हमारे देश पर यदि कोई देश आक्रमण करें तो ऐसी स्थिति में हमारे कर्तव्य क्या होंगे - hamaare desh par yadi koee desh aakraman karen to aisee sthiti mein hamaare kartavy kya honge

सैनिक नहीं हैं तो भी कर सकते हैं देश सेवा

Publish Date: Thu, 03 Nov 2016 06:19 PM (IST)Updated Date: Thu, 03 Nov 2016 06:19 PM (IST)

हमारे देश पर यदि कोई देश आक्रमण करें तो ऐसी स्थिति में हमारे कर्तव्य क्या होंगे - hamaare desh par yadi koee desh aakraman karen to aisee sthiti mein hamaare kartavy kya honge

प्रत्येक नागरिक के मन में अपने देश के लिए सर्वस्व अर्पण करने की भावना होनी चाहिए। उसमें मातृभूमि के

प्रत्येक नागरिक के मन में अपने देश के लिए सर्वस्व अर्पण करने की भावना होनी चाहिए। उसमें मातृभूमि के ऋण को चुकाने के लिए बलिदान की भावना हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति केवल सेना में भर्ती होकर सीमा सुरक्षा के द्वारा ही नहीं होती। बल्कि कई और तरीकों से भी अपनी योग्यता, रुचि और अभिरुचि के अनुरूप व्यक्ति देश केबहुमुखी विकास में योगदान दे सकता है। मेरा मन भी देश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत है और मैं अपनी योग्यता और कौशल के द्वारा देश को अपनी सेवाएं अर्पित करने की भावना रखता हूं। हर विद्यार्थी को चाहिए कि देश को आगे बढ़ाने के लिए अपने स्तर से कोई न कोई कदम उठाए। शिक्षा के प्रचार प्रसार के साथ - साथ नैतिक मूल्यों, सामाजिक उन्नति, अस्पृश्यता निवारण, अंधविश्वास एवं रूढि़यों की समाप्ति और राष्ट्रीय एकता पर बल देने की आवश्यकता है। किताबी अध्ययन के अलावा खेल तथा अन्य गतिविधियों पर भी जोर दिया जाना चाहिए। जब हमारे यहां के युवा स्वस्थ होंगे तो देश को गति मिलेगी। देश के प्रति अपने क‌र्त्तव्य और दायित्व का बोध किसी के द्वारा कराने की जरूरत नहीं होती बल्कि देश सेवा का जज्बा अंतरात्मा में होना चाहिए। देश की सुरक्षा में लगे जवानों के प्रति सभी में आदर भाव हो। जैसे कि जमशेद जी मानेकशॉ ने 1971 में भारत व पाकिस्तान के युद्ध में देश का मान बढ़ाया था। भारतीय सेना के जवानों ने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। मानेकशॉ ने भारतीय सेना का नेतृत्व किया और भारत के पहले फील्ड मार्शल बनाए गए। अब बदलते जमाने में लोगों की मानसिकता विकृत हो गई है। देशसेवा की आड़ में लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए हैं। देश की रक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं। प्रत्येक नागरिक का दायित्व है कि अपने अगल बगल देश की एकता व अखंडता से जो खिलवाड़ कर रहें हों उन्हें बेनकाब करें। हम जिस स्तर पर हो वहीं से देशसेवा करें। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर भी देशसेवा कर सकते हैं। अक्सर हम अपने समाज में देखते हैं कि जिस परिवार का बेटा सेना में होता है उसे लोग सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। उसके प्रति हमारे अंदर स्वत: ही सम्मान की भावना जागृत हो जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे अंदर देशसेवा की भावना है। प्रत्येक विद्यार्थी चिंतन और आत्म मंथन करे कि जो देश की सीमा पर हमारे देश की रक्षा कर रहे हैं वह हमारे लिए आदरणीय हैं। वह अपने परिवार को छोड़कर बर्फ की पहाड़ियों पर खडे़ रहकर देश की रक्षा कर रहे हैं। विद्यार्थियों को अपने देश के वीर जवानों के प्रति सच्ची श्रद्धा रखनी चाहिए। जमशेदजी मानेकशॉ ने देश का जो मान बढ़ाया उसी का परिणाम है कि विश्व पटल पर आज भी हमारा देश गर्व कर रहा है। विद्यार्थियों को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। हमें जब भी देशसेवा करने का मौका मिले उसे चूकना नहीं चाहिए।

