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भारत का संविधान समानता के बारे में क्या कहता है? आपको यह क्यों लगता है कि सभी लोगों में समानता होना जरूरी है?(00 : 00) लिखित उत्तर Solution : भारत के संविधान के अनुसार यहाँ के सभी नागरिक को जाति, धर्म, भाषा और अभिव्यक्ति की समानता का अधिकार है। चूकि भगवान की नजरों में हम सभी का जन्म समान रूप से हुआ, इसलिए सभी इंसान को समान रूप से देखना चाहिए। सभी इंसान को सामान रूप से शिक्षा और पेशा का अधिकार मिलना चाहिए। किसी के भी साथ पक्षपात नहीं करना चाहिए बल्कि समान व्यवहार करना चाहिए। न ही किसी को सरकारी सुविधा का विशेषाधिकार मिलना चाहिए। समान व्यवहार से सभी लोगों में प्यार और विश्वास की भावना पनपती है। भारत का संविधान समानता के बारे में क्या कहता है? आपको यह क्यों लगता है कि सभी लोगों में समानता होना जरूरी है? Solutionभारत का संविधान समानता के बारे में कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार और समान अवसर प्राप्त हैं। लोग अपनी पसंद का काम चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। सरकारी नौकरियों में सभी लोगों के लिए समान अवसर उपलब्ध हैं। लोगों को अपने धर्म का पालन करने, अपनी भाषा बोलने, अपने त्योहार मनाने और अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता है। सरकार सभी धर्मों को बराबर महत्त्व तथा सम्मान प्रदान करेगी। Concept: समानता के लिए संघर्ष Is there an error in this question or solution? APPEARS INसमता का अधिकार वैश्विक मानवाधिकार के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के अनुसार विश्व के सभी लोग विधि के समक्ष समान हैं अतः वे बिना किसी भेदभाव के विधि के समक्ष न्यायिक सुरक्षा पाने के हक़दार हैं।[1] भारत में समता/समानता का अधिकार[संपादित करें]भारतीय संविधान के अनुसार, भारतीय नागरिकों को मौलिक अधिकारों के रूप में समता/समानता का अधिकार (अनु. १४ से १८ तक) प्राप्त है जो न्यायालय में वाद योग्य है।[2] ये अधिकार हैं-
अब केवल दो तरह कि उपाधियाँ मान्य हैं- अनु. १८(१) राज्य सेना द्वारा दी गयी उपाधि व विद्या द्वारा अर्जित उपाधि। इसके अतिरिक्त अन्य उपाधियाँ वर्जित हैं। वहीं, अनु. १८(२) द्वारा निर्देश है कि भारत का नागरिक विदेशी राज्य से कोइ उपाधि नहीं लेगा।[3] समानता के अधिकार का क्रियान्वयन[संपादित करें]माना जाता है कि समानता का अधिकार एक तथ्य नहीं विवरण है। विवरण से तात्पर्य उन परिस्थितियों की व्याख्या से है जहाँ समानता का बर्ताव अपेक्षित है। समानता और समरूपता में अंतर है। यदि कहा जाय कि सभी व्यक्ति समान है तो संभव है कि समरूपता का ख़तरा पैदा हो जाय। 'सभी व्यक्ति समान हैं' की अपेक्षा 'सभी व्यक्तियों से समान बर्ताव किया जाना चाहिेए', समानता के अधिकार के क्रियान्वयन का आधार वाक्य है।[4] प्रतिनिधित्व(आरक्षण)=[संपादित करें][प्रतिनिधित्व[आरक्षण]] की व्यवस्था, भेदभावपूर्ण समाज में समान बर्ताव के लिए ज़मीन तैयार करती है। समानता के परिप्रेक्ष्य में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दो महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया गया है- *अवसर की समानता और * प्रतिष्ठा की समानता।[3] अवसर और प्रतिष्ठा की समानता का अर्थ है कि समाज के सभी वर्गों की इन आदर्शों तक पहुँच सुनिश्चित की जाय। एक वर्ग विभाजित समाज में बिना वाद योग्य कानून और संरक्षण मूलक भेदभाव के समानता के अधिकार की प्राप्ति संभव नहीं है। संरक्षण मूलक भेदभाव के तहत आरक्षण एक सकारात्मक कार्यवाही है। आरक्षण के तहत किसी पिछड़े और वंचित समूह को (जैसे- स्त्री, दलित, अश्वेत आदि) को विशेष रियायतें दी जाती हैं ताकि अतीत में उनके साथ जो अन्याय हुआ है उसकी क्षतिपूर्ति की जा सके।[5] यह बात ध्यान देने योग्य है कि आरक्षण और संरक्षण मूलक भेदभाव समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद १६ (४) स्पष्ट करता है कि 'अवसर की समानता' के अधिकार को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है।[6] सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]Preface Archived 2003-12-05 at the Wayback Machine Constitution of India Archived 2012-07-12 at the Wayback Machine Right to Equality The Right to Equality समाप्त भारत का संविधान में समानता के बारे में क्या कहता है?भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (Article 14) में कहा गया है कि “राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र में कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा”। यह लेख कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण की दो अवधारणाओं से संबंधित है।
समानता के अधिकार में कौन कौन से अधिकार आते हैं?'समता का अधिकार' ऐसे और अन्य प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास करता है । यह सार्वजनिक स्थलों - जैसे दुकान, होटल, मनोरंजन-स्थल, कुआँ, स्नान घाट और पूजा-स्थलों में समानता के आधार पर प्रवेश देता है। केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी के आधार पर प्रवेश में कोई भेदभाव नहीं हो सकता।
समानता का अधिकार कहाँ से लिया गया?भारतीय संविधान और विधिक समानता
भारतीय संविधान के भाग ३ में मौलिक अधिकारों के तहत अनुच्छेद १४ के अंतर्गत विधि के समक्ष समता एवं विधियों के समान संरक्षण का उपबंध किया गया है। संविधान का यह अनुच्छेद भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर भारतीय नागरिकों एवं विदेशी दोनों के लिये समान व्यवहार का उपबंध करता है।
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