किसी अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पादित वस्तुओं सेवाओं की कुल मात्रा में वृद्धि करना आर्थिक वृद्धि कहलाता है । यह वृद्धि निरंतर व दीर्घकाल तक जारी रहनी चाहिये । यदि आकस्मिक रूप से वस्तुओं और सेंवाओं की मात्रा में हुई वृद्धि आर्थिक वृद्धि नहीं कहलायेगी । जैसे एक साल सभी परिस्थितियों के अनुकूल रहने पर कृषि उत्पादन बढ़ता है, लेकिन यह बाद में नहीं बढ़ता इसे
आर्थिक वृद्धि नहीं कहेंगे । आर्थिक वृद्धि के लिये यह आवश्यक नहीं कि अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा में एक समान स्तर पर वृद्धि हो । यहाँ वृद्धि से आशय भौतिक उत्पादन में कुल वृद्धि से है । आर्थिक वृद्धि में यह संभव है कि कुछ वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा में अधिक वृद्धि हो, कुछ वस्तुओं में कम वृद्धि हो। परन्तु अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा में दीर्घकाल तक निरंतर वृद्धि होनी चाहिए। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था
द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा को मुद्रा में व्यक्त किया जाता है। इसमें होने वाली केवल भौतिक मात्रा की वृद्धि पर ध्यान देना चाहिये। इस प्रकार करने के लिये कुल उत्पादन के मूल्य में से वह वृद्धि हटानी पडे़गी, जो मूल्यों के कारण हुई है। आर्थिक संवृद्धि से तात्पर्य दीर्घावधि में कुल उत्पादन में होने वाली वास्तविक वृद्धि से है। आर्थिक विकास की अवधारणा विस्तृत अवधारणा है । आर्थिक विकास से आशय अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धि के अतिरिक्त कुछ अन्य
क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन से है । दूसरे शब्दों में आर्थिक विकास का अर्थ आर्थिक वृद्धि तथा साथ ही साथ राष्ट्रीय आय के वितरण में वांछित परिवर्तन से तथा अन्य तकनीक व संस्थागत परिवर्तन होता है । आर्थिक वृद्धि आर्थिक विकास नही है, इसमें यह देखना होता है कि एक देश में उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं की यात्रा में वृद्धि के फलस्वरूप उस देश के नागरिकों के रहन-सहन के स्तर वृद्धि हुई या नहीं। आर्थिक वृद्धि के समय गरीबी, प्रति व्यक्ति वास्तविक आय, बेरोजगारी आदि में क्या-क्या परिवर्तन हुये । जैसे:-किसी देश द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा में वृद्धि दर के समान या उससे अधिक दर से उसकी जनसंख्या भी बढ़ जाय, तब प्रति व्यक्ति आय उतनी रहेगी या घट जायेगी । इस स्थिति में कुल उत्पादन तो बढ़ा लेकिन लोगों के औसत रहन-सहन के स्तर में को परिवर्तन नहीं आया । इसी प्रकार यदि प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि के साथ-साथ आय की असमानताएं भी बढ़ी हो तो इसका मतलब आर्थिक वृद्धि के लाभ समान रूप से नहीं बटे गरीब और गरीब हो गये । अमीर और अमीर हो गये । आर्थिक विकास का संबंध अर्थव्यवस्था मे कुछ अन्य परिवर्तन से भी होती है जैसे उत्पादन के साधनों की कार्यकुशलता में सुधार, उत्पादन की तकनीक में परिवर्तन, गैर कृषि क्षेत्र के महत्व आदि । आर्थिक विकास से अभिप्राय आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ परिवर्तन से है । परिवर्तन से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में गुणात्मक सुधार से है । ये परिवर्तन रहन-सहन के स्तर में वृद्धि, असमानता में कमी, उन्नत तकनीक आदि में सकारात्मक परिवर्तन से है। आर्थिक विकास की विशेषताएं एक देश के अर्थव्यवस्था में कुछ
