सार्वजनिक परिसर बेदखली अधिनियम, 1971 हिंदी में पीडीएफ नियम - saarvajanik parisar bedakhalee adhiniyam, 1971 hindee mein peedeeeph niyam

  • 12 Aug 2019
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा ने सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत लोगों की बेदखली) संशोधन विधेयक, 2019 (The Public Premises (Eviction of Unauthorised Occupants) Amendment Bill, 2019) पारित किया है। उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पूर्व ही यह विधेयक लोकसभा द्वारा भी पारित हो चुका है।

प्रमुख बिंदु

  • यह नया संशोधन विधेयक सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत व्यवसायों का निष्कासन) अधिनियम, 1971 में संशोधन करता है।
  • यह अधिनियम कुछ मामलों में सार्वजनिक परिसरों में अनधिकृत रूप से रहने वालों को बेदखल करने का प्रावधान करता है।

विधेयक के प्रावधान:

  • आवासीय व्यवस्था: इसके अंतर्गत 'आवासीय सुविधा/आवास पर कब्ज़ा' को परिभाषित किया गया है।
    • लाइसेंस निश्चित कार्यकाल या अवधि के लिये दिया जाना चाहिये विशेषकर तब तक जब तक व्यक्ति के पास कार्यालय है।
    • केंद्र, राज्य या केंद्रशासित प्रदेश सरकार या एक वैधानिक प्राधिकरण द्वारा बनाए गए नियमों के तहत कब्ज़े की अनुमति दी जानी चाहिये (जैसे संसद, सचिवालय, या केंद्र सरकार की कंपनी, या राज्य सरकार से संबंधित परिसर)।
  • बेदखली के लिये नोटिस: इस विधेयक में आवासीय सुविधा से बेदखल करने की प्रक्रिया का प्रावधान है।
    • आवासीय संपत्ति पर अनधिकृत कब्ज़े की स्थिति में किसी व्यक्ति को लिखित नोटिस जारी करने के लिये एक संपत्ति अधिकारी (केंद्र सरकार के एक अधिकारी) की आवश्यकता होती है।
    • नोटिस के जवाब में व्यक्ति को तीन कार्य दिवसों के भीतर उसके खिलाफ बेदखली आदेश क्यों नहीं दिया जाना चाहिये, इसका कारण बताना अनिवार्य होगा।
  • बेदखली का आदेश: नोटिस में दिये गए कारण पर विचार करने और किसी भी अन्य पूछताछ के बाद ही संपत्ति अधिकारी निष्कासन का आदेश देगा।
    • यदि व्यक्ति आदेश का पालन करने में विफल रहता है तो संपत्ति अधिकारी ऐसे व्यक्ति को आवासीय सुविधा से बेदखल कर सकता है और आवास पर अधिकार कर सकता है।
    • इस प्रयोजन के लिये संपत्ति अधिकारी द्वारा आवश्यकता पड़ने पर बल प्रयोग भी किया जा सकता है।
  • नुकसान का भुगतान: यदि आवासीय व्यवस्था के तहत अनधिकृत कब्ज़े को लेकर व्यक्ति अदालत में संपत्ति अधिकारी द्वारा पारित निष्कासन आदेश को चुनौती देता है, तो उसे हर महीने उचित हर्जाना देना होगा।

स्रोत: PRS

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत लोगों की बेदखली) अधिनियम 1971 (पीपीई एक्ट, 1971) की धारा 2 और धारा 3 में संशोधन को अपनी मंजूरी दे दी है। अधिनियम की धारा 2 में एक नए खंड में ‘आवासीय सुविधा अधिवास’ की परिभाषा को शामिल किया गया है जबकि ‘आवासीय सुविधा अधिवास’ से निष्कासन के लिए धारा 3 की उपधारा 3ए के नीचे नई उपधारा 3बी का प्रावधान शामिल किया गया है।

यह संशोधन एक निश्चित कार्यकाल या तय की गई समयावधि के लिए आवंटित आवासीय परिसरों में अनधिकृत रूप से रहने वालों को निष्कासित करने के लिए संपदा अधिकारियों को संक्षिप्त कार्यवाही करने में सक्षम बनाता है। ऐसे लोगों के आवास नहीं खाली करने के कारण नए पदाधिकारियों के लिए आवास की अनुपलब्धता बनी रहती है।

इस प्रकार, अब संपदा अधिकारी उन मामलों में जांच कर सकता है, जिन मामले की परिस्थितियों को वह उचित समझता है। उसे अधिनियम की धारा 4, 5 और 7 के अनुसार निर्धारित विस्तृत प्रक्रियाओं का पालन नहीं करना होगा। संपदा अधिकारी नई धारा में प्रस्तावित प्रक्रिया का पालन करते हुए तुरंत ऐसे व्यक्तियों के निष्कासन का आदेश भी दे सकता है। यदि कोई व्यक्ति निष्कासन के आदेश का अनुपालन न करे अथवा उसे मानने से इनकार कर दे तो संपदा अधिकारी उन्हें परिसर से बेदखल कर कब्जा भी ले सकता है। इसके लिए वह जरूरत के आधार पर बल का प्रयोग भी कर सकता है।

