पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण कैसे होता है - poorn pratiyogita mein mooly nirdhaaran kaise hota hai

प्रश्न 47 : पूर्ण प्रतियोगिता क्या है? पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में वस्तु का मूल्य किस प्रकार से निर्धारित होता है?

उत्तर: पूर्ण प्रतियोगिता का आशय

अर्थ एवं परिभाषा- पूर्ण प्रतियोगिता वह बाजार है, जिसमें क्रेता व विक्रेता के बीच वस्तुओं का क्रय-विक्रय प्रतियोगिता के आधार पर होता है । इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत रूप से कोई भी फर्म या व्यक्ति वस्तु के मूल्य को प्रभावित नहीं कर सकता है। पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तुओं का मूल्य प्रत्येक स्थान पर एक समान रहता है।

विशेषताएं

(1) क्रेता एवं विक्रेताओं की अधिक संख्या का होना, (2) वस्तुएं रूप-रंग, गुण एवं वचन में एक समान होना, (3) बाजार का पूर्ण ज्ञान, (4) फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश तथा बहिगर्मन, (5) उत्पादन के साधनों की पूर्ण गतिशीलता, (6) मूल्य नियन्त्रण की अनुपस्थिति, (7) औसत तथा सीमान्त भाव का बराबर होना, (8) दीर्घकालीन स्थिति में एक मूल्य।

पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में मूल्य निर्धारण

पूर्ण-प्रतियोगिता में एक फर्म का साम्य- फर्म के साम्य का अर्थ है, उत्पादन की मांत्रा में कोई परिवर्तन न होना, प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करना चाहती है, जब तक उसको अधिकतम लाभ प्राप्त नहीं होता, वह उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन करती रहती है, जहाँ उसको अधिकतम लाभ प्राप्त होता है, उसी बिन्दु पर वह अपने उत्पादन की मात्रा को निश्चित कर देती है, अर्थात् यह फर्म साम्य की दशा कहलाती है। पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण को दो भागों में बाँटा जा सकता है

(I) अल्पकाल में मूल्य निर्धारण

पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में प्रत्येक फर्म अपना लाभ अधिकतम करने का प्रयास अवश्य करती है, किन्तु अल्पकाल में इतना कम समय होता है कि फर्म को वस्तुओं की माँग के अनुसार उसकी पूर्ति करने के लिए साधनों की मात्रा में वृद्धि कर उत्पादन बढ़ाने का समय नहीं मिलता। अतः फर्म को उद्योग द्वारा निर्धारित मूल्य पर अल्पकाल में सामान्य लाभ, अधिकतम लाभ अथवा हानि भी हो सकती है। फर्म साम्य की दशा में तब होती है जबकि सीमान्त लागत और सीमान्त आगम दोनों बराबर होते हैं अर्थात MR = MC

(1) अधिकतम लाभ- जब बाजार में माँग, पूर्ति की तुलना में अधिक होती है, तो फर्म को अधिक लाभ प्राप्त होता है। उपरोक्त चित्र में E बिन्दु साम्य का बिन्दु है अतः इस बिन्दु पर फर्म को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है । इस बिन्दु पर उत्पादन की मात्रा OQ, कीमत OP तथा लागत OM के बराबर है। इस प्रकार कुल लाभ की मात्रा MPER है।

पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण कैसे होता है - poorn pratiyogita mein mooly nirdhaaran kaise hota hai

यहाँ पर जब बाजार में वस्तु की कीमत OP है तो उत्पादन की मात्रा OQ के E बिन्दु पर हैं । इस बिन्दु पर MR = MC है । इस मूल्य पर AC (औसत लागत) AR से (औसत आय) कम है। अतः फर्म को प्रति इकाई ER लाभ प्राप्त होता हैं ।

(2) सामान्य लाभ- जब बाजार में माँग और पूर्ति दोनों आपस में बराबर होते हैं तो फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता हैं ।

पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण कैसे होता है - poorn pratiyogita mein mooly nirdhaaran kaise hota hai

उपरोक्त चित्र में OP कीमत पर MC और MR दोनों E बिन्दु पर मिलते हैं, यहाँ उत्पादन मात्रा OQ है, इस उत्पादन पर फर्म की कीमत OP = AR = MR = MC= AC अतः फर्म को केवल सामान्य लाभ प्राप्त हो रहा है ।

(3) हानि की दशा- जब बाजार में वस्तु की माँग, पूर्ति की तुलना में कम होती है, तो फर्म को हानि होती है ।

पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण कैसे होता है - poorn pratiyogita mein mooly nirdhaaran kaise hota hai

उपर्युक्त चित्र में औसत आय (AC) औसत् लागत (AC) की तुलना में कम है। अत: फर्म को हानि होगी । यहाँ पर फर्म को MPRE के बराबर कुल हानि होती है।

AR - AC = Profit

AC - AR = Loss

AR = AC = सामान्य लाभ

(II) दीर्घकाल में मूल्य निर्धारण

दीर्घकालीन अवस्था इतनी अधिक समय अवधि है, जिसमें माँग के अनुरूप पूर्ति को समायोजित किया जा सकता है । फर्मों के स्वतंत्र प्रवेश एवं बर्हिगमन के कारण नई फर्मं आ सकती हैं। फर्म या उद्योग इस स्थिति में केवल सामान्य लाभ की दशा में कार्यरत रहता है । यदि अल्पकाल में फर्म या उद्योग को अधिकतम लाभ हो रहा है तो ऐसी दशा में नई फर्ने उद्योग में आने लगेंगी जिससे पूर्ति बढ़ जायेगी और मूल्य कम हो जाने से लाभ भी कम हो जायेगा, यदि अल्पकाल में फर्म हानि पर भी कार्य कर रही है, तो वह दीर्घकाल तक हानि की दशा में नहीं रहेगी, अर्थात दीर्घकाल की प्रवृत्ति सामान्य लाभ की होती है ।

पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण कैसे होता है - poorn pratiyogita mein mooly nirdhaaran kaise hota hai

दीर्घकाल में पर्याप्त समय होता है अतः वस्तु की माँग और पूर्ति दोनों आपस में बराबर होती हैं। अत: फर्म को यहाँ पर केवल सामान्य लाभ प्राप्त होता है। इससे प्रस्तुत रेखाचित्र के द्वारा दिखाया जा सकता है।

पीछे अंकित चित्र में माँग रेखा DD एवं पूर्ति रेखा SS दोनों एक दूसरे को जिस बिन्दु पर काट रही हैं वहाँ पर वस्तु का 5 रु. निर्धारित हो रहा है । यदि माँग बढ़ती है तो कीमत भी बढ़ जायेगी।

