पूर्ण प्रतियोगिता में बाजार में कीमत कैसे निर्धारित होती है? - poorn pratiyogita mein baajaar mein keemat kaise nirdhaarit hotee hai?

पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत निर्धारण , पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ - Pricing under perfect competition Characteristics of perfect competition

पूर्ण प्रतियोगिता की महत्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित है

(1) असंख्य केता एवं विक्रेता (Large Number of Buyers and Sellers) पूर्ण प्रतियोगिता की प्रमुख विशेष ता यह है कि इस बाजार में केता एवं विक्रेता असंख्य होते हैं। प्रत्येक क्रेता इतना कम काय करता है तथा प्रत्येक विक्रेता इतना कम विक्रय करता है कि न तो कोई क्रेता और न ही कोई विक्रेता बाजार कीमत को प्रभावित करने में सक्षम होता है। किसी भी क्रेता या विक्रेता का कोई भी कार्य बाजार कीमत को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं होता। केताओं एवं विक्रेताओं की असंख्य संख्या होने के परिणामस्वरूप बाजार कीमत उनके पक्ष में प्रभावित नहीं हो पाती है। इस बाजार के अन्तर्गत वस्तु की बाजार कीमत सभी क्रेता एवं विक्रेताओं की संयुक्त क्रियाओं (Combined actions) का परिणाम होती है। एक बार बाजार कीमत निर्धारित होने के पश्चात क्रेता एवं विक्रेता दोनों इसे स्वीकार कर लेते हैं। दोनों पक्ष ही इस कीमत पर कय-विक्रय सम्बन्धी मात्रा का समायोजन कर लेते हैं।

(2)समरूप उत्पादन (Homogeneous Product ) - पूर्ण प्रतियोगी बाजार की दूसरी विशेष ता यह है कि विभिन्न विक्रेताओं तथा फर्मों द्वारा बेची जाने वाली वस्तु क्रेताओं की दृष्टि से समरूप अथवा एक सी (Homogeneous or identical) होना चाहिए। विभिन्न फर्मों द्वारा बेची जाने वाली वस्तुएँ क्रेताओं की दृधिट से एक-दूसरे की पूर्ण स्थानापन्न ( Perfect substitute shape) होती है अर्थात् वस्तुओं की प्रतिलोच (Cross elasticity) अनन्त (Infinite) होती है। चूँकि वस्तु समरूप होती है, अतः कोई भी विक्रेता प्रचलित बाजार से जरा भी अधिक कीमत वसूल नहीं कर सकता। यदि वह ऐसा करता है तो ग्राहक कम हो जायेंगे ।

पूर्ण प्रतियोगिता की इन दोनों विशेष ताओं के कारण फर्म का औसत आगम वक्र (ARcurve ) क्षितिजीय आकार (Horizontal Shape) का होता है।

चूँकि बाजार में असंख्य विक्रेता अथवा फर्म कार्यशील होती है, अतः कोई एक विक्रेता अथवा फर्म कीमत को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं होती। इसके अतिरिक्त चूँकि वस्तु समरूप होती है, इसलिए क्रेता एक फर्म की वस्तु को दूसरी फर्म की वस्तु से श्रेष्ठनहीं समझते हैं। इस विशेष ता के कारण बाजार में वस्तु एक ही कीमत पर उपलब्ध हो जाती है।

समरूप उत्पादन होने के कारण एक अकेला विक्रेता कीमत को स्वीकार करने वाला होता है। यह कीमत बाजार की माँग और पूर्ति शक्तियों से निर्धारित की गई है। सम्पूर्ण बाजार में एक सी कीमत प्रचलित रहती है।

( 3 ) प्रवेश एवं बहिगर्मन की स्वतन्त्रता (Freedom of Entry and Exit ) - पूर्ण प्रतियोगिता की तीसरी विशेष ता यह है

कि प्रत्येक फर्म उद्योग में प्रवेश करने तथा इसकी बर्हिगमन करने में पूर्णतया स्वतन्त्र होती है। काई भी फर्म जब चाहे उद्योग में आ सकती है तथा जब चाहे उद्योग को छोड़कर जा सकती है। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि अल्पकाल में एक व्यक्तिगत फर्म लाभ कमा रही है तो नई फर्मे उद्योग में आकर्शित होती हैं और इससे उद्योग का उत्पादन बढ़ने से बाजार पूर्ति वक्र दायी और खिसक जायेगा। इससे साम्य मूल्य भी कम हो जायेगा, उद्योग में प्रवेश की स्वतन्त्रता से दीर्घकालीन कीमत दीर्घकालीन औसत लागत के बराबर होगी तथा फर्म सामान्य लाभ (P=LAC) कमायेगी।

