तिरंगे में तीनों रंगों का मतलब क्या है? - tirange mein teenon rangon ka matalab kya hai?

National Flag Colors Meaning: भारत का राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगों का होता है, इसलिए इसे "तिरंगा" भी कहा जाता है| आइये जानते हैं भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में मौजूद रंग किसके प्रतीक हैं और क्या है उनका महत्व: 

तिरंगे में तीनों रंगों का मतलब क्या है? - tirange mein teenon rangon ka matalab kya hai?


भारत के राष्ट्रीय ध्वज को तिरंगा (Tricolour) कहते हैं| इसे 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था| इसमें मौजूद तीन रंग- केसरिया, सफ़ेद और हरा होता है| 

केसरिया (Saffron): तिरंगे में सबसे ऊपर का रंग केसरिया होता है| यह रंग 'त्याग और बलिदान' का प्रतीक है| भारतीय संस्कृति में भी केसरिया रंग का बहुत महत्व होता है| 

सफ़ेद (White): तिरंगे का मध्य भाग सफ़ेद रंग का होता है, जो "शांति, एकता और सच्चाई" का प्रतीक है| 

हरा (Green): राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में सबसे नीचे की पट्टी का रंग हरा होता है| यह रंग "समृद्धि, हरियाली, प्रगति, उर्वरता" का प्रतीक है| 

अशोक चक्र: तिरंगे के बीच में नीले रंग (Navy Blue) का चक्र बना होता है, जिसे अशोक चक्र कहते हैं| इस चक्र में 24 तीलियां (Spokes) होती हैं, जो "विकास, प्रगतिशीलता और बदलाव" का प्रतीक हैं| 

स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) के खास पर्व पर हर भारतीय आजादी के जश्न में सराबोर होता है, क्योंकि इसी दिन 1947 को भारत अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ था। 15 अगस्त के मौके पर हर भारतीय तिरंगा फहराता है और राष्ट्रगान गाकर देश की आजादी के लिए सर्घंष करने वाले और जान गंवाने वाले वीरों को याद करता है। 15 अगस्त के मौके पर देश के हर कोने में तिरंगा लहराता हुआ दिखाई देता है। आज हम आपको अपने इसी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे (Tricolor) की खासियत बताएंगे। जिसे देखने के बाद हर भारतीय का सिर शान से झुक जाता है। 

तिरंगे का इतिहास

1921 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा कि हम देश की आजादी के लिए लड़ रहे हैं, हमारा एक झंडा होना चाहिए। इस बात को सुनने के बाद पिंगली वेंकैया झंडा बनाने में लग गए और तिरंगा बनाया। तिरंगे को तीन रंगों में बनाया गया, जिसमें हर रंग का अपना एक अलग अर्थ था। यही वजह थी कि देश की आजादी से पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा की बैठक में तिरंगे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। 

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तिरंगे की खासियत

राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाए गए तिरंगे में तीन रंग है। केशरिया, श्वेत (सफेद) और हरा। इसके अलावा तिरंगे के अंदर एक 24 तिलियों वाला चक्र भी है, जो नीले रंग का है। तिरंगे में सबसे ऊपर केशरिया, बीच में सफेद और नीचे हरा रंग है। वहीं सफेद रंग की पट्टी के मध्य में एक 24 तिलियों वाला चक्र भी है। 

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बता दें कि भारतीय तिरंगे को एक खास लंबाई चौड़ाई में बनाया जाता है। तिरंगे को तीन अनुपात दो में बनाया जाता है। यानी कि इसकी लंबाई चौड़ाई से डेढ़ गुना अधिक होती है।

तिरंगे के रंगों का अर्थ

यूं तो कहने की बात है कि तीन रंग है तो तिरंगा तो है। लेकिन तिरंगे में प्रयोग किए गए सभी रंगों का अलग अर्थ है जो देश की गतिशीलता, विकास और शांति को प्रदर्शित करते हैं। 

तिरंगे में सबसे ऊपर केशरियां रंग है जो भारत की ताकत और साहस को प्रदर्शित करता है। बीच में स्थित सफेद रंग शांति और सत्य के लिए है। वहीं सबसे नीचे स्थित गहरा हरा रंग देश के विकास और समृद्धि को दर्शाता है। 

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तिरंगे में चक्र का महत्व

भारतीय तिरंगे के मध्य में स्थित सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का एक चक्र होता है। इस चक्र में 24 तिलियां होती हैं। इस चक्र का भी अपना महत्व है। इस चक्र का व्यास सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है। इस चक्र में जो 24 तिलियां लगी हैं जिसका अर्थ है जीवन गतिमान है ये चौबींसों घंटे चलता रहता है। बता दें कि चक्र को सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ से लिया गया था। 

