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सूर्यदेव के उत्तरायण का महापर्व : मकर संक्रांतिND| हमें फॉलो करें - डॉ. आर.सी. ओझा पतंगबाजी की लोकप्रियता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि गुजरात में इस पर्व के अवसर पर लगभग दो करोड़ रुपए का पतंग का व्यवसाय होता है। इसी मकर संक्रांति के पर्व को तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में पोंगल पर्व के रूप में मनाते हैं। मकर संक्रांति का राष्ट्रव्यापी पर्व मूलतः सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश की पूजा है। यह सूर्य पर्व है, जिसकी आराधना का मूल उद्देश्य आत्मजागृति है। सम्बंधित जानकारी
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मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव उत्तरायण करते हैं और इस दिन से दिन बड़े और रात छोटी होने लगती हैं.Importance Of Uttarayan: मकर संक्राति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं. उत्तरायण का महत्व हिंदू धर्म में विशेष है और इस दिन लोग गंगा स्नान करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन अगर आप गंगा स्नान करते हैं, तो जीवन में सुख-समृद्धि आती और समस्याएं खत्म हो जाती है. इस दिन सूर्य देव की खास पूजा की जाती है और घर में खिचड़ी बनाई जाती है. क्या आप जानते हैं उत्तरायण किसे कहा जाता है और इसका महत्व क्या है? यहां हम आपको बताएंगे इससे जुड़ी सभी खास बातें. इस तरह होते हैं सूर्य देव उत्तरायण और दक्षिणायनपूरे साल में सूर्य के दो तरह के बदलाव होते हैं, जिसमें उत्तरायण और दक्षिणायन शामिल है. सूर्यदेव 6 महीने के लिए उत्तरायण रहते हैं और बाकी 6 महीनों में दक्षिणायन होते हैं. हिंदू पंचाग की गणना के मुताबिक, जब भी सूर्य देव मकर राशि से मिथुन राशि की यात्रा करते हैं तब इस चक्र को उत्तरायण कहा जाता है. दूसरी ओर जब सूर्य देव कर्क राशि से धनु राशि की ओर जाते हैं, तो इस समय को दक्षिणायन कहते हैं. इसी चक्र के अनुसार सूर्य देव 6-6 महीने के लिए उत्तरायण और दक्षिणायन होते हैं. सूर्य के प्रभाव से जीवन पर होता है असरऐसा माना जाता है कि उत्तरायण के समय नए कार्य जैसे- गृह प्रवेश, व्रत, मुंडन करना शुभ होता है. इस दिन लोग मकर संक्रांति मनाते हैं और सूर्य देव की खास पूजा करते हैं. इस दिन से रात छोटी होने लगती हैं और दिन लंबे होने लगते हैं. सूर्य के उत्तरायण को लोगों के जीवन में प्रकाश आने से जोड़ा जाता है. उत्तरायण को देवताओं का दिन इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन अगर कोई व्यक्ति प्राण त्यागता है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. गीता के अनुसार, पितामाह भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं त्यागे थे, जब तक मकर संक्रांति नहीं आई थी यानि सूर्य ने उत्तरायण नहीं किया था. ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें. India.Com पर विस्तार से पढ़ें धर्म की और अन्य ताजा-तरीन खबरें शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. इन दिनों में किए गए जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व होता है. इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना फल प्रदान करता है. सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है. सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है. सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का होता है. उत्तरायण | Uttarayanमकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है. उत्तरायण के समय दिन लंबे और रातें छोटी होती हैं. जब सूर्य उत्तरायण होता है तो तीर्थ यात्रा व उत्सवों का समय होता है. उत्तरायण के समय पौष-माघ मास चल रहा होता है. उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा जाता है , इसीलिए इसी काल में नए कार्य, गृह प्रवेश , यज्ञ, व्रत - अनुष्ठान, विवाह, मुंडन जैसे कार्य करना शुभ माना जाता हे. दक्षिणायन | Dakshinayanदक्षिणायन का प्रारंभ 21/22 जून से होता है. 21 जून को जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन होता है. धार्मिक मान्यता अनुसार दक्षिणायन का काल देवताओं की रात्रि है. दक्षिणायन समय रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं. दक्षिणायन में सूर्य दक्षिण की ओर झुकाव के साथ गति करता है. दक्षिणायन व्रतों एवं उपवास का समय होता है. दक्षिणायन में विवाह, मुंडन, उपनयन आदि विशेष शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं परन्तु तामसिक प्रयोगों के लिए यह समय उपयुक्त माना जाता है. सूर्य का दक्षिणायन होना इच्छाओं, कामनाओं और भोग की वृद्धि को दर्शाता है. इस कारण इस समय किए गए धार्मिक कार्य जैसे व्रत, पूजा इत्यादि से रोग और शोक मिटते हैं उत्तरायण और दक्षिणायण का महत्व | Importance of Uttarayan and Dakshinayanहिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश का पर्व 'मकर संक्रांति' है. साल भर की छ: ऋतुओं में से तीन ऋतुएं शिशिर, बसन्त और ग्रीष्म ऋतुएं उत्तरायण की होती है. पौराणिक प्रसंगों में भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा की थी और इस दिन गंगा जी के स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने की भी मान्यता है. इसलिए माघ स्नान का महत्व भी है. उत्तरायण में जप, तप और सिद्धियों के साथ साथ विवाह, यज्ञोपवीत और गृहप्रवेश जैसे शुभ तथा मांगलिक कार्यों की शुरूआत की जाती है. प्राचीन मान्यताओं में उत्तरायण की पहचान यह है कि इस समय आसमान साफ अर्थात बादलों से रहित होता है. दूसरी ओर दक्षिणायन के दौरान वर्षा, शरद और हेमंत, यह तीन ऋतुएं होती हैं तथा दक्षिणायन में आकाश बादलों से घिरा रहता है. उत्तरायण कितने महीने का होता है?सूर्यदेव 6 महीने के लिए उत्तरायण रहते हैं और बाकी 6 महीनों में दक्षिणायन होते हैं. हिंदू पंचाग की गणना के मुताबिक, जब भी सूर्य देव मकर राशि से मिथुन राशि की यात्रा करते हैं तब इस चक्र को उत्तरायण कहा जाता है.
Surya उत्तरायण कब से कब तक रहता है?उत्तरायण का आरंभ 14 जनवरी को होता है। यह दशा 21 जून तक रहती है। इस दिन अयनांत की स्थिति आती है उसके बाद दक्षिणायन प्रारंभ होता है जिसमें दिन छोटे और रात लम्बी होती जाती है , फिर एक और अयनांत है और फिर से उत्तरायण आरम्भ हो जाता है।
सूर्य उत्तरायण और दक्षिणायन कब होता है 2022?हिंदू धर्म के अनुसार कर्क संक्रांति से सूर्य की दक्षिण यात्रा शुरू हो जाती है यानी कि सूर्य देव उत्तरायण से दक्षिणायन होते हैं. कर्क संक्रांति को श्रावण संक्रांति भी कहते हैं. सूर्य के दक्षिणायन होने से रात लंबी और दिन छोटे हो जाते हैं. 16 जुलाई 2022 शनिवार को कर्क संक्रांति मनाई जाएगी.
उत्तरायण के कितने दिन?सूर्यदेव 6 महीने के लिए उत्तरायण रहते हैं और बाकी के 6 महीनों में दक्षिणायन। हिंदू पंचांग की काल गणना के आधार पर जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि की यात्रा करते हैं तब इस अंतराल को उत्तरायण कहा जाता है। इसके बाद जब सूर्य कर्क राशि धनु राशि की यात्रा पर निकलते हैं तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं।
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