गया (Gaya): बोधगया में महादलित परिवार (Mahadalit Family) के बच्चे विदेशियों (Foreigner) के सामने भीख मांगना छोड़ कर हिन्दी (Hindi) और अंग्रेजी (English) के साथ तिब्बती भाषा (Tibetan Language) की पढ़ाई में जुट गये हैं. यह नेक काम हुआ है स्थानीय रामजी मांझी (Ramji Manjhi) के प्रयास से. खुद की उच्च शिक्षा का सपना पूरा नहीं करने वाले रामजी मांझी ने यह काम तिब्बती धर्म गुरू दलाईलामा (Dalai Lama) और पर्वत पुरूष दशरथ मांझी (Dasharth Manjhi) की प्रेरणा से शुरू किय़ा है. Show बोधगया के बकरौर स्थित पुराने चरवाहा विद्यालय के भवन में सेनानी सामाजिक जागरूकता समूह द्वारा महादलित बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा दी जा रही है. यहां पढने वाले कुल 110 बच्चों में ज्यादातर गरीब और अशिक्षित परिवार के हैं. इनमें से कई बच्चें पहले भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली महाबोधी मंदिर एवं अन्य विदेशी मोनेस्ट्री के बाहर देश-विदेश से आनेवाले पर्यटकों से भीख मांगा करते थे. आज ये यहां आकर पढाई कर रहें हैं और आने वाले दिनों में शिक्षक, डॉक्टर और इंजीनियर बनने का सपना देख रहे हैं. हिंदी और
अंग्रेजी ही नहीं, तिब्बती भाषा सीख रहे बच्चे इनकी प्रेरणा बनी नेक काम की वजह इस शर्त पर मिलता है दाखिला यह भी पढ़ें: चिराग पासवान ने की बिहार दारोगा परीक्षा की CBI जांच की मांग, नीतीश कुमार को लिखी चिट्ठी ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी| FIRST PUBLISHED : February 24, 2020, 17:24 IST 'भीख माँगना अपराध नहीं'
30 अक्टूबर 2009 इमेज कैप्शन, भारत में अबतक भिख माँगना अपराध माना जाता है दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि ग़रीबी कोई अपराध नहीं है इसलिए भिखारियों को ज़बरदस्ती राजधानी दिल्ली से बाहर नहीं भगाया जा सकता. अदालत के अनुसार ऐसा करना मानवता के ख़िलाफ़ अपराध है. मुख्य न्यायधीश एपी शाह और न्यायमूर्ति एस मुरलीधर ने दिल्ली सरकार को फ़टकार लगाते हुए कहा है कि ये हैरानी की बात है कि अपराधी इस शहर में रह सकते हैं, पर वो लोग जो जीने के लिए भिक्षा मांग रहे हैं उन्हें शहर से बाहर निकाला जा रहा है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर की एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान ये मंतव्य दिया. इस याचिका में उन्होने भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर निकालने की मांग की है. बीबीसी ने हर्ष मंदर से पूछा कि इस जनहित याचिका मे उन्होंने ये मांग किस आधार पर की है, तो उनका कहना था, "भारत में क़ानूनी तौर पर भिखारी की जो परिभाषा है उसके अनुसार भिखारी वो व्यक्ति है जिसके पास जीने का कोई साधन नही है, ना ही उसके पास सिर छिपाने के लिए छत है. ऐसे व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने की बजाए सरकार ने ख़ुद को ये हक़ दिया हुआ है कि वो ऐसे व्यक्ति को पकड़ कर जेल मे बंद कर दे." क़ानून अपारध भारत में भीख मांगना एक क़ानूनी अपराध है और इसके लिए तीन साल तक की सज़ा हो सकती है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मसले पर महाधिवक्ता की मदद मांगी है कि किस तरह से भीख मांगने को क़ानूनी अपराध की श्रेणी से बाहर निकाला जा सकता है. पर यहाँ सवाल ये है कि अगर भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा जाए तो भी क्या भीख मांगने को एक अधिकार के तौर पर देखा जा सकता है. इस पर हर्ष मंदर का कहना है, "मैंने अपनी याचिका मे कई सुझाव दिए हैं पर मौटे तौर पर मैं हम यही कहना चाहते हैं कि ये सरकार को समझना पड़ेगा कि अगर इतनी बड़ी संख्या मे लोग भीख मांग रहे हैं तो इसका मतलब है कि ग़रीबी एक बड़ी समस्या है, और उससे निपटने के लिए उसे सामाजिक सुरक्षा के ठोस उपाय करने चाहिए." कई बार ये भी देखा गया है की भीख मंगवाने के लिए बाक़ायदा गिरोह काम करते हैं. अगर भीख मांगने को अपराध मानने वाले क़ानून को ख़त्म कर दिया जाए तो क्या ऐसे गिरोहों को बल नही मिलेगा. इस सवाल के जवाब में हर्ष मंदर कहते हैं, "इस समस्या से निपटने के लिए देश के कई क़ानून मौजूद हैं, लेकिन इस आधार पर लोगों से जीने का हक़ नही छीना जा सकता." हाल ही मे अंतरराष्ट्रीय संस्था एक्शन एड की एक रिपोर्ट मे कहा गया था कि भारत मे उन लोगों की संख्या तीन करोड़ बड़ गई है जिन्हें भर पेट खाना नही मिलता है. तिब्बत में भीख मांगने के लिए क्या कहते हैं?चूँकि लेखक और उसका साथी, दोनों भिखमंगे के वेश में थे, इसलिए उन्हें डाकुओं का भय नहीं था। जहाँ कहीं भी इन्हें कोई ऐसी खतरनाक सूरत दिखती, वे अपनी टोपी उतारकर और जीभ निकालकर वहाँ की भाषा में 'कुची-कुची (दया- दया) एक पैसा' कहते हुए भीख माँगने लगते।
तिब्बत में भिखारी को क्या कहा जाता है?Answer: 4th option is correct. Explanation: तिब्बत में भिक्षु को नम्से कहा जाता है।
भिक्षु नम्से कहाँ रहते थे?तिब्बत की जमीन छोटे-बड़े जागीरदारों के हाथों में बटी है। इन जागीरो का बड़ा हिस्सा मठों के हाथ में है। अपनी अपनी जागीर में हर जागीरदार कुछ खेती खुद भी करता है जिसके लिए मजदूर उन्हें बेगार में मिल जाते हैं। लेखक शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु न्मसे से मिले।
तिब्बत में हथियार लेकर चलने का क्या कारण है?डाकू पहले लोगों को मार देते और फिर देखते की उनके पास पैसा है या नहीं। तथा तिब्बत में हथियार रखने से सम्बंधित कोई क़ानून नहीं था। इस कारण लोग खुलेआम पिस्तौल बन्दूक आदि रखते थे। साथ ही, वहाँ अनेक निर्जन स्थान भी थे, जहाँ पुलिस का प्रबंध नहीं था।
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