भारत के राष्ट्रीय ध्वज जिसे तिरंगा भी कहते हैं, तीन रंग की क्षैतिज पट्टियों के बीच नीले रंग के एक चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज है। इसकी अभिकल्पना पिंगली वैंकैया ने की थी।[1][2] इसे १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व २२ जुलाई, १९४७ को आयोजित भारतीय संविधान-सभा की बैठक में अपनाया गया था।[3] इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं, जिनमें सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी जो देश की ताकत और साहस को दर्शाती है, बीच में श्वेत पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी देश के शुभ, विकास और उर्वरता को दर्शाती है।[4] ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात ३:२ है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है जिसमें २४ आरे (तीलियां) होते हैं। यह इस बात प्रतीक है भारत निरंतर प्रगतिशील है| इस चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है व इसका रूप सारनाथ में स्थित अशोक स्तंभ के शेर के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले की तरह होता है। भारतीय राष्ट्रध्वज अपने आप में ही भारत की एकता, शांति, समृद्धि और विकास को दर्शाता हुआ दिखाई देता है।

राष्ट्रीय झंडा निर्दिष्टीकरण के अनुसार झंडा खादी में ही बनना चाहिए। यह एक विशेष प्रकार से हाथ से काते गए कपड़े से बनता है जो महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था। इन सभी विशिष्टताओं को व्यापक रूप से भारत में सम्मान दिया जाता हैं भारतीय ध्वज संहिता के द्वारा इसके प्रदर्शन और प्रयोग पर विशेष नियंत्रण है।[5]

परिचय

गांधी जी ने सबसे पहले 1921 में कांग्रेस के अपने झंडे की बात की थी। इस झंडे को पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था। इसमें दो रंग थे लाल रंग हिन्दुओं के लिए और हरा रंग मुस्लिमों के लिए। बीच में एक चक्र था। बाद में इसमें अन्य धर्मो के लिए सफेद रंग जोड़ा गया। स्वतंत्रता प्राप्ति से कुछ दिन पहले संविधान सभा ने राष्ट्रध्वज को संशोधित किया। इसमें चरखे की जगह अशोक चक्र ने ली जो कि भारत के संविधान निर्माता डॉ॰ बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने लगवाया। इस नए झंडे की देश के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने फिर से व्याख्या की।[6]

21 फीट गुणा 14 फीट के झंडे पूरे देश में केवल तीन किलों के ऊपर फहराए जाते हैं। मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में स्थित किला उनमें से एक है। इसके अतिरिक्त कर्नाटक के नारगुंड किले और महाराष्ट्र के पनहाले किले पर भी सबसे लम्बे झंडे को फहराया जाता है।[7]

1951 में पहली बार भारतीय मानक ब्यूरो (बी॰आई॰एस॰) ने पहली बार राष्ट्रध्वज के लिए कुछ नियम तय किए। 1968 में तिरंगा निर्माण के मानक तय किए गए। ये नियम अत्यंत कड़े हैं। केवल खादी या हाथ से काता गया कपड़ा ही झंडा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। कपड़ा बुनने से लेकर झंडा बनने तक की प्रक्रिया में कई बार इसकी टेस्टिंग की जाती है। झंडा बनाने के लिए दो तरह की खादी का प्रयोग किया जाता है। एक वह खादी जिससे कपड़ा बनता है और दूसरा खादी-टाट। खादी के केवल कपास, रेशम और ऊन का प्रयोग किया जाता है। यहाँ तक कि इसकी बुनाई भी सामान्य बुनाई से भिन्न होती है।[8] ये बुनाई बेहद दुर्लभ होती है। इसे केवल पूरे देश के एक दर्जन से भी कम लोग जानते हैं। धारवाण के निकट गदग और कर्नाटक के बागलकोट में ही खादी की बुनाई की जाती है। जबकी हुबली एक मात्र लाइसेंस प्राप्त संस्थान है जहाँ से झंडा उत्पादन व आपूर्ति की जाती है।[8] बुनाई से लेकर बाजार में पहुँचने तक कई बार बी॰आई॰एस॰ प्रयोगशालाओं में इसका परीक्षण होता है। बुनाई के बाद सामग्री को परीक्षण के लिए भेजा जाता है। कड़े गुणवत्ता परीक्षण के बाद उसे वापस कारखाने भेज दिया जाता है। इसके बाद उसे तीन रंगो में रंगा जाता है। केंद्र में अशोक चक्र को काढ़ा जाता है। उसके बाद इसे फिर परीक्षण के लिए भेजा जाता है। बी॰आई॰एस॰ झंडे की जाँच करता है इसके बाद ही इसे फहराया जा सकता है |[8]

तिरंगे का विकास

भारत का तिरंगा ध्वज भारत के स्वतंत्रता संग्राम काल में निर्मित किया गया था। वर्ष १८५७ में स्वतंत्रता के पहले संग्राम के समय भारत राष्ट्र का ध्वज बनाने की योजना बनी थी, लेकिन वह आंदोलन असमय ही समाप्त हो गया था और उसके साथ ही वह योजना भी बीच में ही अटक गई थी। वर्तमान रूप में पहुँचने से पूर्व भारतीय राष्ट्रीय ध्वज अनेक पड़ावों से गुजरा है। इस विकास में यह भारत में राजनैतिक विकास का परिचायक भी है। कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं[9] :-

