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प्रिय विद्यार्थियों आज के इस लेख में हम आपको काव्य की शोभा अर्थात अलंकारों की महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराएंगे. अलंकार क्या है, अलंकार कितने प्रकार के होते हैं, अलंकार के कितने भेद होते हैं? (what is Alankar in Hindi, types of Alankar in Hindi, Examples of Alankar in Hindi) इन सभी प्रश्नों का उत्तर इस लेख को पढ़ने के पश्चात आपको मिल जाएगा. Alankar in Hindi by multi-knowledge.comWhat is Alankar in Hindi (अलंकार क्या है)“काव्यशोभाकरान् धर्मानलंकारान् प्रत्यक्षते” काव्य की शोभा बढाने वाले शब्दों को अलंकार (Alankar in Hindi) कहते हैं । अलंकार का शाब्दिक अर्थ “आभूषण” होता है. जिस प्रकार किसी स्त्री या पुरुष की शोभा या सुंदरता को बढ़ाने के लिए आभूषण का प्रयोग होता है उसी प्रकार काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए अलंकार का प्रयोग होता है. दूसरे शब्दों में “किसी बात को ऐसे ढंग से प्रस्तुत करना कि जिससे शब्द या अर्थ अथवा दोनों से चमत्कार उत्पन्न हो जाये तथा काव्य का सौन्दर्य बढ जाये, काव्य की शोभा बढाने वाले इन धर्मों को ही “अलंकार” कहते हैं”। Part of Alankar in Hindi (अलंकार के भेद )मुख्य रुप से अलंकार तीन प्रकार के होते हैं – 1.शव्द अलंकार 2.अर्थालंकार 3.उभया अलंकार । 1.शव्दालंकार – जो अलंकार शव्दों के व्दारा चमत्कार उत्पन्न कर काव्य की शोभा बढाते हैं, शब्दालंकार (Shabdalankar in Hindi) कहलाते हैं। 1.अनुप्रास अलंकार (anupras Alankar) 2.अर्थालंकार- जो अलंकार अर्थ के व्दारा चमत्कार उत्पन्न कर काव्य की शोभा बढाते हैं, अर्थालंकार (Arthalankar in Hindi) कहलाते हैं। 1.उपमा अलंकार (Upma Alankar) 3.उभयालंकार- जहां शब्द में भी अलंकार हो और अर्थ में भी अलंकार हो वहां उभया अलंकार की स्थिति होती है। उभया अलंकार का कोई अलंकार नहीं होता है जिसमें शब्द और अर्थ दोनों में चमत्कार दिखते हैं। ♦Important Alankar in Hindi♦साहित्य में काव्य की संख्या बहुत है किंतु यहां आपको महत्वपूर्ण परीक्षाओं में पूछे जाने वाले सभी अलंकार नीचे मिलेंगे. Anupraas alankar in Hindi (अनुप्रास अलंकार )स्वरों की भिन्नता होते हुए भी वर्ण की एक ही क्रम में आवृत्ति तो अनुप्रास अलंकार (Anupraas alankar in Hindi) कहते हैं यह पाँच प्रकार का होता हैं – 1. छेकानुप्रास, 2. वृत्यनुप्रास, 3. श्रुत्यनुप्रास, 4. अन्त्यानुप्रास, 5. लाटानुप्रास । 1. छेकानुप्रास – जहाँ एक या अनेक वर्णों की एक ही क्रम में एक बार आवृत्ति हो, वहाँ छेकानुप्रास है । Example : (क) सठ सुधरहिं सत संगति पार्इ। पारस
परस कुधातु सोहार्इ । (ख) बाल-बेलि सूखी-सुखद इहि रूखे –रुख धाम। यहाँ- बाल–बोलि, सूखी-सुखद इहि रूखे-रूख में छेकानुप्रास हैं। 2. वृत्यनुप्रास – जहाँ एक अथवा एक से अधिक वर्ण समूह की एक से अधिक बार आवृत्ति हो, वहाँ वृत्यनुप्रास होता है. Example : (क) तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये। (ख) कालिका-सी किलकी कलेऊ देति को। यहाँ क और ल की स्वरूप तथा क्रम से कई बार आवृत्ति हुई है अतः उक्त उदाहरणों में वृत्यनुप्रास है। 