उच्चरित ध्वनि संकेतों की सहायता से भाव या विचार की पूर्ण अथवा जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता या सहयोग करते हैं, उस यादृच्छिक रूढ़ ध्वनि-संकेतों की प्रणाली को भाषा कहते हैं’’। यहां तीन बातें विचारणीय हैं- Show
भाषा की परिभाषाभाषा की परिभाषा इस प्रकार दी गई है-
भाषा की प्रकृतिभाषा का उपयोग संप्रेषण तथा अन्य क्रिया के लिए होता है भाषा एवं परम्परा आधारित तंत्र है। समुदाय के सदस्यों ने संप्रेषण एवं अन्य क्रिया के लिए जो तंत्र विकसित किया है, वह परम्पराओं पर आधारित है। भाषा में वाचिक ध्वनि या संकेत के रूप में उपयोग की जाती है। मातृभाषा सीखते समय बालक को ध्वनि विशेष का ध्यान रखना होगा। भाषा सीखने की आयु में बालक किसी भी भाषा की ध्वनियों का उच्चारण सीख सकता है। किसी एक प्राणी या वस्तु के लिए अलग-अलग भाषाओं में अलग शब्दों का उपयोग होता है। उदाहरणार्थ जिसे हिन्दी में हाथी के नाम से जाना जाता है, उसी को अंग्रेजी में एलिफेंट के नाम से जाना जाता है। बालक में भाषा अर्जन की नैसर्गिक क्षमता होती है इसमें माला पिरोए हुए फूलों के समान शब्दों की श्रृखंला नहीं होती है। बालक की अवस्था जब एक वर्ष की होती है, तब बोलना शुरू करता है और तीन वर्ष की आयु तक चार-पाँच शब्दों के व्याकरण सम्मत वाक्यों का उपयोग करने लगता है। चार वर्ष की आयु के बाद उसे अपनी भाषा के लिखित उपयोग वाले मिश्रित वाक्यों की संरचना करने लगता है। छ: वर्ष की आयु तक अभिव्यक्ति की क्षमता सौ फीसदी होने लगती है। भाषा का महत्वभाषा मनुष्य को अन्य पशुओं से अलग करती है पशु केवल वर्तमान की घटना अथवा आवश्यकता की अभिव्यक्ति के लिए संप्रेषण का उपयोग करते हैं मनुष्य अपने वर्तमान की ही नहीं वरन् भूतकाल की घटना और भविष्य की संभावित घटनाओं का संप्रेषण भाषा के माध्यम से करते हैं। आज से हजारों वर्ष पहले पशुओं की अनेक प्रजातियों एवं मनुष्य ने समूह में रहना शुरू किया। भाषा मनुष्य को अन्य पशुओं से अलग करती है। भाषा समुदाय की परम्परा एवं संस्कृति की निरंतरता बनाये रखने का साधन है। अपने पूर्वजों की जीवनचर्या उनकी सामाजिक परम्पराओं आदि की जानकारी आज भी हमें मिलती है। भाषा ही चिंतन एवं मनन का माध्यम है। भाषा की विशेषताएंमूल रूप से 9 अभिलक्षणों की चर्चा की जाती है - 1. यादृच्छिकता- ‘यादृच्छिकता़’ का अर्थ है -माना हुआ । यहां मानने का अर्थ व्यक्ति द्वारा नहीं वरन् एक विशेष समूह द्वारा मानना है । एक विशेष समुदाय किसी भाव या वस्तु के लिए जो शब्द बना लेता है उसका उस भाव से कोई संबंध नहीं होता । यह समाज की इच्छानुसार माना हुआ संबंध है इसलिए उसी वस्तु के लिए भाषा में दूसरा शब्द
प्रयुक्त होता है ।भाषा में यह यादृच्छिकता शब्द और व्याकरण दोनों रूपों में मिलती है । अत: यादृच्छिकता भाषा का महत्वपूर्ण अभिलक्षण है । 2. सृजनात्मकता- मानवीय भाषा की मूलभूत विशेषता उसकी सृजनात्मकता है। अन्य जीवों में बोलने की प्रक्रिया में परिवर्तन नहीं होता पर मनुष्य शब्दों और वाक्य-विन्यास की सीमित प्रक्रिया से नित्य नए नए प्रयोग करता रहता है ।सीमित शब्दों को ही भिन्न भिन्न ढंग से प्रयुक्त कर वह अपने भावों को अभिव्यक्त करता है । यह भाषा की
