6 फादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है कैसे? - 6 phaadar bulke ne sannyaasee kee paramparaagat chhavi se alag ek nayee chhavi prastut kee hai kaise?

मानवीय करुणा की दिव्य चमक का सारांश, मानवीय करुणा की दिव्य चमक का सार

संस्मरण स्मृतियों से बनता है और स्मृतियों की विश्वसनीयता उसे महत्त्वपूर्ण बनाती है। फादर कामिल बुल्के पर लिखा सर्वेश्वर का यह संस्मरण 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' इस कसौटी पर खरा उतरता है। अपने को भारतीय कहने वाले फादर बुल्के जन्मे तो बेल्जियम (यूरोप) के रैम्सचैपल शहर में जो गिरजों, पादरियों, धर्मगुरुओं और संतों की भूमि कही जाती है परंतु उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया भारत को। फादर बुल्के एक संन्यासी थे परंतु पारंपरिक अर्थ में नहीं। सर्वेश्वर का फ़ादर बुल्के से अंतरंग संबंध था जिसकी झलक हमें इस संस्मरण में मिलती है। लेखक का मानना है कि जब तक रामकथा है, इस विदेशी भारतीय साधु को याद किया जाएगा तथा उन्हें हिंदी भाषा और बोलियों के अगाध प्रेम का उदाहरण माना जाएगा।

मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ के आरंभ में लेखक बताता है कि फादर बुल्के की मृत्यु एक जहरीले फोड़े के कारण हुई थी। लेखक को यह समझ में नहीं आ रहा था कि जिसके अंदर प्रेम का असीम मिठास भरा हुआ था उसमें जहर कहाँ से आया?

भगवान में आस्था और विश्वास रखने वाले के अंतिम दिन इतने घोर कष्ट में व्यतीत हुए? लेखक बताता है कि फादर का शरीर लम्बा, चौड़ा था, रंग गौर था, एकदम सफेद दाढ़ी और नीली आँखें थी। वे एक मिलनसार व्यक्ति थे। उनमें ममत्व और अपनत्व की भावना थी। फादर को याद करना उदासी से भरे शांत संगीत जैसा था। वे व्यवहार में निर्मलता और कार्य करने का दृढ़ संकल्प देने वाले थे। 'परिमल' पत्रिका के माध्यम से लेखक की उनसे भेट हुईं थी और धीरे-धीरे उनसे पारिवारिक संबंध बन गए थे। वे गंभीर विषयों पर बहस करते और बेहिचक उचित सलाह भी देते। वे प्रत्येक उत्सव पर बड़े भाई और पुरोहित के रूप में आशीर्वाद देने आते। उनका सानिध्य देवदार के वृक्ष के समान सघन, विशाल एवं शीतलता प्रदान करने वाला

मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ में लेखक ने फादर बुल्के का उस समय का परिचय दिया है जब वे इलाहाबाद की सड़कों पर साइकिल से आते-जाते देखे जाते थे। वे अनुभवी थे। उन्हें कभी क्रोध की मुद्रा में नहीं देखा गया। दूसरों के प्रति उनके मन में हमेशा प्रेम रहता था। उन्हें देखकर लेखक के मन में विचार उठता कि वे इंजिनियरिंग छोड़कर संन्यासी क्यों बन गए। उनका भरा-पूरा परिवार था। उनकी नज़रों में उनकी जन्मभूमि रैम्स चैपल बहुत सुंदर है। उन्हें अपनी माँ की बहुत याद आती है। भारत आने के बाद वे दो-तीन बार ही बेल्जियम गए थे। उनके बचपन को देखकर उनकी माँ ने कहा था कि वह हमारे हाथ से निकल चुका है। संन्यास लेते समय उन्होंने भारत आने की शर्त रखी।

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फादर बुल्के ने भारत आकर पादरियों के बीच धर्माचरण की पढ़ाई करने के बाद कोलकाता से बी०ए० और इलाहाबाद एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1950 में उन्होंने 'रामकथा: उत्पत्ति और विकास पर शोध कार्य किया। वे जेवियर्स कॉलेज राँची में हिन्दी और संस्कृत विभाग के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने अंग्रेजी-हिन्दी कोश तैयार किया और बाइबिल का अनुवाद किया। रांची में बीमार होने के कारण वे पटना आ गए और 73 वर्ष की आयु स्वर्ग सिधार गए। संबंधों की घनिष्टता के कारण वे संन्यासी होते हुए भी संन्यासी नहीं लगते थे। वे दिल्ली आने पर लेखक से अवश्य मिलते थे। उनकी इच्छा थी कि हिन्दी राष्ट्रभाषा बने। हिन्दी के प्रति लोगों की उदासीनता देखकर वे झुंझला उठते थे। वे जिससे भी मिलते उसके घर-परिवार, सुख-दुख की अवश्य पूछते थे। बड़े-से-बड़े दुख में भी उनके द्वारा बोले गए सांत्वना के शब्द जीवन में आशा का संचार करते थे।

मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ में लेखक को इस बात का पश्चाताप है कि फादर बुल्के बीमारी की अवस्था में दिल्ली आए और उन्हें पता भी नहीं चला। लेखक को उनके दर्शन ताबूत में ही हुए। उनको दिल्ली के कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में 18 अगस्त, 1982 को प्रबुद्ध साहित्यकारों, विज्ञान-शिक्षकों की उपस्थिति में रांची के फादर पास्कल तोयना के द्वारा पूरे विधि-विधान के साथ कब्र में उतारा गया। श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए फादर पास्कल ने कहा, “फादर बुल्के अब जा रहे हैं। इसी धरती से ऐसे रत्न और पैदा हों।" सभी ने उनको नमन दिया। लेखक का कहना है कि शायद ही फादर बुल्के ने सोचा हो कि उनकी मृत्यु पर कोई रोएगा भी, कितु वहाँ उपस्थित सभी लोग रो रहे । जिनकी गिनती नहीं की जा सकती थी।

लेखक दुख व्यक्त करता हुआ कहता है कि छायादार फल-फूल, गंधयुक्त, सबसे अलग और सबका बनकर रहने वाला, जो सबको मानवता का पाठ पढ़ाता था, वह प्रकृति में विलीन हो गया। उनकी पवित्र यादें सबके दिलों में यज्ञ की पवित्र अग्नि की भाँति सबमें बसी हुई है। लेखक उस महान आत्मा को श्रद्धापूर्वक नमस्कार करता है।

मानवीय करुणा की दिव्य चमक के प्रश्न उत्तर 

1-फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?

उत्तर- जिस प्रकार देवदार का वृक्ष आकार में लम्बा चौड़ा और सघन होकर सबको शीतल छाया प्रदान करता है. कई तरह से उपयोगी सिद्ध होता है. ठीक उसी प्रकार फादर बुल्के के सबके साथ घनिष्ठ संबंध बन जाता था व सभागार में मनाए जाने वाले उत्सवों में बड़े भाई और पुरोहित के रूप में आकर आशीर्वाद देते थे उनके चेहरे और आँखों से वात्सल्य टपकता प्रतीत होता था। 

2-फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है?

उत्तर- फादर बुल्के ने भारत आकर दो साल पादरियों से धर्माचार की पढ़ाई की, कोलकाता से बी०ए० और इलाहाबाद एम०ए० की उपाधि प्राप्त की। प्रयाग विश्वविद्यालय से 'रामकथा: उत्पत्ति और विकास' शीर्षक पर शोध प्रबंध किया। सेंट जेवियर्स कॉलेज रांची में हिन्दी और संस्कृत के विभागाध्यक्ष रहे। उनका हिन्दी से विशेष लगाव था और हिन्दी की राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। इन सभी तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि फादर बुल्के भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं। 

3- पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फ़ादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है?

उत्तर- फादर बुल्के हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने के लिए चिंतित रहते थे। वे जहाँ कहीं भी मंच पर जाते हिन्दी के पक्ष में अकाट्य तर्क देते। उन्हें केवल इसी बात पर झुँझलाते हुए देखा गया था कि लोग हिन्दी क्षेत्र के होकर भी हिन्दी की उपेक्षा कर रहे थे। हिन्दी की उपेक्षा करने का दुख और हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने को उनकी चाह उनके हिन्दी प्रेम को प्रकट करती है।

4- इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- फादर कामिल बुल्के का जन्म बेल्जियम के रैम्स चैपल नामक नगर में हुआ अवश्य था किंतु आचरण, व्यवहार आदि से वे विशुद्ध भारतीय प्रतीत होते थे। फादर बुल्के मिलनसार व्यक्ति थे। वे एक बार जिससे मिल लेते थे उसे भूलते नहीं थे। दूसरी के प्रति उनके मन में असीम वात्सल्य और अपनत्व भरा हुआ था। वे करुणा रूपी निर्मल जल था उनके उपदेश और विचार कार्य करने का दृढ़ संकल्प देते थे। उनको कभी क्रोध करते हुए नहीं देखा गया। हमेशा दूसरों पर उनका प्यार और ममता ही छलकती देखी जाती थी वे फल-फूल, गंध युक्त ऊँचे-लंबे-चौड़े महाकाय वृक्ष के समान सबका आश्रय स्थल थे। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण वे संन्यासी होते हुए भी संन्यासी नहीं थे।

5- लेखक ने फादर बुल्के को 'मानवीय करूणा की दिव्य चमक' क्यों कहा है?

