संस्कृति और परंपरा किसे कहते हैं - sanskrti aur parampara kise kahate hain

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    • परिचय
    • संस्कृति का अर्थ
    • संस्कृति की परिभाषा
      • टेलर 
      • आर एच लेंडिस
      • फेयर चाइल्ड
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    • संस्कृति की विशेषता एवं लक्षण,प्रकृति या गुण
      • सीखा हुआ गुण
      • संस्कृति की प्रकृति अस्थायी है
      • संस्कृति आवश्यकताओं को पूरा करती है
      • CULTURE (संस्कृति) में सार्वभौमिक गुण होता है
      • CULTURE (संस्कृति) एक जटिल समुच्चय है
      • संस्कृति में भौतिक और अभौतिक तत्व होते हैं
      • CULTURE (संस्कृति) में संचय का भाव होता है
      • संस्कृति आदर्श होती है
      • संस्कृति में हस्तांतरण का गुण पाया जाता है
      • CULTURE (संस्कृति) सामाजिक होती है
    • संस्कृति के प्रकार
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        • भौतिक संस्कृति की विशेषता
      • अभौतिक संस्कृति
        • अभौतिक संस्कृति की विशेषता
    • निष्कर्ष 

संस्कृति

मानव एक ऐसा प्राणी है जिसकी अपनी संस्कृति होती है, मनुष्य CULTURE को धारण करता है, और उसका निर्माण भी करता है, और साथ ही CULTURE का संरक्षण भी करता है।

संस्कृति, संस्कृत भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है परिष्करण अथवा शोधन, परिष्करण अथवा शोधन का अर्थ होता है साफ करना। अथार्त अपने अंदर के गंदे विचारों का अंत करके अपनी आत्मा को साफ करना। 

हम जानते है की यह शब्द संस्कृत से लिया गया है। संस्कृत और संस्कृति यह दोनो शब्द संस्कार से बने है। जहां संस्कार से तात्पर्य धर्म से सम्बन्धित कार्यों से है। इन्ही धर्म सम्बन्धी कार्यों से सामूहिक जीवन के उद्देश्यों (लक्ष्यों) को प्राप्त किया जाता है। 

परिचय

संस्कृति को अंग्रेजी भाषा में CULTURE भी कहा जाता है,हम इस टॉपिक में संस्कृति के स्थान पर CULTURE शब्द का भी उपयोग करेंगे, CULTURE एक सभ्य व्यक्ति का आध्यात्मिक (lSPIRITUAL) गुण है। इसकी पीछे मुख्य वजह ये है की मानव  अपने जीवन काल में  जो भी व्यवहार सीख लेता है, वही संस्कृति बन जाती है।

मानव जीवन के सन्दर्भ में देखें तो CULTURE मानव जीवन की सबसे बड़ी सम्पदा में से एक है संस्कृति का सीधा सम्बन्ध संस्कारों और मन में आने वाले विचारों से है,संस्कृति का सम्बन्ध सभ्य जीवन की विचारात्मक स्वरूप से है। जिसको नापना सदैव संभव नहीं होता है।

आमतौर इस शब्द को हम अपने आसपास होने वाले मेलों में या त्योहारों में अपने  चिर-परिचितों से जरूर सुन लेते होंगे। खासतौर से बड़े बुजुर्गों से, किसी पार्टी के राजनेताओं से,सामाजिक कार्यकर्ताओं के संबोधन में भी अक्सर CULTURE शब्द को सुना जा सकता है। आखिर CULTURE है क्या? इसकी परिभाषा क्या है ? यह कितने प्रकार की होती है ? इसकी विशेषता क्या है ? इन तमाम जिज्ञासाओं के बारे में हम इस POST के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे।

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संस्कृति का अर्थ

संस्कृति जीवन जीने का एक साधन है, जो सम्भावित परिवर्तनों और विकासों के बाद एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती है।

वास्तव में CULTURE विचार और व्यवहारों से मिल कर बना हुआ प्रतिफल है,जिसमें आचार, विचार और मानवीय मूल्यों, समाज द्वारा स्थापित प्रतिमानों, विश्वासों, आर्थिक एवं राजनीतिक संगठनों को सम्मिलित किया जा सकता है। और यह सब एक जनरेशन से दूसरी जनरेशन को हस्तगत या हस्तांतरित होते रहते हैं।

