रूस और यूक्रेन युद्ध का प्रभाव - roos aur yookren yuddh ka prabhaav

रूस-यूक्रेन युद्ध के छह महीने पूरे होने के बीच यूरोपीय देशों में रूस से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बाधित होने से कई छोटी और मझोली कंपनियां बंदी की कगार पर पहुंच गई हैं. इस वजह से बड़ी संख्या में लोगों के बेरोजगार होने का खतरा भी पैदा हो गया है.

रूस-यूक्रेन युद्ध के छह महीने पूरे होने के बीच यूरोपीय देशों में रूस से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बाधित होने से कई छोटी और मझोली कंपनियां बंदी की कगार पर पहुंच गई हैं. इस वजह से बड़ी संख्या में लोगों के बेरोजगार होने का खतरा भी पैदा हो गया है. रूस-यूक्रेन युद्ध के छह महीने बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके विनाशकारी परिणाम नजर आने लगे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि तनावपूर्ण हालात में सुधार नहीं हुआ, तो आगे स्थिति और भी बिगड़ सकती है.

प्राकृतिक गैस की कीमत में बड़ा उछाल

इस युद्ध की वजह से न केवल प्राकृतिक गैस बहुत अधिक महंगी हो गई है, बल्कि इसकी उपलब्धता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. अगर रूस पश्चिमी प्रतिबंधों का बदला लेने के लिए यूरोप को आपूर्ति पूरी तरह से बंद कर देता है, तो आने वाली सर्दियों में यूरोपीय देशों की परेशानी और भी बढ़ जाएगी.

जर्मनी की जस्ता कंपनियों के संघ के प्रमुख मार्टिन कोप ने कहा कि अगर गैस आपूर्ति में कटौती हुई, तो सारे उपकरण बेकार हो जाएंगे. दुनिया भर में सरकारें, व्यवसाय और परिवार युद्ध के आर्थिक प्रभावों को महसूस कर रहे हैं. बढ़ती मुद्रास्फीति और ऊर्जा लागत बढ़ने से यूरोप मंदी की कगार पर पहुंच गया है. कई यूरोपीय देशों में मुद्रास्फीति कई दशकों के उच्च स्तर पर पहुंच गई है.

उर्वरक और अनाज के निर्यात में बाधा

ऊंची खाद्य कीमतों से विकासशील दुनिया में व्यापक भूख और अशांति पैदा हो सकती है. रूस और यूक्रेन से उर्वरक और अनाज निर्यात बाधित होने से हालात खराब हो गए हैं. इस बीच अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एक साल से कम समय में चौथी बार वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अपने पूर्वानुमान को घटा दिया है.

इसके अलावा आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के प्रमुख डेविड बीस्ले ने कहा है कि अमेरिका अगले कुछ हफ्तों में यूक्रेन से 1.50 लाख टन अनाज की खरीद करेगा. बीस्ले ने कहा कि यूक्रेन इस खाद्यान्न की आपूर्ति उन बंदरगाहों से करेगा जो रूस के साथ जारी जंग की जद में नहीं हैं. हालांकि अभी यह तय नहीं है कि इस को अनाज कहां भेजा जाना है. लेकिन इतना तय है कि इस अनाज को खाद्यान्न अभाव का सामना कर रहे इलाकों में भेजा जाएगा.

(भाषा इनपुट के साथ)

रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप विश्व पर पड़ने वाला प्रभाव

रूस और यूक्रेन युद्ध का प्रभाव - roos aur yookren yuddh ka prabhaav

रूस-यूक्रेन युद्ध के 25वें दिन भी कोई समाधान निकलता दिखाई नहीं दे रहा। इस युद्ध में यूक्रेन की विजय हो या रूस की, वह जीत भी हार के समान ही होगी क्योंकि दोनों देशों में अलगाव ही रहेगा। यूक्रेन में तबाही मचा रहा रूस भले ही उसकी धरती को जीत ले परंतु...

