परिमल की गोष्ठियों में फादर की क्या स्थिति थी? - parimal kee goshthiyon mein phaadar kee kya sthiti thee?

'परिमल' की गोष्ठियों में फादर की क्या स्थिति थी ? लेखक तथा अन्य प्रतिभागियों के साथ उनके संबंध कैसे थे ?

परिमल में सभी सदस्य एक पारिवारिक रिश्ते में बंधे थे जिसके बड़े फादर बुल्के थे। विनोद, हास-परिहास के साथ वे साहित्यिक गोष्ठियों में बेबाक राय देते तथा सभी परिवारों के संस्कारों में बड़े भाई और पुरोहित की भाँति खड़े रहकर सबको अपने आशीर्वाद से भर देते।

पाठ पर आधारित लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ”फ़ादर को जहरबाद से नहीं मारना चाहिये था।“ लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तरः फ़ादर की मृत्यु गैंग्रीन नामक रोग से हुई। फादर के शांत अमृतमय जीवन देखा। लोगों को स्नेह वात्सल्य और करुणा का दान। ऐसे व्यक्ति की मृत्यु बढ़ी शांत होनी चाहिये।
व्याख्यात्मक हल:
फ़ादर की मृत्यु एक प्रकार के फोड़े, गैंग्रीन रोग से हुई। लेखक का मानना है कि फ़ादर ने सदैव दूसरों को प्रेम व अपनत्व बाँटा। ऐसे सौम्य व स्नेही व्यक्ति के शरीर में जहरीला फोड़ा होना उनके प्रति अन्याय है।

प्रश्न 2. मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के आधार पर फ़ादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिये।
उत्तरः 
आत्मीय संन्यासी, ईसाई पादरी, रंग गोरा था, भूरी दाढ़ी, आँखें नीली थीं, हमेशा गले लगाने को आतुर दिखती थीं। प्रियजनों और  परिचितों के प्रति असीम स्नेह सांत्वना, सहारा और करुणा देने में समर्थ। व्याख्यात्मक हल:
फ़ादर कामिल बुल्के का रंग गोरा था। सफेद झाँई मारती भूरी दाढ़ी, नीली आँखें थीं, जिनमें वात्सल्य और ममता कूट-कूटकर भरी थी। अपने प्रियजनों के प्रति इतनी आत्मीयता रखते कि अपने आशीर्वादों से लोगो के मन को लबालब भर देते थे।

प्रश्न 3. ‘परिमल’ की गोष्ठियों में फ़ादर की क्या स्थिति थी ? लेखक तथा अन्य प्रतिभागियों के साथ उनके संबंध कैसे थे ?
उत्तरः फ़ादर की स्मृति की विशेषता बताने के लिये पारिवारिक रिश्ते में सभी बंधे थे जिसमें फ़ादर बड़े थे। विनोद, हास-परिहास के साथ वे साहित्यिक गोष्ठियों में बेबाक राय देते तथा लेखक के घरों में सम्पन्न संस्कारों में भी भाग लेते, पुरोहित तथा बड़े भाई की भाँति संरक्षण प्रदान करते थे।

प्रश्न 4. फ़ादर बुल्के की उपस्थिति देवदारु की छाया जैसी क्यों लगती थी ?
उत्तरः 
फ़ादर बुल्के की उपस्थिति देवदारु की छाया जैसी इसलिए लगती है, क्योंकि वे संन्यासी होते हुए भी सबके साथ पारिवारिक रिश्ता बनाकर रखते थे। सबसे बड़ी बात यह थी कि वे सबके घरों में उत्सवों और संस्कारों में पुरोहित की भाँति उपस्थित रहते थे। हर व्यक्ति उनसे स्नेह और सहारा प्राप्त करता था। वात्सल्य तो उनकी नीली आँखों में तैरता रहता था।

प्रश्न 5. लेखक ने फ़ादर के प्रभाव को दर्शाने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है ? ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के आधार पर लिखिए। 
उत्तरः लेखक ने फ़ादर के व्यक्तित्व को दर्शाने के लिए उदास शांत संगीत सुनने जैसा, करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा, देवदारु के पेड़ की छाया के सुख जैसा उपमानों का प्रयोग किया है।

प्रश्न 6. फ़ादर बुल्के की जन्मभूमि और कर्मभूमि कौन-कौनसी थीं ? कर्मभूमि की किन विशेषताओं से वे प्रभावित थे ?
उत्तरः जन्मभूमि रेम्सचैपल, कर्मभूमि भारत। भारतीय सभ्यता, संस्कृति एवं भाषा से प्रभावित, हिन्दू धर्म के मर्म को समझने की जिज्ञासा।