3. श्रुत्यनुप्रास- जहाँ एक ही उच्चारण स्थान से बोले जाने वर्णों की आवृत्ति होती है। वहाँ श्रुत्यनुप्रास होता हैः Example : (क) तुलसीदास सीदत निसिदिन देखत तुम्हार निठुराई। 4. अन्त्यानुप्रास – यदि पद या छन्द के अन्त में आदि के साथ किसी व्यंजन की आवृत्ति हो तो अन्त्यानुप्रास होता है। इसे तुकबन्दी भी कहते हैं। Example : (क) जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर। यहाँ चौपाई के दोनों पदों के अन्त में आगर की आवृत्ति हुई है, अतः इसमें दोनों स्थानों पर अन्त्यानुप्रास है। 5. लाटानुप्रास – जहाँ समानार्थक शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति हो, परन्तु तात्पर्य में भेद हो, वहाँ लाटानुप्रास होता है। (पदों का अनुप्रास होने से इसे पदानुप्रास भी कहा जाता है. Example : (क) पराधीन जो जन, नहीं स्वर्ग, नरक ता हेतु। पराधीन जो जन नहीं, स्वर्ग, नरक ता हेतु। यहाँ पूर्वाद्ध और उत्तरार्द्ध में एक ही अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग हुआ है, किन्तु पूर्वाद्ध और
जहाँ एक शब्द अथवा शब्द-समूह कई बार आये. किन्तु उसका अर्थ अलग हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। इसमें शब्द से तात्पर्य केवल व्यंजनों के समूह से है, सार्थक व्यंजन समूह से नहींच अतः उनमें से कोई भी निरर्थक हो सकता है। ऊधी जोग जोग हम नाही में “जोग” शब्द दो बार आया है, पहले का अर्थ योग और दूसरे का योग्य होने से यमक अलंकार (Yamak alankar in Hindi) हैं। Example Of Yamak Alankar : (क) कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय। वा खाये बौराय जग, या पाये बौराय।। यहीं कनक शब्द दो बार प्रयुक्त हुआ है। पहले कनक का अर्थ है धतूरा और दूसरे कनक का अर्थ हैं सोना इसलिए यहाँ यमक अलंकार है। Shlesh alankaar in Hindi (श्लेष अलंकार)जहाँ एक ही शब्द के (आवृत्ति हुए बिना ही) कई अर्थ निकले, वहाँ श्लेष अलंकार (Shlesh Alankaar in Hindi) होता हैं। Example of Shlesh Alankaar : (क) मेरी भव बाधा हरौं, राधा नागरि सोय। जो तन की झाँई परै, स्याम हरित दुति होय।। इस दोहे में झाई शब्द के दो अर्थ हैं- परछाईं और झलक । श्याम शब्द के भी दो अर्थ हैं- हरी कान्ति और प्रभावहीन। विशेष – श्लेष में व और ब, श, ष और स तथा र और ल में कोई भेद नहीं माना जाता। Upama alankar in Hindi (उपमा अलंकार)जहाँ दो वस्तुओं में समानता का वर्णन किया जाता है, वहाँ उपमा अलंकार (Upama alankar in Hindi) होता है। Example of Upama alankar : उसका मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है। जहाँ मुख की चन्द्रमा से समानता बतायी गयी है, अतः उपमा अलंकार है। उल्का-सी रानी दिशा दीप्त करती थी। यहाँ रानी की उल्का से समानता बताने से उपमा है। उपमा के अंग- उपमा के चार अंग होते हैं। (क) उपमेय- वर्णनीय वस्तु, जिसकी उपमा या समानता दी जाती है, उपमेय कही जाती है, जैसे – ऊपर के उदाहरण में रानी उपमेय है। (ख) उपमान- जिससे उपमेय की समानता या तुलना की जाकी है, उसे उपमान कहते हैं जैसे- ऊपर के उदाहरण में उपमेय मुख की समानता चन्द्रमा से की गयी है, अतः