दबाव समूह क्या है इसके महत्व का वर्णन कीजिए? - dabaav samooh kya hai isake mahatv ka varnan keejie?

दबाव समूह अज्ञात साम्राज्य है। जब एक सम विचार वाले व्यक्ति अपने हितों या आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक संगठन बनाकर उद्देश्यों या लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। तब इस संगठित संघ को हम दबाव समूह या हित समूह को संज्ञा देते हैं। आधुनिक जटिल समाजों में यह प्रवृत्ति पायी जाती है कि समान हित वाले व्यक्ति अपने हितों और स्वार्थों की रक्षा लिए अपने को समूह के रूप में संगठित कर लेते है-ऐसे समूहों को ही हित समूह या दबाव समूह कहा जाता है।

दबाव समूह व हित समूहों का अध्ययन राजनीतिक दलों के अध्ययनों के समकालीन समय से ही प्रारम्भ है। वर्तमान लोकतंत्रीय समाज में इनके अध्ययनों की लोकप्रियता एवं महत्त्व बढ़ा है। विकसित, विकासशील अथवा अविकसित विश्व के सभी समाजों में दबाव समूह पाये जाते हैं। दबाव-समूह का विकास अमरीकी राजनीतिक व्यवस्था की देन माना जाता है। दबाव समूह अमरीकी गणतंत्र की स्थापना के साथ ही पैदा गये थे, लेकिन इनकी स्पष्ट भूमिका 20वीं शताब्दी में प्रकाश में आयी। दबाव-समूहों के सम्बन्ध में प्रसिद्ध विचारक चर्चिल ने एक बार बिटिश लोक सभा कहा था. हम से यह आशा नहीं की जाती है कि हम सब एक शालीन सभा के ऐसे सदस्य हैं जिनका अपना कोई विशिष्ट हित नहीं है. यह हास्यास्पद है। यह केवल स्वर्ग में ही संभव हो सकता है. यहाँ नहीं।" इस बात में यह स्पष्ट होता है कि दबाव समूह या हित समूह सार्वभौमिक रूप से विश्व को हर व्यवस्थाओं में पाये जाते रहे हैं। 1908 में प्रकाशित आर्थर वेण्टले की पुस्तक 'दि प्रोसेस आफ गवर्नमेंट से दबाव समूहों या हित समूहों का विधिवत अध्ययन प्रारम्भ माना जाता है।

विभिन्न विद्वानों ने दबाव समूह को अलग-अलग नामों से संबोधिन किया है। बहुलवादियों ने दबाव समूह को केवल समूह कहा है। गैब्रियल आमण्ड रोमन कोकोविज तथा हिचनर एवं हरवोल्ड आदि ने इसे हित समूह कहना उचित माना है। जे. सी. जोहगे ने इसे हित समूह व दबाव समूह दोनों नामों से सम्बोधित किया है। कुछ विद्वानों ने इसे 'दीर्घा ममूह (Lothy Groups) कहा है। इन समूहों को कोई भी नाम दिया जाये, इनमें 'दबाव समूह' अधिक प्रचलित और उपयुक्त शब्द प्रतीत होता है। वी. ओ. की., हग एकस्टीन पिनाक और स्मिथ आदि ने इसे 'दबाव समूह' कहना ही पसंद किया है । वस्तुतः शासन की नीतियों व उसके निर्णयों को प्रभावित करने से संबंधित राजनीतिक प्रक्रियाओं के संदर्भ में समूहों के प्रयासों का जब अध्ययन किया जाता है, तो इसका आशय 'दबाव' शब्द से ही स्पष्ट होता है, क्योंकि इस शब्द से उनके भिन्न-भिन्न व विविध प्रकार के प्रयास तथा उनकी सारी चेष्टाओं व प्रक्रियाओं का बोध होता है। अतः इसे दबाव समूह कहना ही अधिक उपयुक्त होगा। 

