वही है जिसमें लोक-कल्याण की भावना हो। प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. लोक गीत व्याकरण बिन्दु प्रश्न 1.
प्रश्न 2.
प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
कुछ प्रमुख लोक गीत सोहर – बच्चों के जन्म की खुशी में औरतें ढोलक बजाकर सोहर गाती हैं। महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या 1. लोक गीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोक गीत सीधे जनता के संगीत हैं। घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं ये। इनके लिये साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं। सदा से ये गाये जाते रहे हैं और इनके रचने वाले भी अधिकतर गाँव के लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है। ये गीत बाजों की मदद के बिना ही या साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं। प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘लोक गीत’ से अवतरित है। इस पाठ के लेखक ‘भगवतशरण उपाध्याय’ जी हैं। लेखक ने यहाँ लोक गीतों के बारे में बताया है। व्याख्या- शास्त्रीय संगीत और लोक गीत दोनों में काफी भिन्नता है। लोक गीत अपने लचीलेपन, ताज़गी और लोकप्रियता में आम-जन तक पहुँच रखता है। लोक गीत आम लोगों के गीत हैं इसलिए इनकी लोकप्रियता सीधे जनता में होती है। ये गीत घर, गाँव और नगर की आम जनता के गीत हैं। इन गीतों को गाने के लिए शास्त्रीय संगीत की तरह साधना की आवश्यकता नहीं होती। लोक गीत विभिन्न त्योहारों और विशेष अवसरों जैसे फसल की कटाई, बुवाई आदि पर गाए जाते हैं। लोक गीत सदा से ही गाए जाते रहे हैं। इनकी रचना किसी बड़े विद्धान के द्वारा नहीं हुई बल्कि आम लोगों के द्वारा ही हुई है। लोक गीतों की रचना का श्रेय महिलाओं को भी जाता है। महिलाओं ने भी इनकी रचना में अपना सहयोग दिया है। इन गीतों को गाने में किसी विशेष वाद्य यंत्र की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये गीत साधारण साज जैसे ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से भी गाए जा सकते हैं। 2. वास्तविक लोक गीत देश के गाँवों और देहात में हैं। इनका सम्बन्ध देहात की जनता से है। बड़ी जान होती है इनमें। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के पूरबी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाये जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल के लोकगीत हैं। पंजाब में माहिया आदि इसी प्रकार के हैं। हीर-राँझा, सोहनी-महीवाल सम्बन्धी गीत पंजाबी में और ढोला-मारू आदि के गीत राजस्थानी में बड़े चाव से गाये जाते हैं। प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत भाग-1′ में संकलित पाठ ‘लोक गीत’ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘भगवतशरण उपाध्याय’ जी हैं। इस पाठ में लेखक ने लोक गीतों के महत्त्व के बारे में बताया है। व्याख्या- लेखक का कहना है कि लोक गीतों का सबसे अधिक प्रभाव देश के गाँवों और देहातों में है। लोक गीत का संबंध सीधे तौर पर देहात की जनता से माना जाता है। लोक गीत बहुत ही प्रभावशाली होते हैं। चैता, कंजरी, बारहमासा, सावन आदि अनेक लोक गीत हैं। ये लोक गीत मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के और बिहार के अनेक जिलों में गाए जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल में गाए जाने वाले लोक गीत हैं। पंजाब में भी अनेक लोक गीत प्रचलित हैं जिनमें माहिया, हीर-रांझा, सोहनी-महीवाल आदि हैं। राजस्थान के लोक गीतों में ढोला मारू बहुत प्रसिद्ध है वह बड़े-चाव से राजस्थान के देहातों में गाया जाता है। 