प्रश्न 7. फ़ादर कामिल बुल्के के अभिन्न भारतीय मित्र का नाम पठित पाठ के आधार पर लिखिये तथा बताइये कि उनकी परस्पर अभिन्नता का कौन-सा तथ्य प्रस्तुत पाठ में परिलक्षित हुआ है?
उत्तरः
डाॅ. रघुवंश जी, हिन्दी के उद्भट विद्वान, उन्हें अपनी माता जी के पत्र दिखाते और घर की सारी बातें बताते।
व्याख्यात्मक हल:
डाॅ. रघुवंश जी, जो हिन्दी के उद्भट विद्वान भी थे, वे भारत में फ़ादर कामिल बुल्के के अभिन्न मित्र थे। फ़ादर केवल उन्हें ही अपने मन की व घर-परिवार की सारी बातें बताते तथा अपनी माता जी के पत्र भी उन्हें ही दिखाते।

प्रश्न 8. फ़ादर कामिल बुल्के ने संन्यासी की परम्परागत छवि से अलग एक नई छवि प्रस्तुत की है, कैसे?उत्तरः ईसाई धर्माचार में ही अपना समय व्यतीत करते है लेकिन संन्यासी होते हुए भी अपने परिचितों के साथ गहरा लगाव रखते थे वे उनसे मिलने के लिए सदा आतुर रहते थे। अन्य धर्म वालों के उत्सवों संस्कारों में भी घर के बड़े बुजुर्ग की भाँति शामिल होते थे।
व्याख्यात्मक हल:
फादर कामिल बुल्के ईसाई धर्माचार में ही अपना समय व्यतीत करते थे। वे संन्यासी होते हुए भी अपने परिचितों के साथ गहरा लगाव रखते थे तथा उनसे मिलने के लिए सदा आतुर रहते थे। अन्य धर्म वालों के उत्सवों संस्कारों में भी वे घर के बड़े बुजुर्ग की भाँति शामिल होते थे।

प्रश्न 9. फ़ादर कामिल बुल्के के बचपन में उनकी माँ ने उनके विषय में क्या भविष्यवाणी की थी ? वह सत्य सिद्ध कैसे हुई ? ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के आधार पर लिखिए। 
उत्तरः बचपन में उनकी माँ ने भविष्यवाणी की कि ‘लड़का हाथ से गया’ जब फ़ादर ने इंजीनियरिंग के अन्तिम वर्ष में पढ़ाई छोड़कर संन्यासी होकर भारत आने का निर्णय लिया तब वह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई।

प्रश्न 10. फादर कामिल बुल्के कितने समय तक भारत में रहे और कितनी उम्र में हम सभी को छोड़कर विदा हो गए? उन्होंने भारत में कहाँ पर रहकर अपना प्रसिद्ध ‘अंग्रेजी-हिन्दी-कोश’ तैयार किया था?उत्तरः 47 वर्ष, 73 वर्ष की उम्र में निधन। राँची के काॅलेज में विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने अंगे्रज़ी-हिन्दी कोश की रचना की।
व्याख्यात्मक हल:
फादर कामिल बुल्के 47 वर्षों तक भारत में रहे। 73 वर्ष की उम्र में वे हम सभी को छोड़कर विदा हो गए। राँची के काॅलेज में विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने अंगे्रज़ी-हिन्दी-कोश की रचना की।

प्रश्न 11. फादर कामिल बुल्के की किस भाषा में विशेष रुचि एवं लगाव था? उस भाषा में उन्होंने कौन से कालजयी कार्य किये?
अथवा
पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिये जिनसे फादर बुल्के का हिन्दी प्रेम प्रकट होता है?
उत्तरः फादर कामिल बुल्के का हिन्दी भाषा में विशेष रुचि एवं लगाव था। हिन्दी के लिए वे समर्पित भाव से तल्लीन रहे। उन्होंने जेवियर्स काॅलेज के हिन्दी-संस्कृत विभाग के अध्यक्ष रहते हुए शोधकार्य तथा अध्ययन किया। उन्होंने बाइबिल का हिन्दी अनुवाद किया, अंग्रेजी-हिन्दी कोश तैयार किया तथा ‘ब्लू बर्ड’ का अनुवाद ‘नील पंछी’ नाम से किया। ये हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु प्रेरित व उद्बोधित करते रहे।

प्रश्न 12. फ़ादर जैसे सौम्य तथा स्नेहिल स्वभाव के व्यक्ति किस सवाल पर झुँझला उठते थे और क्यों ? ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के मार्ग में आने वाली समस्या तथा सवाल पर वे झुँझला उठते, क्योंकि उन्हें हिन्दी भाषा से विशेष प्रेम था। वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे।

प्रश्न 13. फ़ादर बुल्के को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग किस आधार पर कहा गया है ?
अथवा
फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया ?
उत्तरः भारत आकर धर्माचार की पढ़ाई की और कोलकाता से बी. ए. तथा इलाहाबाद से एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। साथ ही प्रयाग विश्वविद्यालय से ‘रामकथा: उत्पत्ति और विकास’ विषय पर शोध प्रबंध तैयार किया। वे हिन्दी और संस्कृति के विभागाध्यक्ष रहे। उन्हें हिन्दी से विशेष लगाव था और उसे राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे।