दूसरी ओर अल्पकाल में फर्मों को हानि होती है तो उद्योग का बर्हिगमन करने की छूट होने से फर्मे उद्योग को छोड़ देगी जिससे उत्पादन कम होगा तथा कीमत बढ़ने से साम्य मूल्य बढ़कर दीर्घकालीन औसत लागत के बराबर हो जायेगा।

फर्मे सामान्य लाभ की स्थिति (P= LAC) पुनः प्राप्त कर लेंगी। उद्योग में फर्मों के प्रवेश एवं बर्गिमन की स्वतन्त्रता के परिणामस्वरूप दीर्घकाल में प्रत्येक प्रतिस्पर्धी फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होगा।

( 4 ) बाजार दशाओं का पूर्ण ज्ञान ( Perfect Knowledge of Market Conditions) - पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत क्रेता तथा विक्रेताओं को बाजार दशाओं की पूर्ण जानकारी होती हैं। चूँकि वस्तु के बारे में केतागण पूर्ण जानकारी रखते हैं, अतः विक्रताओं अथवा फर्मों को वस्तु की बिक्री के लिए विभिन्न विक्रय कलाओं का सहारा नहीं लेना पड़ता है अर्थात् प्रचार एवं विज्ञापन व्यय नहीं करना पड़ता है। इसी प्रकार विक्रेताओं को भी बाजार दशाओं की पूर्ण जानकारी होती है। विभिन्न कीमतों पर होने वाली सम्भाव्य बिक्री (Porential Sale) का पूर्ण ज्ञान उन्हें होता है।

संसाधन स्वामियों (Resources owners) को भी अपने संसाधन की बाजार कीमत तथा साधन की सीमान्त उत्पादकता की पूर्ण जानकारी होती है।

इससे साधन का पारिश्रमिक उसकी सीमान्त उत्पादकता के मूल्य के बराबर ( Pf Value of M. Pf. ) होता है। पूर्ण ज्ञान से सभी आर्थिक इकाइयों, उपभोक्ताओं, विक्रेताओं तथा साधन स्वामित्वों का किसी प्रकार का शोषण होने की सम्भावना नहीं होती है।

( 5 ) उत्पादन साधनों की पूर्ण गतिशीलता (Perfect Mobility of the Factors of Production)- पूर्ण प्रतियोगिता की दशाओं में उत्पादन के साधनों की पूर्ण गतिशीलता आवश्यक है। इससे आशय यह है कि उत्पादन के साधनों को जिस उद्योग में अधिक पारिश्रमिक (Remuneration) मिलता है उसमें जाने को स्वतन्त्र होते हैं। अतः निम्न पारिश्रमिक वाले व्यवसाय अथवा उद्योग उत्पादन के साधन अधिक पारिश्रमिक देने वाले उद्योग अथवा व्यवसाय में जाने को तत्पर रहते हैं। साधनों में भौगिकालिक,

व्यावसायिक एवं एक कार्य से दूसरे कार्य में जाने की गतिशीलता पाई जाती है। साधनों में पूर्ण गतिशीलता के कारण साधन की कीमत व्यक्तिगत साधन पर निर्भर न करके सम्पूर्ण बाजार में साधन की कुल माँग और कुल पूर्ति पर निर्भर करती है अर्थात् साधन बाजार में भी पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है। इसके साथ ही ऐसी स्थिति में प्रत्येक फर्म साधनों का अनुकुलतम उपयोग करती है। प्रत्येक साधन के स्वामी को अवसर लागत प्राप्त होने से प्रत्येक फर्म न्यूनतम लागत प्राप्त करती है।

(6) परिवहन लागतों का न होना (No Transport Costs) - पूर्ण प्रतियोगी बाजार का विश्लेषण इस मान्यता पर आधारित है कि इसके अन्तर्गत परिवहन लागते नहीं होती हैं क्योंकि विभिन्न फर्मों एक दूसरे के बहूत समीप स्थित होती हैं। व्यवहार में दो वस्तुओं को तभी समरूप माना जता है

जब उनका उत्पादन एक ही स्थान पर किया जाता है। यदि उनका उत्पादन अलग-अलग स्थानों पर किया जाए तो कीमतें भी भिन्न भिन्न होती कीमत की एकरूपता की शर्त पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत तभी पूरी हो सकती है जबकि हम यह भी मानते हैं कि उत्पादन एक ही स्थान पर होता है तथा परिवहन लागते उत्पन्न नहीं होती है।