--- उमा शंकर सिंह, प्रधानाचार्य, स्वामी विवेकानंद विद्याश्रम जार्जटाउन

दबाव में नहीं, सूझबूझ से लें अहम निर्णय

हमें अपने जीवन में अनेक अवसरों पर अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वह व्यक्तिगत भी होती है और सामाजिक भी। बात राष्ट्र की हो तो परीक्षा और कड़ी हो जाती है। ऐसे में क्या करें, क्या न करें? उसको लेकर ऊहापोह की स्थिति रहती है। इसमें काम आती है सूझबूझ के आधार पर त्वरित निर्णय लेने की क्षमता। सूझबूझ व समझदारी से लिया गया निर्णय हमें बड़ी दिक्कत से बचा सकता है जबकि जल्दबाजी का फैसला किसी न किसी समस्या में ढकेल देता है। अगर बात किसी सैन्य अधिकारी की हो तो उसके हर निर्णय में वीरता, कर्तव्यनिष्ठा के साथ सूझबूझ के आधार पर लिया गया निर्णय खास होता है। अपने इस गुण के चलते वह राष्ट्र के साथ अपनी व साथियों को सुरक्षित करता है। जमशेदजी मानेकशॉ उन्हीं वीर सैन्य अधिकारियों में शुमार किए जाते हैं।

ब्रिटिश इंडियन आर्मी से सैन्य जीवन की शुरूआत करने वाले मानेकशॉ का जीवन सेवा, समर्पण व वीरता से भरा रहा। इनके जीवन में अनेक ऐसे मोड़ आए जब उनके सामने काफी कुछ करने को नहीं था, बावजूद उसके उन्होने विपरीत परिस्थितियों से लड़ते हुए विजय प्राप्त की। मानेकशॉ 1969 में भारतीय सेना के प्रमुख बने। उन्होंने भारतीय सेना की मारक क्षमता विकसित करने में अहम भूमिका निभाई। आजादी के बाद मानेकशॉ के कार्यकाल में भारतीय सेना संसाधनों से लैस होकर शक्तिशाली बनी। पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग करने वाला मामला भी ठीक वैसा ही था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अप्रैल 1971 में जब मानेकशॉ से युद्ध करने की तैयारी के बारे में पूछा तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया। ऐसा नहीं था कि दुश्मनों के डर से उन्होंने ऐसा किया। बल्कि पर्यावरणीय, भौगोलिक स्थिति एवं संसाधनों की उपलब्धता को देखते हुए अपने जवानों के हित में यह निर्णय लिया। फिर कुछ माह रुकने के बाद दिसंबर माह में मानेकशॉ के निर्देश पर भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ अपनी व्यापक मुहिम शुरू की। हमारी वीर सेना की मुहिम इतनी प्रबल थी कि चंद दिनों की कार्रवाई में पाकिस्तान के हजारों सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया और बांग्लादेश के रूप में अलग राष्ट्र अस्तित्व में आया। इसमें मानेकशॉ की सूझबूझ व बेहतर निर्णय लेने की क्षमता ने अहम भूमिका निभाई। यही कारण है कि भारत की सरकार ने उन्हें पद्मभूषण, पद्मविभूषण व फील्ड मार्शल जैसे सम्मान से विभूषित किया। मानेकशॉ का जीवन और कार्यशैली हमें कुछ ऐसी ही सीख देती है कि कभी पद के दवाब में आकर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। घर का बड़ा सदस्य, शिक्षक, प्रधानाचार्य अथवा अधिकारी अगर किसी काम करने का निर्देश दे रहा है तो पहले उसके हर पहलू की पड़ताल करें। परिस्थिति एवं उससे होने वाले प्रभाव का आंकलन करने के बाद ही कोई कार्य शुरू करें। अगर कहीं कोई दिक्कत है तो कार्य करने से मना कर दें। जबकि दबाव में लिया गया निर्णय बड़ी परेशानी में डाल सकता है। जो किसी के लिए हितकर नहीं होगा।

