शलजम से आप क्या समझते हैं? - shalajam se aap kya samajhate hain?

शलजम को सब्जी, सलाद के रूप में प्रयोग में लाया जाता है ये मैदानी भागों में सर्दियों के मौसम में आने वाली सब्जी है | शलजम को एंटी-ऑक्सीडेंट, मिनरल और फाइबर का बहुत अच्छा स्रोत माना जाता है. इसके सेवन से ह्रदय रोग, कैंसर, उच्च रक्तचाप और सूजन में बहुत लाभप्रद माना जाता है|  शलजम में मौजूद विटामिन C शरीर के लिए बहुत आवश्यक है | ये शरीर की इम्युनिटी सिस्टम मजबूत करती है.

जैसा की शलजम एक जड़ ( कंद मूल) वाली फसल है तो इसके लिए मिटटी का चुनाव भी सोच समझ के करना चाहिए.

शलजम की खेती कैसे करें:

शलजम की खेती उसी स्थिति में करनी चाहिए अगर आपके खेत की मिट्टी बलुई और रेतीली हो. अगर आपके खेत की मिट्टी चिकनी और कड़क हुई तो शलजम की फसल अच्छी नहीं होगी. क्योकि ये एक जड़ वाली फसल है यानि कि ये जमीं के अंदर होने वाली फसल है तो इसके लिए मिट्टी का नरम और रेतीला होना बहुत आवश्यक है. शलगम की खेती को इसकी जड़ों और पत्तों के लिए की जाती है। इसकी जड़ें विटामिन सी का उच्च स्त्रोत होती हैं जबकि इसके पत्ते विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, फोलिएट और कैलशियम का उच्च स्त्रोत होते हैं। इसके पत्ते ओषधिय गुणों से भरपूर होते हैं लेकिन स्वाद में कड़वे होते हैं इस लिए इन्हें उबाल कर खाने कि सलाह दी जाती है.

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खेत की तैयारी:

खेत की तैयारी में सबसे पहले आप किसी ऐसे खेत को चुनें जिसमे पानी निकासी की उचित व्यवस्था हो. जिससे कि अगर बारिश हो जाए या पानी ज्यादा लग जाए तो खेत में पानी न रुके उसे निकाला जा सके. पानी निकासी कि समुचित व्यवस्था होने से फसल को गलने व पानी से होने वाले रोगों से बचाया जा सकता है.  सबसे पहले इसके खेत को 3 से 4 गहरी जुताई लगाएं फिर उसमे गोबर कि बनी हुई या सड़ी हुई खाद डाल के हल्की जुताई कर दें | ऊपर से इसमें पाटा लगा के खेत को समतल कर दें.

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शलजम की खेती कब होती है: बोने का समय:

शलजम की खेती का उचित समय मैदानी क्षेत्र में सितम्बर से अक्टूबर और पहाड़ी इलाकों में जुलाई से अक्टूबर तक का होता है. इसकी बुवाई बेहतर होगा अगर आलू की तरह मेंड़ बना कर की जाये. अन्यथा की स्थिति में बिना मेंड़ के भी इसकी बुवाई की जा सकती है.

 

 

सिंचाई:

जैसा कि हम जानते है ये जमीं के अंदर वाली फसल है तो हमें सिंचाई करते वक्त याद रहे कि अगर हमने इसकी बुवाई मेंड़ बनाकर की है तो इसमें पानी की ज्यादा मात्रा न जाये बस इसकी मेंड़ को सीलन ही मिलनी चाहिए. ज्यादा पानी देने से मेंड़ की मिट्टी कठोर हो जाती है इससे इसकी फल को फूलने के लिए सही माहौल नहीं मिल पाता है. अगर हमने मेंड़ बना कर बिजाई नहीं की है तो भी इसमें हल्का पानी ही दें.

सर्दियों की फसल होने की वजह से इसमें बहुत ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है.

शलजम की उन्नत किस्में:

शलजम से आप क्या समझते हैं? - shalajam se aap kya samajhate hain?

लाल-4 व सफेद-4 : ये दोनों किस्में जल्दी तैयार होने वाली है । लाल किस्म को अधिकतर शरद ऋतु में लगाते हैं । जड़ें गोल, लाल तथा मध्यम आकार की होती हैं जो लगभग 60  से 70 दिन में तैयार हो जाती है ।

सफेद-4 को अधिकतर वर्षा ऋतु में लगाते हैं । यह शीघ्र तैयार होती है तथा इसकी जड़ों का रंग बर्फ जैसा सफेद होता है । गूदा चरपराहट वाला होता है । ये  50-55 दिन में तैयार हो जाती है । उपज 200 कु. प्रति हैक्टर मिलती है ।

परपल-टोप :  जड़ें बड़े आकार की, ऊपरी भाग बैंगनी, गूदा सफेद तथा कुरकुरा होता है । यह अधिक उपज देती है । इसका गूदा ठोस तथा ऊपर का भाग चिकना होता है ।

पूसा-स्वर्णिमा: इस किस्म की जड़ें गोल, मध्य आकार वाली, चिकनी तथा हल्के पीले रंग की होती हैं । गूदा भी पीलापन लिये होता है। यह 65-70 दिन में तैयार हो जाती है । सब्जी के लिये उत्तम है । इस किस्म को पूसा ने विकसित किया है.

