1. राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?उत्तर- कुंई मरुस्थलीय प्रदेश राजस्थान में जहाँ वर्षा बहुत कम मात्रा में होती है। वर्षा से प्राप्त जल को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए राजस्थान के चेलवांजी समुदाय के लोगों द्वारा ज़मीन को खोदकर बनाई जाती है। जहाँ सामान्य रूप से मैदानी क्षेत्रों में पाए जाने वाले कुओं की गहराई भूगर्भ जल के प्राप्त होने के स्तर तक होती है वहीं कुई की गहराई अधिक होती है। जबकि कुओं के व्यास के अनुपात में इसका व्यास कम होता है। यह सँकरी और गहरी होती है। Show
2. दिनोंदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपको कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय होरहे हैं? जानें और लिखें।उत्तर- दिनोंदिन बढ़ती पानी की समस्या अत्यंत विकट और भयावह है। यह पाठ पानी की उपलब्धता संबंधी समस्या के समाधान में देश के सर्वाधिक कम वर्षा वाले प्रदेश में लोगों द्वारा किए जा रहे प्रयासों के रूप में जल संरक्षण का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। इससे पानी के महत्त्व उसके संरक्षण और सजग तथा सार्थक उपयोग की आवश्यकता को बल मिलता है। देश के अन्य राज्यों में भी वर्षा जल के संरक्षण संबंधी अनेक परियोजनाओं को कार्यान्वित किया जा रहा है। 3. चेजारो के साथ गाँव समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फर्क आया है पाठ के आधार पर बताइए।उत्तर - कुई खोदने वाले चेजारो का परंपरानुसार पहले दिन से ही विशेष ध्यान रखा जाता रहा है किंतु पहले जहाँ कुई की सजलता के अवसर परविशेष भोज के आयोजन होते थे, चेलवांजी को विदाई के समय तरह-तरह की भेंट दी जाती थी; आय प्रथा से वर्ष भर में आने वाले त्योहारों और मंगल उत्सवों के अवसर पर भेंट दी जाती थी। खलियान में उनके नाम अलग से फ़सलों के ढेर लगाए जाते थे, वहीं आजकल उन्हें सिर्फ़ मज़दूरी देकर काम कराने का रिवाज प्रचलन में आ गया है। अर्थात् उनके प्रति गाँव-समाज की संवेदनात्मक अनुभूति में कमी आई है। 4. निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में कुंइयों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा?उत्तर- राजस्थान में कुई खोदने का हक सबको है जो व्यक्ति जिस कुंई को खोदता या खुदवाता है, उससे पानी प्राप्त करने का हक उसका हैलेकिन कुई जिस ज़मीन पर खोदी जाती है वह गाँव-समाज की सार्वजनिक ज़मीन होती है, अतः नयी खुदने वाली कुई का अर्थ होता है ज़मीन में मौजूद नमी का बँटवारा इसलिए निजी होते हुए भी कुई पर ग्राम-समाज का अंकुश बना रहता है। कुंइयों के बनाने संबंधी स्वीकृति आवश्यकतानुसार गाँव-समाज ही देता है। 5. कुंई निर्माण से संबंधित निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें- पालरपानी, पातालपानी, रेजाणीपानीउत्तर- पालरपानी - बरसात से सीधे प्राप्त होने वाले पानी को पालरपानी कहते हैं। यहाँ इसे नदी, तालाबों आदि में इकट्ठा किया जाता है। पातालपानी - पातालपानी उस भूगर्भीय जल को कहते हैं, जो कुओं से निकाला जाता है। रेजाणीपानी - रेजाणीपानी, पालरपानी और पातालपानी के बीच के पानी का अन्य रूप है। ऐसा पानी जो धरातल के नीचे उत्तरा लेकिन पाताल मेंन मिल पाया रेजाणीपानी कहलाता है। Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Vitan Chapter 2 राजस्थान की रजत बूँदें Textbook Exercise Questions and Answers. RBSE Class 11 Hindi Solutions Vitan Chapter 2 राजस्थान की रजत बूँदेंRBSE Class 11 Hindi राजस्थान की रजत बूँदें Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. इस पाठ के माध्यम से लेखक ने बतलाया है कि पानी के संग्रह के उपायों पर जोर दिया जाना चाहिये और पानी का समुचित उपयोग किया जाना चाहिये, तभी हम भविष्य में होने वाली पानी की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। अन्य राज्यों द्वारा किये जा रहे उपाय-राजस्थान के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी दिनोंदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने के लिये अनेक प्रकार के उपाय किये जा रहे हैं। दक्षिण भारतीय राज्यों में पानी का संग्रह बड़े-बड़े पथरीले जलाशयों में किया जाता है, तो मुम्बई की एलीफेंटा-गुफाओं में पहाड़ों की ऊँचाई से नीचे गुफा-तल तक नाली सी काटकर एक चौकोर कुएँनुमा स्थान पर वर्षाजल एकत्र करने का उदाहरण भी द्रष्टव्य है। कई स्थानों पर कुंई की तकनीक का प्रयोग भी कारगर सिद्ध हो रहा है। प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. रेजाणीपानी खड़िया पट्टी के कारण पातालपानी से अलग बना रहता है। इस पट्टी के अभाव में रेजाणीपानी धीरे-धीरे जाकर पातालपानी में मिलकर अपना विशिष्ट रूप खो देता है। यदि किसी जगह भूजल, पातालपानी खारा है तो रेजाणीपानी भी उसमें मिलकर खारा हो जाता है। कुंई इस विशिष्ट रेजाणीपानी को ही समेटने का कार्य करती है। RBSE Class 11 Hindi राजस्थान की रजत बूँदें Important Questions and Answersलघूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. निबन्धात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. 1. छोटे व्यास में पानी की ऊँचाई बढ़ जाने से पानी आसानी से निकाला जा सकता है। प्रश्न 2. राजस्थान में कुंई का निर्माण करने वाले लोगों को चेलवांजी या चेजारो कहा जाता है। चेजारो भूमि की गर्मी सहन करते हुए भीड़-भरी जगह में कुंई का निर्माण करते हैं। भीतर से नीचे मिट्टी की खुदाई बसौली से की जाती है। खुदी हुई मिट्टी को बाल्टी के सहारे ऊपर भेज दिया जाता है। बीच-बीच में नीचे की गर्म हवा को बाहर निकालने के लिये ऊपर से मुट्ठी भर-भर कर रेत झटके से भीतर फेंकी जाती है। इस प्रकार चेलवांजी जान को खतरे में डालकर दूसरों की प्यास बुझाने के लिये अमृतमय जल की स्त्रोत कुंई का निर्माण करते हैं। राजस्थान की रजत बूँदें Summary in HIndiपाठ का सारांश : 'राजस्थान की रजत बूंदें' शीर्षक पाठ में 'अनुपम मिश्र ने राजस्थान की मरुभूमि में अमृतरूपी जल प्रदान करने वाली कुंई की संरचना, निर्माण, रख-रखाव व इसके फायदों को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से अत्यन्त सरल भाषा में व्यक्त किया है मरुभूमि में अमृत जैसे मीठे पानी का मूल स्त्रोत 'कुंई' रेगिस्तान में रेत-ही-रेत है। वर्षा भी न के बराबर होती है। कभी वर्षा संभावना से अधिक हो भी जाए, तो रेत उसे सोख लेती है। पीने का पानी प्राप्त करने के लिये लोग यहाँ पर प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग कर अपने जीवन को सुखमय बना रहे हैं। ऐसे क्षेत्रों में बड़े कुएँ खोदते समय मिट्टी में हो रहे परिवर्तन से खड़िया पट्टी का पता चलता है। बड़े कुओं में पानी तो डेढ़ सौ-दो सौ हाथ पर निकल आता है, परन्तु वह खारा होने के कारण पीने के काम नहीं आ सकता बस तब इन क्षेत्रों में 'कुंइयाँ' बनाई जाती हैं, जिससे अमृत जैसा मीठा पानी प्राप्त होता है। जहाँ रेत के नीचे खड़िया की पट्टी होगी, वहीं कई का निर्माण हो सकता है। 