साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुंह कर आसन पर बैठ जाएं। सर्व प्रथम आचमन, पवित्रीकरण आदि करने के बाद गणेश, गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर लें। तत्पश्चात पीपल के 9 पत्तों को भूमि पर अष्टदल कमल की भांती बिछा लें। एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओं में रखने से अष्टदल कमल बनेगा, इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दें। Show अब गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर से बने पंचगव्य से किसी पात्र में माला को प्रक्षालित करें
और पंचगव्य से माला को स्नान कराते हुए.. माला को निम्न मंत्र बोलते हुए गौदुग्ध से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं। माला को निम्न मंत्र बोलते हुए दही
से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं। बल प्रमथनाय नमः बलविकरणाय नमः सर्वभूत दमनाय नमः मनोनमनाय नमः माला को निम्न मंत्र बोलते हुए गौघृत से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं। माला को निम्न मंत्र बोलते हुए शहद से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं। माला को निम्न मंत्र बोलते हुए शक्कर से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं अब माला को स्वच्छ वस्त्र से पोंछकर माला को कांसे की थाली अथवा किसी अन्य स्वच्छ थाली या चौकी पर स्थापित करके माला की प्राण प्रतिष्ठा हेतु अपने दाएं हाथ में जल लेकर विनियोग करके वह जल भूमि पर छोड़ दें ! अब माला को दाएं हाथ से ढक लें और निम्न चैतन्य मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य व शक्ति संपन्न हो रही है। ॐ ह्रौं जूं सः आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं ह्रौं ॐ हं क्षं सोहं हंसः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम जीव इह स्थितः ॐ ह्रौं जूं सः आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं ह्रौं ॐ हं क्षं सोहं हंसः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा ॐ मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ अब माला का गंध, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प आदि से पंचोपचार पूजन कर, उस माला पर जिस मन्त्र की साधना करनी है उस मन्त्र को मानसिक उच्चारण करते हुए माला के प्रत्येक मनके पर रोली से तिलक लगाएं, अथवा “ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋ लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं” का अनुनासिक उच्चारण करते हुए माला के प्रत्येक मनके पर रोली से तिलक लगाएं। इसके बाद माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित गौमुखी में स्थापित कर दें। इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है। नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त
पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरांत जप प्रारम्भ करें ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः नोट: जप करते समय माला पर किसी कि दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए व तर्जनी अंगुली का माला को कभी स्पर्श नहीं होना चाहिए। इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
माला संस्कार विधीमाला का संस्कार कैसे करे ?शास्त्रों के विधानों के अनुसार किसी भी मंत्र जाप की सिद्धि के लिए संस्कारित माला होना बहुत ही आवश्यक है,कभी भी दूकान से सीधा खरीदकर माला का मंत्र जाप के लिए उपयोग नहीं करना चाहिए बिना माला को सिद्ध किये मंत्रजाप कभी सफल नहीं होते | हमारे शास्त्रों में लिखा है, अप्रतिष्ठित माला भिर्मन्त्र जपति यो नरः | सर्वे तद्विफलं विद्यात क्रुद्धा भवति देवताः || माला संस्कार के लिए जरुरी सामग्री |माला ( जो भी आपको सिद्ध करनी है वो-रुद्राक्ष,रक्तचंदन,तुलसी,इत्यादि )-कांसे की या ताम्बे की थाली(पात्र) पीपल के पेड़ के नौ पत्ते-पंचगव्य(दूध-दही-गोबर-गौमूत्र-घी)-गंगाजल-थोड़े चावल-धुप-दीप माला को कैसे संस्कारित करे ?