  • द्वितीय ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और १९०७ में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार यह १९०५ में हुआ था। यह भी पहले ध्वज के समान था; सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था, किंतु सात तारे सप्तऋषियों को दर्शाते थे। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।[10]
  • १९१७ में भारतीय राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया। डॉ॰ एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान तृतीय चित्रित ध्वज को फहराया। इस ध्वज में ५ लाल और ४ हरी क्षैतिज पट्टियाँ एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर सात सितारे बने थे। ऊपरी किनारे पर बायीं ओर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
  • कांग्रेस के सत्र बेजवाड़ा (वर्तमान विजयवाड़ा) में किया गया यहाँ आंध्र प्रदेश के एक युवक पिंगली वैंकैया ने एक झंडा बनाया (चौथा चित्र) और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
  • वर्ष १९३१ तिरंगे के इतिहास में एक स्मरणीय वर्ष है। तिरंगे ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया और इसे राष्ट्र-ध्वज के रूप में मान्यता मिली।[10] यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया था कि इसका कोई साम्प्रदायिक महत्त्व नहीं था।
  • २२ जुलाई १९४७ को संविधान सभा ने वर्तमान ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को स्थान दिया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज अंतत: स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना।[1]
ब्रिटिशकालीन झंडे
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    ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का १८०१ का ध्वजा।

  • तिरंगे में तीनों रंगों का मतलब क्या है? - tirange mein teenon rangon ka matalab kya hai?

    ब्रिटिश सरकार के अधीन भारत का झंडा।

  • तिरंगे में तीनों रंगों का मतलब क्या है? - tirange mein teenon rangon ka matalab kya hai?

    ब्रिटिश भारतीय पताका ब्लू स्टार इंडिया के साथ नौसेना ध्वज के रूप में प्रयोग किया जाता रहा झंडा।

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  • तिरंगे में तीनों रंगों का मतलब क्या है? - tirange mein teenon rangon ka matalab kya hai?

    तिरंगा झंडा जो केंद्र में एक चरखा के साथ सफेद, हरे और लाल का है। गांधी का ध्वज, 1921 में कांग्रेस की बैठक में पेश किया।[11]

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    केसरिया, सफेद और केंद्र में एक चरखा के साथ हरे रंग का एक तिरंगा झंडा। स्वराज ध्वज, आधिकारिक तौर पर 1931 में कांग्रेस द्वारा अपनाया गया।[12]

रंग-रूप

तिरंगे में तीनों रंगों का मतलब क्या है? - tirange mein teenon rangon ka matalab kya hai?

भारतीय ध्वज की निर्माण शीट।

भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच की पट्टी का श्वेत धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। सफ़ेद पट्टी पर बने चक्र को धर्म चक्र कहते हैं। इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ की लाट से लिया गया है। इस चक्र में २४ अरों या तीलियों का अर्थ है कि दिन- रात्रि के २४ घंटे, जीवन गति‍शील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।[1]

भारतीय ध्वज में निम्न अनुमानित रंगों के अंतरण प्रयोग होते हैं। ध्वज में जो केसरिया, श्वेत, हरा तथा नीला रंग है वह एच॰टी॰एम॰एल॰ आर॰जी॰बी॰ व वेब रंगों में (हेक्साडेसिमल संकेतन में); सी॰एम॰वाइ॰के॰ के समकक्ष; डाई रंग और पेन्टोन के बराबर संख्या हल है।

तिरंगे में तीनों रंगों का मतलब क्या है? - tirange mein teenon rangon ka matalab kya hai?

अशोक चक्र, "धर्म का पहिया"

[13]

योजनाHTML:सीएमवाइकेवस्त्र रंगपैन्टोनकेसरिया# FF99330-50-90-0गहरा केसर1495cश्वेत# FFFFFF0-0-0-0फीका सफेद1cहरा# 138808100-0-70-30भारतीय हरा362cनीला# 000080100-98-26-48गहरा नीला2755c

आधिकारिक (सीएमवाइके) शीर्ष पट्टी के मूल (0,50,90,0)-रंग कद्दू के सबसे करीब-सीएमवाइके (0,54,90,0 के साथ); ट्रू डीप भगवा (23, 81, 5)) और (0, 24, 85, 15)) हैं।[13]

विनिर्माण प्रक्रिया

ध्वज के आकारआकारमिमी16300 × 420023600 × 240032700 × 180041800 × 120051350 × 9006900 × 6007450 × 3008225 × 1509150 × 100

विधान सभा बेंगलुरु (बंगलोर) के ऊपर भारतीय झंडा और राज्य प्रतीक

१९५० में भारत के गणतंत्र बनने के उपरांत, भारतीय मानक ब्यूरो (बी॰आई॰एस॰) ने १९५१ में पहली बार ध्वज की कुछ विशिष्टताएँ बताईं। ये १९६४ में संशोधित की गयीं, जो भारत में मीट्रिक प्रणाली के अनुरूप थीं। इन निर्देशों को आगे चलकर १७ अगस्त १९६८ में संशोधित किया गया। ये दिशा निर्देश अत्यंत कड़े हैं और झंडे के विनिर्माण में कोई दोष एक गंभीर अपराध समझा जाता है, जिसके लिए जुर्माना या जेल या दोनों सजाएं भी हो सकती हैं।[14]

ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बी॰आई॰एस॰) द्वारा राष्ट्रध्वज को तैयार करने के तीन दस्तावेज जारी किए गए हैं। इसमें कहा गया है कि सभी झंडे खादी के सिल्क या कॉटन के होंगे। झंडे बनाने का मानक 1968 में तय किया गया जिसे 2008 में पुन: संशोधित किया गया। तिरंगे के लिए नौ स्टैंडर्ड (मानक) साइज तय किए गए हैं। सबसे बड़ा झंडा 21 फीट लंबा और 14 फीट चौड़ा होता है। सबसे पहले बैंगलुरू से लगभग 550 कि॰मी॰ दूर स्थित बगालकोट जिले के खादी ग्रामोद्योग सयुक्त संघ में कपड़े को बहुत ध्यान से काता और बुना जाता है। इसके बाद कपड़े को तीन अलग-अलग लॉट बनाए जाते हैं। इन को तिरंगे के तीन अलग-अलग रंगो में डाई किया जाता है। डाई किए हुए कपड़े बैंगलुरू से 420 कि॰मी॰ स्थित हुबली इकाई में भेज दिए जाते हैं। यहाँ इन्हें अगल-अलग साइज के अनुसार काटा जाता है। कटे हुए कपड़े को हुबली में ही सिला जाता। यहाँ लगभग 40 महिलाएं प्रतिदिन 100 के करीब झंडे सिलती हैं। कटे हुए सफेद कपड़े पर चक्र प्रिंट किया जाता है। इसके बाद तिरंगे की तीनों रंग के कपड़े की सिलाई की जाती है। सिलाई के बाद कपड़े को पेस किया जाता है।[15]

केवल खादी या हाथ से काता गया कपड़ा ही झंडे के लिए उपयुक्त माना जाता है। खादी के लिए कच्चा माल केवल कपास, रेशम और ऊन हैं। झंडा बनाने में दो तरह के खादी का उपयोग किया जाता है, एक वह खादी, जिससे कपडा बनता है और दूसरा है खादी-टाट, जो बेज रंग का होता है और खम्भे में पहनाया जाता है। खादी टाट एक असामान्य प्रकार की बुनाई है जिसमें तीन धागों के जाल जैसे बनते हैं। यह परम्परागत बुनाई से भिन्न है, जहाँ दो धागों को बुना जाता है। इस प्रकार की बुनाई अत्यंत दुर्लभ है, इस कौशल को बनाए रखने वाले बुनकर भारत में एक दर्जन से भी कम हैं। दिशा-निर्देश में यह भी बताया गया है कि प्रति वर्ग सेंटीमीटर में १५० सूत्र होने चाहिए,[14] इसके साथ ही कपड़े में प्रति चार सूत्र और एक वर्ग फुट का शुद्ध भार २०५ ग्राम ही होना चाहिये।[16][17] इस बुनी खादी को दो इकाइयों से प्राप्त किया जाता है, धारवाड़ के निकट गदग से और उत्तरी कर्नाटक के बागलकोट जिलों से। वर्तमान में, हुबली में स्थित कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ को ही एक मात्र लाइसेंस प्राप्त है जो झंडा उत्पादन और आपूर्ति करता है। यद्यपि भारत में झंडा विनिर्माण इकाइयों की स्थापना की अनुमति खादी विकास और ग्रामीण उद्योग आयोग (के॰वी॰आई॰सी॰) द्वारा दिया जाता है परन्तु यदि दिशा-निर्देशों की अवज्ञा की गयी तो बी॰आई॰एस॰ को इन्हें रद्द करने के सारे अधिकार प्राप्त हैं।[16]

बुनाई पूरी होने के बाद, सामग्री को परीक्षण के लिए बी॰आई॰एस॰ प्रयोगशालाओं में भेजा जाता है। कड़े गुणवत्ता परीक्षण करने के बाद, यदि झंडा अनुमोदित हो जाता है तो, उसे कारखाने वापस भेज दिया जाता है। तब उसे प्रक्षालित कर संबंधित रंगों में रंग दिया जाता है। केंद्र में अशोक चक्र को स्क्रीन मुद्रित, स्टेंसिल्ड या काढ़ा जाता है। विशेष ध्यान इस बात को दिया जाना चाहिए कि चक्र अच्छी तरह से मिलता हो और दोनों तरफ ठीक से दिखाई देता हो। बी॰आई॰एस॰ झंडे की जाँच करता है और तभी वह बेचा जा सकता है।[14] भारत में सालाना लगभग चार करोड़ झंडे बिकते हैं। भारत में सबसे बड़ा झंडा (६१३ × ४१२ मी.) राज्य प्रशासनिक मुख्यालय, महाराष्ट्र के मंत्रालय भवन से फहराया जाता है।[17]

ध्वज संहिता

२६ जनवरी २००२ को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्ट्रियों आदि संस्थानों में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है, बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का कड़ाई से पालन करें और तिरंगे के सम्मान में कोई कमी न आने दें। सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्वज संहिता, २००२ को तीन भागों में बांटा गया है। संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है। संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है। संहिता का तीसरा भाग केन्द्रीय और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता है।

नियम व विनियम[1]

२६ जनवरी २००२ विधान पर आधारित कुछ नियम और विनियमन हैं कि ध्वज को किस प्रकार फहराया जाए :