परिवर्तन होते रहते है इन्हीं परिवर्तनों को आर्थिक विकास के विशेषताओं में रूप में जाना जाता है जिसमें कुछ नियम है- 1. सतत् प्रक्रिया :- आर्थिक विकास एक सतत् प्रक्रिया है, जिसमें विकास के विभिन्न अंग एक दूसरे से जुडे़ रहते है । जैसे - कृषि के बाद उद्योग व सेवाओं का विकास होता है। विकास की यह प्रक्रिया नवीन उत्पादन तकनीक, बड़े पैमाने का उत्पादन तथा साधनों में परिवर्तन द्वारा दीर्घकाल में राष्ट्रीय आय की वृद्धि में सहायक। 2. राष्ट्रीय
आय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि :- एक देश की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि उसके विकास का सूचक होती है । यहां वास्तविक राष्ट्रीय आय से आशय उस आय से है जो मय सूचकांक के आधार पर संशोधित कर दी ग है । स्थिर मूल्यों पर राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि होनी चाहिये । राष्ट्रीय आय की तुलना में जनसंख्या में वृद्धि की दर अधिक तीव्र है, तो प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय बढ़ने के स्थान पर कम हो जायेगी । 3. दीर्घकालीन वृद्धि :- आर्थिक विकास उसी दशा में माना जाता है जबकि प्रति
व्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि समय विशेष से संबंधित न होकर दीर्घकाल तक निरंतर होती है। 4. जीवन स्तर में वृद्धि :- यदि राष्ट्रीय आय का बड़ा हिस्सा धनी वर्ग को मिलता है तो आर्थिक विकास अधिक सार्थक नहीं माना जाता है । आर्थिक विकासवर्तमान आर्थिक जगत में आर्थिक विकास के विचार का महत्वपूर्ण स्थान है। अधिकांश अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत किये गये समग्र आर्थिक चिन्तन में यह एक केन्द्र-बिन्दु बना हुआ है। आर्थिक विकास एक ऐसी सतत् प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी भी देश में उपलब्ध साधनों का अधिक से अधिक निपुणता के साथ उपयोग किया जाता है। आर्थिक विकास का अर्थ, "अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में उत्पादकता के स्तर में वृद्धि करना है।" व्यापक अर्थ में आर्थिक विकास से आशय राष्ट्रीय आय में वृद्धि करके निर्धनता को दूर करना तथा सामान्यजन के जीवन स्तर में सुधार करना है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जिस प्रक्रिया से देश के सामान्यजन की आय में वृद्धि एवं उपभोग के स्तर में उन्नति सम्भव हो सके,वही आर्थिक विकास है। विकास से देश की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में परिवर्तन होते हैं और आर्थिक विकास को इन्हीं परिवर्तनों का परिणाम कहा जा सकता है। आज विश्व के सभी देश अपने नागरिकों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना चाहते हैं और उन्हें वह सभी आधुनिक सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराना चाहते हैं जो सामान्यजन के जीवन के लिए आवश्यक हैं। आर्थिक विकास एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जिसके फलस्वरूप वास्तविक राष्ट्रीय आय (उत्पादन) अथवा प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय अथवा जनसामान्य के आर्थिक कल्याण में दीर्घकालीन वृद्धि होती है। तार्किक दृष्टि से आर्थिक विकास के निम्न तीन रूप माने जा सकते हैं