व्यक्ति समाज और समुदाय के एक सदस्य के रूप में जिस तरह से चिंतन और मनन करते हैं। उन चिंतन और मनन  के फलस्वरूप समाज और सामुदायिक जीवन में जो उपलब्धियां अर्जित होती है, वही संस्कृति कहलाती है। CULTURE की अवधारणा में धर्म और व्यवस्था, दर्शन, भाषा और संगीत आदि शामिल हो सकते हैं।

संस्कृति की परिभाषा

इसको को बेहतर ढंग से समझने के लिए कई विद्वानों और समाजवादियों द्वारा दी गई परिभाषाओं को समझना आवश्यक है। इनमें से कुछ परिभाषाएं इस प्रकार हैं।

टेलर 

टेलर ने CULTURE को परिभाषित करते हुए कहा है कि “संस्कृति एक जटिल पूर्णता या समुच्चय है, जिससे ज्ञान, कला,कानून, प्रथा, ETHICS (नीति), विश्वास तथा आदतें एवं अन्य CAPACITIES (क्षमताएं), जिन्हें अपनी सामाजिक सदस्य के रूप में मानव प्राप्त करता है। को सम्मिलित (INCLUDED) किया जाता है ।”

टालकॉट पारसंस

“संस्कृति एक ऐसा वातावरण या पर्यवारण है जिसका अस्तित्व मनुष्य के चरित्र और कार्यों को निर्धारित करने का आधार या मौलिक है।”

आर एच लेंडिस

इन्होंने CULTURE को परिभाषित करते हुए कहा है कि “संस्कृति एक निवास है जहाँ मनुष्य अपने जिंदगी भर जीवन यापन करता है, जिसके कारण उसका सारा जीवन का अस्तित्व स्थिर रहता है।”

बूम तथा सेल्जनिक

बूम तथा सेल्जनिक महोदय ने अपनी परिभाषा में कहा है कि “संस्कृति एक समाज द्वारा प्रदान की हुई विरासत है।”

मैकाइवर तथा पेज

इन्होंने अपनी परिभाषा में बताया कि “संस्कृति एक PHYSICAL (भौतिक) पक्ष है जो मानव के द्वारा निर्मित पर्यावरण से सम्बद्ध  होती है।”

फेयर चाइल्ड

फेयर चाइल्ड ने  “सामाजिक रुप से चिन्हों या प्रतीकों के माध्यम से अर्जित और संचालित व्यवहारों के प्रतिमानों को सामूदायिक रूप से संस्कृति का कहा जाता है।”

लेसलिहाईट

प्रसिद्ध ANTHROPOLOGIST (मानव शास्त्री) लैसली हाइट नहीं कहा है कि “संस्कृति का आधार मानव की प्रतीकात्मक क्षमता को माना जाता है।”

कहा जाता है कि ए एल क्रोवर जो कि अमेरिका के एक प्रसिद्ध मानवविज्ञानी हुए, उन्होंने अपनी पुस्तक ऑन द कॉन्सेप्ट एंड डेफिनेशन ऑफ कल्चर (1957)में लगभग 300 से भी अधिक परीभाषाओं का संकलन किया था।

मजूमदार

मजूमदार ने CULTURE को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “संस्कृति मानव का जीने का एक ढंग है”

लोवो

इन्होंने CULTURE के बारे में कहा है कि “संस्कृति एक प्राचीन TRADITION (परंपरा) है।”

फेलिक्स एवम किसिंग

इन्होंने CULTURE को “समाज में मनुष्य द्वारा सीखे गए व्यवहार का संचार है”

उपसंहार

उपर्युक्त परीभाषाओं को ध्यान से अगर देखते हैं तो पाते हैं कि CULTURE की अवधारणा बहुत अधिक व्यापक है। जिसे चंद वाक्यों  के रूप में परीभाषाओं में बांध लेना सम्भव ही नहीं बल्कि असम्भव भी है

तथापि संस्कृति की उपयुक्त परीभाषाओं के अध्ययन के पश्चात  कहा जा सकता है कि “यह स्वयं में अभौतिक एवं भौतिक तत्वों का एक जटिल समुच्चय को समाहित करती है,जिसे मनुष्य एक सामाजिक प्राणी के रूप में प्राप्त करता है, और मानव जीवन उसी के अनुसार संचारित और जिया जाता है।  

संस्कृति की विशेषता एवं लक्षण,प्रकृति या गुण

इसकी की विशेषता एवं लक्षण,प्रकृति या गुण इस प्रकार से हो सकते हैं।

सीखा हुआ गुण

यह सीखे हुए गुणों के प्रतिमानों के समुच्चय को कहा जाता है। इसमे लोगों के शारीरिक एवं मानसिक गुणों की तरह अपने पूर्वजों व पेरेंट्स से नहीं मिलती है,वरन लोग,सांस्कृतिक विशेषताओं को समाज के द्वारा सामाजिकरण की प्रक्रिया के द्वारा सीखतें है।