उत्तर- लेखक द्वारा फादर बुल्के को 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' कहा गया है। फादर बुल्के करुणा से भरे शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। उनके मन में सबके प्रति प्रेम और वात्सल्य था। वे सभी के सुख-दुख में सम्मिलित होते थे उनके द्वारा कहे गए सांत्वना के दो शब्द बड़े-से-बड़े दुख को सहन करने की शक्ति देते थे संन्यासी होने पर भी सबसे मधुर पारिवारिक घनिष्ट संबंध बना लेते थे। वे जल्दी से किसी को भूलते भी नहीं थे। सबसे अलग होकर भी वे सबके थे। 

6- फ़ादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है, कैसे?

उत्तर- सामान्यतः संन्यासी सांसारिक मोह-माया. सामाजिक संबंधों और वस्तुओं के उपभोग से विरक्त रहता है। जबकि फादर बुल्के संन्यासी होते हुए भी अपने मधुर, ममतामयी, स्नेह भरे स्वभाव से सबको अपना बनाते चले गए। सभी से परिवार के सदस्य के समान घनिष्ट संबंध बना लेते थे। सभी के उत्सवों में एक बडे भाई और पुरोहित की तरह आते और उन्हें अनेक तरह के आशीर्वाद देते। इस तरह फादर बुल्के ने संन्यासी की एक परंपरागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है।

7. आशय स्पष्ट कीजिए

(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि फादर बुल्के के इस संसार से विदा होने पर एक-दो आँखें नहीं बल्कि वहाँ उमड़ा पूरा जनसैलाब रो रहा था। फादर बुल्के ने तो अनुमान भी नहीं लगाया था कि उनको चाहने वाले इतने ज्यादा लोग होंगे।

(ख) फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि फादर बुल्के का संपूर्ण जीवन शांति और करुणा के भाव में व्यतीत हुआ। जिस प्रकार करुणा और उदासी से भरा शांत संगीत प्रेम की वेदना को उजागर करने का माध्यम बनता है, उसी प्रकार फादर बुल्के दूसरों की उदासी का विरेचन करने वाले थे। 

मानवीय करुणा की दिव्य चमक का रचना और अभिव्यक्ति

8.आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?

उत्तर- हमारे विचार में फादर बुल्के ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता से प्रभावित होकर भारत आने का मन बनाया होगा। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। भारत की संस्कृति ज्ञान, त्याग, अहिंसा, धर्म और शांति की संस्कृति है। यह देश ऋषि-मुनियों, धर्म-प्रवर्तकों तथा महान कवियों का देश है। 

9- 'बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि-रेम्सचैपल'-इस पंक्ति में फ़ादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ अभिव्यक्त होती हैं? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं?

उत्तर- 'बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि-रेम्स चैपल।' इस पक्ति के फादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति सम्मान, श्रद्धा, प्रेम और लगाव की भावनाएँ झलकती सभी प्राणी अपनी जन्मभूमि को जान से भी प्यारा मानते हैं। उसी तरह मैं भी मानता हूँ। मेरी जन्म भूमि सबसे सुदर है। जहाँ मेरा जन्म हुआ है, जिस मिट्टी में लोट-पोट कर बड़ा हुआ हूँ, जिस धरती के अन्न-जल ने मुझे पुष्ट किया है-उस जन्मभूमि को मैं कैसे भूल सकता हूँ। वह तो मुझे सबसे प्यारी है- "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"

मानवीय करुणा की दिव्य चमक का भाषा-अध्ययन

10. मेरा देश भारत विषय पर 200 शब्दों का निबंध लिखिए।

विद्यार्थी स्वयं करें

11- आपका मित्र हडसन एंड ऑस्ट्रेलिया में रहता है। उसे इस बार की गर्मी की छुट्टियों के दौरान भारत के पर्वतीय प्रदेशों के भ्रमण हेतु आमंत्रित करते हुए पत्र लिखिए।

विद्यार्थी स्वयं करें

12 निम्नलिखित वाक्यों में समुच्चयबोधक छाँटकर अलग लिखिए

(क) तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे।
(ख) माँ ने बचपन में ही घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया।
(ग) वे रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे।
(घ) उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।
(ड़)पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था लेकिन वो स्मृति में अकसर दब जाते।

उत्तर

क- और, 

ख- कि, 

ग- तो, 

घ- जो, 

ड़- लेकिन

मानवीय करुणा की दिव्य चमक के अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

1- मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ का उद्देश्य क्या है? 