चन्द्रमा उपमान है। दूसरे उदाहरण में उल्का उपमान है। (ग) साधारण धर्म- जिस गुण के लिए ही उपमा दी जाती है, उसे साधारण धर्म कहते हैं जैसे ऊपर के उदाहरण मे सुन्दरता के लिए ही उपमा दी गयी है, अतः सुन्दरता साधारण धर्म है। उसे समान धर्म भी कहा जाता है। इसी प्रकार दूसरे उदाहरण में दीप्त करना साधारण धर्म है। (घ) वाचक शब्द- जिस शब्द के द्वारा उपमा दी जाती है, उसे वाचक शब्द कहते हैं जैसे ऊपर के उदाहरण में क्रमशः समान और सी वाचक शब्द हैं, सम, सरिस, तुल्य आदि शब्द उपमा के वाचक होते हैं। उपमा के भेद– उपमा तीन प्रकार की होती है- (क) पूर्णोपमा- जहाँ उपमा के चारों अंग शब्दों द्वारा कहे जाते हैं। वहाँ पूर्णोपमा होती है, जैसे ऊपर के उदाहरणों में उल्का सी रानी दिशा दीप्त करती थी में पूर्णोपमा है। (ख) लुप्तोपमा- जहाँ उपमा के चारों अंग शब्दों में से एक या एक से अधिक का लोप होता है, वहाँ लुप्तोपमा होती है, जैसे- उसका मुख चन्द्रमा के समान है में लुप्तोपमा है, क्योंकि यहाँ साधारण धर्म सुन्दर नहीं कहा गया है। “कुन्द इन्दु सम देह” यहा साधारण धर्म श्वेतता लुप्त है। “वैधव्य-तुषारावृत्ता यथा विधु-लेखा” में भी उपमेय (रानी) और साधारण धर्म (मलीनता) के न होने से लुप्तोपमा है। (ग) मालोपमा- जहाँ उपमा अलंकार में एक ही उपमेय के कई उपमान दिखाये जाते है, वहाँ मालोपमा होती हैं, जैसे- “इन्द्र जिमि जम्भ पर बाड़व सुअम्भ पर ……..त्यो मलेच्छ वंश पर सेर सिवराज है”। यहाँ मलेच्छ वंश पर सेर सिवराज उपमेय, जम्भ पर इन्द्र और सुअम्भ पर बाड़व आदि कई उपमान दिखाये गये हैं, अतः मालोपमा है। Rupak alankar in Hindi (रूपक अलंकार)जहाँ उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप किया जाये अर्थात उपमेय और उपमान को एकरूप कह दिया जाय, वहाँ रूपक अलंकार (Rupak alankar in Hindi) होता है। Example 1. of Rupak alankar : चरण कमल बन्दौ हरि राई यहाँ यहाँ चरण और कमल में भेद हरित समानता है, इसलिए रूपक अलंकार है। Example 2. of Rupak alankar : नयन-पल्लव मनोहरय़ यहाँ होना नयन का भी गुण है और पल्लव का भी। रूपक में उपमेय को अप्रधान और उपमान को प्रधान कर दिया जाता है। रूपक अलंकार के भेद- रूपक अलंकार तीन प्रकार का होता है- (क) सांगरूपक अलंकार- जहाँ उपमेय तथा उपमेय से सम्बन्धित अन्य विशेषताओं में भी भेदरहित आरोप हो, वहाँ सांगरूपक अलंकार होता है। यहाँ अंग से तात्पर्य हात आदि के समान अंगों से नहीं, अपितु एक- दुसरे से सम्न्ध रखने वाले पदार्थों से है। अग्र उदाहरण से यह स्पष्ट हो जायेगा। Example : सन्तों भाई आई ज्ञान की आँधी रे। भ्रम की टाटी सबै उड़ानी माया रहै न बाँधी रे।। य़ँहा ज्ञान में आँधी भ्रम में टाटी तथा माया में रस्सी का आरोप किया गया है उपमेय एक दूसरे से सम्बन्ध रकते है और इनमॆ ही उपमानॆ का भी प्रयोग किया गया हैं ये आरोप भी एक दूसरे से सम्बंन्ध रखते हैं अत यहाँ सांगरूपक है. (ख) निरंग रूपक- निंरंग रूपक दहाँ केवल उपेंय में अन्य अंगों के बिना केवल उपमान का ही आरोप हो वहाँ निरंग रूपक होता है पूर्वोक्त बंधन गुरु पद पदुम परागा में निरंग रूपक है क्यॆकि गूरू पद ही का आरोप है गूरू पद (उपमेच) के अंगॆ में कंज (उपमान) के अंगों का आरोप नहीं है. (ग) परम्परित रूपक- परम्परित रूपक जहाँ एक आरोप दूसरे आरोप का कारण हो वहाँ परम्परित रूपक होता है.