-विद्याधर द्विवेदी, प्रधानाचार्य स्वामी विवेकानंद विद्या मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कल्याणीदेवी

शिक्षकों के बोल

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देश के प्रति प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व होता है। जरूरी नहीं कि हम सेना में भर्ती होकर देशसेवा करें। हम जहां भी जिस क्षेत्र में भी काम कर रहे हैं उसमे अपनी संपूर्ण निष्ठा, प्रतिभा व ईमानदारी पूर्वक कार्य करें तो यह भी बड़ी देशसेवा है। जैसे एक शिक्षक अगर अपने विद्यार्थियों को निष्ठा पूर्वक शिक्षा देता है तो उससे देश का भविष्य बेहतर होगा।

--- रचना श्रीवास्तव

देशसेवा के अनेक आयाम हैं। हम कहीं भी रहकर अपने देश की तरक्की के लिए काम कर सकते हैं। यह बात एक सामान्य मजदूर से लेकर सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों तक समान रूप से लागू होती है। इसलिए सामान्य नागरिक भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर संविधान का पालन करके देश को आगे बढ़ाने का काम कर सकते हैं।

--- राजाराम त्रिपाठी

सीमा पर तैनात सेना के जवान अपने परिवार व समाज से दूर रहकर जिस तरह देश की रक्षा करते हैं। वह अतुलनीय है। प्रत्येक व्यक्ति ऐसे कठोर कर्तव्य का पालन नहीं कर सकता है। लेकिन वह अपने कार्यो से समाज में पनप रहे भ्रष्टाचार को दूर करने में योगदान दे सकता है।

--- अरुंधती चौधरी

विद्यार्थियों के बोल

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वर्ष 1971 में पाकिस्तान से युद्ध में विजय के नायक जनरल मानेकशॉ अभूतपूर्व योद्धा थे। उन्होंने अपना और सैनिकों का खून देकर जिस भारत का निर्माण किया है हमें उसकी रक्षा ही नहीं करनी है बल्कि उसे आगे बढ़ाना है। भारत विश्व गुरू बने यह हम सभी का दायित्व है।

---- सुशांत मिश्र,

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भले ही सेना के नायक न रहे हो लेकिन देश के निर्माण में उनकी भूमिका सैनिकों से कमतर नहीं है। उन्होंने अपने त्याग, बलिदान, ईमानदारी, कर्तव्य निष्ठा से जो मिसाल कायम की है उस मशाल को ज्वलंत रखना है।

---- ऋचा रावत

भारत इस समय विश्व का सबसे युवा देश है। इसलिए राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी भी युवाओं पर ही निर्भर है। हम सब की जिम्मेदारी है कि हम शिक्षा से लेकर सर्विस सेक्टर तक इस तरह से कार्य करें जिससे हमारी व्यक्तिगत तरक्की तो जरूर हो लेकिन उसमें राष्ट्र हित निहित हो।

----- खुशबू साहू

सेना में भर्ती होकर ही नहीं बल्कि कई अन्य तरह से देशसेवा की जा सकती है। छात्र जीवन में अगर हम ढंग से शिक्षा ग्रहण करते हैं तो गुरुओं का आदर करते हैं और इस शिक्षा की बदौलत समाज को नई दिशा देने में सहयोग करते हैं तो यह भी देशसेवा है।

--- शलभ मिश्र

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