तेलंगाना में बीजेपी के कितने विधायक हैं - telangaana mein beejepee ke kitane vidhaayak hain

तेलंगाना में भाजपा का उभार, टीआरएस के लिए चिंता का विषय क्यों?

  • उमर फ़ारूक़
  • वरिष्ठ पत्रकार, हैदराबाद से बीबीसी हिंदी के लिए

29 मई 2019

तेलंगाना में बीजेपी के कितने विधायक हैं - telangaana mein beejepee ke kitane vidhaayak hain

इमेज स्रोत, Getty Images

दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना के लोकसभा परिणामों की सबसे बड़ी विशेषता है भाजपा की अब तक की सबसे बड़ी जीत. यहां पार्टी ने चार सीटों पर जीत का परचम लहराया और सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति को सकते में डाल दिया है.

इससे पहले भगवा पार्टी की ऐसी जीत अविभाजित आंध्र प्रदेश में 1980 और 1990 के दशक में देखने को मिली थी.

1985 में तेलगू देशम पार्टी के साथ मिलकर भाजपा ने सात सीटों पर अपना क़ब्ज़ा किया था. वहीं 1990 के दशक के अंत में हुए चुनावों में पार्टी ने दोबारा टीडीपी के साथ मिलकर चार सीटों पर जीत दर्ज की थी.

लोकसभा चुनावों में पार्टी की हालिया जीत राज्य में न सिर्फ़ इसका क़द बल्कि इसके कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ाएगी.

दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. पार्टी इस चुनाव में पांच से एक सीट पर खिसक गई थी.

चुनाव प्रचार के दौरान किसी को भी इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि भाजपा सत्तारूढ़ टीआरएस को इस क़दर चौंकाएगी.

लेकिन जैसे ही वोटों की गिनती शुरू हुई, न सिर्फ़ भाजपा बल्कि कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को चिंता में डाल दिया. भाजपा ने जहां चार सीटों पर जीत दर्ज की, वहीं कांग्रेस यहां तीन सीटें जीतने में कामयाब रही.

इन दोनों पार्टियों की इस जीत ने टीआरएस को महज़ नौ सीटों पर समेट दिया है.

अब 2024 पर नज़र

राज्य में भाजपा की क़िस्मत ऐसी बदली कि 2018 में जहां इसे 10 फीसदी वोट मिले थे, वहीं इन चुनावों में यह बढ़कर क़रीब 19 फ़ीसदी हो गया.

टीआरएस को सबसे ज़्यादा 41.37 फ़ीसदी वोट मिले, वहीं कांग्रेस इन चुनावों में दूसरे स्थान पर रही और उसने 29.27 फ़ीसदी वोट हासिल किया.

वोट हासिल करने के मामले में भाजपा तीसरे स्थान पर रही. पार्टी को 19.45 फ़ीसदी वोट मिले हैं.

राज्य में हतोत्साहित हो चुकी भाजपा को इस जीत ने एक नया जीवनदान दिया है. प्रदेश के नेता इतने उत्साहित हैं कि उन्होंने सत्ताधारी पार्टी टीआरएस के विकल्प में ख़ुद को देखना शुरू कर दिया है.

पार्टी महासचिव मुरलीधर राव ने कहा, "2024 तक तेलंगाना की सत्ता भाजपा के हाथों में होगी."

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के लक्ष्मण कहते हैं, "कर्नाटक के बाद, तेलंगाना भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से दक्षिण भारत का सबसे उपजाऊ राज्य है और हम यहां पश्चिम बंगाल दोहराने जा रहे हैं."

इन परिणामों के महत्व को देखते हुए यहां से जीते सांसदों को उम्मीद है कि उनमें से कम से कम दो को मोदी कैबिनेट में जगह मिल सकती है.

भाजपा और आरएसएस का पुराना गढ़

भौगोलिक प्रसार के नज़रिये से भी भाजपा की यह जीत बेहद महत्वपूर्ण समझी जा रही है. सिकंदराबाद पार्टी की पारंपरिक सीट रही है. इस बार यहां से जी किशन रेड्डी चुने गए हैं.

वहीं अन्य तीन सीटें उत्तरी तेलंगाना क्षेत्र की हैं. मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी वाला यह क्षेत्र अतीत में भाजपा और आरएसएस का गढ़ हुआ करता था, लेकिन पहले हिंसक माओवादी आंदोलन और फिर 2001 में राज्य के बंटवारे के लिए हुए आंदोलनों ने पार्टी की पकड़ यहां कमजोर कर दी.