जैसे दु कहै जीवन तक के फूल मे फूल दुखों मे फूलो का आरोप किया गया है उसके लिए ही जीवन मे तरू का आरोप करना पड़ा जीवन मेंतरूकाआरोप दूखो मेफूतो के आरोप का कारण है अत यहाँ परम्परित रूपक है एक अन्य उदाहरण द्रष्टव्य है. Prateep alankar in Hindi (प्रतीप अलंकार)जहाँ प्रसिध्द उपमान की अकारण हीनता दिखायी जाती है वहाँ प्रतीय अलंकार (Prateep alankar in Hindi) होता है। यह उपमा का उल्टा होता है। प्राय उपमा अलंकार में उपमेय से उपमान उत्कृष्ट होता है किन्तु प्रतीय मे उत्कृष्टता को किसी न किसी प्रकार कर दिया जाता है। Example of Prateep alankar : उतरि नहाये जमुन जल जो शरीर सम स्याम। तग प्रकाश तब जस करै वृथा भानु यह देख।। Bhraantimaan alankar in Hindi (भ्रान्तिमान अंलकार)जहाँ समानता के कारण किसी वस्तु में दूसरी वस्तु का भ्रम कवि कल्पित तथा चमत्कारपूर्ण हो तो वहाँ भ्रान्तिमान अलंकार (Bhraantiman alankar in Hindi) होता है। Example of Bhraantimaan alankar : राधा के मुख को चन्द्रमा समझकर चकोर चले आ रहे है. मुख और चन्द्र्मा में समानता होने के कारण चकोर ने मुख को चन्द्रमा समझ लिया है अत यहाँ भ्रान्तिमान अलंकार है . बादल से काले काले केशों को देख निराले। नाचा करते है हरदम पालतू मोर मतवाले।। यहाँ मोरों ने केशों को बादल समझ लिया है भ्रान्तिमान अलंकार है. चमत्कार के अभाव में अलंकार वही होता है. अत धूप में पड़ी सीपी को चाँदी समझकर ग्रहण करने के वर्णन में भ्रान्तिमान अलंकार होगा. Utpreksha alankar in Hindi ( उत्प्रेक्षा अलंकार)जब उपमेय में उपमान से भिन्नता जानते हुए भी ” उससे उपमान की संभावना की जाती है, तब उत्प्रेक्षा अलंकार होता (Utpreksha alankar in Hindi) है”. इस अलंकार के वाचक शब्द मनु, मानो, इब, इत्यादि होते हैं. Example of Utpreksha alankar : रहिमन पुतरी श्याम मनहुँ जलज मधुकर लसै।। यहाँ श्याम पुतरी में जलज पर मधुकर की संभावना की गई है. अत उत्प्रेक्षा अलंकार है. उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद- इनके तीन भेद होते है- (क) वस्तूत्प्रेक्षा– जहाँ एक वस्तु में दूसरी वस्तु की सम्भावना की जाय वहाँ वस्तुत्प्रेक्षा होती है जैसे- उसका मुख मानो चन्द्रमा है यहाँ मुख में चन्द्रमा की सम्भावना की गयी है चन्द्रमा और मुखवस्तूत्प्रेक्षा है . (ख) हेतूत्प्रेक्षा– यदि अयथार्थ कारण को कारण मान लिया जाय तो हेतूत्प्रेक्षा होती है जैसे- सुन्दरता में चनद्रमा को हरा देने के कारण मुख हँस रहा है. यहाँ मुख का हँसना स्वाभाविक है इमका कारण चन्द्रमा को हराना नही है पर से कारण मान लिया गया है अत य़थाथर्थ कारण मान लेने के कारण यहाँ हेतूत्प्रेक्षा है. (ग) फलोत्प्रेक्षा- यदि अयथार्थ फल (जो यथार्थ में फल न हो ) को फल मान लिया जाये तो फलोत्प्रेक्षा होती है जैसे नायिका के चरणों की समानता प्राप्त करन् के लिए कमत जल में तप रहा है कमल का जल हें तप करना स्वाभाविक है चरणों की समानता प्राप्त करना यथार्थ फल नही है पर उसे फल मान