स्थानीय शासन की आवश्यकता क्यों है - sthaaneey shaasan kee aavashyakata kyon hai

11 Class Political Science Chapter 8 स्थानीय शासन Notes In Hindi Local Government

Board CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Political Science
Chapter Chapter 8
Chapter Name स्थानीय शासन
Local Government
Category Class 11 Political Science Notes in Hindi
Medium Hindi

Class 11 Political Science Chapter 8 स्थानीय शासन Notes In Hindi जिसमे हम लोकतंत्र , स्थानीय शासन , 73 वां और 74 वां संशोधन , राज्य चुनाव आयुक्त आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 11 Political Science Chapter 8 स्थानीय शासन Local Government Notes In Hindi

📚 अध्याय = 8 📚
💠 स्थानीय शासन 💠

❇️ लोकतंत्र का अर्थ है :-

🔹  सार्थक भागीदारी तथा जवाबदेही । जीवंत और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है । जो काम स्थानीय स्तर पर किए जा सकते हैं वे काम स्थानीय लोगों तथा उनके प्रतिनिधियों के हाथ में रहने चाहिए । आम जनता राज्य , सरकार या केन्द्र सरकार से कहीं ज्यादा स्थानीय शासन से परिचित होती है ।

❇️ स्थानीय शासन :-

🔹 गांव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते है । यह आम आदमी का सबसे नजदीक का शासन है । इसमें जनता की प्रतिदिन की समस्याओं का समाधान बहत तेजी से तथा कम खर्च में हो जाता है । 

❇️ स्थानीय शासन का महत्व :-

🔹 स्थानीय शासन का हमारे जीवन में बहुत महत्व है यदि स्थानीय विषय स्थानीय प्रतिनिधियों के पास रहते है तो नागरिकों के जीवन की रोजमर्रा की समस्याओं के समाधान तीव्र गति से तथा कम खर्च में हो जाती है ।

❇️ भारत में स्थानीय शासन का विकास :-

🔹 प्राचीन भारत में अपना शासन खुद चलाने वाले समुदाय , ” सभा ” के रूप में मैजूद थे । आधुनिक समय में निर्वाचित निकाय सन् 1882 के बाद आस्तित्व में आए । उस वक्त उन्हें ” मुकामी बोर्ड ” कहा जाता था ।

🔹 1919 के भारत सरकार अधिनियम के बनने पर अनेक प्रांतो में गाम पंचायते बनी । जब संविधान बना तो स्थानीय शासन का विषय प्रदेशों को सौंप दिया गया । संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में भी इसकी चर्चा है । 

❇️ स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन :-

🔹 संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधन के बाद स्थानीय शासन को मजबूत आधार मिला । इससे पहले 1952 का ” सामुदायिक विकास कार्यक्रम “ इस क्षेत्र में एक अन्य प्रयास था इस पृष्ठभूमि में ग्रामीण विकास कार्यक्रम के तहत एक त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की शुरूआत की सिफारिश की गई । ये निकाय वित्तीय मदद के लिए प्रदेश तथा केन्द्रीय सरकार पर बहुत ज्यादा निर्भर थे । सन् 1987 के बाद स्थानीय शासन की संस्थाओं के गहन पुनरावलोकन की शुरूआत हुई ।

🔹 सन् 1989 में पी . के . डुंगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की । 

❇️ स्थानीय शासन की आवश्यकता :-

🔹 लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए हमें स्थानीय शासन की आवश्यकता होती है ।

🔹 लोकतंत्र में अधिक से अधिक भागीदारी के लिए स्थानीय शासन चाहिए ।

🔹 लोगों की सबसे अधिक समस्या स्थानीय स्तर के होते हैं जिसे स्थानीय स्तर पर ही अच्छे ढंग से सुलझाया जा सकता है ।

🔹 अच्छे लोकतंत्र में शक्तियों का बंटवारा जरुरी है ।

❇️ संविधान का 73 वां और 74 वां संशोधन :-

🔹 सन् 1992 में ससंद ने 73 वां और 74 वां संविधान संशोधन पारित किया । 

🔹 73 वां संशोधन गांव के स्थानीय शासन से जुड़ा है । इसका संबंध पंचायती राज व्यवस्था से है । 74 वां संशोधन शहरी स्थानीय शासन से जुड़ा है ।

❇️ 73 वां संशोधन – 73 वें संविधान संशोधन के कुछ प्रावधान :-

🔶 त्रि – स्तरीय ढांचा :- अब सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का त्रि – स्तरीय ढांचा है ।

🔶 चुनाव :- पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तरों के चुनाव सीधे जनता करती है । हर निकाय की अवधि पांच साल की होती है । 

🔶 आरक्षण :- महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित  अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जन जाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान है । यदि प्रदेश की सरकार चाहे तो अन्य पिछड़ा वर्ग ( ओ . बी . सी . ) को भी सीट में आरक्षण दे सकती है ।

🔹 इस आरक्षण का लाभ हुआ कि आज महिलाएं सरपंच के पद पर कार्य कर रही है । 

🔹 भारत के अनेक प्रदेशों के आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्रों को 73 वें संविधान के प्रावधानों से दूर रखा गया परन्तु सन् 1996 में एक अलग कानून बना कर पंचायती राज के प्रावधानों में , इन क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया गया । 

