संस्कृत में ह्रस्व स्वर कितने होते हैं? - sanskrt mein hrasv svar kitane hote hain?

क्या आप हृस्व स्वर का परिभाषा, कुल संख्या एवं उनके उदाहरण जानना चाहते हैं? अगर आप इन तीनों प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं तो आपके एक बेहतरीन वेबसाइट पर पहुंच चुके हैं. धैर्य बनाकर नीचे तक जरूर चेक करें.

संस्कृत में ह्रस्व स्वर कितने होते हैं? - sanskrt mein hrasv svar kitane hote hain?

Table of Contents show

1 ह्रस्व स्वर किसे कहते हैं?

2 ह्रस्व स्वर कितने होते हैं?

3 ह्रस्व स्वर के उदाहरण

4 Conclusion

ह्रस्व स्वर किसे कहते हैं? 

ह्रस्व स्वर दूसरा नाम भी होता है आपको जरूर जान लेना चाहिए. दूसरा नाम एक मात्रिक स्वर है. 

जिन स्वरों के उच्चारण करने में कम समय लगता हो, अर्थात एक मात्रा का समय लगता हों, उन स्वरों को हृस्व स्वर कहते हैं.

ह्रस्व स्वर कितने होते हैं? 

हिंदी व्याकरण के पुस्तकों के अनुसार, हृस्व स्वरों की कुल संख्या चार होता है. जैसा कि आप जानते हैं हिंदी वर्णमाला में कुल 11 स्वर होता है उनमें से अ, इ, उ, ऋ (4) ह्रस्व स्वर हैं. 

  • अ, इ, उ, ऋ

एक बेहद जरूरी बात को याद रखें, दो ह्रस्व स्वरों में संधि करके दीर्घ स्वर का उच्चारण निकाला जा सकता है. 

उच्चारण के आधार पर स्वर के तीन प्रकार होते हैं. ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत स्वर. यही नहीं मूल एवं मात्रा स्वर के अन्य दो प्रकार हैं जो प्रयोग के आधार पर बांटा गया है. 

ह्रस्व स्वर के उदाहरण

अ कोई मात्रा नहीं होता है, जैसे अमल. इ का मात्रा ि हैं जैसे किसान. उ का मात्राहै जैसे गुलाब. ऋ का मात्रा ृ है जैसे तृण. 

ध्यान रखें कि इन शब्दों के उच्चारण करते समय आप कम से कम समय में शब्द को अपने मुंह से बाहर निकाले तभी इसका उच्चारण सही माना जा सकता है. 

Conclusion 

ह्रस्व स्वर उस स्वर को बोला जाता है जिसे बोलने में कम से कम समय दिया जाता है. इसका कुल संख्या 4 है क्रमशः अ, इ, उ, ऋ. इसके शाब्दिक उदाहरण अमल, किसान, गुलाब और तृण हैं. 

उम्मीद करता हूं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा अगर आपके मन में कोई भी प्रश्न हो तो बेझिझक हो करके हमें कमेंट करें. मुझे जवाब देने में खुशी होगी. 

भाषा:-भाषा उस साधन का नाम है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने भावों तथा विचारों को दूसरों तक प्रकट करता है। उसे भाषा कहते है। भाषा मानव जीवन के लिए एक अनिवार्य उपकरण है। भाषा शब्द की व्युत्पत्ति भाष् धातु से हुई है जिसका अर्थ है बोलना या कहना अतः भाषा के द्वारा किसी भी समाज या वर्ग के विशेष लोग आपस मेंं विचारों का आदान-प्रदान या विनिमय करतेे हैं।

व्याकरण:-

किसी भी भाषा का शुद्ध बोलना, शुद्ध लिखना और शुद्ध पढ़ना उसके व्याकरण पर ही निर्भर करता है। भाषा पहले होती है। तथा उसकी पर शुद्धि के लिए व्याकरण बाद में अपने नियम बनाता है। संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। इसके सम्यक ज्ञान के लिए व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है। व्याकरण का जन्मदाता महर्षी पाणिनि को माना जाता है। 

वर्ण प्रकरण:-
वर्ण:-
वण्-र्यते अभिव्यज्यते वा लघुतमो ध्वनि: येन स वर्ण:।
ध्वनि का वह लघुतम अंश जो अखंडित हो अर्थात जिसके टुकड़े ना किए जा सके वह वर्ण कहलाता है। 
यथा:-  राम: शब्द में  र् , आ, म्, अ और स् (:)
ये पांच वर्ण हैं। इन पाँच वर्णों में से किसी का टुकड़ा नहीं हो सकता ये अखण्डित है।

वर्णमाला:-

वर्णों के क्रम बंद समूह को वर्णमाला कहते हैं। ये इस प्रकार हैं –
अ आ इ ई उ ऊ ऋ लृ ऋ ए ऐ ओ औ 