3. अनन्त संख्या अपने देश में स्त्रियों के गीतों की है। हैं तो ये गीत भी लोक गीत ही पर अधिकतर इन्हें औरतें ही गाती हैं इन्हें सिरजती भी अधिकतर वही हैं। वैसे मर्द रचने वालों या गाने वालों की भी कमी नहीं है पर इन गीतों. का सम्बन्ध विशेषतः स्त्रियों से है। इस दृष्टि से भारत इस दिशा में सभी देशों से भिन्न है क्योंकि संसार के अन्य देशों में स्त्रियों के अपने गीत मर्दो या जनगीतों से अलग और भिन्न नहीं हैं, मिले-जुले ही हैं। प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘संसार एक पुस्तक है’ पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘भगवतशरण उपाध्याय’ जी हैं। लेखक ने यहाँ पर बताया है कि हमारे देश में अधिकतर गीत औरतों के हैं जिनकी रचनाकार भी वे स्वयं ही हैं। व्याख्या- लेखक का कहना है कि हमारे देश में अधिकतर गीत औरतों को आधार बनाकर लिखे गए हैं। इन लोक गीतों की रचना भी महिलाओं के द्वारा ही हुई है। पुरुषों द्वारा रचित गीत भी कम नहीं हैं परन्तु महिलाओं के गीत इनसे अधिक हैं। पुरुषों द्वारा रचित गीतों का संबंध भी स्त्रियों से ही होता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो भारत इस दिशा में अन्य सभी देशों से अलग है क्योंकि दूसरे देशों में स्त्रियों और पुरुषों के गीत अलग-अलग न होकर एक ही होते हैं। लोक गीत Summaryपाठ का सार लोक गीत अपनी ताज़गी और लोकप्रियता के कारण मार्ग और देशी दोनों प्रकार के संगीत से भिन्न हैं। लोक गीत गाँव, नगर की जनता के गीत हैं इनके लिये साधना की जरूरत नहीं होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर ही ये गाये जाते हैं। इन गीतों की रचना करने वाले अधिकतर गाँव के अनपढ़ लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में भाग लिया। ये गीत साधारण ढोलक, झांझ, करताल, बाँसुरी आदि की सहायता से ही गाए जाते हैं। मार्ग या देशी गीतों के सामने इनको पिछड़ा समझा जाता था अभी तक इनकी काफी उपेक्षा की जाती थी। साधारण जनता की और राजनीतिक कारणों से लोगों की नजर फिरने से साहित्य और कला के क्षेत्र में काफी परिवर्तन हुआ है। अनेक लोगों ने अनेक बोलियों के लोक साहित्य और लोक गीतों के संग्रह पर कमर कसी। इस प्रकार के अनेक संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। सरकार ने भी लोक साहित्य के पुनरुद्धार के लिए अनेकों प्रयत्न किए और सार्वजनिक अधिवेशनों, पुरस्कार, प्रचार आदि के द्वारा वृद्धि शुरू कर दी। लोक गीतों के अनेक प्रकार हैं। मध्य प्रदेश, दकन, छोटा नागपुर में गोंड खाँड, ओराव मुंडा, भील, संथाल आदि जातियाँ फैली हुई हैं। इनके गीत और नाच अधिकतर साथ-साथ बड़े-बड़े दलों में गाए या नाचे जाते हैं। एक दूसरे के जवाब में बीस-बीस तीस-तीस आदमियों और औरतों के दल गाते हैं। दिशाएं गूंज उठती हैं। पहाड़ियों के अपने अलग गीत एवं भिन्न रूप होते हुए भी अशास्त्रीय होने के कारण उनमें समानता है। गढवाल, कन्नौर, कांगड़ा आदि के अपने-अपने गीत और उन्हें गाने की अपनी अलग-अलग शैलियाँ हैं। उनका अलग नाम पहाड़ी है। लोक गीत वास्तव में गाँव और देहात के हैं। इनका सम्बन्ध भी देहात की जनता से है। चैता, कजरी, सावन, बारहमासा आदि गीत मिर्जापुर, बनारस, उत्तर प्रदेश के पूर्वी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाये जाते हैं। भतियाली और ब्राउल बंगाल के लोक