उत्तर :हल करने का दृष्टिकोण- Show
पिछले दो दशकों में भारत में महिला अधिकारों की रक्षा हेतु कई बड़े प्रयास किये गए और इनके व्यापक सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं, हालाँकि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका और इससे जुड़ी चुनौतियों की समीक्षा कर अपेक्षित नीतिगत सुधारों को अपनाना बहुत आवश्यक है। भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका: हाल ही में जारी ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), 2018-19’ के अनुसार, कार्यक्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी में भारी गिरावट देखने को मिली है। वर्ष 2011-19 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यस्थलों पर महिलाओं की भागीदारी 35.8% से घटकर 26.4% ही रह गई। वर्ष 2019 में ‘विश्व आर्थिक मंच’ (World Economic Forum- WEF) की ‘वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट’ में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और इसके लिये उपलब्ध अवसरों के संदर्भ में भारत एकमात्र ऐसा देश था जिसमें आर्थिक भागीदारी में लैंगिक अंतराल राजनीतिक लैंगिक अंतराल से अधिक पाया गया। अक्तूबर 2020 में जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट के अनुसार, अक्तूबर-दिसंबर 2019 में महिला बेरोज़गारी की दर 9.8% रही जो वर्ष 2019 में जुलाई-सितंबर की तिमाही के आँकड़ों से अधिक है, गौरतलब है कि COVID-19 महामारी के बाद देशभर में बेरोज़गारी के आँकड़ों में व्यापक वृद्धि देखी गई। इसके अलावा असंगठित क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी की स्थिति देखें तो कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी लगभग 60% है परंतु इनमें से अधिकांश भूमिहीन श्रमिक हैं जिन्हें स्वास्थ्य, सामाजिक या आर्थिक सुरक्षा से संबंधित कोई भी सुविधा नहीं प्राप्त होती है। वर्ष 2019 में मात्र 13% महिला किसानों के पास अपनी ज़मीन थी और वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, यह अनुपात मात्र 12.8% था। सेवा क्षेत्र में भी अधिकांश महिलाएँ कम आय वाली नौकरियों तक ही सीमित हैं। कारण:
चुनौतियाँ:
समाधान- वर्तमान समय में देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के साथ, कार्यस्थलों पर व्याप्त भेदभाव और महिला सुरक्षा संबंधी चुनौतियों को दूर करने के लिये बहु-पक्षीय प्रयासों को अपनाया जाना चाहिये। सरकार को असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रही महिलाओं के लिये लक्षित योजनाओं (प्रशिक्षण, सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा आदि) के साथ अर्थव्यवस्था के सभी स्तरों पर महिलाओं की भागीदारी और उनके हितों की रक्षा सुनिश्चित करने से जुड़े प्रयासों पर विशेष ध्यान देना होगा। कार्यस्थलों पर महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये यातायात साधनों की पहुँच में विस्तार के साथ सार्वजनिक स्थलों पर प्रसाधन केंद्रों आदि के तंत्र को मज़बूत करना बहुत ही आवश्यक है। उपरोक्त के अतिरिक्त उच्च शिक्षा और पेशेवर प्रशिक्षणों में शामिल होने के लिये महिलाओं को सहयोग प्रदान करने के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा की पहुँच को मज़बूत करने पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके साथ ही नीति निर्माण और महत्त्वपूर्ण संसाधनों के शीर्ष तंत्र में महिला प्रतिनिधित्त्व को बढ़ाने हेतु विशेष प्रयास किये जाने चाहिये। भारत में महिलाओं के समक्ष समय और संबंधित निरंतर चुनौतियां क्या क्या है?अर्थव्यवस्था में योगदान को लेकर महिलाओं के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ -. संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पारंपरिक रूप से विद्यमान लैंगिक असमानता ने महिलाओं को घरेलू कार्यों तक सीमित कर दिया है।. विवाह और संतानों की देखभाल जैसी ज़िम्मेदारियों ने महिलाओं को श्रम बाज़ार से दूर कर दिया है।. समय और स्थान के विरुद्ध भारत में महिलाओं के लिए निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं?कार्यस्थलों पर भेदभाव और शोषण: कार्यस्थलों पर होने वाला भेदभाव महिलाओं के विकास में एक बड़ी बाधा रहा है, देश में सक्रिय सार्वजनिक (सेना, पुलिस आदि) और निजी क्षेत्र के अधिकांश संस्थानों में शीर्ष निर्णायक पदों पर महिला अधिकारियों की कमी इस भेदभाव का एक स्पष्ट प्रमाण है।
भारत में महिलाओं की प्रमुख समस्या क्या है?असमान लिंगानुपात, स्त्रियों की औसत आयु में कमी एवं मृत्यु-दर की अधिकता के लिए बाल विवाह, प्रसवकाल में स्त्रियों की मृत्यु, स्त्रियों की आर्थिक परनिर्भरता, लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अधिक महत्व देना, कुपोषण एवं स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव आदि उत्तरदायी है।
महिला चुनौती क्या है?आज नारियों के समक्ष सामाजिक आर्थिक राजनीति सभी क्षेत्रों में चुनौतियां हैं, चाहे वह अधिकार की बात हो, महिला पुरुष लिंग संतुलन की बात हो या पढ़ाई-लिखाई में बेटियों को प्राथमिकता देने की बात हो। इन सब चुनौतियों के होते हुए भी हमें आगे बढ़ना है। इसके लिए इच्छाशक्ति और संघर्ष की जज्बा होनी चाहिए।
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