लिया मया है अत यहाँ फलोत्प्रेक्षा है दृष्टान्त अलंकार जहाँ दो वाक्यो में पृथक पृथक आये हूए उपमेय और उपमान भाव के धर्मो का बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव हो वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है. Atishayokti alankar in Hindi (अतिशयोक्ति अलंकार)जहाँ किसी वस्तु का वर्णन अत्यन्त बढ़ा-चढ़कार किया जाये, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार (Atishayokti alankar in Hindi) होता है। अतिशयोक्ति शब्द का अर्थ है- अधिकता से उक्ति या कथन। इसमें जो बात जितनी होती है, उसका उससे बढ़ाकर वर्णन किया जाता है, जैसे- यह घोड़क मन से भी तेज दौड़ता है। यहाँ घोड़े का मन से भी तेज दौड़ना बताया है, पर वास्तव में ऐसा नहीं होता है। वास्तविकता तो केवल इतनी है कि घोड़क बहुत तेजी दौड़ता है, इसकी दौड़ की तीव्रता बताने के लिए ही यहाँ अतिशयोक्ति का आश्रय लिया गया. Example of Atishayokti alankar: पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सो पग धोये।। यहाँ श्रीकृष्ण भगवान ने सुदामा के पैर धोने के लिए परात में लाये गये पानी की अपेछा अपने आँसुओं से ही उनके पैर धो दिये। अतः इसमें अतिशयोक्ति अलंकार है। Sandeh alankar in Hindi (संदेह अलंकार)जहां दो वस्तुओं में समानता होने के कारण दोनों के एक ही होने का संदेह उत्पन्न हो जाता है, और निश्चित नहीं हो पाता है संदेह अलंकार (Sandeh alankar in Hindi) कहलाता है अर्थात उपमेय का उपमान के रूप में वर्णन किया जाता है. Example of Sandeh alankar : सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है इसमें चीरहरण के समय बढ़ती हुई द्रोपदी की साड़ी को देखकर नारी में सारी एवं सारी में नारी का संदेह होता है अतः यहां संदेह अलंकार है. विशेष: संदेह अलंकार और भ्रांतिमान अलंकार में बस यही अंतर होता है कि भ्रांतिमान अलंकार में यह संदेह निश्चित हो जाता है किंतु यहां यह निश्चित नहीं होता है. यह भी पढ़ें: - Advertisement - सांग रूपक अलंकार किसका प्रकार है?सांग रूपक जब किसी पद में उपमान का उपमेय में अंगों या अवयवों सहित आरोप किया जाता है तो वहाँ सांगरूपक अलंकार माना जाता है। इस रूपक में जिस आरोप की प्रधानता होती है, उसे 'अंगी' कहते हैं। शेष आरोप गौण रूप से उसके अंग बन कर आते है।
रूपक अलंकार का उदाहरण क्या है?रूपक अलंकार के उदाहरण
1. पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। स्पष्टीकरण– उदाहरण में राम रतन को ही धन बता दिया गया है। 'राम रतन' – उपमेय पर 'धन' – उपमान का आरोप है एवं दोनों में अभिन्नता है।
रूपक अलंकार के कितने अंग होते हैं?जहाँ उपमेय में उपमान का आरोप हो वहाँ रूपक अलंकार होता है। रूपक अलंकार के तीन भेद होते हैं.
रूपक अलंकार की पहचान कैसे करें?रूपक अलंकार की पहचान. किसी रूप की बनाई हुई प्रतिकृति या मूर्ति।. किसी प्रकार का चिह्न या लक्षण।. प्रकार। भेद।. प्राचीन काल का एक प्रकार का प्राचीन परिमाण।. चाँदी।. रुपया नाम का सिक्का जो चाँदी का होता है।. चाँदी का बना हुआ गहना।. ऐसा काव्य या और कोई साहित्यिक रचना, जिसका अभिनय होता हो, या हो सकता हो।. |