'कुंई' कुएँ से बिलकुल अलग-'कुंई' को हम छोटा-सा कुआँ कह सकते हैं, क्योंकि यह व्यास में कुएँ से बहुत ही छोटी होती है। कुएँ का व्यास जहाँ 15 से 20 हाथ का होता है, वहीं कुंई का व्यास केवल चार-पाँच हाथ ही होने से इसका मुँह भी बहुत छोटा होता है। कुंई एक और अर्थ में कुएँ से बिलकुल अलग है। कुआँ भूजल को पाने के लिये बनता है पर कुंई भूजल से ठीक वैसे नहीं जुड़ती, जैसे कुआँ जुड़ता है। कुंई वर्षा के जल को बड़े ही विचित्र ढंग से समेटती है, वर्षा होती है तब भी और नहीं होती है तब भी परन्तु गहराई में कुंई व कुआँ लगभग समान ही होते हैं। चेंजा व चेजारो(चेलवांजी)-कुंई की खुदाई और एक विशेष तरह की चिनाई करने का काम 'चेंजा' कहलाता है और यह कार्य करने में दक्षतम लोग 'चेजारो' या 'चेलवांजी' कहलाते हैं। कंई का निर्माण चेजारो ही करते हैं। " पानी के तीन रूप-मरुभूमि के समाज के लिये उपलब्ध पानी को तीन रूपों में बाँटा जा सकता है - 1. पालरपानी, 2. पातालपानी, 3. रेजाणीपानी। सीधे बरसात से मिलने वाला पानी 'पालरपानी' है। यह धरातल पर बहता है और इसे नदी, तालाब आदि में रोका जाता है। कुओं में से निकाला जाने वाला भूजल पातालपानी' है। धरातल से नीचे उतरा लेकिन पाताल में न मिल पाया। पालरपानी और पातालपानी के बीच का पानी का तीसरा रूप रेजाणीपानी' है। कुंई निर्माण की प्रक्रिया - श्रेष्ठतम चिनाई 'कुंई' का प्राण है। हर दिन थोड़ी-थोड़ी खुदाई होती है, डोल से मलबा निकाला जाता है और फिर आगे की खुदाई रोककर अबतक हो चुके काम की चिनाई की जाती है, ताकि मिट्टी भसके, धंसे नहीं। चेजारो भूमि की गर्मी सहन करते हुए भीड़ भरी जगह में कुंई का निर्माण करते हैं। भीतर से नीचे मिट्टी की खुदाई बसौली से की जाती है। खुदी हुई मिट्टी को बाल्टी के सहारे ऊपर भेज दिया जाता है। बीच-बीच में नीचे की गर्म हवा को बाहर निकालने के लिये ऊपर से मुट्ठी भर-भर कर रेत झटके से भीतर फेंकी जाती है। इस प्रकार चेजारो अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की प्यास बुझाने के लिये अमृतरूपी जल की स्त्रोत कुंई का निर्माण करते हैं। कंई के निर्माणोपरान्त उत्सव व आयोजन तथा चेलवांजी का सम्मान कुंई का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर विशेष भोज का आयोजन होता है। यद्यपि पहले दिन से ही काम करने वालों का विशेष ध्यान रखा जाता है, तथापि विदाई के समय चेलवांजी को तरह-तरह की भेंट दी जाती है, और उन्हें वर्ष-भर के तीज-त्योहारों व विवाह आदि मंगल अवसरों पर भी नेग, भेंट आदि दी जाती है। यही नहीं फसल आने पर उनके नाम से अनाज का एक अलग ढेर भी रख लिया जाता है। कुंई का मुंह छोटा रखने के कारण-कुंई का मुँह छोटा रखने के तीन प्रमुख क रण हैं -(i) छोटे व्यास में पानी की ऊँचाई बढ़ जाती है। आराम से पानी निकाला जा सकता है। (ii) दूसरा कारण है--अत्यधिक गम का पड़ना। तेज गर्मी से कुंई का फैला हुआ जल आसानी से भाप बनकर उड़ जायेगा, परन्तु छोटा मुँह होने से ऊपर की गर्मी का असर गहराई में स्थित जल पर नहीं पड़ेगा और उसकी मात्रा सुरक्षित रहेगी। (iii) पीने के पानी को शुद्ध बनाये रखने के लिये उसे ढकना अति आवश्यक है। ढंकने के उद्देश्य से छोटे मुँह का होना अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है। 