इस संशोधन से सरकारी आवासों में अनधिकृत रूप से रह रहे लोगों का सुगम और त्वरित निष्कासन सुलभ होगा।

इन संशोधनों के परिणामस्वरूप भारत सरकार अब यह सुनिश्चित कर सकती है कि अनधिकृत निवासियों को सरकारी आवासों से तेजी और सुगम तरीके से बेदखल किया जाए और खाली कराए गए आवास पात्र सरकारी कर्मचारियों के लिए उपलब्ध हों ताकि प्रतीक्षा अवधि को कम किया जा सके।

इन संशोधनों से सरकारी आवासों में अनधिकृत रूप से रहने वालों के सुगम और त्वरित निष्कासन की सुविधा मिलेगी और सरकारी आवास की उपलब्धता बढ़ने से प्रतीक्षा सूची वाले व्यक्तियों को लाभ होगा। सरकारी आवास समय पर खाली न करने से नए पदाधिकारियों के लिए आवासों की अनुपलब्धता बढ़ जाती है।

इसका लाभ पाने वालों में केंद्र सरकार के कार्यालयों में काम करने वाले वे कर्मचारी शामिल हैं, जो सामान्य पूल आवासीय व्यवस्था (जीपीआरए) के पात्र हैं और अपनी बारी की परिपक्वता की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

पृष्ठभूमि

भारत सरकार को सरकारी आवासों में अवैध तरीके से रहने वालों को पीपीई एक्ट, 1971 के प्रावधानों के अनुसार निकालना होता है। हालांकि निष्कासन की यह प्रक्रिया सामान्यतौर पर लंबा समय लेती है और इसकी वजह से नए पदाधिकारियों के लिए सरकारी आवासों की उपलब्धता घट जाती है।

  • आवासन और शहरी कार्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने 8 जुलाई, 2019 को लोकसभा में सार्वजनिक परिसर (अनाधिकृत कब्जा करने वालों की बेदखली) संशोधन बिल, 2019 पेश किया। बिल सार्वजनिक परिसर (अनाधिकृत कब्जा करने वालों की बेदखली) एक्ट, 1971 में संशोधन करता है। इस एक्ट में कुछ मामलों में सार्वजनिक परिसरों से अनाधिकृत कब्जा करने वालों की बेदखली का प्रावधान है।
     
  • निवास स्थान: बिल ‘निवास स्थान पर कब्जा’ को इस प्रकार पारिभाषित करता है कि इसका अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक स्थान पर कब्जा किया जाना है जिसे उस कब्जे के लिए अधिकृत किया गया (लाइसेंस दिया गया) हो। यह लाइसेंस किसी निश्चित अवधि के लिए होना चाहिए या उस अवधि के लिए जब तक कि वह व्यक्ति पद पर बना हुआ है। इसके अतिरिक्त केंद्र, राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की सरकार या किसी संवैधानिक अथॉरिटी (जैसे संसदीय सचिवालय, या केंद्र सरकार की कोई संस्था या राज्य सरकार) द्वारा बनाए गए नियम के तहत इस कब्जे की अनुमति होनी चाहिए।
     
  • बेदखली का नोटिस: बिल निवास स्थान से बेदखली के लिए एक प्रक्रिया बनाने की बात कहता है। बिल में यह अपेक्षा की गई है कि अगर किसी व्यक्ति ने किसी निवास स्थान पर अनाधिकृत कब्जा किया है तो एस्टेट ऑफिसर (केंद्र सरकार का एक अधिकारी) उसे लिखित नोटिस जारी करेगा। नोटिस में उस व्यक्ति से तीन कार्य दिनों के भीतर कारण बताने की अपेक्षा की जाएगी कि उसे बेदखली का आदेश क्यों न दिया जाए। इस लिखित नोटिस को निवास स्थान के विशिष्ट हिस्से पर लगाया जाना चाहिए।
     
  • बेदखली का आदेश: कारण बताओ पर विचार करने और दूसरी जांच के बाद एस्टेट ऑफिसर बेदखली का आदेश देगा। अगर कोई व्यक्ति आदेश नहीं मानता तो एस्टेट ऑफिसर उसे निवास स्थान से बेदखल कर सकता है और उस स्थान को अपने कब्जे में ले सकता है। इसके लिए एस्टेट ऑफिसर उतनी ताकत का प्रयोग कर सकता है, जितनी जरूरी हो।
     
  • नुकसान की भरपाई: अगर निवास स्थान में अनाधिकृत कब्जा करने वाला व्यक्ति अदालत के बेदखली के आदेश को चुनौती देता है, तो उसे कब्जे की वजह से हर महीने होने वाले नुकसान की भरपाई करनी होगी

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