पूसा-चन्द्रिमा: यह किस्म 55-60 दिन में तैयार हो जाती है । इसकी जड़ें गोलाई लिये हुए होती है । यह अधिक उपज देती हैं । उपज 200-250 कु. प्रति हैक्टर देती है । जाड़ों के लिए उत्तम है ।

पूसा-कंचन: यह किस्म रेड एसीयाटिक किस्म तथा गोल्डन-वाल के द्वारा तैयार की गयी है । छिलका ऊपर से लाल, पीले रंग का गूदा होता है । यह अगेती किस्म है जो शीघ्र तैयार होती है । जड़ें मीठी व सुगन्धित होती हैं ।

पूसा-स्वेती: यह किस्म भी अगेती है । बुवाई अगस्त-सितम्बर में की जाती है । जड़ें काफी समय तक खेत में छोड़ सकते हैं । जड़ें चमकदार व सफेद होती हैं । 40-45 दिन में खाने लायक होती है ।

स्नोवाल: अगेती किस्मों में से है । इसकी जड़ें मध्यम आकार की, चिकनी, सफेद एवं गोलाकार होती हैं । गूदा नरम, मीठा होता है

Solution : किसी निश्चित अनुकूलन (adaptation) के लिये मूल (Root) की कार्यिकी एवं आकारिकी में होने वाला परिवर्तन मूल का रूपान्तरण कहलाता है।
(अ) बरगत में प्रोप रूट (सहारा देने वाली जड़े)
(ब) शलजम की मूसला मूल/जड़ (भोजन संग्रह करने वाली जड़)
(स) मैंग्रोव वृक्ष की श्वसन मूल (श्वसन के लिये ऑक्सीजन प्राप्त करने में सहायक)

Solution : मूल का मुख्य कार्य जल व खनिज लवणों का अवशोषण करना तथा पौधे को भूमि में स्थिरीकरण करने का होता है। किन्तु इसके अतिरिक्त भी कभी-कभी अन्य कार्यों को करने के लिये अपने आकार तथा संरचना में रूपान्तरण करना पड़ता है, जैसे- भोजन संचय करने के लिये गाजर व शलजम की मूसला मूल तथा शकरकंद की अपस्थानिक मूल फूल जाती है। बरगद से लटकने वाली प्रोपरूट सहारा प्रदान करती है। मक्का, गन्ने से निकली अवस्तंभ मूल भी सहारा देती है। अनूप क्षेत्रों में उगे राइजोफोरा में श्वसन मूल होती है।
(अ) बरगद में प्रोपरूट (सहारा प्रदान करने वाली) मूल।
(ब) शलजम में कुम्भीरूप (Napiform) मूल भोजन संचित करती है।
(स) मैंग्रोव वृक्ष में न्यूमेटोफोर (Pneumatophore) मूल श्वसन कार्य हेतु होती है।

शलगम कितने प्रकार के होते हैं?

शलजम का वर्गीकरण इसकी जड़ के आकार पर, अथवा जड़ के ऊपरी भाग के रंग पर, किया गया है। कुछ जड़ें लंबी, कुछ गोलाकार, कुछ चिपटी और कुछ प्याले के आकार की होती हैं। कुछ किस्म के शलजम के गुद्दे सफेद और कुछ के पीले होते हैं। भारत में उपर्युक्त सब ही प्रकार के शलजम उगाए जाते हैं

शलजम से क्या फायदा है?

शलजम के फायदे – Benefits of Turnip (Shalgam) in Hindi.
इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए ... .
हृदय स्वास्थ्य के लिए ... .
कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए ... .
ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए ... .
वजन घटाने के लिए ... .
आंखों के स्वास्थ्य के लिए ... .
हड्डियों के स्वास्थ्य लिए ... .
फेफड़ों की स्वास्थ्य के लिए.

शलजम का फल क्या होता है?

शलजम एक ऐसा कंद, (सब्जी) है जिसका सेवन शरीर में कई पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए किया जाता है. शलजम (Turnip Benefits) में विटामिन सी, विटामिन के, बीटा कैरोटिन और पोटैशियम जैसे गुण पाए जाते हैं, जो शरीर को कई स्वास्थ्य शलजम (Turnip For Winter) को आप अपनी डाइट में जूस और सलाद के रूप में इस्तेमाल कर सकते है.

शलजम कब लगाया जाता है?

शलगम / शलजम बोने का सही समय एवं तरीका क्या है? शलगम की बुवाई मैदानी क्षेत्र में सितम्बर से अक्टूबर सर्दियों के मौसम में की जाती हैं। और पहाड़ी इलाकों में जुलाई से अक्टूबर गर्मी के मौसम की जाती है। इसकी बुवाई के लिए 3 से 4 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होते हैं।