दोहा जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ। जिन चरणों की पादुकाओं में भरतजी ने अपना मन लगा रखा है, अहा! आज मैं उन्हीं चरणों को अभी जाकर इन नेत्रों से देखूँगा॥42॥
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख
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दोहा जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ। जिन चरणों की पादुकाओं में भरतजी ने अपना मन लगा रखा है, अहा! आज मैं उन्हीं चरणों को अभी जाकर इन नेत्रों से देखूँगा॥42॥
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