माला संस्कार विधि |अश्वत्थपत्रनवकैः पद्माकारम तु कल्पयेत | तन्मध्ये स्थापयेन्माला मातृकां मूल मुध्यारन | क्षालयेत पंचगव्येन सद्योजातेन सज्जलैः || कांस्य या ताम्रपात्र में पीपल के नौ पत्ते लेकर उनका अष्टदल बनाये (आठ पत्तोसे कमल बनाये और एक पत्ता बीच में रखे) बीच के पत्ते पर माला रख दे | फिर माला के मेरु को पकडे (जहा से माला शुरू होती है वो भाग) और निम्न मातृकाओं का उच्चारण करे और उसी समय माला को पंचगव्य से स्नान कराये ॐ अं आं इं ईं उं ऊं त्रृं ऋं लृं ऌं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं | इस मंत्र को बोलकर माला को धोये |ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः | भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः || इसके बाद गंगाजल से माला को स्वच्छ करले (धोले) | पश्चात माला को कुमकुम या चन्दन से तिलक करे - थोड़े अक्षत चढ़ाये-फिर निम्न मंत्र बोले | ॐ वामदेवाय नमः | ज्येष्ठाय नमः | श्रेष्ठाय नमो | रुद्राय नमः | कलविकरणाय नमो | बलविकरणाय नमः | बलाय नमो बल प्रमथनाय नमः | सर्वभूत दमनाय नमो मनोन्मनाय नमः || माला के आगे दीप प्रज्वलित करे और धूप अर्पण करे | पश्चात माला को प्रार्थना करे |ॐ ऐं अक्षमालिकायै नमः | ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणीम | चतुर्वर्गस्त्वयी न्यस्तः तस्मान्मे सिद्धिदा भव || ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमन्त्रार्थ साधिनी साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय में स्वाहा | ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे | जपकाले च सिध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये || इस तरह से शास्त्रोक्त विधान से माला को संस्कारित करे फिर सबसे पहले अपने गुरु या इष्टदेवता के मंत्र की प्रथम माला करे उसके बाद माला का मंत्र जाप के लिए प्रयोग करे || माला संस्कार विधी | माला को प्रतिष्ठित कैसे करे ? माला प्रतिष्ठा विधी | Mala sanskar vidhi | Mala ka sanskar kaise kare ?
रुद्राक्ष की माला कैसे जागृत करें?अब माला का गंध, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प आदि से पंचोपचार पूजन कर, उस माला पर जिस मन्त्र की साधना करनी है उस मन्त्र को मानसिक उच्चारण करते हुए माला के प्रत्येक मनके पर रोली से तिलक लगाएं, अथवा “ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋ लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं ...
माला कैसे जागृत करें?इस माला को शुभ वार, सोम, बुध, बृहस्पतिवार को गंगाजल से शुद्ध करके धारण करना चाहिए। रामा तुलसी माला : इस माला को धारण करने से व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास में वृद्धि तथा सात्विक भावनाएं जागृत होती हैं।
रुद्राक्ष को सिद्ध कैसे करते हैं?इसे बाएं हाथ में ॐ ह्रीं ह्रुं नम: मंत्र के साथ धारण करें। दसमुखी रुद्राक्ष संतान प्राप्ति हेतु मंत्र-ॐ ह्रीं नम: के साथ पहनें। ग्यारह मुखी रुद्राक्ष सर्वत्र विजय प्राप्त करने हेतु इस धारण मंत्र-ॐ ह्रीं ह्रुं नम: के साथ पहनें। बारह मुखी रुद्राक्ष रोगों में लाभ हेतु मंत्र-ॐ क्रौं क्षौं रौं नम: के साथ पहनें।
रुद्राक्ष की प्राण प्रतिष्ठा कैसे करें?किसी भी दिन रुद्राक्ष को सरसों के तेल में डुबोकर रखें। तीसरे दिन इसे निकाल कर तेल साफ करके इसे पंचामृत में एक दिन के लिए डुबो कर रखें। अगले दिन इसे निकाल कर साफ करके इस प्रकार से पूजा कर सिद्ध करने के उपरांत प्रयोग करें। जो भी एक अथवा अधिक रुद्राक्ष आपने शुद्ध किए हैं, उसे योग्य व्यक्ति से प्राण-प्रतिष्ठित करवा लें।
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