परिभाषाएँ (Definition)- दबाव समूह की परिभाषाएं

  1. हिचनर एवं हरवोल्ड के अनुसार, राजनीतिशास्त्र में हित समूह या दबाव समूह का अभिप्राय समान उद्देश्य से लोगों के ऐसे किसी समूह से होता है जो राजनीतिक कार्यवाही द्वारा सरकारी नीति को प्रभावित करके अपने उद्देश्य को पूरा करते हैं। यदि और अधिक सरल शब्दों में कहा जाये तो वह समूहजो सरकार से कुछ अपेक्षा रखता है, हित समूह कहलाता है। 

  2. मायनर वीनर के शब्दों में, “दबाव समूह से तात्पर्य ऐविक रूप से संगठित ऐसे समुदाय से है जो प्रशासकीय ढांचे से बाहर रहकर शासकीय अधिकारियों के निर्वाचन, मनोनयन तथा सार्वजनिक नीति के निर्माण एवं क्रियान्वयन को प्रपावित करने का प्रयल करता है।

  3. ओडगॉर्ड के अनुसार, एक दबाव समूह ऐसे लोगों का औपचारिक संगठन है जिनके एक सामान्य उदेश्य एवं स्वार्थ हो और जो घटनाओं के क्रम को विशेष रूप से सार्वजनिक नीति के निर्माण औरं शासन को इसलिए प्रभावित करने का प्रयत्न करें कि उनके अपने हितों की रक्षा और वृद्धि हो सके।"

  4. बी. ओ. की. के अनुसार, हित-समूह ऐसे असार्वजनिक सगठन है जिनका निर्माण सार्वजनिक नीति को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। ये प्रत्याशियों के चयन तथा सरकार के व्यवस्थापन के उत्तरदायित्व की अपेक्षा सरकार को प्रभावित करने का प्रयत्न काके अपने हित-साधन में लगे रहते हैं।"

  5. एच जेगलर के अनुसार, यह एक संगठिन समूह है जो सरकारी निर्णयों के संदर्भ को, सरकार में अपने प्रतिनिधियों को स्थापित किये बिना भी प्रभावित करना चाहता है।

  6. फ्रांसिस जी. केसल्स के शब्दों में, दबाव समूह वह समूह है जो प्रशासनिक कार्यों के द्वारा राजनीतिक परिवर्तन लाने का प्रयास करता है । यह समूह स्वयं राजनीतिक दल नहीं होता क्योंकि उसे व्यवस्थापित दलों की तरह प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है।"

  7. आमण्ड एव पावेल के अनुसार."हित समूह से हमारा अभिप्राय व्यक्तियों के उस समूह से है जो आपस में कार्य-व्यापार तथा लाभ के बन्धनों से जुड़े हैं और जिन्हें इन बन्धनों की जानकारी भी रहती है। हित-समूह संगठित भी हो सकते हैं अर्थात समूह के सदस्य उन कार्यों को करते है जो हित-समूह में रहकर उन्हें करने चाहिए या यह भी हो सकता है कि व्यक्तियों में हित समूह की चेतना सामयिक और विरामी हो।"

  8. हैनरी डब्ल्यू. एहर मैन के शब्दों में,"दबाव समूह वह ऐच्छिक समिति है जिसके सदस्य किसी हित के बचाव के लिए परस्पर सम्बद्ध हैं।"

  9. स्टीफेन एल, बेस्वी के अनुसार, “वर्तमान समाजशास्त्रियों की भाषा में समान व्यक्तियों के एकत्रीकरण से कोई भी व्यवस्थित अन्तक्रिया एक समूह का निर्माण करेगी और क्रिया हित की ओर संकेत करेगी। इस आधार पर यद्यपि औपचारिक रूप से संगठित अनेक हित-समूह है तथापि हम अनेक और भी जोड़ सकते हैं तथा राजनीतिक प्रक्रिया में और उस पर उसके प्रभाव की पूर्ण जानकारी के लिए उनका भी अध्ययन आवश्यक है।

इस प्रकार दबाव समूह से अभिप्राय ऐसे गुटों से है जो शासन पर अधिकार किये बिना विधायकों और प्रशासकों की नीति तथा कार्य को प्रभावित करते हैं। 