राष्ट्रीय आय में निरन्तर वृद्धि को सकारात्मक आर्थिक विकास' कहा जाता है जबकि राष्ट्रीय आय में निरन्तर होने वाले हास को नकारात्मक आर्थिक विकास के नाम से पुकारा जाता है। किन्तु जब राष्ट्रीय आय में न तो वृद्धि ही होती है और न हास होता है तब आर्थिक विकास 'शून्य' माना जाता है। आधुनिक अर्थशास्त्री आर्थिक विकास शब्द का प्रयोग सकारात्मक आर्थिक विकास के रूप में ही करते हैं और इसे राष्ट्रीय आय में निरन्तर वृद्धि के सन्दर्भ में ही प्रस्तुत करते हैं। आर्थिक विकास की परिभाषाएँआर्थिक विकास की एक सर्वमान्य परिभाषा देना अत्यधिक कठिन कार्य है। विभिन्न विचारकों ने इस शब्द की परिभाषा भिन्न-भिन्न आधारों को दृष्टि में रखकर देने का प्रयास किया है। कुछ विद्वानों ने आर्थिक विकास की परिभाषा 'कुल राष्ट्रीय वास्तविक आय' में वृद्धि के दृष्टिकोण को सम्मुख रखकर दी है तो दूसरी विचारधारा के विद्वानों ने 'प्रति व्यक्ति वास्तविक आय' में होने वाली वृद्धि को आर्थिक विकास को संज्ञा दी है। तीसरे वर्ग के विद्वानों ने आर्थिक विकास को 'आर्थिक कल्याण' के दृष्टिकोण से परिभाषित किया है। परिभाषा सम्बन्धी उपर्युक्त दृष्टिकोणों का विस्तृत विवेचन निम्नानुसार है- (1) कुल वास्तविक राष्ट्रीय आय में दीर्घकालीन वृद्धि के रूप में प्रस्तुत की गई आर्थिक विकास की परिभाषाएँ मेयर और बॉल्डविन, साइमन कुजनेट्स, पॉल एल्बर्ट और यंगसन आदि विद्वानों ने आर्थिक विकास को कुल वास्तविक राष्ट्रीय आय (अर्थात् वस्तुओं और सेवाओं का राष्ट्रीय उत्पादन) में दीर्घकालीन वृद्धि के रूप में परिभाषित किया है। इन विद्वानों की परिभाषाएँ अग्रानुसार हैं-
उपर्युक्त सभी विद्वानों को परिभाषाओं से स्पष्ट है कि जहाँ मेयर एवं बॉल्डविन ने आर्थिक विकास में वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने की बात कही है वहाँ विलियमसन तथा लुईस द्वारा प्रति व्यक्ति उत्पादन अथवा आय में वृद्धि का समर्थन किया गया है। उपर्युक्त परिभाषाओं में निम्न तीन बातें उल्लेखनीय हैं-
(1) प्रक्रिया (Process) आर्थिक विकास एक सतत प्रक्रिया है। इसका अर्थ कुछ विशेष प्रकार की शक्तियों के कार्यशील रहने के रूप में लगाया जाता है। इन शक्तियों के एक अवधि तक सतत् कार्यशील रहने के कारण आर्थिक चर मूल्यों में सदैव परिवर्तन व विवर्तन होते रहते हैं। यद्यपि इस प्रक्रिया के फलस्वरूप किसी अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन तो होता है किन्तु इस प्रक्रिया का सामान्य परिणाम राष्ट्रीय आय में वृद्धि होना है। राष्ट्रीय आय अथवा उत्पादन में वृद्धि के अतिरिक्त अर्थव्यवस्था में होने वाले अन्य महत्वपूर्ण परिवर्तनों को निम्न दो भागों में विभाजित किया जा सकता है (अ) साधनों की पूर्ति में परिवर्तन-
(ब) साधनों की मांग में परिवर्तन-
(2) वास्तविक राष्ट्रीय आय (Real National Income) आर्थिक विकास वास्तविक राष्ट्रीय आय की वृद्धि से सम्बन्धित है। वास्तविक राष्ट्रीय आय की वृद्धि से आशय देश या राष्ट्र द्वारा एक निश्चित समयावधि में उत्पादित होने वाली सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के शुद्ध मूल्य में होने वाली वृद्धि से है। मात्र मौद्रिक आय की वृद्धि से इसे सम्बन्धित करना गलत है। चूँकि आर्थिक विकास को मापने के लिए राष्ट्रीय आय को ही आधार माना जाता है, अत: किसी भी देश का आर्थिक विकास होना तभी स्वीकार किया जाएगा जब उस देश में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि होती रहे । कुल राष्ट्रीय उत्पादन में से मूल्य ह्रास अथवा मूल्य स्तर में हुए परिवर्तनों को समायोजित करने पर जो प्राप्त होता है वही विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन है। (3) दीर्घकालीन अथवा निरन्तर वृद्धि (Long-term or Continuous Increase) आर्थिक विकास का सम्बन्ध दीर्घकाल से होता है क्योंकि अल्पकाल में आर्थिक विकास सम्भव ही नहीं है। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि आर्थिक विकास की प्रक्रिया का मूल्यांकन मात्र एक या दो वर्षों में होने वाले विकास परिवर्तनों से नहीं आंका जा सकता वरन् 15-20 वर्षों के बीच हुए दीर्घकालीन परिवर्तनों से आंका जा सकता है। आर्थिक विकास एक नदी के प्रवाह के समान है। जो नियमित तथा निरन्तर क्रम से चलता रहता है। पं. जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि "आर्थिक विकास एक अनवरत प्रक्रिया है।" अतः यदि किसी देश की अर्थव्यवस्था में किन्हीं अस्थायी कारणों से कुछ सुधार हो जाता है तो इसे आर्थिक विकास नही समझा जाना चाहिए, क्योंकि आर्थिक विकास सामान्य घटकों से प्रभावित होने वाला नियमित व अनवरत विकास है। आलोचना आर्थिक विकास की उपर्युक्त परिभाषाओं की निम्न आधारों पर आलोचना की जाती है
(2) प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में दीर्घकालीन वृद्धि के रूप में प्रस्तुत की गई आर्थिक विकास की परिभाषाएँ अनेक अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक विकास को प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में दीर्घकालीन वृद्धि के रूप में परिभाषित किया है। इन अर्थशास्त्रियों में ऑर्थर लुईस, विलियमसन, बेरन, बुकानन, एलिस, रोस्टोव, क्राउज प्रमुख हैं। इन अर्थशास्त्रियों का मत है कि आर्थिक विकास हेतु वास्तविक आय में वृद्धि की दर जनसंख्या वृद्धि की दर से ऊंची होनी चाहिए। इन विद्वानों की परिभाषाएँ निम्नांकित हैं-
उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर निम्न तीन निष्कर्ष सम्मुख आते हैं-
आलोचना आर्थिक विकास की उपर्युक्त परिभाषाओं की निम्न आधारों पर आलोचना की जाती है
(3) आर्थिक कल्याण की दृष्टि से प्रस्तुत की गई आर्थिक विकास की परिभाषाएँ कुछ अर्थशास्त्रियों ने 'आर्थिक कल्याण' को दृष्टिगत रखते हुए आर्थिक विकास को परिभाषित किया है। इन विद्वानों ने आर्थिक विकास को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया है जिसके द्वारा प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि के साथ-साथ आय और सन्तुष्टि की असमानतायें घटती जाती हैं। भारतीय विचारक डॉ. बी. के. आर. वी. राव के मतानुसार, “यदि राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति औसत आय में वृद्धि के बाद भी निर्धन वर्ग के परिवारों की आय में वृद्धि नहीं होती है तो इसे आर्थिक विकास की संज्ञा नहीं दी जा सकती।" जिन प्रमुख आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक विकास को 'आर्थिक कल्याण' की दृष्टि से परिभाषित किया है उनकी परिभाषायें निम्नांकित हैं-
संयुक्त राष्ट्र संघ के एक प्रतिवेदन के अनुसार, “विकास मानव को केवल भौतिक आवश्यकताओं से ही नहीं, बल्कि उसके जीवन की सामाजिक दशाओं की उन्नति से भी सम्बन्धित होना चाहिए। अतः विकास में सामाजिक, सांस्कृतिक, संस्थागत तथा आर्थिक परिवर्तन भी सम्मिलित हैं।" उपर्युक्त विद्वानों का मत है कि आर्थिक विकास में आय की वृद्धि के साथ-साथ सामाजिक कल्याण का उद्देश्य भी निहित रहना चाहिए जिसके लिए आवश्यक है कि समाज में जहाँ एक ओर मात्रात्मक विकास बढ़े, वहीं दूसरी ओर वितरण में समानता भी बनी रहे । वितरण की असमानता से आर्थिक विकास नकारात्मक दर से प्रभावित होता है। आलोचनाएँ उपर्युक्त परिभाषाओं को निम्न आधारों पर आलोचनाएँ की जाती हैं
उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन एवं विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि सैद्धान्तिक दृष्टि से 'आर्थिक कल्याण' को आर्थिक विकास का सूचक स्वीकार करने के पक्ष में अनेक ठोस तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं, तथापि मूल्य निर्णयों से बचने तथा विश्लेषण में सरलता लाने की दृष्टि से अधिकांश अर्थशास्त्री प्रति व्यक्ति वास्तविक राष्ट्रीय आय को ही विकास का सूचक स्वीकार करते हैं। चूँकि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य जन सामान्य के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना है अतः यह कहा जा सकता है कि “आर्थिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थव्यवस्था की प्रति व्यक्ति शुद्ध आय दीर्घकाल में बढ़ती है।" संक्षेप में यह भी कहा जा सकता है कि "मानव का सर्वागीण विकास ही आर्थिक विकास है।" अर्थव्यवस्थाओं की शुरुआत के लंबे समय के बाद अर्थशास्त्रियों ने परिमाणात्मक उत्पादन बढ़ाने और देश की अर्थव्यवस्था में आमदनी बढ़ाने पर ध्यान देना शुरू किया। अर्थशास्त्री जिन मुद्दों की सबसे ज्यादा चर्चा करते थे-वह उत्पादन का परिमाण बढ़ाना और किसी देश की आमदनी बढ़ाने का मुद्दा होता था। यह मान्यता थी कि जो अर्थव्यवस्था अपनी उत्पादन को परिमाण में बढ़ाने में कामयाब हो जाता है उसकी आदमनी अपने आप बढ़ जाती है और इससे लोगों के जीवन स्तर में गुणात्मक बदलाव आ जाता है। लेकिन उस वक्त लोगों के जीवन में गुणात्मक बदलाव की बात नहीं होती थी। यही वजह है कि 1950 के दशक तक लोग वृद्धि और विकास की अलग-अलग पहचान करने में नाकाम रहे थे हालांकि वे इनके अंतरों के बारे में जानते थे। 1960 के दशक और उसके बाद के दशक में कई देशों के अर्थशास्त्रियों की राय थी कि अपेक्षाकृत वृद्धि दर ज्यादा है लेकिन जीवनस्तर में गुणात्मक बदलाव कम हो रहा था। समय आ गया था जब आर्थिक विकास और आर्थिक वृद्धि को अलग-अलग परिभाषित करने की जरूरत थी। अर्थशास्त्रियों के लिए, विकास का असर लोगों के जीवन की गुणवत्ता के स्तर पर दिखना चाहिए। यह जाहिर करने के निम्न घटक हैं:
यहां एक मूल बात ध्यान में रखने की जरूरत है, जिसके मुताबिक आम लोगों को न्यूनतम सुविधाएं मिलनी (जिसमें खाना, स्वास्थ्य और शिक्षा इत्यादि) शामिल है। इसके अलावा एक न्यूनतम आमदनी की भी गारंटी होनी चाहिए। आमदनी उत्पादक गतिविधियों से होती है। इसका मतलब है कि विकास सुनिश्चित करने से पहले हमें आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित करनी होगी। उच्च आर्थिक विकास उच्च आर्थिक वृद्धि की मांग करता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उच्च आर्थिक वृद्धि दर से उच्च आर्थिक विकास हासिल किया जा सकता है। यह ऐसी उलझन थी, जिसे पुराने समय के अर्थशास्त्री के स्पष्ट नहीं कर पा रहे थे। इस उलझन को समझने के लिए एक उदाहरण है-दो परिवारों की एक जैसी आमदनी है, लेकिन विकास के मापकों पर उनके खर्चे अलग-अलग हैं। एक परिवार स्वास्थ्य, शिक्षा और बचत पर खर्च करता है जबकि दूसरा परिवार कोई बचत नहीं करता, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करता है। ऐसे में दूसरा परिवार निश्चित तौर पर पहले परिवार की तुलना में ज्यादा विकसित होगा। ऐसे में निश्चित तौर पर वृद्धि और विकास के अलग-अलग मामले हो सकते हैं:
ऊपर दिए गए संयोजन की प्रकृति विस्तार में ले जाती है, लेकिन एक चीज स्पष्ट है कि उच्च आमदनी और वृद्धि के लिए लगातार प्रयास की जरूरत है। यही बात आर्थिक विकास और उच्च आर्थिक विकास के लिए भी लागू होती है। बिना सतत् सार्वजनिक नीतियों के दुनिया भर में कहीं भी विकास नहीं हो सकता। उसी तरह से, हम कह सकते हैं कि वृद्धि के बिना भी विकास नहीं हो सकता। हालांकि बिना विकास के वृद्धि का पहला उदाहरण खाडी देशों में अर्थशास्त्रियों को दिखा। इन अर्थव्यवस्थाओं में आमदनी और आर्थिक वृद्धि उच्चतर स्तर पर होती है। ऐसे में अर्थशास्त्र की नई शाखा डेवलपमेंट इकॉनामिक्स (विकास अर्थशास्त्र) का जन्म हुआ। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आने के बाद नियमित तौर पर आर्थिक नीतियां तय होने लगीं और इससे कम विकसित अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि और विकास पर नजर रखना संभव हुआ। हम कह सकते हैं कि किसी अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास, मात्रात्मक और गुणात्मक प्रगति ही है। इसका मतलब यह है कि जब हम वृद्धि का इस्तेमाल करते हैं तो मात्रात्मक प्रगति की बात कर रहे हैं और जब हम विकास की बात करते हैं तब मात्रात्मक के साथ गुणात्मक प्रगति की भी बात हो रही है। जब आर्थिक वृद्धि का इस्तेमाल विकास के लिए होता है तो वृद्धि की तेज रफ्तार का पता चलता है और इसके दायरे में बड़ी आबादी आ जाती है। उसी तरह से उच्च वृद्धि दर और कम विकास या फिर बीमारू विकास का असर यह होता है कि वृद्धि में गिरावट आ जाती है। यानी वृद्धि और विकास में एक सर्कुलर रिश्ता है। जब आर्थिक महामंदी का दौर आता है तो यह रिश्ता टूट जाता है। जब कल्याणकारी राज्य यानी वेलफेयर स्टेट का कांसेप्ट स्थापित हुआ तब दुनिया भर की सरकारों, नीति निर्माताओं और अर्थशास्त्रियों का ध्यान इस विषय पर गया। इसके बाद अर्थशास्त्र की नई शाखा-वेलफेयर इकॉनामिक्स की शुरुआत हुई, जिसमें कल्याणकारी राज्य और उसके विकास की बातें शामिल होती हैं। आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं इसके महत्व की व्याख्या करें?आर्थिक विकास से राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि होती है , राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है और पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि होती है। निवेश बढ़ता है , विविध प्रकार के उद्योगों की स्थापना होती है और पूँजी की गतिशीलता बढ़ती है। श्रम एवं पूँजी विनियोग के लिए चयन क्षेत्र का विस्तार होता है।
आर्थिक विकास से क्या समझते हैं आप?आर्थिक विकास से आशय उस प्रक्रिया से है जिसके परिणामस्वरूप देश के समस्त उत्पादन साधनों का कुशलतापूर्वक दोहन होता है। साथ ही साथ राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में निरंतर एवं दीर्घकालिक वृद्धि होती है तथा जीवन स्तर एवं मानव विकास सूचकांक में सुधार की स्थिति उत्पन्न होती है।
आर्थिक विकास की आवश्यकता और महत्व क्या है?तीसरी योजना के अतिरिक्त लगभग सभी योजनाओं में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है। (3) पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि (Increase in the Rate of Capital Formation) :- प्रत्येक देश के आर्थिक विकास में पूंजी निर्माण को बहुत अधिक महत्व है। पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि में पूंजी निर्माण की दर में बहुत वृद्धि हुई है।
आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं 10?आर्थिक विकास तब होता है जब अर्थव्यवस्थाएँ अधिक प्रकार की वस्तुएँ और सेवाएँ प्रदान करती हैं और जैसे-जैसे उपभोक्ताओं की खर्च करने की शक्ति बढ़ती है, देश में अधिक लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि होती है और परिणामस्वरूप उच्च स्तर की शिक्षा, अधिक रोजगार के अवसर और उपभोक्ता आय में भी वृद्धि हो जाती है.
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