Solution : संतुलन कीमत (Equilibrium Price)-संतुलन कीमत वह कीमत है। जिस पर माँग तथा पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं या जहाँ क्रेताओं की खरीद या विक्रेताओं की बिक्री एक-दूसरे के समान होती है। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में संतुलन कीमत का निर्धारण माँग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। संतुलन कीमत उस बिन्दु पर निर्धारित होती है जहाँ बाजार माँग, बाजार पूर्ति के बराबर हो जाती है। <br> पूर्ण प्रतियोगिता में संतुलन/मूल्य का निर्धारण (Determination of equilibrium price in perfect competition state)- पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में क्रेता वस्तु की सीमांत उपयोगिता से अधिक कीमत देने को तैयार नहीं होते हैं तथा विक्रेता सीमांत लागत से कम कीमत पर वस्तु की आपूर्ति नहीं करेंगे। इस प्रकार इन दोनों अधिकतम एवं न्यूनतम सीमाओं के बीच ही वस्तु की कीमत का निर्धारण होगा। वास्तव में, संतुलन कीमत का निर्धारण उस बिन्दु पर होगा जहाँ वस्तु की माँग की पूर्ति के बराबर होगी। <br> <img src="https://d10lpgp6xz60nq.cloudfront.net/physics_images/UNQ_HIN_10Y_QB_ECO_XII_QP_E03_015_S01.png" width="80%"> <br> चित्र में E बिन्दु पर वस्तु की माँग मानी जाने वाली मात्रा, पूर्ति के बराबर है अर्थात् OP संतुलित कीमत है जहाँ पर OM संतुलित मात्रा है। यदि कीमत `OP_1` है तो पूर्ति `P_1B` तथा माँग `P_1A` है। इस अवस्था में अधिक पूर्ति की दशा है जिससे विक्रेताओं में परस्पर प्रतियोगिता होगी तथा इस प्रतियोगिता के कारण वस्तु की कीमत कम हो जाएगी तथा माँग का विस्तार होगा। जब कीमत कम होकर OP रह जाएगी तो माँग तथा पूर्ति परस्पर बराबर हो जाएंगे। इसलिए OP संतुलित कीमत स्थापित होगी। यदि किसी कारण से वस्तु की कीमत कम होकर `OP_2` रह जाती है तो माँग, पूर्ति से अधिक होगी जिससे क्रेताओं में प्रतियोगिता बढ़ जाएगी। इसे अतिरिक्त माँग की दशा उत्पन्न होगी इस कारण कीमत बढ़नी शुरू हो जाएगी। तथा तब तक बढ़ती रहेगी जब तक वह OP नहीं हो जाती। इस दशा में फिर माँग तथा पूर्ति में संतुलन स्थापित हो जाएगा।

पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत मूल्य निर्धारण कैसे होता है?

पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में किसी वस्तु का मूल्य उसके सीमान्त तुष्टिगुण और सीमान्त उत्पादन लागत के मध्य माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा उस बिन्दु पर निर्धारित होता है। जहाँ वस्तु की माँग और पूर्ति बराबर होती हैं। अत: वस्तु के मूल्य-निर्धारण में माँग और पूर्ति पक्ष दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं।

पूर्ण प्रतियोगिता क्या है पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत मूल्य निर्धारण को स्पष्ट कीजिए?

अर्थ एवं परिभाषा- पूर्ण प्रतियोगिता वह बाजार है, जिसमें क्रेता व विक्रेता के बीच वस्तुओं का क्रय-विक्रय प्रतियोगिता के आधार पर होता है । इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत रूप से कोई भी फर्म या व्यक्ति वस्तु के मूल्य को प्रभावित नहीं कर सकता है। पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तुओं का मूल्य प्रत्येक स्थान पर एक समान रहता है।

एकाधिकार प्रतियोगिता क्या है इसके तहत मूल्य निर्धारण की व्याख्या करें?

एकाधिकारी पूर्ण प्रतियोगिता के उत्पादक की भाँति कीमत प्राप्तकर्ता (Price Taker) नहीं होता बल्कि कीमत निर्धारक (Price Maker) होता है किन्तु एकाधिकारी किसी वस्तु की कीमत तथा उस वस्तु की पूर्ति दोनों को एक साथ नियन्त्रित नहीं कर सकता । यदि वह विक्रय को बढ़ाना चाहता है तो उसे कीमत कम करनी पड़ेगी ।

बाजार में मूल्य का निर्धारण कैसे होता है व्याख्या करें?

मूल्य-निर्धारण यह निर्धारित करने की प्रक्रिया है कि कंपनी अपने उत्पादों के बदले क्या हासिल करेगी. मूल्य-निर्धारण के घटक हैं निर्माण लागत, बाज़ार, प्रतियोगिता, बाजार स्थिति और उत्पाद की गुणवत्ता. मूल्य-निर्धारण व्यष्टि-अर्थशास्त्र मूल्य आबंटन सिद्धांत में भी एक महत्वपूर्ण प्रभावित करने वाला कारक है।