क्  ख्  ग्  घ्  ङ्
च्  छ्  ज्  झ्  ञ्ट्  ठ्  ड्  ढ्  ण् त्  थ्  द्  ध्  न् प्  फ्  ब्  भ्  म् य्  र्  ल्  व् श्  ष्  स्  ह् क्ष्  त्र्  ज्ञ्
संस्कृत वर्णमाला में 50 वर्ण होते हैं:- 13 स्वर, 33 व्यंजन और 4 अयोगवाह

संस्कृत वर्णमाला को चार भागों में विभाजित किया गया है:- 
1. स्वर2. व्यंजन 3. विसर्ग 4. अनुस्वार 

1. स्वर वर्ण:- (Vowels)
स्वयं राजन्ते इति स्वरा:।

जो वर्ण स्वयं उच्चारित होते है। अर्थात जो वर्ण बिना किसी सहायता के बोले जाते हैं। उन्हें स्वर कहते हैं।इनकी संख्या 13 होती हैं।
अ आ इ ई उ ऊ ऋ लृ ऋ ए ऐ ओ औ 

स्वर तीन प्रकार के होते है।

1. ह्रस्व स्वर:- जिन वर्णों के उच्चारण में कम समय लगता है। उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं।
अ, इ, उ, ऋ, लृ
2. दीर्घ स्वर:- जिन वर्णों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर का दोगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।
आ, ई, ऊ, ए, ऐ ,ओ, औ
3. प्लुत स्वर:- जिन वर्णों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर का तीन गुना समय लगता है उसे प्लुत स्वर कहते हैं।उसके बाद 3 का अंक लिख दिया जाता है।
यथा:- ओ३म्।

2. व्यंजन:- (Consonants) 
व्यज्यते वर्णान्त्र-संयोगेन द्यओत्यते ध्वनिविशेषो येन तद् व्यंजनम्।
जो वर्ण स्वयं उच्चारित न् होकर स्वर की सहायता से बोले जाते है। उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं। 

(क्) वर्ग- क्  ख्  ग्  घ्  ङ्
(च्) वर्ग- च्  छ्  ज्  झ्  ञ्
(ट्) वर्ग- ट्  ठ्  ड्  ढ्  ण् 
(त्) वर्ग- त्  थ्  द्  ध्  न् 
(प्) वर्ग- प्  फ्  ब्  भ्  म् 
(य्) वर्ग- य्  र्  ल्  व् 
(श्) वर्ग- श्  ष्  स्  ह् 
 ये चार प्रकार के होते हैं। 
1. स्पर्श व्यंजन
2. अंतस्थ व्यंजन
3. ऊष्म व्यंजन
4. संयुक्त व्यंजन

1. स्पर्श व्यंजन:-  जिन वर्णों के उच्चारण में मुख के विभिन्न भागों का स्पर्श होता है। उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 25 होती है। 
(क्) वर्ग- क्  ख्  ग्  घ्  ङ्
(च्) वर्ग- च्  छ्  ज्  झ्  ञ्
(ट्) वर्ग- ट्  ठ्  ड्  ढ्  ण् 
(त्) वर्ग- त्  थ्  द्  ध्  न् 
(प्) वर्ग- प्  फ्  ब्  भ्  म् 

2. अन्तस्थ व्यंजन:- जो वर्ण स्पर्श एवं ऊष्म के बीच में अवस्थित होते हैं उन्हें अंतस्थ व्यंजन कहते हैं।इनकी संख्या 4 होती है। 
(य्) वर्ग- य्  र्  ल्  व् 

3. ऊष्म व्यंजन:- वायु की रगड़ से पैदा होकर जिन वर्णों के उच्चारण में ऊष्मा पैदा होती है। उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 4 होती है। 

संस्कृत में ह्रस्व स्वर कितने हैं?

अ, इ, उ, लृ, और ऋ ये ह्रस्व स्वर हैं

संस्कृत में 13 स्वर कौन कौन से हैं?

उत्तर-संस्कृत वर्णमाला में 13 स्वर होते हैं अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लृ ए, ऐ, ओ, औ।

हर्ष स्वर कौन कौन से हैं?

स्वरों के भेद.
ह्रस्व स्वर वह स्वर जिनको सबसे कम समय में उच्चारित किया जाता है। ह्रस्व स्वर कहलाते हैं। जैसे- अ, इ, उ, ऋ,.
दीर्घ स्वर वह स्वर जिनको बोलने में ह्रस्व स्वरों से अधिक समय लगता है। जैसे- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ,.
प्लुत स्वर वह स्वर जिनको बोलने में ह्रस्व स्वरों की अपेक्षा तिगुना समय लगता है। जैसे - ॐ = अ + ओ + म्.

अच् स्वर कितने होते हैं?

संस्कृत वर्णमाला में 13 स्वर, 33 व्यंजन और 4 आयोगवाह ऐसे कुल मिलाकर के 50 वर्ण हैंस्वर को 'अच्' और ब्यंजन को 'हल्' कहते हैं