दबाव समूह के लक्षण / विशेषता 

दबाव गुटों के निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं

1. सीमित उद्देश्य - दबाव समूह का उद्देश्य सदैव सार्वजनिक हित के स्थान पर अपने सदस्यों का हित या कल्याण करना होता है। जब उनका उद्देश्य प्राप्त हो जाता है, तो या तो वे समाप्त हो जाते हैं या निर्जीव हो जाते हैं। ऐसे समूहों का संगठन, औपचारिक, अर्द्ध-औपचारिक या अनौपचारिक भी हो सकता है। कुछ अनौपचारिक संगठन भी इतने शक्तिशाली और प्रभावी होते हैं कि कोई शासन या समूह उनको उपेक्षा नहीं कर पाता है।

2. सीमित सदस्यता - दबाव समूह का उद्देश्य सीमित होता है। किसी वर्ग विशेष के हितों की रक्षा और पूर्ति करना उनका उद्देश्य होता है इसलिए उनकी सदस्यता भी सीमित होती है, अर्थात उसी वर्ग विशेष के व्यक्ति ही इसके सदस्य होते हैं। उदाहरण के लिए अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की सदस्यता मात्र श्रमिक वर्ग को ही प्राप्त है। 

3. संवैधानिक और असंवैधानिक साधनों का प्रयोग - दबाव समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ती के लिए संवैधानिक और असंवैधानिक साधनों का प्रयोग आवश्यकतानुसार कर लेते है। विधि निर्माताओं की धमकी देना, प्रलोभन देना, घूस देना, डराना, निर्वाचन के लिए धन देना, हत्या कराना आदि। सभी साधनों का प्रयोग अवसर के अनुरूप कर सकते हैं। दबाव समूहों का उद्देश्य पूरा होना चाहिए। चाहे उनके साधन उचित हो या अनुचित, पवित्र या अपवित्र, संवैधानिक हों या असंवैधानिक इसकी चिंता ये कभी नहीं करते।

4. शासन एवं विधानमण्डल से बाहर - दबाव समूह न तो शासन में भागीदार होते हैं, न चनावों में भाग लेते है.न विधानमण्डत में आना चाहते हैं, परन्तु उसके बिना ही वे अपनी नीति के लिए बाहर में विधायकों को प्रभावित करते है। वे शासन के उत्तरदायित्त मे दूर रहकर दबाव की नीति में विश्वास करते है।

5. संगठित या असंगठित स्वरूप - दबाव गुटों का स्वाप संगठित भी हो सकता है और अगर भी । उनको कार्य प्रणाली गुप्त और रहस्यमय होती है, इसलिए ये अज्ञात साम्राज्य को जाते है।

6. दबाव समूह पूंजीवादी राष्ट्रों, लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में अधिक फलीभूत होते है। औद्योगिक देशों में उनका विकास बहुत तीव्र गति से होता है।

7. दबान समूह का सम्बन्ध सदैव अपने वर्ग के सदस्यों के हितों से होता है। उनकी रक्षा और पूर्ती के उनके जीवन-मरण का प्रश्न होता है। 

दबाव समूह के उदय के कारण

आधुनिक युग में दबाव समूह के उदय के निम्नलिखित कारण हैं

1. औद्योगिक सभ्यता का विकास-औद्योगिक सभ्यता ने अनेक नये उद्योगों, पेशों, कारखानों को जन्म दिया है। अत: समाज के सदस्य विभिन्न वगों एवं समूहों में बंट गये हैं। प्रत्येक समूह या वर्ग अपने हितों की रक्षा, उनकी वृद्धि और पूर्ति चाहता है। परन्तु यह संभव नहीं कि प्रत्येक वर्ग शासन पर अपना अधिकार का ले । इसलिए वह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अप्रत्यक्ष रूप से दबाव समूह के माध्यम से अपना कार्य करता है।

2. राज्य के कार्यों में वृद्धि - औद्योगिक सभ्यता के विकास के साथ साथ राज्य के कार्यों में उल्लेखनीय वृद्धि हई है। राज्य का कार्य-क्षेत्र राजनीतिक दायरे में ही सीमित न रहकर आर्थिक जीवन,सामाजिक जीवन में पूरी तरह छा गया है। राज्य का स्वरूप कल्याणकारी हो गया है। ऐसी स्थिति में यह स्वाभाविक और आवश्यक भी है कि विभिन्न हितों के लोग अपने अपने हितों को पूर्ति करने के लिए दबाव गुटों का गठन करें जिससे राज्य की नीति और कार्यों को अपने पक्ष में करा सकें।

