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| नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 29 Apr 2022, 2:00 am हिंदू धर्म में यंत्रों का बहुत बड़ा महत्व है। किसी भी पूजा या यज्ञ में यंत्र का बहुत महत्व होता है। प्राचीन काल से मनुष्य यंत्रों का निर्माण एवं उनका प्रयोग करता रहा है। आर्थिक स्थिति को सही करने के लिए, शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए, देवी-देवताओं को खुश करने के लिए। कई तरह के यंत्र प्राचीन काल से ही इस धरती पर मौजूद हैं। आइए, जानते हैं कौन-सा यंत्र घर में रखने से आपको लाभ मिलेगा और कौन-सा यंत्र आपके लिए शुभ रहेगा...
ऐसा होता हैं श्रीयंत्र का
स्वरूप– चतुर्भिः शिवचक्रे शक्ति चके्र पंचाभिः।नवचक्रे संसिद्धं श्रीचक्रं शिवयोर्वपुः॥ श्रीयंत्र के चतुर्दिक् तीन परिधियां खींची जाती हैं। ये अपने आप में तीन शक्तियों की प्रतीक हैं। इसके नीचे षोडश पद्मदल होते हैं तथा इन षोडश पद्मदल के भीतर अष्टदल
का निर्माण होता है, जो कि अष्ट लक्ष्मी का परिचायक है। अष्टदल के भीतर चतुर्दश त्रिकोण निर्मित होते हैं, जो चतुर्दश शक्तियों के परिचायक हैं तथा इसके भीतर दस त्रिकोण स्पष्ट देखे जा सकते हैं, जो दस सम्पदा के प्रतीक हैं। दस त्रिकोण के भीतर अष्ट त्रिकोण निर्मित होते हैं, जो अष्ट देवियों के सूचक कहे गए हैं। इसके भीतर त्रिकोण होता है, जो लक्ष्मी का त्रिकोण माना जाता है। इस लक्ष्मी के त्रिकोण के भीतर एक बिन्दु निर्मित होता है, जो भगवती का सूचक है। साधक को इस बिन्दु पर स्वर्ण सिंहासनारूढ़ भगवती लक्ष्मी की
कल्पना करनी चाहिए। अद्भुत
त्रिकोण—- इन त्रिभुजों के बाहर की तरफ 8 कमल दल का समूह होता है जिसके चारों ओर 16 दल वाला कमल समूह होता है। इन सबके बाहर भूपुर है। मनुष्य शरीर की भांति ही श्री यंत्र की संरचना में भी 9 चक्र होते हैं जिनका क्रम अंदर से बाहर की ओर इस प्रकार है- केंद्रस्थ बिंदु फिर त्रिकोण जो सर्वसिद्धिप्रद कहलाता है। फिर 8 त्रिकोण सर्वरक्षाकारी हैं। उसके बाहर के 10 त्रिकोण सर्व रोगनाशक हैं। फिर 10 त्रिकोण सर्वार्थ सिद्धि के प्रतीक हैं। उसके बाहर 14 त्रिकोण सौभाग्यदायक हैं। फिर 8 कमलदल का समूह दुःख, क्षोभ आदि के निवारण का प्रतीक है। उसके बाहर 16 कमलदल का समूह इच्छापूर्ति कारक है। अंत में सबसे बाहर वाला भाग त्रैलोक्य मोहन के नाम से जाना जाता है। इन 9 चक्रों की अधिष्ठात्री 9 देवियों के नाम इस प्रकार हैं – 1. त्रिपुरा 2. त्रिपुरेशी 3. त्रिपुरसुंदरी 4. त्रिपुरवासिनी, 5. त्रिपुरात्रि, 6. त्रिपुरामालिनी, 7. त्रिपुरसिद्धा, 8. त्रिपुरांबा और 9. महात्रिपुरसुंदरी। श्रीयंत्र निर्माण– जानिए कब करें श्रीयंत्र की स्थापना — यह हैं श्रीयंत्र स्थापना हेतु पूजन विधान— साधना में सफलता हेतु गुरु पूजन आवश्यक है। अपने सामने स्थापित बाजोट पर गुरु चित्र/विग्रह/यंत्र/पादुका स्थापित कर लें और हाथ जोड़कर गुरु का ध्यान करें – गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ इसके पश्चात् चावलों की ढेरी बनाकर उस पर एक सुपारी गणपति स्वरूप स्थापित कर लें। गणपति का पंचोपचार पूजन कुंकुम, अक्षत, चावल, पुष्प, इत्यादि से करें। दिव्या परां सुधवलारुण चक्रयातांमूलादिबिन्दु परिपूर्ण कलात्मकायाम।स्थित्यात्मिका शरधनुः सुणिपासहस्ताश्री चक्रतां परिणतां सततां नमामि॥ श्री यंत्र ध्यान के पश्चात् श्रीयंत्र प्रार्थना करनी चाहिए। यदि नित्य इस प्रार्थना का 108 बार उच्चारण किया जाए, तो अपने आप में अत्यन्त लाभप्रद देखा गया है – धनं धान्यं धरां हर्म्यं कीर्तिर्मायुर्यशः श्रियम्।तुरगान् दन्तिनः पुत्रान् महालक्ष्मीं प्रयच्छ मे॥ ध्यान-प्रार्थना के पश्चात् श्रीयंत्र पर पुष्प अर्पित करते हुए निम्न मंत्रों का उच्चारण करें – कमलगट्टे की माला से लक्ष्मी बीज मंत्र की एक माला मंत्र जप करें। श्रीयंत्रों में विशेष – पारद श्रीयंत्र ==जानिए की यंत्र किस सिद्धांत पर कार्य करते हैं?