'कुंई' एक सार्वजनिक सम्पत्ति - राजस्थान के खड़िया-पत्थर वाले क्षेत्र में लगभग हर घर में कुंई मिल जाती है। सबकी निजी कुंई होते हुए भी यह सार्वजनिक सम्पत्ति मानी जाती है। इन पर ग्राम-समाज का अंकुश रहता है। किसी नई कुई के लिये स्वीकृति अब कम ही दी जाती है, क्योंकि इससे भूमि की नमी का अधिक विभाजन होता है। जितनी अधिक कुंइयाँ होंगी, उतना ही नमी का बँटवारा होगा और इसका सीधा प्रभाव जल-स्तर पर पड़ता है। - गोधूलि वेला में कुंइयों पर मेला (भीड़)-कुंई से दिन-भर में केवल दो-तीन घड़ा मीठा पानी ही निकाला जा सकता है। इसीलिये प्रायः पूरा गाँव गोधूलि वेला में कुंइयों पर आता है। तब मानो मेला-सा लग जाता है। 'कुंई के लिये प्रसिद्ध क्षेत्र 'कुँई' पूरे राजस्थान में तो नहीं मिलेगी। यह तो केवल उन्हीं क्षेत्रों में मिल सकती है, जहाँ रेत के नीचे खड़िया की पट्टी हो। - चुरू, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर के कई क्षेत्रों में यह पट्टी चलती है और इसी कारण वहाँ गाँव-गाँव में कुंइयाँ ही कुंइयाँ हैं। जैसलमेर जिले के एक गाँव 'खडेरो की ढाँणी' में तो 120 कुंइयाँ थी, अत: लोग इस क्षेत्र को छह-बीसी (छह गुणा बीस) के नाम से जानते थे। कहीं-कहीं इन्हें 'पार' भी कहते हैं। कुंइयों के पास गाँव भी आबाद हैं और इसलिये उन गाँवों के नाम भी 'पार' पर ही हैं; जैसे - जानरे आलो पार, सिरगु आलो पार। पार कुंई को ही कहा जाता है। खड़िया पट्टी के विभिन्न नाम-अलग-अलग स्थानों पर खड़िया पट्टी के भी अलग-अलग नाम हैं। कहीं पर 'चारोली' है, तो कहीं 'धाधड़ो', धड़धड़ो तो कहीं पर 'बिट्ट रो बल्लियों के नाम से भी जानी जाती है। कहीं तो इस पट्टी का नाम केवल 'खड़ी' भी है। कठिन शब्दार्थ :
राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्द्य कुं ओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?इसकी गहराई और व्यास में अंतर होता है। कुएँ सौ-दो सौ हाथ तक खोदे जाते हैं जबकि कुंई को 60-65 हाथ नीचे तक खोदा जाता है। कुएँ का व्यास बहुत अधिक होता है। इसके विपरीत कुंईयों का व्यास बहुत ही कम होता है।
राजस्थान में कुंई किसे कहा जाता है कुआं और कुंई में क्या अंतर है?➲ कुंई और कुएँ में अंतर इस प्रकार है...
कुईं का व्यास छोटा इसलिये रखा जाता है, ताकि कम मात्रा का पानी ज्यादा फैले नहीं और ऊपर आसानी से निकल जाए। कुएं का व्यास कितना भी हो सकता है। कुईं राजस्थान जैसे कुछ क्षेत्रों में ही प्रचलित है जहाँ पानी की कमी होती है। भूजल का स्तर भी बेहद कम होता है।
राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं चेलवांजी कौन है?चेलवांजी कुएँ की खुदाई व चिनाई करने वाले प्रशिक्षित लोग होते हैं। कुंई कुएँ से छोटी होती है, परंतु गहराई कम नहीं होती। कुंई में न सतह पर बहने वाला पानी आता है और न भूजल। मरुभूमि में रेत अत्यधिक है।
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