3. लोकतंत्र का व्यावहारिक स्वरूप - सिद्धान्त में यह भी आशा की गयी थी कि लोकतन्त्र में जनता, राजनेता और राज्य के कर्णधार सम्पूर्ण समाज के हितों के लिए कार्य करेंगे। लेकिन व्यवहार में यह संभव नहीं हुआ । सामान्यतया प्रत्येक व्यक्ति, वर्ग और समूह अपने स्वार्थों को ध्यान में रखकर कार्य करता है, अतः प्रत्येक राज्य में विभिन्न हितों का संघर्ष और प्रतिस्पर्धाओं का दौर चलता रहता है। ऐसी स्थिति में इन वर्गों के हितों की रक्षा के लिए दबाव समूह का संगठन आवश्यक है।

4. राजनीतिक दलों का व्यावहारिक स्वरूप - राजनीतिक दलों की कार्य प्रणाली भी दबाव समूह के जन्म के लिए जिम्मेदार है। राजनीतिक दलों के हित सार्वजनिक होते हैं। वे शासन पर अधिकार करना चाहते हैं इसलिए वे कुछ विशिष्ट वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं और यदि करते हैं तो शासन में नहीं आ सकते हैं। इसलिए वे विशिष्ट हितों और समस्याओं पर ध्यान नहीं दे सकते हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए दबाद समूहों का पनपना स्वाभाविक है।

5. प्रादेशिक निर्वाचन प्रणाली - विधानमंडलों के लिए निर्वाचन प्रादेशिक आधार पर किया जाता है। परन्तु मतदाताओं के हित भौगोलिक हितों के अतिरिक्त अन्य हितों से: जैसे-व्यावसायिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक आर्थिक आदि से जुड़े रहते हैं । एक ही व्यवसाय के लोग राज्य भर में होते हैं। इस प्रकार के लोगों को प्रादेशिक प्रतिनिधित्व से लाभ नहीं होता है अत: अपने व्यवसाय के आधार पर उन्हें अपने हितों के रक्षार्थ दबाद समूहों के रूप में संगठित होना पड़ता है। 

6. पेशेवर राजनीतिज्ञों की संख्या में वृद्धि : प्रत्येक देश में बरसाती मेंढकों की भांति पेशेवर राजनीतिज्ञ पैदा हो रहे हैं। जो व्यक्ति किसी उद्योग-धंधे, काम या व्यवसाय को परिश्रम, धैर्य या लगन से नहीं कर पाते, उनके लिए राजनीति सबसे बढियाँ धंधा है। आज राजनीति का महत्व भी बढ़ गया है इसलिए कुछ व्यक्ति इसमें आना चाहते हैं। ऐसे व्यक्ति अवसरवादी होते हैं उन्हें किसी वर्ग या समुदाय से लगाव होता है।

दबाव समहों के साधन और तरीके

विश्व के प्रत्येक दबाव-समूहों के अपने अपने उद्देश्य और कार्य करने के तरीके होते हैं। सामान्यतः अपनाये जाने वाले साधनों को निम्नलिखित रूपों में प्रस्तुत किया जा सकता है

1. संगठन (Organisation)-विश्व के प्रत्येक दबाव-समूहों का अस्तित्व इसलिए है कि उनका निर्माण सदस्यों के संगठन पर आधारित होता है। संगठन में ही शक्ति होती है। इन्हीं संगठनों के माध्यम में विभिन्न दबाव व हित समूहों को ताकत मिलती है। हालांकि विभिन्न देशों में असंगठित दबाव समूहों के भी उदाहरण मिलते है।