यंत्रों की उपयोगिता यंत्र देवशक्तियों के प्रतिक हैं। जो व्यक्ति मंत्रों का उच्चारण नहीं कर सकते, उनके लिए पूजा में यंत्र रखने से ही
मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। प्रत्येक यंत्र का अपना अलग महत्व है। कई यंत्र हमें सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। प्राचीन काल से ही, भारतीय संस्कृति में सुख-समृद्धि, दीर्घजीवन, एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए, यंत्र, तंत्र-मंत्र का महत्वपूर्ण स्थान रहा हैं। विभिन्न प्रकार की आध्यात्मिक महत्व की आकृतियों यंत्र के रूप में, सोने, चांदी, तांबा, अष्टधातु अथवा भोज पत्र पर विभिन्न शक्तियों को जाग्रत करने के लिए बनाई जाती हैं। यंत्रों में श्रद्धा एवं विश्वास का
प्रभाव :—- शिव का अर्थ संक्षेप में ब्रह्मांड में स्थित ऊर्जा से है जिसका कोई स्वरूप नही है। जबकि प्रकृति साक्षात शक्ति है तथा ब्रह्मांड में स्थित ऊर्जा को स्वरूप प्रकृति में स्थित पांच तत्वों के सहयोग से ही मिल पाता है। इन दोनों में से एक भी अभाव में साकार संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। शिव के बिना शक्ति बलहीन है तथा शक्ति के बिना निर्गुण, निराकार शिव स्वरूप हीन व आकार हीन है। अतः यह संसार शिव एवं शक्ति दोनों के सहयोग से ही संचालित होता है। मानव शरीर इसी
ब्रह्मांड का सूक्ष्म रूप कहा जा सकता है तथा यह भी शिव (आत्मा) एवं शक्ति के संयोग से ही संचालित होता है। इस प्रकार मानव शरीर में स्थित आत्मा शिव द्वारा नियंत्रित होती है जबकि मानव शरीर एवं मष्तिष्क प्रकृति जिसको कि महामाया भी कहा जाता है द्वारा संचालित होते है। इस प्रक्रिया में शिव रूप अनेक बार गौण हो जाता है तथा मस्तिष्क एवं शरीर का वर्चस्व हो जाता है जिससे आत्मा को कर्म बंधन में बंधकर जन्म-मरण की प्रक्रिया से बार-बार गुजरना पड़ता है तथा अनेक कष्ट सहने पड़ते हैं। अतः मानव जीवन के संतुलित रूप से
संचालन हेतु शिव एवं शक्ति में संतुलन होना आवश्यक होता है। यंत्र विभिन्न आकृतियों का रेखा समूह मात्र होता है जबकि वास्तविकता यह है कि यंत्र का प्रत्येक आकार एक विशेष देवता और तत्व की शक्ति का प्रतीक होता है। जिसे एक निश्चित
विधि-विधान के अंतर्गत मंत्रों द्वारा जागृत करके लक्ष्य सिद्धि हेतु प्रयोग किया जाता है। इन यंत्रों का वर्गीकरण उनके उद्देश्य और प्रयोजनों पर आधारित है जिसके बारे में सुविस्तृत जानकारी इस लेख में दी गयी है। सिद्धयंत्र जो आड़ी, तिरछी रेखाओं, बिंदुओं, अंकों, चतुर्भुजों, त्रिकोण आदि से पूरित होते हैं वास्तव में इन्हीं चिह्नों से संचालित होते हैं। इन यंत्रों को यही कल पुर्जे चलाते हैं। घर में कौन सा श्री यंत्र रखना चाहिए?स्फटिक श्री यंत्र
स्फटिक से बना श्री यंत्र, दक्षिणावर्ती शंख, गोमती चक्र एवं तुलसी पत्र जिस घर में हों वहां धन और ऐशवर्य की कोई कमी नहीं होती है। स्फटिक के श्रीयंत्र को समस्त प्रकार के श्रीयंत्रों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। वास्तु निवारण के लिए स्फटिक श्री यंत्र श्रेष्ठतम माना जाता है।
श्री यंत्र से क्या लाभ होता है?माना गया है कि श्रीयंत्र की दक्षिणाम्नाय उपासना करने वाले व्यक्ति को भोग की प्राप्ति होती है और ऊर्ध्वाम्नाय उपासना करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए कहा जा सकता है कि यह श्रीयंत्र मोक्ष तथा मुक्ति के लिए भी लाभ प्रदान करता है.
श्री यंत्र की स्थापना कब करनी चाहिए?श्रीयंत्र की स्थापना के दिन सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। दिवाली के पर्व पर आप श्रीयंत्र की स्थापना लक्ष्मी पूजन के वक्त ही आप कर सकती हैं। श्रीयंत्र को महालक्ष्मी के साथ कभी भी स्थापित न करें।
श्री यंत्र को घर में कैसे स्थापित करें?प्रात: काला स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर श्रीयंत्र पूजा की तैयारी करनी चाहिए. श्रीयंत्र को लाल कपड़े पर स्थापित करके इसे गंगाजल और दूध द्वारा पूजना चाहिए. श्री यंत्र को पूजा स्थान या व्यापारिक स्थान तथा अलमारी में शुद्ध स्थान पर रखा जा सकता है. श्रीयंत्र का पंचामृत, दुग्ध, दही, शहद, घी और गंगाजल से स्नान करा कराएं.
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