❇️ 74 वां संशोधन :-

🔹 74 वें संशोधन का संबंध शहरी स्थानीय शासन से है अर्थात् नगरपालिका से । 

🔹 74 वाँ संशोधन अधिनियम में प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली , कोलकाता , मुंबई , मद्रास और अन्य शहर जहाँ नगरपालिका या नगर निगम का प्रावधान है के लिए किया गया है । 

🔹 ” प्रत्येक नगर निगम के लिए सभी व्यस्क मतदाताओं द्वारा चुनी गई एक समान्य परिषद् होती है । इन चुने हुए सदस्यों को पार्षद या काउंसिलर कहते है । 

🔹 ” पुरे नगर निगम के चुने हुए सदस्य अपने एक नगर निगम का अध्यक्ष का चुनाव करते है जिसे महापौर ( मेयर ) कहते है । 

🔹 74 वें संशोधन अधिनियम के अनुसार प्रत्येक नगर निगम या नगरपालिका या नगर पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है । 

🔹 ” नगर निगम , नगरपालिका या नगर पंचायत के भंग होने पर 6 माह के अंदर चुनाव करवाना अनिवार्य है ।

❇️ राज्य चुनाव आयुक्त :-

🔹 प्रदेशों के लिए यह जरूरी है कि वे एक राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करें । इस चुनाव आयुक्त की जिम्मेदारी पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी । 

❇️ राज्य वित्त आयोग :-

🔹 प्रदेशों की सरकार के लिए जरुरी है कि वो हर पांच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनायें । यह आयोग प्रदेश में मौजूद स्थानीय शायन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति की जानकारी रखेगा ।

❇️ शहरी इलाका :-

🔹 ऐसे इलाके में कम से कम 5000 की जनसंख्या हो ।

🔹 कामकाजी पुरूषों में कम से कम 75 % खेती बाड़ी से अलग काम करते हो ।

🔹 जनसंख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो । विशेषः अनेक रूपों में 74 वें संविधान संशोधन में 73 वे संशोधन का दोहराव है लेकिन यह संशोधन शहरी क्षेत्रों से संबंधित है । 

🔹 73 वें संशोधन के सभी प्रावधान मसलन प्रत्यक्ष चुनाव , आरक्षण विषयों का हस्तांतरण , प्रादेशिक चुनाव आयुक्त और प्रादेशिक वित्त आयोग 74 वें संशोधन में शामिल है तथा नगर पालिकाओं पर लागू होते हैं । 

❇️ 73 वें और 74 वें संशोधन का क्रियान्वयन :-

🔹 ( 1994 – 2016 ) इस अवधि में प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव कम से कम 4 से 5 बार हो चुके है । स्थानीय निकायों के चुनाव के कारण निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की संख्या में निरंतर भारी बढ़ोतरी हुई है । महिलाओं की शक्ति और आत्म विश्वास में काफी वृद्धि हुई है । 

❇️ विषयों का स्थानांतरण :-

🔹 संविधान के संशोधन ने 29 विषय को स्थानीय शासन के हवाले किया है । ये सारे विषय स्थानीय विकास तथा कल्याण की जरूरतो से संबंधित है ।

❇️ स्थानीय शासन के विषय :-

  • ग्यारहवी अनुसूची के विषय
  • सड़कें
  • ग्रामीण विकास
  • लघु उद्योग
  • सिंचाई
  • बाजार एवं मेला
  • ग्रामीण विद्युतीकरण
  • क्रषि
  • शिक्षा 
  • पेयजल

❇️ स्थानीय शासन के समक्ष समस्याएं :-

  • धन का अभाव
  • वित्तीय मदद के लिए सरकारों पर निर्भर
  • आय से अधिक खर्च करना
  • जनता का जागरूक न होना
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स्थानीय शासन की आवश्यकता क्यों होती?

स्थानीय शासन की मान्यता है कि स्थानीय ज्ञान और स्थानीय हित लोकतांत्रिक फ़ैसला लेने के अनिवार्य घटक हैं। कारगर और जन - हितकारी प्रशासन के लिए भी यह ज़रूरी है । स्थानीय शासन का फायदा यह है कि यह लोगों के सबसे नजदीक होता है और इस कारण उनकी समस्याओं का समाधान बहुत तेज़ी से तथा कम खर्चे में हो जाता है।

स्थानीय शासन क्या है समझाइए?

स्थानीय लोगों द्वारा मिल-जुल कर अपनी समस्याओं के निदान एवं विकास हेतु बनाई गई ऐसी व्यवस्था जो संविधान और राज्य सरकारों द्वारा बनाए गये नियमों एवं कानूनों के अनुरूप हो। स्थानीय शासन से हमारा अभिप्राय यह है कि स्थानीय क्षेत्रों का प्रशासन वहाँ के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाए।

स्थानीय शासन कितने प्रकार के होते हैं?

शहरी स्थानीय शासन, मुख्यतः तीन प्रकार का होता है, नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत आदि ।