2. प्रकोष्ठ-क्रिया (Lobbying)- दबाव-समूहों को कार्य करने का सबसे सुपरिचित तरीका 'लॉबिइंग' है। अमरीका में यह काफी लोकप्रिय होता जा रहा है। वहाँ प्रत्येक व्यवस्थापिका-सदन के साथ लगे हुए कमरे को बरामदे लाबी व प्रकोष्ठ कहे जाते है। वहीं विधायक अवकाश के समय आकर बैठते हैं और वहाँ दबाव समूहों के प्रतिनिधि उनसे अपना सम्पर्क स्थापित करते हैं। अधिकांश दबाव-समूह अपने वैधानिक प्रतिनिधियों द्वारा 'लाँबिग' का काम करते हैं। 

3. सामूहिक प्रचार (Mass Propaganda)-अपने हितों व लक्ष्यों को प्राप्ति के लिए विभिन्न दबाव समूहों या हित समूहों द्वारा सामूहिक प्रचार-प्रसार का कार्य किया जाता है। इसके लिए विभिन्न तरीकों को अपनाया जाता है।

4. पत्र-पत्रिकाएँ (Paper and Magazines) - दबाव समुह अपने उद्देश्यों की पर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करते हैं। ये पत्रिकाएं मासिक, पाक्षिक व वार्षिक हो सकती हैं। इनमें दबाव समूह अपने संगठन व कार्यक्रमों को जनता के समक्ष प्रस्तुत कर एक ओर अपने पक्ष में जन-समर्थन या जनमत तैयार करते हैं। दूसरी ओर शासन की नीतियों की कमियों को भी जनता के सम्मुख प्रकाशित करते है। परिणामस्वरूप सरकार को अपने हितों के अनुकूल नीतियां बनाने के लिए बाध्य करते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा पोषित 'पंचजन्य' समाचार-पत्र, विश्व हिन्दू परिषद की 'देवपुत्र' मासिक पत्रिका आदि।

5. राजनीतिक दलों के अन्दर क्रियाशील रहना (Working inside Political Parties) - प्रायः संगठित दबाव समूह किसी न किसी राजनीतिक दलों से सांठ-गांठ' रखते हैं और ये समूह अपने हित-साधन के लिए इन राजनीतिक दलों का लाभ उठाते हैं तथा अपने कार्यों को अंजाम देते हैं। वर्तमान में दबाव समूहों को राजनीतिक दलों का संरक्षण प्राप्त होता है।

6. चुनाव में भाग लेना (Electioneering) - दबाव समूहों का चुनाव से सम्बन्ध नहीं होता और न ही ये अपना प्रत्याशी ही खड़ा करते है किन्तु ये किसी भी राजनीतिक दल को अपना समर्थन देने के पक्ष में सदैव रहते हैं। ये दबाव समूह इन दलों के चुनाव में धन, बल तथा कानून-शक्ति की मदद करते हैं और बदले में अपने हितों को पूरा कराने का इन दलों से आश्वासन प्राप्त करते रहते हैं। भारत में अखिल भारतीय श्रमिक संघ (A.I.TU.C.) समाजवादी दलों से तथा भारतीय राष्ट्रीय श्रमिक संघ (I.N.T.U.C.) कांग्रेस पार्टी से सम्बद्ध है। भारतीय मजदूर संघ भारतीय जनता पार्टी से सम्बन्धित दबाव समूह है।

7. हड़ताल तथा प्रदर्शन (Strike & Demonstration) – दबाव समूह अपने हित की रक्षा के लिए हड़ताल व प्रदर्शन आदि साधन अपनाते हैं। बहुधा श्रमिक संघ औद्योगिक कार्यों में संलग्न कर्मचारी की मांगों के समर्थन में हड़ताल आदि कराते हैं । इसके अतिरिक्त अन्य दबाव समूह इस साधन का प्रयोग सामान्यतः राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए ही करते हैं। इसके साथ ही वे सरकार पर दबाव डालने के लिए कभी-कभी प्रदर्शनों का भी आयोजन करते हैं। वर्तमान में हड़ताल व प्रदर्शनकारी दबाव समूहों की संख्या में वृद्धि हुई है।

8. हिंसा (Violence)- दबाव समूह का एक महत्वपूर्ण साधन हिंसा भीहै। हड़ताल की असफलता के कारण दबाव समूह यदा-कदा हिंसा का सहारा भी लेते हैं। बिहार में कोयला तथा अन्य खानों के श्रमिकों के पारस्परिक हितों के टकराव के कारण हिंसात्मक झगडे होते रहते हैं। यूरोपीय देशों में फ्रांस के दबाव समूहों के द्वारा सर्वाधिक हिंसा का प्रयोग किया जाता है।

