सब धरती कागद करों, लेखनि सब बनराय ।

सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय ।

आध्यात्मिक डायरी में जोड़ें।

सब धरती कागद करों, लेखनि सब बनराय ।

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सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय ।

सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।

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सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय ।

भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है ।

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सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय ।

दोहा: सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराय सात समुंदर की मसि करूँ, गुरुगुण लिखा न जाय # अर्थ: सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते।

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