संस्कृति की प्रकृति अस्थायी है

जहाँ एक ओर संस्कृति में पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होने का गुण होता है, वहीं दूसरी ओर परिवर्तन की प्रवृत्ति भी होती है। जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित होने के साथ-साथ आवश्यकता अनुसार अपने मूल रूप में गतिशील भी है। या CULTURE के कई तत्व बदलते रहते हैं, जो कि समाज विशेष के अनुसार होता है। इससे धीरे-धीरे संस्कृति की प्रकृति एवं स्वरूप में परिवर्तन होता है।

संस्कृति आवश्यकताओं को पूरा करती है

संस्कृति की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि यह मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति में योगदान देती है। हो सकता है कि किसी CULTURE का एक हिस्सा सतह पर महत्वहीन या कम महत्वह का लग सकता है,परंतु संपूर्ण सांस्कृतिक संरचना में उस अंग या तत्व विशेष का अपना एक महत्वपूर्ण योगदान है।

उदाहरण के लिए, एक हाथ में पहनी जाने वाली घड़ी का लिया जा सकता है। इस घड़ी में जो कलाई में बांधने हेतु स्ट्रैप होता है वह हो सकता है कि किसी व्यक्ति को निरर्थक लगे, परंतु कलाई की घड़ी की पूरी संरचना को देखें तो स्टैप का एक महत्वपूर्ण योगदान होता है। जिसके ना होने से घड़ी को कलाई में बांधा नहीं जा सकता है। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि संस्कृति का कोई भी अंश या तत्व व्यर्थ नहीं होता है।

CULTURE (संस्कृति) में सार्वभौमिक गुण होता है

यह लगभग दुनिया के सभी समाजों में अपने भिन स्वरूपों में किसी न किसी रूप में अवश्य पाई जाती है चाहे वह सभ्य समाज हो या असभ्य,PRIMITIVE (आदिम) समाज हो या आधुनिक, अर्थात जहां- जहां मानव अपना जीवन यापन करता है, वहां-वहां संस्कृति पाई जाती है। हालांकि सभी समाजों में CULTURE के अनेक रूपों में से कोई न कोई स्वरूप विद्यमान होता ही है, इसीलिए इसमें सार्वभौमिकता का गुण पाया जाता है।

CULTURE (संस्कृति) एक जटिल समुच्चय है

जैसा कि हम सब जानते हैं कि संस्कृति के अनेक तत्व या अंग होते हैं। और वह तत्व सदैव एक दूसरे पर निर्भर होते हैं, अर्थात इसके विभिन्न अंग एक दूसरे से पृथक नहीं होते हैं, यही कारण है कि संस्कृति एक (COMPLEX WHOLE) जटिल पूर्णता होती है। क्योंकि इसके सभी अंग अथवा तत्व एक दूसरे से जुड़े अथवा संबद्ध होते हैं।

संस्कृति में भौतिक और अभौतिक तत्व होते हैं

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि CULTURE का सामाजिक विरासत से सीधा सम्बन्ध है और विरासत दो रूपों में विभाजित है, भौतिक और गैर-भौतिक, आराम की सभी विलासिता भौतिक चीजों में आता है, जबकि परंपराएं रूढ़िवादी विश्वास आदर्श, प्रथा आदि अभौतिक संस्कृति या तत्व के अंतर्गत आती हैं।

CULTURE (संस्कृति) में संचय का भाव होता है

संस्कृति हमेशा सभी तत्वों को आत्मसात करती है और धीरे-धीरे इसकी प्रकृति बढ़ती रहती है। इसलिए कहा जा सकता है कि संस्कृति में संचय का भाव पाया जाता है। इस प्रवृत्ति के कारण इसका विकास और प्रसार बहुत तेजी से होता है।

संस्कृति आदर्श होती है

प्रायः सभी समूह व समाज के लिए संस्कृति आदर्श (IDEALS),होती है,इसका वाजिद  कारण यह है कि संस्कृति किसी एक व्यक्ति के व्यवहारों का PATTERN (प्रतिमान) नहीं है।

बल्कि संस्कृति संपूर्ण समूहों व समाज के व्यवहारों का PATTERN (प्रतिमान) होता है। जिसको आदर्श के रूप में समझ कर चलना सभी समुदाय व समाज अपना पहला दायित्व मानते हैं। इसीलिए समाज में अगर कोई इसके  के खिलाफ जाने की कोशिश करता है तो उसकी निंदा की जाती है। वहीं जो व्यक्ति इसके अनुरूप चलते हैं, उन्हीं समाज में मान सम्मान और प्रशंसा भी मिलती है।