(7) दीर्घकाल में सामान्य लाभ (Normal Profit in the Long Run ) - जैसा कि उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि दीर्घकाल में एक प्रतिस्पर्धी फर्म सामान्य लाभ कमाती है। लागते सामान्यतः सामान्य लाभ लागतों में सम्मिलित होती हैं। उद्योग में प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्वतन्त्रता के कारण प्रत्येक व्यक्तिगत फर्म स्वयं को इस प्रकार से बाजार की पूर्ति के साथ सामायोजित करती है कि दीर्घकाल मे उसकी औसत लागत उसकी कीमत के बराबर (P=LAC) हो जाती है। दीर्घकाल में विशुद्ध लाभ नहीं होने के कारण फर्मों की संख्या भी इश्टतम होगी तथा अन्य फर्मों उद्योग में आकर्शित नहीं होगी।

इसके साथ ही उद्योग में विद्यमान फर्मों में भी बर्हिगमन करने की स्थिति नहीं होगी। प्रत्येक फर्म दीर्घकाल में न्यूनतम लागत पर उत्पादन करेगी अर्थात् अनुकुलतम संयन्त्र की स्थिति होगी और जहाँ कीमत दीर्घकालीन औसत लागत के बराबर (P=LAC) होगी तब फर्म का विस्तार अथवा संकुचन की प्रेरणा नही मिलेगी।

(B) स्वतन्त्र निर्णयन (Independent Decision Making) - पूर्ण प्रतियोगिता की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि व्यक्तिगत फर्म अपने निर्णय लेने में स्वतन्त्र होती है। कुल उत्पादन की मात्रा में एक व्यक्तिगत फर्म का योगदान बहुत छोटा होता है और उसके द्वारा किये गये कार्यों पर किसी द्वारा प्रतिक्रिया व्यक्ति नहीं की जाती तथा उसे अनदेखा कर दिया जाता है। क्रेताओं को पूर्ण ज्ञान होने के कारण न तो कीमत में वृद्धि की जाती है न कमी की जाती है। वस्तु समरूप होने के कारण प्रचार एवं विज्ञापन सम्बन्धी विक्रय कलाओं का सहारा लेना व्यर्थ होता है। फर्म दी हुई कीमत पर अपने लाभ को अधिकतम करने हेतू उत्पादन सम्बन्धी निर्णय लेने को स्वतन्त्र होती है।


पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत कैसे निर्धारित की जाती है?

पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में किसी वस्तु का मूल्य उसके सीमान्त तुष्टिगुण और सीमान्त उत्पादन लागत के मध्य माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा उस बिन्दु पर निर्धारित होता है। जहाँ वस्तु की माँग और पूर्ति बराबर होती हैं। अत: वस्तु के मूल्य-निर्धारण में माँग और पूर्ति पक्ष दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं।

बाजार में मूल्य का निर्धारण कैसे होता है व्याख्या करें?

मूल्य-निर्धारण यह निर्धारित करने की प्रक्रिया है कि कंपनी अपने उत्पादों के बदले क्या हासिल करेगी. मूल्य-निर्धारण के घटक हैं निर्माण लागत, बाज़ार, प्रतियोगिता, बाजार स्थिति और उत्पाद की गुणवत्ता. मूल्य-निर्धारण व्यष्टि-अर्थशास्त्र मूल्य आबंटन सिद्धांत में भी एक महत्वपूर्ण प्रभावित करने वाला कारक है।

पूर्ण प्रतियोगिता क्या है पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत मूल्य निर्धारण को स्पष्ट कीजिए?

पूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ (Meaning of Perfect Competition) (2) लैफ्टविच के अनुसार, पूर्ण प्रतियोगिता एक ऐसा बाजार है जिसमें एकत्सी वस्तुओं को बेचने वाली बहुत सौ फर्मे होती हैं और उनमें से कोई भी फर्म सम्पूर्ण बाजार की तुलना में इतनी बड़ी नहीं होती कि वह बाजार कीमत को प्रभावित कर सके।”

एक पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में कीमत स्वीकारक कौन होता है?

पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में फर्म कीमत स्वीकारक (Price Taker) होती है अर्थात उसे बाजार में प्रचलित कीमत को स्वीकार करके उसी कीमत पर अपना उत्पादन बेचना पड़ता है। पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में क्रेताओं की संख्या भी बहुत अधिक होती है। इसलिए कोई एक क्रेता, विक्रेता की तरह वस्तु की कीमत को प्रभावित करने के योग्य नहीं होता