  • राष्ट्रीय ध्वज को शैक्षिक संस्थानों (विद्यालयों, महाविद्यालयों, खेल परिसरों, स्काउट शिविरों आदि) में ध्वज को सम्मान की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता है। विद्यालयों में ध्वज-आरोहण में निष्ठा की एक शपथ शामिल की गई है।
  • किसी सार्वजनिक, निजी संगठन या एक शैक्षिक संस्थान के सदस्य द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अरोहण/प्रदर्शन सभी दिनों और अवसरों, आयोजनों पर अन्यथा राष्ट्रीय ध्वज के मान सम्‍मान और प्रतिष्‍ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता है।
  • नई संहिता की धारा (२) में सभी निजी नागरिकों अपने परिसरों में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्‍वीकार किया गया है।
  • इस ध्वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दें या वस्‍त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहाँ तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्‍त तक फहराया जाना चाहिए।
  • इस ध्वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्‍पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों के हुड, ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता।
  • किसी अन्‍य ध्वज या ध्वज पट्ट को राष्ट्रीय ध्वज से ऊँचे स्‍थान पर लगाया नहीं जा सकता है। तिरंगे ध्वज को वंदनवार, ध्वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता।

अधिक जानकारी भारतीय ध्वज संहिता Archived 2009-10-07 at the Wayback Machine में देखी जा सकती है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज भारत के नागरिकों की आशाएं और आकांक्षाएं दर्शाता है। यह देश के राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है।

झंडे का उचित प्रयोग

भारतीय ध्वज, स्वतंत्र भारत की पहली डाक टिकट, 21 नवम्बर 1947 को विदेशी पत्राचार के लिए जारी की गयी।[18][19]

सन २००२ से पहले, भारत की आम जनता के लोग केवल गिने-चुने राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़ सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज फहरा नहीं सकते थे। एक उद्योगपति, नवीन जिंदल ने, दिल्ली उच्च न्यायालय में, इस प्रतिबंध को हटाने के लिए जनहित में एक याचिका दायर की। जिंदल ने जान बूझ कर, झंडा संहिता का उल्लंघन करते हुए अपने कार्यालय की इमारत पर झंडा फहराया। ध्वज को जब्त कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाने की चेतावनी दी गई। जिंदल ने बहस की कि एक नागरिक के रूप में मर्यादा और सम्मान के साथ झंडा फहराना उनका अधिकार है और यह एक तरह से भारत के लिए अपने प्रेम को व्यक्त करने का एक माध्यम है।[20] तदोपरांत केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने, भारतीय झंडा संहिता में २६ जनवरी २००२, को संशोधन किए जिसमें आम जनता को वर्ष के सभी दिनों झंडा फहराने की अनुमति दी गयी और ध्वज की गरिमा, सम्मान की रक्षा करने को कहा गया।

भारतीय संघ में वी॰ यशवंत शर्मा के मामले[21] में कहा गया कि यह ध्वज संहिता एक क़ानून नहीं है, संहिता के प्रतिबंधों का पालन करना होगा और राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान को बनाए रखना होगा। राष्ट्रीय ध्वज को फहराना एक पूर्ण अधिकार नहीं है, पर इस का पालन संविधान के अनुच्छेद ५१-ए के अनुसार करना होगा।

झंडे का सम्मान

भारतीय कानून के अनुसार ध्वज को हमेशा 'गरिमा, निष्ठा और सम्मान' के साथ देखना चाहिए। "भारत की झंडा संहिता-२००२", ने प्रतीकों और नामों के (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, १९५०" का अतिक्रमण किया और अब वह ध्वज प्रदर्शन और उपयोग का नियंत्रण करता है। सरकारी नियमों में कहा गया है कि झंडे का स्पर्श कभी भी जमीन या पानी के साथ नहीं होना चाहिए। उस का प्रयोग मेजपोश के रूप में, या मंच पर नहीं ढका जा सकता, इससे किसी मूर्ति को ढका नहीं जा सकता न ही किसी आधारशिला पर डाला जा सकता था। सन २००५ तक इसे पोशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता था। पर ५ जुलाई २००५, को भारत सरकार ने संहिता में संशोधन किया और ध्वज को एक पोशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग किये जाने की अनुमति दी। हालाँकि इसका प्रयोग कमर के नीचे वाले कपडे के रूप में या जांघिये के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है।[22] राष्ट्रीय ध्वज को तकिये के रूप में या रूमाल के रूप में करने पर निषेध है।[23] झंडे को जानबूझकर उल्टा रखा नहीं किया जा सकता, किसी में डुबाया नहीं जा सकता, या फूलों की पंखुडियों के अलावा अन्य वस्तु नहीं रखी जा सकती। किसी प्रकार का सरनामा झंडे पर अंकित नहीं किया जा सकता है।[5]

सँभालने की विधि

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झंडे को संभालने और प्रदर्शित करने के अनेक परंपरागत नियमों का पालन करना चाहिए। यदि खुले में झंडा फहराया जा रहा है तो हमेशा सूर्योदय पर फहराया जाना चाहिए और सूर्यास्त पर उतार देना चाहिए चाहे मौसम की स्थिति कैसी भी हो। 'कुछ विशेष परिस्थितियों' में ध्वज को रात के समय सरकारी इमारत पर फहराया जा सकता है।