9. अहिंसक सविनय अवज्ञा (Nan-riolent Civil Disobedience)- अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आंदोलन भी दबाव-समहों का एक साधन होता है। महात्मा गांधी ने इस साधन के प्रयोग से आजादी दिलायी। अमरीका में नीग्रो आंदोलन का एक साधन अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आंदोलन रहा है। भारत के के दबाव समूहों द्वारा इसका प्रयोग बहुतायत रूप में किया जाता है। इसी के परिणामस्वरूप का जन-कल्याण की योजनाएं खटाई में पड़ जाती हैं। 

10. न्यायालयों द्वारा दबाव (Pressure through the Courts)-आज दबाव समूह अपने हित के लिए न्यायालयों का सहारा लेने लगे हैं। जरा-सी बात को लेकर आये दिन शासन के किसी कार्य को में चुनौती देना उनका पेशा बन गया है। ये हित समूह ऐसे नियमों का विरोध करते हैं जो उनके विपरीत होते हैं। उदाहरण के लिए आरक्षण वृद्धि के लिए, आदिवासियों या अल्पसंख्यकों द्वारा न्याया शरण में जाना।

11. गोष्टियाँ आयोजित करना (To organise Conferences)- अनेक हित-समूह या दबाव समूह विभिन्न प्रकार की गोष्ठियों का आयोजन करके जन सामान्य तक शासन विरोधी बातों को पहुंचाते है परिणामस्वरूप जनमत इनके पक्ष में होता है तथा गोष्ठियों भाषणों, वाद-विवादों एवं वार्ताओं के माध्यम से शासन को अपने हित पूर्ति के लिए बाध्य करने को मजबूर करते हैं।

12. आकड़ों को प्रकाशित करना (Data Publication) - नीति-निर्माताओं के समक्ष ये दबाव समूह शासन संबंधी विश्वसनीय आंकड़ों को एकत्रित कर शासन को उनसे अवगत कराते हैं तथा ऐसे आंकड़ों को समाचार या अन्य माध्यमों से प्रकाशित कर अपना पक्ष मजबूत करते हैं। शासन इन आंकड़ों के प्रकाशन को गम्भीरता से सोचता है और इन समूहों के हितों का ख्याल रखने का प्रयास करता है।

13. दबाव समूह और कर्मचारी तंत्र (Pressure Groups and Bureaucracy)-विश्व के प्रत्येक गुट समूहों में कर्मचारी संघों ने शासन पर दबाव डालने की परम्परा बरकरार रखी है। आज प्रत्येक कर्मचारी संगठनों द्वारा अपने-अपने हित के लिए शासन पर दबाव डालकर उनसे अपने हितों की पूर्ति का प्रयास करते हैं। भारत या अमेरिका जैसी संघात्मक शासन-व्यवस्था हो या ब्रिटेन जैसी एकात्मक शासन-प्रणाली ये दबाव समूह सर्वत्र एक समान भूमिका निभाते हैं। वे सभी आयकर की माफी के लिए, कभी निर्यात लाइसेंसों की मंजूरी के लिए और कभी किसी प्राइवेट चैरिटेबल संस्था के लिए आवश्यक सरकारी स्वीकृति के लिए बड़े-बड़े अधिकारियों पर दबाव डालते हैं।

दबाव समूह के कार्य

दबाव समूह का महत्त्व आज इतना अधिक बढ़ गया है कि कहीं तो उन्हें शासक निर्माता (ine maker) कहा जाता है तो कहीं विधानमंडल के पीछे विधानमण्डल (Legislature bchind the legislature) कहा जाता है। कहीं संसद का तृतीय सदन (Third Chamber of the Parliament) कहा जाता है तो कहीं अज्ञान साम्राज्य (Anonymous empire) कहा जाता है और कहीं दलों के पीछे रहने वाली जनता (The living public behind the parties) कहा जाता है। इनके कार्यों के कारण हो इतना महत्व इनको दिया जाता है। दबाव समूह के कार्य निम्नलिखित हैं