रूस-यूक्रेन युद्ध के 25वें दिन भी कोई समाधान निकलता दिखाई नहीं दे रहा। इस युद्ध में यूक्रेन की विजय हो या रूस की, वह जीत भी हार के समान ही होगी क्योंकि दोनों देशों में अलगाव ही रहेगा। यूक्रेन में तबाही मचा रहा रूस भले ही उसकी धरती को जीत ले परंतु यूक्रेनवासियों के दिलों को वह कभी भी जीत नहीं पाएगा और यह भी तय है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तब तक युद्धविराम नहीं करेंगे जब तक वह यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा नहीं कर लेते और जेलेंस्की देश छोड़ कर भाग नहीं जाते या फिर मारे नहीं जाते। लगभग समूचे विश्व समुदाय को युद्ध के अंजाम के प्रभाव ने चिंता में डाल दिया है।

इस युद्ध में चाहे किसी भी पक्ष की जीत हो, इसके परिणामस्वरूप विश्व में बहुत कुछ बदल जाने वाला है। जहां पहले सबकी नजर एशिया पर टिकी हुई थी, वहीं अब एक बार फिर सबका यूरोप पर ध्यान केंद्रित हो गया है।

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने गत वर्ष नवम्बर में अमरीकी प्रभुत्व वाले 30 देशों के सैन्य संगठन ‘नाटो’ को ‘ब्रेन डैड’ संगठन बताया था, लेकिन अब ‘नाटो’ एक बार फिर संगठित होकर स्वयं को जीवित रखने और एक  मजबूत सैन्य संगठन के रूप में आगे आने के लिए नए नियम बना कर सक्रिय हो रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप अमरीका और यूरोप के आपसी रिश्तों के साथ-साथ यूरोप और इंगलैंड के रिश्ते भी बै्रग्जिट के बाद पहली बार सुधार की ओर अग्रसर हैं और ये स्वयं को एक इकाई मानने लगे हैं।

दूसरा, रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के पहले दिन से ही यूरोपीय देशों द्वारा सेना पर किया जाने वाला खर्च, जो उनके बजट का 3 प्रतिशत था, उसी दिन जर्मनी तथा अन्य देशों का खर्च बढ़ कर 6 प्रतिशत हो गया और ऐसा प्रतीत होता है कि यह खर्च निरंतर अब बढ़ता ही जाएगा। ऐसे में  वे शिक्षा, चिकित्सा तथा पर्यावरण की सुरक्षा आदि के लिए निर्धारित फंड में से रकम निकाल कर उसका इस्तेमाल प्रतिरक्षा पर करने को विवश हो गए हैं और जल्दी ही इस घटनाक्रम के चलते बढऩे वाले उपनिवेशवाद के खतरे के दृष्टिïगत एशियाई देश भी अपनी प्रतिरक्षा पर खर्च की राशि बढ़ाने को विवश हो जाएंगे। यदि युद्ध इसी प्रकार जारी रहा तो अन्य देशों का भी सैन्य बजट दोगुना-तिगुना तक बढ़ जाएगा।

तीसरी बात यह है कि बाल्टिक और काला सागर क्षेत्र के छोटे देशों में अब ‘नाटो’ के स्थायी अड्डे बनने जा रहे हैं, जिससे विश्व में विसैन्यीकरण के स्थान पर सैन्यीकरण को बढ़ावा मिलने की आशंका बढ़ गई है। चौथा, ध्यान देने योग्य एक बात यह भी है कि वर्ष 1965 के बाद पहली बार किसी युद्ध में परमाणु युद्ध की धमकी की गूंज सुनाई दी है। इस पर 1965 के बाद से अब तक किसी ने इस पर सक्रियतापूर्वक चर्चा नहीं की थी, यह पहला मौका है जब रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के अगले ही दिन पुतिन द्वारा इसकी धमकी दे देने से इसकी चर्चा शुरू हो गई। न केवल न्यूक्लियर बल्कि थर्मल और कैमिकल हथियारों का जिक्र भी हो रहा है, जो चिंताजनक बात है। इसी बीच रूस से अमरीका तथा यूरोपीय देशों को तेल की सप्लाई प्रभावित होने की आशंका के दृष्टिगत अमरीका ईरान तथा वेनेजुएला से तेल खरीदने की सोच रहा है और ये दोनों ही देश दमनात्मक शासन प्रणाली के प्रतीक हैं।