झंडे का चित्रण, प्रदर्शन, उल्टा नहीं हो सकता ना ही इसे उल्टा फहराया जा सकता है। संहिता परंपरा में यह भी बताया गया है कि इसे लंब रूप में लटकाया भी नहीं जा सकता। झंडे को ९० अंश में घुमाया नहीं जा सकता या उल्टा नहीं किया जा सकता। कोई भी व्यक्ति ध्वज को एक किताब के समान ऊपर से नीचे और बाएँ से दाएँ पढ़ सकता है, यदि इसे घुमाया जाए तो परिणाम भी एक ही होना चाहिए। झंडे को बुरी और गंदी स्थिति में प्रदर्शित करना भी अपमान है। यही नियम ध्वज फहराते समय ध्वज स्तंभों या रस्सियों के लिए है। इन का रखरखाव अच्छा होना चाहिए।[5]

दीवार पर प्रदर्शन

झंडे को सही रूप में प्रदर्शित करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। यदि ये किसी भी मंच के पीछे दीवार पर समानान्तर रूप से फैला दिए गए हैं तो उनका फहराव एक दूसरे के पास होने चाहिए और केसरिया रंग सबसे ऊपर होना चाहिए। यदि ध्वज दीवार पर एक छोटे से ध्वज स्तम्भ पर प्रदर्शित है तो उसे एक कोण पर रख कर लटकाना चाहिए। यदि दो राष्ट्रीय झंडे प्रदर्शित किए जा रहे हैं तो उल्टी दिशा में रखना चाहिए, उनके फहराव करीब होना चाहिए और उन्हें पूरी तरह फैलाना चाहिए। झंडे का प्रयोग किसी भी मेज, मंच या भवनों, या किसी घेराव को ढकने के लिए नहीं करना चाहिए।[5]

अन्य देशों के साथ

जब राष्ट्रीय ध्वज किसी कम्पनी में अन्य देशों के ध्वजों के साथ बाहर खुले में फहराया जा रहा हो तो उसके लिए भी अनेक नियमों का पालन करना होगा। उसे हमेशा सम्मान दिया जाना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि झंडा सबसे दाईं ओर (प्रेक्षकों के लिए बाईं ओर) हो। लाटिन वर्णमाला के अनुसार अन्य देशों के झंडे व्यवस्थित होने चाहिए। सभी झंडे लगभग एक ही आकार के होने चाहिए, कोई भी ध्वज भारतीय ध्वज की तुलना में बड़ा नहीं होना चाहिए। प्रत्येक देश का झंडा एक अलग स्तम्भ पर होना चाहिए, किसी भी देश का राष्ट्रीय ध्वज एक के ऊपर एक, एक ही स्तम्भ पर फहराना नहीं चाहिए। ऐसे समय में भारतीय ध्वज को शुरू में, अंत में रखा जाए और वर्णक्रम में अन्य देशों के साथ भी रखा जाए। यदि झंडों को गोलाकार में फहराना हो तो राष्ट्रीय ध्वज को चक्र के शुरुआत में रख कर अन्य देशों के झंडे को दक्षिणावर्त तरीके से रखा जाना चाहिए, जब तक कि कोई ध्वज राष्ट्रीय ध्वज के बगल में न आ जाए। भारत का राष्ट्रीय ध्वज हमेशा पहले फहराया जाना चाहिए और सबसे बाद में उतारा जाना चाहिए।

जब झंडे को गुणा चिह्न के आकार में रखा जाता है तो भारतीय ध्वज को सामने रखना चाहिए और अन्य ध्वजों को दाईं ओर (प्रेक्षकों के लिए बाईं ओर) होना चाहिए। जब संयुक्त राष्ट्र का ध्वज भारतीय ध्वज के साथ फहराया जा रहा है, तो उसे दोनों तरफ प्रदर्शित किया जा सकता है। सामान्य तौर पर ध्वज को दिशा के अनुसार सबसे दाईं ओर फहराया जाता है।[5]

गैर राष्ट्रीय झंडों के साथ

जब झंडा अन्य झंडों के साथ फहराया जा रहा हो, जैसे कॉर्पोरेट झंडे, विज्ञापन के बैनर हों तो नियमानुसार अन्य झंडे अलग स्तंभों पर हैं तो राष्ट्रीय झंडा बीच में होना चाहिए, या प्रेक्षकों के लिए सबसे बाईं ओर होना चाहिए या अन्य झंडों से एक चौडाई ऊँची होनी चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज का स्तम्भ अन्य स्तंभों से आगे होना चाहिए, यदि ये एक ही समूह में हैं तो सबसे ऊपर होना चाहिए। यदि झंडे को अन्य झंडों के साथ जुलूस में ले जाया जा रहा हो तो झंडे को जुलूस में सबसे आगे होना चाहिए, यदि इसे कई झंडों के साथ ले जाया जा रहा है तो इसे जुलूस में सबसे आगे होना चाहिए।[5]