संस्कृति में हस्तांतरण का गुण पाया जाता है

CULTURE के बहुत से गुणों में से हस्तांतरण का गुण प्रमुख होता है। मानव यानि की हम अपनी भाषा एवं विभिन्न चिन्हों एवं प्रतीकों/चिन्हों के माध्यम से अपनी CULTURE को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण करता रहता है।

हालांकि यह भी सच है कि कई पशुओं ने भी अनेक व्यवहार सीखे होते हैं या उनको सिखाया जाता है। परंतु वह अपने सीखे हुए व्यवहारों को अपनी पीढ़ी को हस्तांतरित करने में असमर्थ होते हैं।

CULTURE (संस्कृति) सामाजिक होती है

संस्कृति सबकी है ओर सबके लिए है। क्योंकि CULTURE समाज के सदस्यों का सीखा हुआ एक व्यावहारिक PATTERN (प्रतिमान) होता है,न की कुछ चुनिंदा लोगों की संपत्ति होती है। CULTURE की इसी प्रवृति के कारण उसे सामाजिक संस्कृति भी कहा जाता है।

संस्कृति के प्रकार

मानव,एक समाज में रहने वाला प्राणी है, और समाज में ही अपना जीवन यापन करता है। अतः एक सामाजिक प्राणी के रूप में अपने पूर्वजों से जो भी प्राप्त करता है। उसको ही विरासत कहा जाता है, जिसे मानव शास्त्री एवं समाज शास्त्रियों ने संस्कृति कहा है । इसमें प्रमुख समाजशास्त्री आगबर्न और निम्काफ ने इसे  दो भागों में विभाजित किया है।

1 भौतिक संस्कृति।

2 अभौतिक संस्कृति।

भौतिक संस्कृति

भौतिक संस्कृति में वह सारी चीजें या वस्तुएं आ जाती है, जिनका निर्माण स्वयं मानव ने अपनी जरूरतों के अनुरूप किया होता है। इसके अलावा वे सारी वस्तुएं आ जाती है,जिनका उपयोग मनुष्य के द्वारा किया जाता हो। साथ ही उपयोग में लाई जा रही वस्तुएं मूर्त भी हो, दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि ऐसी तमाम वस्तुएं जिन्हें हम अपने आमने-सामने देख सकते हैं, और छूं सकते हैं, उनका उपयोग भी कर सकते हैं। जैसे बस, कंप्यूटर, कार, हमारे पहनने के कपड़े इत्यादि सभी भौतिक CULTURE के मुख्य अंग होते हैं।

इसके के भौतिक स्वरूप को प्रसिद्ध समाजवेता वीर स्टिड ने 13 वर्गों में बांट करके इसकी मूर्तता को स्पष्ट किया है।

भौतिक संस्कृति की विशेषता

1 इसका स्वरूप मूर्त होता है।

2 इसका सम्बन्ध संचय से होता है।

3 भौतिक संस्कृति का मापन किया जा सकता है।

4 इसका मूल्यांकन भी सम्भव है।

5 परिवर्तनशील है।

6 प्रसार के दौरान बिना बदलाव के ग्राम्य है।

अभौतिक संस्कृति

मानव को सामाजिक विरासत के रूप में प्राप्त हुई वह सारी चीजें या भाग जो मानव के द्वारा निर्मित तो हो हीं, साथ ही अमूर्त भी हो को अभौतिक संस्कृति के नाम से संबोधित किया जाता है। इसके अभौतिक स्वरूप को अधिकांशतः CULTURE ही कहा जाता है, जैसे साहित्य, कला,LITERATURE (भाषा), विश्वास, मान्यताएं, धर्म, एवं प्रथाएं, जनजातियां व STEREOTYPES (रूढ़िवादिता) इत्यादि। अभौतिक CULTURE के ही तत्व या अंग हैं।

अर्थात संस्कृति का वह पक्ष जिसका स्वरूप मूर्त नहीं होता है। बल्कि विश्वाश व माननीय विचारों के द्वारा मनुष्य के व्यवहार को नियमित एवं नियंत्रित किया जाता है। अभौतिक संस्कृति के स्वरूप,आदर्श एवं नियमों एवं  विचारों को वीर स्टिड ने सबसे अधिक जरूरी माना है। क्योंकि आदर्शात्मक विचारों का सम्बन्ध मानव के सामूहिक व्यवहार के तरीकों से होता है। कुछ व्यक्ति विशेष के विचारों से नहीं! अतः व्यवहार के उन माध्यमों को जो CULTURE के आदर्श मान्य होते हैं उन्हीं को आदर्श नियम कहा जाता है।