वाजपेयी शासन के दौरान तेलंगाना राज्य के पक्ष में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का रुख़ स्पष्ट नहीं था, इसका ख़ामियाज़ा पार्टी को भुगतना पड़ा. इसके कार्यकर्ता, ख़ासकर युवा कार्यकर्ता टीआरएस से जुड़ने लगे थे

दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद केसीआर लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज होने में सफल हुए. इस वक़्त तक यह संकेत नहीं मिल पाया था कि भाजपा आगामी लोकसभा चुनावों में ऐसा बेहतरीन प्रदर्शन करेगी.

क्यों मिली जीत

एक ओर भाजपा नेता जहां इस जीत के लिए "मोदी लहर" को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं, वहीं विरोधी इसके पीछे कांग्रेस और भाजपा के बीच गुप्त समझौते और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जैसी वजहों को गिना रहे हैं.

टीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के तारक रामा राव का कहना है कि बूथ स्तर पर कांग्रेस और भाजपा के बीच गुप्त समझौते और एक-दूसरे के समर्थन ने मतदान के नतीजों में उलटफेर कर दिया.

टीआरसी की सबसे चौंकाने वाली हार थी केसीआर की बेटी के. कविता की, जो निज़ामाबाद से चुनावी मैदान में थीं.

टीआरएस नेता बताते हैं कि कविता को हराने वाले भाजपा उम्मीदवार धर्मपुरी अरविंद दिग्गज कांग्रेसी नेता डी श्रीनिवास के बेटे हैं.

हालांकि श्रीनिवास टीआरएस से राज्यसभा सांसद हैं लेकिन कविता ने ख़ुद उन पर भाजपा का समर्थन करने का आरोप लगाया था.

टीआरएस नेताओं ने यह भी बताया कि निज़ामाबाद से कांग्रेस उम्मीदवार मधु गौड़ याशकी ने भी अपने समर्थक से भाजपा को वोट देने की अपील की थी ताकि कविता की हार सुनिश्चित हो सके.

पास के ही आदिलाबाद में अनुसूचित जनजातिययों की आरक्षित सीट पर भाजपा पहली बार एक विजेता बनकर उभरी है.

यहां भी कांग्रेस फैक्टर ने काम किया क्योंकि भाजपा के उम्मीदवार सोयम बापू राव पहले कांग्रेस में थे और टिकट के वादे के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे.

बापू राव को 35 फ़ीसदी वोट मिले. यहां ग़ैर भाजपा वोटों में बिखराव और आदिवासी वोटों ने पार्टी की जीत में काफ़ी मदद की.

करीमनगर से आरएसएस के बड़े नेता समझे जाने वाले बांदी संजय कुमार की जीत पर स्थानीय टीआरएस नेताओं का कहना है कि टीआरएस के मौजूदा सांसद बी विनोद कुमार से असंतोष और कांग्रेस समर्थकों की क्रॉस वोटिंग ने भाजपा को यहां जीत दिलाई है.

भाजपा के उभार के लिए टीआरएस दोषी?

स्वतंत्र समीक्षकों का कहना है कि केसीआर को इस स्थिति के लिए ख़ुद को दोषी मानना चाहिए क्योंकि उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा कांग्रेस को कमज़ोर करने में ख़र्च कर दी. वो कांग्रेसी विधायकों को अपने ख़ेमे में लाने के प्रयास में ही लगे रहे.

अपने पहले कार्यकाल के दौरान वो 15 कांग्रेसी विधायकों को अपने ख़ेमे में लाने में सफल रहे थे. वहीं 2018 के चुनावों के बाद वो 12 विधायकों को कांग्रेस से तोड़ लाए. यह कांग्रेस को पूरी तरह से कमज़ोर कर दिया.

एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, "कांग्रेस के कमज़ोर होने से एक ख़ालीपन पैदा हुआ, जिसे भाजपा ने भरने की कोशिश की है."

भाजपा अब केंद्र में सरकार बनाएगी. पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व अब अपनी पूरी ऊर्जा तेलंगाना में अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगाएगा. जिस तरह से पार्टी ने पश्चिम बंगाल में किया है, अब तेलंगाना में भी उसी तरह की रणनीति अपनाई जाएगी.

पार्टी यहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने की कोशिश करेगी.

हालांकि टीआरएस नेताओं का कहना है कि भाजपा की यह जीत एक बार की घटना है, दो दोहराई नहीं जा सकेगी. इस बार मोदी की वजह से भाजपा ने जीत हासिल की है.

टीआरएस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "वो इसे दोहरा नहीं पाएंगे."

लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा की यह जीत टीआरएस पर दबाव डालेगा.

तेलंगाना में कुल कितने विधानसभा सीट है?

तेलंगाना विधान सभा
संरचना
सीटें
119
राजनैतिक गुट
सरकार (90) तेरास (90) विपक्ष (29) कांग्रेस (13) एआईएमआईएम (7) भाजपा (5) तेदेपा (3) सीपीआई (मा) (1)
चुनाव
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