1. शासन की तानाशाही से जनता की रक्षा करना-कल्याणकारी राज्य के नाम पर अब राज्य का कार्य क्षेत्र बहुत बढ़ गया है। शासन में शक्तियों का केन्द्रीकरण हो गया है। शासन की इस केन्द्रीकरण के कारण तानाशाही जैसी स्थिति पैदा हो गयी है। इस तानाशाही से दबाव समूह ही जनता की रक्षा करते हैं। उदाहरण के लिए अमरीका में नीग्रो को मतदान का अधिकार दिलाने के लिए वहां दी नेशनल एसोसिएशन ऑफ़ कलर्ड पीपल एंड वीमेन ने बहुत कार्य किया।

2. शासन की नीतियों और कानूनों को प्रभावित करने का प्रयास -जब शासन की नीतियों का निर्धारण होता है तब कानून बनाये जाते हैं, ऐसे में ये गुट शासन पर दबाव डालकर उन नीतियों या कानूनों को अपने हित के पक्ष में करने का प्रयास करते है। इस कार्य के लिए वे स्वयं भी कार्य करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर राजनीतिक दलों का भी सहारा लेते हैं।

आलमंड ने कहा है कि, "हित समूह व्यवस्थापिका में कानून निर्माण प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण अवसरों की तलाश में रहते हैं जिससे अधिक से अधिक दबाव डाला जा सके। वे अवसर हैं, जब व्यवस्थापिका की नीति घोषित होती है, उस पर मतदान होता है और उचित निर्णय लिया जाता है।"

3. सार्वजनिक अधिकारियों पर निगरानी रखना - दबाव समूह सार्वजनिक अधिकारियों पर आवश्यक नियंत्रण रखते हैं। देश के सभी नागरिक तो यह कार्य नहीं कर सकते हैं लेकिन दबाव समूह उनके कार्यों पर निगरानी रखकर उन्हें सही रूप से कार्य करने को मजबूर कर देते हैं। यह कार्य अधिकारियों और जनता-दोनों के हित के लिए है क्योंकि अधिकारी यह जानना चाहते हैं कि जनता की समस्याएं क्या है ? दबाव समूह जनता की समस्याओ को अधिकारियों तक पहुँचाकर जनहित में कार्य करते हैं।

4. समाज के विभिन वर्गों के मध्य सामंजस्य स्थापित करना - आज समाज के विभिन्न वर्गों में सामंजस्य स्थापित करना, समाज को विघटन से बचाने के लिए बहुत ही आवश्यक है। यह कार्य दबाव समूह ही करते हैं। समाज के विभिन्न वर्ग अपनी निरंकुशता अन्य वर्गों पर नहीं लाद पाते हैं. क्योंकि समाज के अन्य वर्गों में प्रतियोगिता होने लगती है। व्यापारी वर्ग:श्रमिक वर्ग कृषक वर्ग,जातीय वर्ग आदि अपने-अपने दबाव समूह के माध्यम से अपने हितों को प्राप्त करना चाहते हैं और जब उनके हित आपस में टकराते हैं तो उनमें सामंजस्य होना आवश्यक होता है, जिससे समाज की प्रगति होती है।

5. निर्वादन के लिए उम्मीदवारों के चयन में हस्तक्षेप करना-दबाव समूह इस बात का पूर्ण प्रयास करते है कि चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवार अधिकतर उनके वर्गों से लिये जाएँ जिससे वे उनके हितों की रक्षा कर सकें। इस बारे में अमरीका के जीवन बीमा निगम के अध्यक्षों के संघ के लिए निर्वाचित एक प्रतिनिधि ने अपने उच्च अधिकारी को लिखा था, "हमारी पद्धति यह है कि चुनाव से पूर्व हम कुछ प्रत्याशियों में रुचि लेते हैं, निर्वाचित होने में उनकी मदद करते हैं. और तब हम उनके अहसानमन्द हों, इसके बजाय वे हमारे अहसानमन्द होते हैं, यही हमारी सफलता का रहस्य है।"