गीत हैं। माहिया आदि पंजाब के गीत हैं। हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल के गीत पंजाब में और ढोला-मारू राजस्थान आदि में गाये जाते हैं। देहाती गीतों की रचना का विषय रोजमर्रा की ज़िन्दगी से होता है जिससे वे सीधे हृदय को छू लेते हैं। पील, सारंग, सोरठ, सावन आदि उनके राग हैं। अधिकतर लोक गीत गाँव और क्षेत्रों की बोलियों में गाये जाते हैं। राग इन गीतों के आकर्षण होते हैं। इनकी समझी जाने वाली भाषा ही इनकी सफलता का कारण है। जातियों के अतिरिक्त सभ्य गाँव के दल गीतों में बिरहा आदि गाए जाते हैं। ये लोग दल बनाकर एक दूसरे के जवाब के रूप में गीत गाते हैं। एक दूसरे प्रकार के बड़े लोकप्रिय गाने अल्हा के हैं जो बुन्देलखण्डी में गाये जाते हैं। इनका प्रारम्भ चन्देल राजाओं के राजकवि जगनिक से माना जाता है। जिसने आल्हा ऊदल की वीरता का वर्णन अपने महाकाव्य में किया है। इनको गाने वाले गाँव-गाँव ढोलक लिये गाते फिरते हैं। जिनमें नट रस्सियों पर खेल करते हुए गाते हैं। लोक गीत हमारे गाँव में आज भी बहुत प्रेम से गाए जाते हैं। अपने देश में ज्यादा संख्या स्त्रियों के गीतों की है वे ही इन्हें गाती हैं। पुरुष भी इनकी रचना करके इनको गा सकते हैं। लेकिन इन गीतों का सम्बन्ध स्त्रियों से है। इस दृष्टि से भारत इस दिशा में सभी देशों से भिन्न है। विवाह के, त्योहार के, नदियों में नहाते समय के, प्रेम युक्त गाली के, मलकोड़ ज्यौनार के, जन्म आदि सभी अवसरों के अलग-अलग गीत हैं। एक विशेष बात यह है कि स्त्रियों के गाने दल बाँधकर ही गाये जाते हैं अकेले नहीं। अनेक कंठ एक साथ फूटने के कारण उनमें मेल नहीं होता फिर भी त्योहारों और अवसरों पर वे अच्छे लगते हैं। गाँव और नगरों में इन गीतों को गाने वाली स्त्रियाँ भी होती हैं जो विशेष अवसरों पर गाने के लिए बुला ली जाती हैं। सभी ऋतुओं में स्त्रियाँ दल बाँधकर गाती हैं। लेकिन होली, बरसात की कज़री उनकी अपनी चीज है, जो सुनते ही हृदय को छू लेती है। स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। गुजरात का एक प्रकार का गायन गरबा है इसमें स्त्रियाँ घेरे में घूम-घूमकर गाती हैं। साथ ही लकड़ियाँ भी बजाती हैं जो बाजे का काम करती हैं। इसमें नाचना, गाना साथ-साथ चलते हैं। वास्तव में यह नाच ही है। यह सभी प्रान्तों में लोकप्रिय हो गया है। होली के अवसर पर ब्रज में रसिया के गीत स्त्रियों के दल बनाकर माए जाते हैं। गाँव के गीत वास्तव में अनेक प्रकार के हैं। जहाँ जीवन लहराता है और वहाँ आनन्द के स्रोतों की कमी नहीं हो सकती। शब्दार्थ : लोकगीत कितने प्रकार के होते हैं?अनुक्रम. 1.1 संस्कार गीत. 1.2 गाथा-गीत/ लोकगाथा. 1.3 पर्वगीत. 1.4 पेशा गीत. 1.5 जातीय गीत. लोकगीत का अर्थ क्या है बताइए?लोकगीत – जनसामान्य जब अपने भावों को किसी भी गीत या कविता के माध्यम से लयात्मक ढंग से स्वर माधुर्य के साथ प्रस्तुत करता है , तो वे गीत लोकगीत कहलाते हैं । लोकगीत हमारी संस्कृति के संवाहक होते हैं ।
लोक गीतों की क्या विशेषता है?लोकगीत सीधे जनता के गीत हैं। इसके लिए विशेष प्रयत्न की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये त्योहारों और विशेष अवसरों पर साधारण ढोलक और झाँझ आदि की सहायता से गाए जाते हैं। इसके लिए विशेष प्रकार के वाद्यों की आवश्यकता नहीं होती।
लोकगीत किसका गीत है?लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं ये । इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर ये गाए जाते हैं।
|