सृजनात्मकता के कारण ही संभव हो सका है । सृजनात्मकता को ही उत्पादकता भी कहा जाता है । 3. अनुकरणग्राहता- मानवेतर प्राणियों की भाषा जन्मजात होती है ।तथा वे उसमें अभिवृद्धि या परिवर्तन नहीं कर सकतें ंिकंतु मानवीय -भाषा जन्मजात नहीं होती । मनुष्य भाषा को समाज में अनुकरण से धीरे धीरे सीखता है ।अनुकरण ग्राह्य होने के कारण ही मनुष्य एक से अधिक भाषाओं को भी सीख लेता है ।यदि भाषा अनुकरण ग्राह्य न होती तो मनुष्य जन्मजात भाषा तक ही सीमित रहता । 4. परिवर्तनशीलता- मानव भाषा परिवर्तनशील होती है । वही शब्द दूसरे युग तक आते आते नया रूप ले लेता है ।पुरानी भाषा में इतने परिवर्तन हो जाते हैं। कि नई भाषा का उदय हो जाता है ।संस्कृत से हिन्दी तक की विकास यात्रा भाषा की परिवर्तनशीलता का उदाहरण है । 5. विविक्तता- मानव भाषा विच्छेद है । उसकी संरचना कई घटकों से होती है ।ध्वनि से शब्द और शब्द से वाक्य विच्छेद घटक होते है। इस प्रकार अनेक इकाइयों का योग होने के कारण मानव भाषा को विविक्त कहा
जाता है । 6. द्वैतता- भाषा में किसी वाक्य में दो स्तर होते हैं । प्रथम स्तर पर सार्थक इकाई होती है ।और दूसरे स्तर पर निरर्थक ।कोई भी वाक्य इन दो स्तरों के योग से बनता है ।अत: इसे द्वैतता कहा जाता है । भाषा में प्रयुक्त सार्थक इकाइयों को रूपिम और निरर्थक इकाइयों को स्वनिम कहा जाता है ।स्वनिम निरर्थक इकाइयां होने पर भी सार्थक इकाइयों का निर्माण करती हैं ।इसके साथ ही ये निरर्थक इकाइयांॅ अर्थ भेदक भी होती हैं ।जैसे क+अ+र+अ में चार स्वनिम है जो निरर्थक
इकाइयां हैं पर कर रूपिम सार्थक इकाई हैं । इसे ही ख+अ+र+अ कर दे तो खर रूपिम बनेगा किंतु ‘कर’ और ‘खर’ में अर्थ भेदक इकाई रूपिम नहीं स्वनिम क और ख है। इस प्रकार रूपिम अगर अर्थद्योतक इकाई है तो स्वनिम अर्थ भेदक । इन दो स्तरों से भाषा की रचना होने के कारण भाषा को द्वैत कहा गया है । 7. भूमिकाओं का पारस्परिक परिवर्तन- भाषा में दो पक्ष होते हैं - वक्ता और श्रोता। वार्ता के समय दोनों पक्ष अपनी भूमिका को परिवर्तित करते रहते हैं। वक्ता श्रोता और श्रोता वक्ता होते रहते
हैं। इसे ही भूमिकाओं का पारस्परिक परिवर्तन कहते है । 8. अंतरणता- मानव भाषा भविष्य एवं अतीत की सूचना भी दे सकती है ।तथा दूरस्थ देश का भी । इस प्रकार अंतरण की विशेषता केवल मानव भाषा में है । संदर्भ -
प्रकृति से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं आपके क्या विचार है?5 चीँजे जो हम प्रकृति से सीख सकते है. 1) पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नही : ... . 2) कमल किचड़ मे भी रहकर अपना अलग पहचान बनाता है : ... . 3) नदी का बहाव ऊँचाई से नीचे की ओर होता है : ... . 4) ऊँचे पर्वतों मे आवाज का परावर्तन: ... . 5) छोटे पौधो के अपेक्षा विशाल पेड़ को तैयार होने मे ज्यादा समय लगता है: ... . Pritam Kant.. प्रकृति हमें क्या क्या देते हैं?प्रकृति एक प्राकृतिक पर्यावरण है जो हमारे आसपास है, हमारा ध्यान देती है और हर पल हमारा पालन-पोषण करती है। ये हमारे चारों तरफ एक सुरक्षात्मक कवच प्रदान करती है जो हमें नुकसान से बचाती है। हवा, पानी, जमीन, आग, आकाश आदि जैसी प्रकृति के बिना हमलोग इस काबिल नहीं है कि धरती पर रह सके।
प्रकृति हमारे लिए क्या क्या करती है क्या हम भी प्रकृति के लिए कुछ करते है यदि हाँ तो किस रूप में?प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। मनुष्य के लिए धरती उसके घर का आंगन, आसमान छत, सूर्य-चांद-तारे दीपक, सागर-नदी पानी के मटके और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं। इतना ही नहीं, मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है।
हमें प्रकृति से क्या क्या शिक्षा लेनी चाहिए?प्रकृति हमें शांति,संघर्ष,गरिमा,समानता,रचनात्मकता,दयालुता,उम्मीद, उत्कर्ष और समानता की प्रेना देती है,प्रकृति हमें पारदर्शिता की सीख देती है। प्रकृति हमें निष्काम भाव से सेवा करने का संदेश देती है।
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