घर के अंदर प्रदर्शित झंडा

जब झंडा किसी बंद कमरे में, सार्वजनिक बैठकों में या किसी भी प्रकार के सम्मेलनों में, प्रदर्शित किया जाता है तो दाईं ओर (प्रेक्षकों के बाईं ओर) रखा जाना चाहिए क्योंकि यह स्थान अधिकारिक होता है। जब झंडा हॉल या अन्य बैठक में एक वक्ता के बगल में प्रदर्शित किया जा रहा हो तो यह वक्ता के दाहिने हाथ पर रखा जाना चाहिए। जब ये हॉल के अन्य जगह पर प्रदर्शित किया जाता है, तो उसे दर्शकों के दाहिने ओर रखा जाना चाहिए।

केसरिया पट्टी को ऊपर रखते हुए इस ध्वज को पूरी तरह से फैला कर प्रदर्शित करना चाहिए। यदि ध्वज को मंच के पीछे की दीवार पर लंब में लटका दिया गया है तो, केसरिया पट्टी को ऊपर रखते हुए दर्शेकों के सामने रखना चाहिए ताकि शीर्ष ऊपर की ओर हो।[5]

परेड और समारोह

यदि झंडा किसी जुलूस या परेड में अन्य झंडे या झंडों के साथ ले जाया जा रहा है तो, झंडे को जुलूस के दाहीनें ओर या सबसे आगे बीच में रखना चाहिए। झंडा किसी मूर्ति या स्मारक, या पट्टिका के अनावरण के समय एक विशिष्टता को लिए रहता है, पर उसे किसी वस्तु को ढकने के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए। सम्मान के चिह्न के रूप में इसे किसी व्यक्ति या वस्तु को ढंकना नहीं चाहिए। पलटन के रंगों, संगठनात्मक या संस्थागत झंडों को सम्मान के चिह्न रूप में ढका जा सकता है।

किसी समारोह में फहराते समय या झंडे को उतारते समय या झंडा किसी परेड से गुजर रहा है या किसी समीक्षा के दौरान, सभी उपस्थित व्यक्तियों को ध्वज का सामना करना चाहिए और ध्यान से खड़े होना चाहिए। वर्दी पहने लोगों को उपयुक्त सलामी प्रस्तुत करनी चाहिए। जब झंडा स्तम्भ से गुजर रहा हो तो, लोगों को ध्यान से खड़े होना चाहिए या सलामी देनी चाहिए। एक गणमान्य अतिथि को सिर के पोशाक को छोड़ कर सलामी लेनी चाहिए। झंडा-वंदन, राष्ट्रीय गान के साथ लिया जाना चाहिए।[5]

वाहनों पर प्रदर्शन

वाहनों पर राष्ट्रीय ध्वज लगाने के लिए विशेषाधिकार होते हैं, राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री, राज्यपाल और उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रीमंडल के सदस्य और भारतीय संसद के कनिष्ठ मंत्रीमंडल के सदस्य, राज्य विधानसभाओं के सदस्य, लोकसभा के वक्ताओं और राज्य विधान सभाओं के सदस्यों, राज्य सभा के अध्यक्षों और राज्य के विधान सभा परिषद के सदस्य, भारत के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और जल सेना, थल सेना और नौ सेना के अधिकारिकयों को जो ध्वज श्रेणीं में आते हैं, को ही अधिकार प्राप्त हैं। वे अपनी कारों पर जब भी वे जरुरी समझे झंडा प्रर्दशित कर सकते हैं। झंडे को एक निश्चित स्थान से प्रर्दशित करना चाहिए, जो कार के बोनेट के बीच में दृढ़ हो या कार के आगे दाईं तरफ रखा जाना चाहिए। जब सरकार द्वारा प्रदान किए गए कार में कोई विदेशी गणमान्य अतिथि यात्रा कर रहा है तो, हमारा झंडा कार के दाईं ओर प्रवाहित होना चाहिए और विदेश का झंडा बाईं ओर उड़ता होना चाहिए।

झंडे को विमान पर प्रदर्शित करना चाहिए यदि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर जा रहे हों। राष्ट्रीय ध्वज के साथ, अन्य देश का झंडा जहाँ वे जा रहे हैं या उस देश का झंडा जहाँ यात्रा के बीच में विराम के लिए ठहरा जाता है, उस देश के झंडे को भी शिष्टाचार और सद्भावना के संकेत के रूप में प्रवाहित किया जा सकता है। जब राष्ट्रपति भारत के दौरे पर हैं, तो झंडे को पोतारोहण करना होगा जहाँ से वे चढ़ते या उतरते हैं। जब राष्ट्रपति विशेष रेलगाड़ी से देश के भीतर यात्रा कर रहें हों तो झंडा स्टेशन के प्लेटफार्म का सामना करते हुए चालक के डिब्बे से लगा रहना चाहिए जहाँ से ट्रेन चलती हैं। झंडा केवल तभी प्रवाहित किया जाएगा जब विशेष ट्रेन स्थिर है, या जब उस स्टेशन पर आ रही हो जहाँ उसे रुकना हो।[5]

