प्रकाश की तरंग धैर्य क्या होती है? - prakaash kee tarang dhairy kya hotee hai?

न्यूटन के ही समकालीन जर्मन विद्वान हाइगेंज (Huyghens) ने,सन् 1678 ई. में 'प्रकाश का तरंग सिद्धान्त' (wave theory of light) का प्रतिपादन किया था। इसके अनुसार समस्त संसार में एक अत्यंत हलका और रहस्यमय पदार्थ ईथर (Ether) भरा हुआ है : तारों के बीच के विशाल शून्याकाश में भी और ठोस द्रव्य के अंदर तथा परमाणुओं के अभ्यंतर में भी। प्रकाश इसी ईश्वर समुद्र में अत्यंत छोटी लंबाईवाली प्रत्यास्थ (Elastic) तरंगें हैं। लाल प्रकाश की तरंगें सबसे लंबी होती हैं और बैंगनी की सबसे छोटी।

इससे व्यतिकरण और विवर्तन की व्याख्या तो सरलता से हो गई, क्योंकि ये घटनाएँ तो तरंगमूलक ही हें। ध्रुवण की घटनाओं से यह भी प्रगट हो गया कि तरंगें अनुदैर्ध्य (Longitudinal) नहीं, वरन्‌ अनुप्रस्थ (Transvers) हैं। हाइगेंज की तरंगिकाओं को परिकल्पना से अपर्वतन और परावर्तन तथा दोनों का योगपत्य भी अच्छी तरह समझ में आ गया। किंतु अब दो कठिनाइयाँ रह गईं। एक तो सरल रेखा गमन की व्याख्या न हो सकी। दूसरे यह समझ में नही आया कि ईथर की रगड़ के कारण अगणित वर्षो से तीव्र वेग से घूमते हुए ग्रहों और उपग्रहों की गति में किंचिन्मात्र भी कमी क्यों नहीं होती। इनसे भी अधिक कठिनाई यह थी कि न्यूटन जैसे महान्‌ वैज्ञानिक का विरोध करने का साहस और सामर्थ्य किसी में न था। अत: प्राय: दो शताब्दी तक कणिकासिद्धांत ही का साम्राज्य अक्षुण्ण रहा।

सन्‌ 1807 में यंग (Young) ने व्यतिकरण का प्रयोग अत्यंत सुस्पष्ट रूप में कर दिखाया। इसके बाद फ़ेनल (Fresnel) ने तरंगों द्वारा ही सरल रेखा गमन की भी बहुत अच्छी व्याख्या कर दी। 1850 ई. में फूको (Foucalult) ने प्रत्यक्ष नाप से यह भी प्रमाणित कर दिया कि जल जैसे अधिक घनत्वावाले माध्यमों में प्रकाशवेग वायु की अपेक्षा कम होता है। यह बात कणिकासिद्धांत के प्रतिकूल तथा तरंग के अनुकूल होने के कारण तरंगसिद्धांत सर्वमान्य हो गया। इसके बाद तो इस सिद्धांत के द्वारा अनेक नवीन और आश्चर्यजनक घटनाओं की प्रागुक्तियाँ भी प्रेक्षण द्वारा सत्य प्रमाणित हुई।

अब प्रश्न यह रहा कि ईथर किस प्रकार का पदार्थ है। यह विदित है कि किसी भी प्रत्यास्थ द्रव में

तरंग का वेग =
-- (१)

जहाँ

P आयतन प्रत्यास्थता गुणांक (बल्क मॉडलस) ; घनत्व

यदि तरंग अनुदैर्ध्य है तो v = ((K + 4 n /3) / p) 1/2 -- (२)

यदि तरंग अनुप्रस्थ है तो v = (n / p) 1/2 -- (३)

संसार में कोई भी द्रव्य ऐसा ज्ञात नहीं है जिसकी प्रत्यास्थता तथा घनत्व के मान ऐसे हों कि उसकी तरंग का वेग प्रकाश के ज्ञात वेग 3 x 108मी. प्रति सेकंड हो सके। अत: प्रकाश तरंग का माध्यम द्रव्य नहीं हो सकता। वह कोई विलक्षण पदार्थ है और इन तरंगों की अनुप्रस्थता के कारण यह भी निर्विवाद है कि ईथर कोई ठोस अथवा जेली (Jelly) के सदृश अर्धठोस (Semisolid) पदार्थ है, क्योंकि द्रवों और गैसों में दृढ़ता के अभाव के कारण अनुप्रस्थ तरंग चल ही नहीं सकती। इसके अतिरिक्त प्रकाश की किसी भी प्रकार का अनुदैर्ध्य तरंगों का हमें पता नहीं लगा है। अत: संभवत: ऐसी तरंगों का वेग अनंत होता है, अर्थात्‌ समीकरण (2) के अनुसार ईथर का K = अनन्त है और ईथर अंसपीड्य (Incompressible) है। फिर भी इस ठोस और असंपीड्य पदार्थ के द्वारा ग्रहों के वेग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस कठिनाई का समाधान केल्विन (Kelvin) ने यह किया कि ईथर का घन्त्व p और दृढ़ता n दोनों ही अत्यंत कम हैं, किंतु उनका अनुपात ऐसा है कि समीकरण (3) के अनुसार तरंग वेग 3 x 108 मी. प्रति सेकंड हो जाता है।

विभिन्न पारदर्शक पदार्थो में प्रकाश के विभिन्न वेगों के विषय में निम्नलिखित तीन सिद्धांत बनाए गए थे :