प्रश्न 14. फ़ादर बुल्के भारतीयता में पूरी तरह रच-बस गए। ऐसा उनके जीवन में कैसे सम्भव हुआ होगा ? अपने विचार लिखिए।
उत्तरः फ़ादर बुल्के का भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रति सम्मान व संन्यास ग्रहण करने की इच्छा और भारत की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कारण ऐसा सम्भव हुआ।

प्रश्न 15. फादर कामिल बुल्के का देहांत कब हुआ और उन्हें कहाँ दफनाया गया? उनकी अंतिम यात्रा के समय उपस्थित गणमान्य विद्वानों की उपस्थिति किस बात का प्रमाण है ?
उत्तरः 18 अगस्त, 1982 को दिल्ली में कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रग़ाह में दफनाया गया। ढेर सारे लोग उपस्थित थे जिनमें डाॅविजयेन्द्र स्नातक, डाॅ. सत्यप्रकाश आदि की उपस्थिति उनके व्यक्तित्व की श्रेष्ठता तथा डाॅ. रघुवंश साहित्य में उनके योगदान का प्रमाण है।
व्याख्यात्मक हल:
फादर कामिल बुल्के का देहान्त 18 अगस्त, 1982 को हुआ था। उन्हें दिल्ली में कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रग़ाह में दफनाया गया था। उनकी अंतिम यात्रा में ढेर सारे लोग उपस्थित थे जिनमें डाॅ. विजयेन्द्र स्नातक, डाॅ. सत्यप्रकाश आदि भी सम्मिलित थे। इन गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति उनके व्यक्तित्व की श्रेष्ठता तथा डाॅ. रघुवंश साहित्य में उनके योगदान का प्रमाण है।

प्रश्न 16. लेखक की दृष्टि में फादर का जीवन किस प्रकार का था ?
उत्तरः वे संन्यासी होते हुए भी बहुत आत्मीय स्नेही और अपनत्व भरे थे, वे राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रबल समर्थक थे, वे करुणावान थे, मुख पर करुणा और सांत्वना के शांतिदायक भाव विराजमान रहते थे।

प्रश्न 17. लेखक ने फ़ादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है ?
उत्तरः मानवीय गुणों से युक्त, करुणा की भावना से परिपूर्ण, मानवों के प्रति कल्याण की भावना, अपनत्व, ममता, करुणा, प्रेम, वात्सल्य तथा सहृदयता के गुणों के कारण मानवीय करुणा की दिव्य चमक कहा गया है।

प्रश्न 18. ”मानवीय करुणा की दिव्य चमक“ शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः रगों में दूसरों के लिए मिठास, प्रभु में आस्था, ममता एवं अपनत्व की साकार प्रतिमा, संकल्पशील, निर्लिप्त, वत्सल हृदय, सात्विक प्रकति आदि के कारण ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ शीर्षक सार्थक’। 

व्याख्यात्मक हल:

फादर कामिल बुल्के मानवीय करुणा के प्रतीक थे। इनका हृदय पीड़ित व्यक्तियों के लिए करुणा से परिपूर्ण रहता। प्रभु में उन्हें गहरी आस्था थी। वे दुःखी व्यक्ति को अपार ममता व शांति प्रदान करते थे। दृढ़ संकल्प से युक्त फादर अपने सहज मानवीय गुणों से शीर्षक को सार्थकता प्रदान करते हैं।

परिमल की गोष्ठियों में फादर की क्या स्थिति थी लेखक तथा अन्य प्रतिभागियों के साथ उनके सम्बन्ध कैसे थे?

प्रश्न 3. 'परिमल' की गोष्ठियों में फ़ादर की क्या स्थिति थी ? लेखक तथा अन्य प्रतिभागियों के साथ उनके संबंध कैसे थे ? उत्तरः फ़ादर की स्मृति की विशेषता बताने के लिये पारिवारिक रिश्ते में सभी बंधे थे जिसमें फ़ादर बड़े थे

परिमल की गोष्ठियों में गंभीर बहस कौन करते थे?

Answer: 'परिमल' एक साहित्यिक संस्था है जो लेखक, फ़ादर बुल्के और उनके साथियों ने मिलकर बनाई थी। फ़ादर 'परिमल' के गोष्ठियों में गंभीर बहस करते थे तथा लेखक और उसके साथियों के रचनाओं पर अपनी स्पष्ट राय व्याक्त करते थे

परिमल के बारे में आप क्या जानते हैं?

'परिमल' इलाहाबाद की एक साहित्यिक संस्था है, जिसमें युवा और प्रसिद्ध साहित्य प्रेमी अपनी रचनाएँ और विचार एक-दूसरे के समक्ष रखते थे। लेखक को परिमल के दिन इसलिए याद आते हैं, क्योंकि फ़ादर भी 'परिमल' से जुड़े।

परिमल संस्था के बड़े कौन थे?

इलाहाबाद में लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, डॉ, रघुवंश, फादर कामिल बुल्के और अन्य बड़े साहित्यकार इसमें भाग लिया करते थे। डॉ. बुल्के ने .