झंडे को उतारना

शोक के समय, राष्ट्रपति के निर्देश पर, उनके द्वारा बताये गए समय तक झंडा आधा प्रवाहित होना चाहिए। जब झंडे को आधा झुका कर फहराना हो तो पहले झंडे को शीर्ष तक बढ़ा कर फिर आधे तक झुकाना चाहिए। सूर्यास्त से पहले या उचित समय पर, झंडा पहले शीर्ष तक बढ़ा कर फिर उसे उतारना चाहिए। केवल भारतीय ध्वज आधा झुका रहेगा जबकि अन्य झंडे सामान्य ऊँचाई पर रहेंगे।

समस्त भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्रियों की मृत्यु पर झंडा आधा झुका रहेगा। लोक सभा के अध्यक्ष या भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के शोक के समय झंडा दिल्ली में झुकाया जाता है और केन्द्रीय मंत्रिमंडल मंत्री के समय दिल्ली में और राज्य की राजधानियों में भी झुकाया जाता है। राज्य मंत्री के निधन पर शोकस्वरूप मात्र दिल्ली में ही झुकाया जाता है। राज्य के राज्यपाल, उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के लिए राज्य और घटक राज्यों में झुकाया जाता है। यदि किसी भी गणमान्य अतिथि के मरने की सूचना दोपहर में प्राप्त होती है, यदि अंतिम संस्कार नहीं हुए हैं तो ऊपर बताये गए स्थानों में दूसरे दिन भी झंडा आधा फहराया जाएगा। अंतिम संस्कार के स्थान पर भी झंडा आधा फहराया जाएगा।

गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती, राष्ट्रीय सप्ताह (६ से १३ अप्रैल), किसी भी राज्य के वर्षगाँठ या राष्ट्रीय आनन्द के दिन, किसी भी अन्य विशेष दिन, भारत सरकार द्वारा निर्दिष्ट किये गए दिन पर मृतक के आवास को छोड़कर झंडे को आधा झुकाना नहीं चाहिए। यदि शव को शोक की अवधि की समाप्ति से पहले हटा दिया जाता है तो ध्वज को पूर्ण मस्तूल स्थिति में उठाया जाना चाहिए। किसी विदेशी गणमान्य व्यक्तियों की मृत्यु पर गृह मंत्रालय से विशेष निर्देश से राज्य में शोक का पालन किया जाएगा। हालाँकि, किसी भी विदेश के प्रमुख, या सरकार के प्रमुख की मृत्यु पर, उस देश के प्रत्यायित भारतीय मिशन उपर्युक्त दिनों में राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकते हैं। राज्य के अवसरों, सेना, केन्द्रीय अर्ध सैनिक बलों की अन्तेय्ष्टि पर, झंडे के केसरिया पट्टी को शीर्ष पर रखकर टिकटी या ताबूत को ढक देना चाहिए। ध्वज को कब्र में नीचे नहीं उतारना चाहिए या चिता में जलाना नहीं चाहिए।[5]

झंडे का समापन

जब झंडा क्षतिग्रस्त है या मैला हो गया है तो उसे अलग या निरादरपूर्ण ढंग से नहीं रखना चाहिए, झंडे की गरिमा के अनुरूप विसर्जित/ नष्ट कर देना चाहिए या जला देना चाहिए। तिरंगे को नष्ट करने का सबसे अच्छा तरीका है, उसका गंगा में विसर्जन करना या उचित सम्मान के साथ दफना देना।[5]

तिरंगे के तीनों रंगों का क्या मतलब है?

राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग और उनका महत्व इसके अलावा ध्वज के बीचों-बीच सफेद रंग की पट्टी में सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ से लिए गए 24 तीलियां बने नीले रंग के चक्र को दर्शाया गया है. ध्वज में केसरिया रंग 'शक्ति और साहस' का ,सफेद रंग शांति और सच्चाई का और हरा रंग धरती की उर्वरता, वृद्धि और शुभता का प्रतीक है.

तिरंगे के बीच में अशोक चक्र क्यों है?

सारनाथ के स्तंभ से लिया गया है 'अशोक चक्र'- यह स्तंभ सम्राट अशोक के समय उनके धम्म (नैतिकता के नियम) के प्रचार के लिए बनवाया गया था. गौरतलब है कि प्राचीन भारत में सम्राट अशोक एक महान शासक हुए हैं जिन्होंने लोगों को दया,करुणा और प्रेम का संदेश दिया था.

तिरंगा के रचयिता कौन है?

तिरंगे का निर्माण करने वाले शख्स का नाम पिंगली वेंकैया है। 1921 में पिंगली वेंकैया ने ध्वज का निर्माण किया था। भारत के लिए एक बेहतर ध्वज का निर्माण करना इतना भी आसान नहीं था। पिंगली वेंकैया ने साल 1916 से 1921 तक करीब 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वज का अध्ययन किया, जिसके बाद उन्होंने तिरंगे को डिजाइन किया था।

घर घर तिरंगा का क्या मतलब है?

आजादी के अमृत महोत्सव को चिह्नित करने के लिए संस्कृति मंत्रालय ने 'हर घर तिरंगा' पहल की शुरुआत की है. सरकार ने नागरिकों से 13 से 15 अगस्त तक अपने घरों पर गर्व से तिरंगा फहराने के लिए कहा है. इस पहल के पीछे लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना जगाना और तिरंगे से जुड़ाव को गहरा करना है.