उत्तर- मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ का उद्देश्य उस व्यक्ति का चित्रण करना है जो भारतीय न होते हुए भी भारत की संस्कृति-सभ्यता, भाषा को आत्मसात किया। इस पाठ का उद्देश्य फादर कामिल बुल्के के भारतीय जीवन का चित्रण करना है।

2- मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ का संदेश क्या है? 

उत्तर- मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ का संदेश यह है कि हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता को बनाए रखना चाहिए बोलचाल की भाषा में अधिकतर हिंदी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। हमें अपनी मातृभूमि से असीम प्यार करना चाहिए।

3- मानवीय करुणा की दिव्य चमक के लेखक कौन है? 

उत्तर_ मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ के लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना है। 

4- मानवीय करुणा की दिव्य चमक किसके जीवन पर आधारित है? 

उत्तर- मानवीय करुणा की दिव्य चमक फादर कामिल बुल्के के जीवन पर आधारित है। 

5- मानवीय करुणा की दिव्य चमक की विधा क्या है? 

उत्तर- मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ की विधा संस्मरण है।

6- फादर कामिल बुल्के का जन्म कहां हुआ था? 

उत्तर- फादर कामिल बुल्के का जन्म बेल्जियम के रैम्स्चैपल शहर में हुआ था।

7- फादर कामिल बुल्के की मृत्यु कैसे हुई? 

उत्तर- फादर कामिल बुल्के की मृत्यु जहरबाद अर्थात जहरीले फोड़े कारण हुई।


8- फादर कामिल बुल्के की मृत्यु कब और कहां हुई? 

उत्तर- फादर कामिल बुल्के की मृत्यु 8 अगस्त 1982 की सुबह दिल्ली में हुई।

 9- फादर कामिल बुल्के किस विषय पर किसके निर्देशन में और कहां से अपना शोध प्रबंध पूरा किया?

उत्तर- फादर कामिल बुल्के 'रामकथा :उत्पत्ति और विकास' विषय पर धीरेंद्र वर्मा के निर्देशन में प्रयाग से पूरा किया।

10- भारत आने के लिए पूछने पर फादर क्या जवाब देते थे?

उत्तर- भारत आने के लिए फादर से जब पूछा जाता था तो वह बड़ी सरलता से कह देते थे की 'प्रभु की इच्छा' वे यह भी बताते थे कि उनकी माँँ ने बचपन में ही कह दिया था कि यह लड़का अब तो गया हाथ से।

11- परिमल क्या है?

उत्तर-परिमल इलाहाबाद की एक साहित्यिक संस्था है। जिसमें युवा वर्ग और साहित्य प्रेमी अपने विचार अपनी रचनाओं के माध्यम से एक दूसरे के समक्ष रखते हैं।


12- लेखक ने फादर का शब्द चित्र किस प्रकार चित्रित किया है?

उत्तर- लेखक ने फादर का शब्द चित्र खींचते हुए लिखा है कि गोरा रंग, सफेद भूरी दाढ़ी, नीली आंखें, आतुर प्रेम से भरे हुए फादर लोगों के दिलो पर राज करते थे।


13- फादर बुल्के ने हिंदी उत्थान के लिए क्या क्या प्रयास किए?

उत्तर- फादर बुल्के ने हिंदी उत्थान के लिए निम्नलिखित प्रयास किए
उत्तर-
1-हिंदी भाषियों द्वारा हिंदी की उपेक्षा करने पर वे दुख प्रकट करते हैं।
2-फादर बुल्के हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने के लिए चिंतित रहते हैं।
3-फादर बुल्के हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए तरह-तरह के आंदोलन किए।
4-फादर बुल्के प्रत्येक मंच से हिंदी की दुर्दशा पर दुख प्रकट किए।

14-- मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ के आधार पर फादर की विशेषताएं बताइए?