दूसरी ओर यूरोपियन यूनियन (ई.यू.) कतर और अजरबाईजान  से तेल खरीदने की सोच रहा है। अक्सर यह देखा गया है कि जब तेल की अर्थव्यवस्था बढ़ती है तो डिक्टेटरशिप भी बढ़ती है तो आॢथक फायदा कुछ हद तक ही सीमित रहता है। जहां दमन होता है वहां लोकतंत्र नहीं रहता। ऐसे में इन देशों से तेल खरीदने का मतलब वहां तानाशाही को बढ़ावा देने के समान ही होगा। अत: इन देशों पर अपनी निर्भरता रखने की बजाय संबंधित देशों को नवीकरण योग्य ऊर्जा तथा सोलर एनर्जी के स्रोत पैदा करने की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। पश्चिमी देशों को केवल प्रतिबंधों पर ही नहीं बल्कि  ‘ग्रीन मैनहट्टन प्रोजैक्ट’ पर भी ध्यान देना होगा।

छठा यह कि रूस छोड़ कर जाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां अब दोबारा रूस में नहीं आएंगी। अत: हो सकता है कि चीनी कंपनियां रूस में आकर उनकी कमी पूरी करने का प्रयास करें। ऐसी स्थिति में रूस और चीन के रिश्तों में बदलाव आएगा और चीन को एक बड़ी शक्ति के रूप में मान्यता मिलेगी। चीन विश्व में एक नए सत्ता केन्द्र के रूप में अमरीका के बराबर आकर खड़ा हो गया है।

सातवीं बात यह है कि इस घटनाक्रम का सबसे बड़ा प्रभाव यह पडऩे वाला है कि रूस द्वारा अब दूसरे देशों पर साइबर हमले बढ़ाए जा सकते हैं। कुछ समय पूर्व अमरीका के राष्ट्रपति बाइडेन ने पुतिन से साइबर हमलों से पीछे हटने के लिए कहा था और वे कम भी हुए थे परंतु अब साइबर हमले बढ़ जाएंगे क्योंकि रूस मीडिया को नियंत्रित करना चाहेगा। एक ओर जब जेलेंस्की ने पहली बार यूरोप और अमरीका के सांसदों को उनकी संसद में संबोधित किया तो उन्होंने कहा कि युद्ध की एक छोटी सी संभावित परत पश्चिम के भीतर संस्कृति युद्ध का अंत हो सकती है जोकि लैफ्ट का राइट से और लिब्रल्ज का कंजर्वेेटिव्स के साथ है। अब सभी देशों की सत्ताधारी या फिर विपक्षी पाॢटयां मतभेद भुलाकर यूक्रेन की सहायता को आगे आ रही हैं।

रूस और यूक्रेन युद्ध के क्या प्रभाव हैं?

यूक्रेन के खिलाफ रूस के अनुचित और अकारण युद्ध ने ऊर्जा और खाद्य बाजारों को अत्यधिक प्रभावित किया है। यूरोपीय संघ के देश बढ़ती कीमतों और आपूर्ति की कमी से निपटने के लिए बारीकी से समन्वय कर रहे हैं।

रूस यूक्रेन विवाद का कारण क्या है?

वर्ष 2014 में रूस समर्थक माने जाने वाले यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति को सत्ता छोड़नी पड़ी थी। उसके बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। 2- इसके बाद रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन ने यह दावा किया कि यूक्रेन का गठन कम्युनिस्ट रूस ने किया था। पुतिन का मानना है कि वर्ष 1991 में सोवियत संघ का विघटन रूस के टूटने के जैसा था।

रूस यूक्रेन युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव PDF?

रूस और यूक्रेन (Russia Ukraine War) युद्ध का असर भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) पर भी देखने को मिला है. अप्रैल के महीने में विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव के कारण इस वर्ष वैश्विक व्यापार वृद्धि के अपने पूर्वानुमान को 4.7 प्रतिशत से घटाकर 3 प्रतिशत कर दिया था.

यूक्रेन संकट क्या है Drishti IAS?

यूक्रेन का आक्रमण: यह संघर्ष द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यूरोप में एक राज्य द्वारा दूसरे पर किया गया सबसे बड़ा आक्रमण है और वर्ष 1990 के दशक में बाल्कन संघर्ष के बाद पहला है। यूक्रेन पर आक्रमण के साथ वर्ष 2014 के मिन्स्क प्रोटोकॉल और 1997 के रूस-नाटो अधिनियम जैसे समझौतों का उल्लंघन हुआ।