(क) फ्रेनेल का सिद्धांत : सब द्रव्यों में ईथर की प्रत्यास्थता, K बराबर होती है, किंतु उसके घनत्व p, में फर्क होता है।

(ख) मैकुला (Macullah) का सिद्धांत : सब द्रव्यों में ईथर का घनत्व बराबर रहता है, किंतु प्रत्यास्थता में फर्क होता है।

(ग) केलिव्न का सिद्धांत : अनुदैर्ध्य तरंग का वेग अनन्त के स्थान में 0 माना गया। फलत: समीकरण (2) K + 4/3n = 0, अर्थात्‌ K = - 4/3n. इसका अर्थ यह है कि ईथर का K ऋणात्मक है। वह असंपीड्य नहीं, किंतु संकुचनशील (Contractile) है। उसका आयतन कम करने के लिये उसपर दबाव बढ़ाना नहीं पड़ता वरन्‌ घटना पड़ता है।

किंतु इन तीनों में से एक भी सिद्धांत प्रेक्षण की कसौटी पर ठीक न उतरा। यह सत्य है कि फ्रेनेल ने अपने सिद्धांत से पारदर्शक पदार्थो द्वारा अपवर्तित तथा परावर्तित किरणों की तीव्रता के संबंध में वे विख्यात सूत्र प्राप्त कर लिय थे जो प्रेक्षण द्वारा सत्य प्रमाणित हो गए हैं। किंतु ऐसा एक गलती के कारण हुआ था, जो सौभाग्यवश उन्होंने कर दी थी। जब ग्रीन (Green) ने उस भूल को सुधारने का प्रयत्न किया, तो परिणाम बिल्कुल असत्य निकले।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • प्रकाश का कणिका सिद्धान्त
  • प्रकाश का क्वाण्टम सिद्धान्त

साइन-आकारीय अनुप्रस्थ तरंग का तरंगदैर्घ्य, λ

भौतिकी में, कोई साइन-आकार की तरंग, जितनी दूरी के बाद अपने आप को पुनरावृत (repeat) करती है, उस दूरी को उस तरंग का तरंगदैर्घ्य (wavelength) कहते हैं। 'दीर्घ' (= लम्बा) से 'दैर्घ्य' बना है।

तरंगदैर्घ्य, तरंग के समान कला वाले दो क्रमागत बिन्दुओं की दूरी है। ये बिन्दु तरंगशीर्ष (crests) हो सकते हैं, तरंगगर्त (troughs) या शून्य-पारण (zero crossing) बिन्दु हो सकते हैं। तरंग दैर्घ्य किसी तरंग की विशिष्टता है। इसे ग्रीक अक्षर 'लैम्ब्डा' (λ) द्वारा निरुपित किया जाता है। इसका SI मात्रक मीटर है।

किसी तरंग के तरंगदैर्घ्य (λ), तरंग के वेग (v) तथा तरंग की आवृति (f) में निम्नलिखित सम्बन्ध होता है-

अनुक्रम

  • 1 विद्युतचुम्बकीय माध्यम में तरंगदैर्घ्य
  • 2 डी-ब्रागली तरंगदैर्घ्य
  • 3 विभिन्न रंग के प्रकाश की तरंगदैर्घ्य
  • 4 इन्हें भी देखें
  • 5 बाहरी कड़ियाँ

विद्युतचुम्बकीय माध्यम में तरंगदैर्घ्य[संपादित करें]

डी-ब्रागली तरंगदैर्घ्य[संपादित करें]

इसे विशिष्ट आपेक्षिकता से मिला कर इस रूप में भी लिखा जाता है:

विभिन्न रंग के प्रकाश की तरंगदैर्घ्य[संपादित करें]

रंगतरंगदैर्घ्य
लाल ~ 625-740 nm
नारंगी ~ 590-625 nm
पीला ~ 565-590 nm
हरा ~ 500-565 nm
आसमानी ~ 485-500 nm
नीला ~ 440-485 nm
बैंगनी ~ 380-440 nm

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • तरंग
  • विद्युतचुम्बकीय तरंगें

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • Conversion: Wavelength to Frequency and vice versa – Sound waves and radio waves
  • Teaching resource for 14–16 years on sound including wavelength
  • The visible electromagnetic spectrum displayed in web colors with according wavelengths

प्रकाश की तरंग धैर्य क्या है?

वास्तव में प्रकाश एक प्रकार की उर्जा है, जो विद्युत् चुम्बकीय तरंग के रूप में संचरित होती है और जिसका ज्ञान हमें नेत्रों द्वारा प्राप्त होता है। इसका तरंगदैर्ध्य 3900A° से 7800 A° के बीच होता है।

प्रकाश की तरंग दैर्ध्य परास कितनी होती है?

दृश्य प्रकाश का तरंग दैर्ध्य परास 400 nm से 700 nm है।

प्रकाश कौन सी तरंग है?

प्रकाश-तरंग एक अनुप्रस्थ तरंग है क्योंकि इसके घटक इसके प्रसार की दिशा के लंबवत कंपन करते हैं।

तरंग धैर्य सबसे ज्यादा किसकी होती है?

लाल वर्ण प्रकाश की सर्वाधिक लम्बी तरंग दैर्घ्य वाली रोशनी या प्रकाश किरण को कहते हैं, जो कि मानवीय आँख द्वारा दृश्य हो। इसका तरंग दैर्घ्य लगभग625–740 nm तक होता है

संबंधित पोस्ट

Toplist

नवीनतम लेख

टैग