उत्तर- मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ के आधार पर फादर की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
1-फादर को भारत और हिंदी से असीम प्रेम था।
2-फादर सुख-दुख में परिवार के सदस्यों की भांति सदैव खड़े रहते थे।
3-फादर अपने परिचितों एवं उनके परिवार वालों के साथ मधुर संबंध रखते थे।
4-फादर संकल्प के सन्यासी थे मन के नहीं।
5-फादर जिससे जो संबंध बना लेते थे उसको वह अंत तक निभाते थे।

15-- फादर और लेखक के पारस्परिक संबंधों का उल्लेख कीजिए

उत्तर- फादर और लेखक के बीच बहुत ही गहरे और आत्मीय संबंध थे। फादर जब भी दिल्ली आते लेखक से जरूर मिलते थे वे इलाहाबाद में जब आए तब लेखक से मिले - मानवीय करुणा की दिव्य चमक का क्या अर्थ है? 

उत्तर- दिव्य चमक अर्थात् दैवीय गुणों से युक्त फादर बुल्के समस्त मानव जाति के प्रति करुणा की भावना रखते थे।

मानवीय करुणा की दिव्य चमक का शब्दार्थ


विरल का अर्थ कम मिलने वाला
अकाट्य का अर्थ जो कट न सके अर्थात जिसकी बात को काटी न जा सके
लबालब का अर्थ भरा हुआ
आवेश का अर्थ जोश
करील का अर्थ झाड़ी के रूप में उगने वाला एक कटीला और बिना पत्ते का पौधा
ताबूत का अर्थ शव या मुर्दा ले जाने वाला संदूक या बक्सा
निर्लिप्त का अर्थ आसक्ति रहित या जो लिप्त न हो
गैरिक वसन का अर्थ साधुओं द्वारा धारण किए जाने वाले गेरुए रंग के वस्त्र
आतुर का अर्थ अधीर या उत्सुक
देहरी का अर्थ दहलीज
जहरबाद का अर्थ गैंग्रीन, एक तरह का जहरीला और कष्ट साध्य फोड़ा
पादरी का अर्थ ईसाई धर्म का पुरोहित या आचार्य
आजीवन का अर्थ जीवन भर
स्याही फैलाना मुहावरे का अर्थ लिखने का असफल प्रयास करना
खामोश का अर्थ चुप
बेबाक का अर्थ स्पष्ट
निर्मल का अर्थ स्वच्छ
अपरिचित का अर्थ अनजाने लोग
विधान का अर्थ तरीका या नियम
अस्तित्व का अर्थ उपस्थिति
यातना का अर्थ पीड़ा
मानवीय करुणा का अर्थ है मनुष्य के मन में उमड़ने वाली दया की भावना

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फादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरा छवि से अलग एक नई छवि प्रस्तुत की है कैसे?

फ़ादर बुल्के अपनी वेशभूषा और संकल्प से संन्यासी थे परंतु वे मन से संन्यासी नहीं थे। वे विशेष संबंध बनाकर नहीं रखते परंतु फादर बुल्के जिससे रिश्ता बना लेते थे उसे कभी नहीं तोडते थे। वर्षो बाद मिलने पर भी उनसे अपनत्व की महक अनुभव की जा सकती थी। जब वे दिल्ली जाते थे तो अपने जानने वाले को अवश्य मिलकर आते थे।

फादर बुल्के एक संन्यासी थे परंतु पारम्परिक अर्थ में हमें उन्हें संन्यासी क्यों नहीं कह सकते?

क्योंकि भले ही वह संन्यासी का कार्य किया भी तो वह एक पारंपरिक सन्यासी नहीं था। उन्होंने लोगों को हिंदी भाषा के महत्व को समझाने की कोशिश की। उन्होंने एक शब्दकोश भी लिखा था जिसे वे अपनी मृत्यु तक सुधारते रहे।

फादर संकल्प से संन्यासी थे मन से संन्यासी नहीं थे इस पंक्ति द्वारा लेखक क्या बताना चाहता है?

फादर संकल्प से सन्यासी थे, मन से नहींइस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि फादर बुल्के भारतीय सन्यासी प्रवृत्ति खरे नही उतरते थे। उन्होंने परंपरागत सन्यासी प्रवृत्ति से अलग एक नई परंपरा को स्थापित किया था। वह सन्यासियों जैसा प्रदर्शन नहीं करते थे, लेकिन अपने कर्मों से वह सन्यासी ही थे

लेखक नेफादर बल्ुकेको मानवीय करुणा की दिव्य चमक क्यों कहा है?

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना - मानवीय करुणा की दिव्या चमक लेखक ने फादर बुल्के को 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' क्यों कहा? फादर बुल्के के मन में अपने प्रियजनों के लिए असीम ममता और अपनत्व था। इसलिए लेखक ने फादर बुल्के को 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' कहा है

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