अभौतिक संस्कृति की विशेषता

1 अमूर्त स्वरूप होता है।

2 अभौतिक CULTURE मूल्यांकन करना सम्भव नहीं है।

3 जटिल समुच्यों को धारण करती है।

4 इसका मूल्यांकन भौतिक CULTURE के अनुरूप नहीं किया जा सकता है।

5 सांस्कृतिक विस्तार एवं फैलाव के समय धीरे-धीरे परिवर्तन होता है।

6 अपेक्षाकृत कम गतिशील होते हैं।

7 मनुष्य के आध्यात्मिक पक्ष का द्योतक होता है।

निष्कर्ष 

निश्चित रूप से CULTURE मानव का सीखा हुआ गुण है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। इस तरह CULTURE विरासत में मिला हुआ एक साधन है जिसके सहारे  मानव अपने जीवन यापन करता है।

संस्कृति की सहायता से ही मानव को नियंत्रित किया जा सकता है,इसके परिणामस्वरूप मानव समाज में रह पाता है,इस टॉपिक में हमने CULTURE के प्रकारों एवं विषेशताओं को बताने का एक प्रयास किया है। आशा करते हैं आपको हमारी ये पोस्ट पसंद आयी होगी।इसलिए इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करने का कस्ट करें। धन्यवाद  

संस्कृति कितने प्रकार की होती है ?

प्रमुख समाजशास्त्री आगबर्न और निम्काफ ने संस्कृति को दो भागों में विभाजित किया है।
1 भौतिक संस्कृति।
2 अभौतिक संस्कृति।

संस्कृति किसे कहते हैं ?

संस्कृति, संस्कृत भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है परिष्करण अथवा शोधन, परिष्करण अथवा शोधन का अर्थ होता है साफ करना। अथार्त अपने अंदर के गंदे विचारों का अंत करके अपनी आत्मा को साफ करना। CULTURE एक सभ्य व्यक्ति का आध्यात्मिक (lSPIRITUAL) गुण है। इसकी पीछे मुख्य वजह ये है की मानव  अपने जीवन काल में  जो भी व्यवहार सीख लेता है, वही संस्कृति बन जाती है।

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संस्कृति एवं परंपरा क्या है?

परंपरा किसी प्रक्रिया का लगातार दोहराव है जबकि संस्कृति परंपरा के गुण दोष जांचने के बाद जनमानस में बनी उसकी स्वीकार्यता है। परंपरा और संस्कृति का क्या महत्व है? संस्कृति एक बहुत व्यापक अवधारणा है, इसलिए मैं परंपरा से शुरू करूंगा। लोग परंपरा को कई अलग-अलग तरीकों से समझते हैं।

संस्कृति परंपरा में क्या अंतर है?

संस्कृति और परंपरा के बीच मुख्य अंतर यह है कि संस्कृति एक विशेष सामाजिक समूह के विचार, रीति-रिवाज और सामाजिक व्यवहार है जहाँ तक परंपरा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक रीति-रिवाजों और मान्यताओं का प्रसारण है। इन परिभाषाओं से, आपको यह स्पष्ट होना चाहिए कि परंपराएं भी संस्कृति का एक हिस्सा हैं।

परंपरा की परिभाषा क्या है?

'परम्परा' का शाब्दिक अर्थ है - 'बिना व्यवधान के शृंखला रूप में जारी रहना'। परम्परा-प्रणाली में किसी विषय या उपविषय का ज्ञान बिना किसी परिवर्तन के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ियों में संचारित होता रहता है। उदाहरणार्थ, भागवत पुराण में वेदों का वर्गीकरण और परम्परा द्वारा इसके हस्तान्तरण का वर्णन है।

संस्कृति से क्या तात्पर्य है?

अंग्रेजी में संस्कृति के लिये कल्चर शब्द प्रयोग किया जाता है जो लैटिन भाषा के 'कल्ट या कल्टस' से लिया गया है जिसका अर्थ है जोतना विकसित करना या परिष्कृत करना और पूजा करना । संक्षेप में किसी वस्तु को यहाँ तक संस्कारित और परिष्कृत करना कि इसका अंतिम उत्पाद हमारी प्रशंसा और सम्मान प्राप्त कर सके।