रोगाणुओं, जहरीले पदार्थों एवं अनावश्यक मात्रा में लवणों से युक्त पानी अनेक रोगों को जन्म देता है। बीमारियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रदूषित पानी का ही हाथ होता है। प्रति घंटे 1000 बच्चों की मृत्यु मात्र अतिसार के कारण हो जाती है जो प्रदूषित जल के कारण होता है। यही वजह है कि केन्द्र सरकार की ओर से लोगों का जीवन बचाने की दिशा में निरन्तर कार्य किया जा रहा है। चूँकि पेयजल ही जीवन का आधार है। इस वजह से सरकार पेयजल की शुद्धता पर विशेष ध्यान दे रही है। Show
भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, राष्ट्रीय स्वच्छता कवरेज 46.9 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह औसत केवल 30.7 प्रतिशत है। अभी भी देश की 62 करोड़ 20 लाख की आबादी यानी राष्ट्रीय औसत 53.1 प्रतिशत लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं। केवल ग्रामीण ही नहीं, बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी शौचालयों का अभाव है। इससे भी जल प्रदूषण बढ़ रहा है। हालांकि सरकार की ओर से राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान के तहत इस समस्या के समाधान का प्रयास किया जा रहा है। वास्तव में जल का शुद्ध होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके माध्यम से ही पूरे शरीर में पोषक तत्व जैसे कि विटामिन, मिनरल और ग्लूकोज प्रभावित होते हैं। खाना खाने के बाद उसे पचाने की क्रिया में पानी की अहम भूमिका होती है। ऐसी स्थिति में यदि शरीर को स्वच्छ जल न मिले तो जो कुछ भी खाया या पीया है, वह निरर्थक ही नहीं बल्कि जानलेवा साबित हो सकता है। क्योंकि पचाने की क्रिया में यदि हमारे शरीर में अशुद्ध जल मौजूद है तो वह अन्य खायी गई सामग्री को भी दूषित कर देता है। ऐसी स्थिति में पेयजल का शुद्ध होना बेहद जरूरी है। हर व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम 12 गिलास शुद्ध पेयजल ग्रहण करना चाहिए। ज्यादा पानी पीने से त्वचा में पर्याप्त नमी बनी रहती है और उसकी चमक बरकरार रहती है। पानी पीने से वजन भी नियंत्रित रहता है। प्यास बुझाने के अलावा, खाना बनाने जैसे तमाम काम पानी के बिना संभव नहीं हैं। कई लोगों की नजर में पानी की शुद्धता जरूरी नहीं होती। लेकिन आपकी यह सोच आपके और आपके परिवार के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। नहाने के पानी से लेकर पीने के पानी तक की शुद्धता मायने रखती है। जहाँ अशुद्ध पानी से त्वचा सम्बन्धी बीमारियों को न्यौता मिलता है। अगर आंकड़ों की मानें, तो पीने के पानी में 2100 विषैले तत्व मौजूद होते हैं। ऐसे में बेहतरी इसी में है कि पानी का इस्तेमाल करने से पहले इसे पूरी तरह से शुद्ध कर लिया जाए, क्योंकि सुरक्षा में ही सावधानी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक हर आठ सेकेंड में एक बच्चा पानी से सम्बन्धित बीमारी से मर जाता है। हर साल 50 लाख से अधिक लोग असुरक्षित पीने के पानी, अशुद्ध घरेलू वातावरण और मलमूत्र का अनुचित ढंग से निपटान करने से जुड़ी बीमारियों से मर जाते हैं। दुनिया भर में लगभग एक बिलियन लोगों को अभी स्वच्छ जल नहीं मिल रहा है और दो बिलियन से भी अधिक लोगों के पास मलमूत्र निपटान की पर्याप्त सुविधा नहीं है। ऐसी स्थिति में शुद्ध पेयजल संकट एक चुनौती भी है। इस चुनौती से निबटने के लिए सभी को अपने स्तर पर भागीदारी निभानी होगी। सन् 1992 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से एक दशक की स्थिति पर पेश की गई रिपार्ट के मुताबिक वर्ष 1981-1990 की अवधि में जल और स्वच्छता पर 133.9 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का निवेश किया गया, जिसमें से 55 प्रतिशत जल पर और 45 प्रतिशत स्वच्छता पर खर्च किया गया। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि शहरी क्षेत्रों में जल की आपूर्ति उपलब्ध कराने पर औसतन प्रतिव्यक्ति 105 अमेरिकी डालर और ग्रामीण क्षेत्रों में 50 अमेरीकी डाॅलर का खर्चा आता है, जबकि स्वच्छता पर शहरी क्षेत्रों में औसतन 145 अमेरिकी डालर और ग्रामीण क्षेत्रों पर 30 अमेरिकी डालर की लागत आती है। जहाँ तक पानी की शुद्धता का सवाल है तो प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 20 से 40 लीटर पानी घर से उचित दूरी पर उपलब्ध होना आवश्यक है। सुरक्षित पेयजल आपूर्ति के साथ ही उसका रखरखाव भी बहुत मायने रखता है। स्वच्छता का सम्बन्ध स्नान, कपड़े और रसोई के बर्तन धोने की सुविधाओं से भी है, जिन्हें स्वच्छ और समुचित नालीदार होना चाहिए। मलमूत्र निपटान और वयस्क और बच्चों दोनों के मल का दूर स्थान पर निपटान किया जाना चाहिए जिससे वह जलस्रोतों, भोजन या लोगों के संपर्क में न आ सके। मूत्र से सम्बन्धित रोगों के संचरण की शृंखला को तोड़ने के लिए व्यक्तिगत और घरेलू स्वच्छता के अच्छे मानकों का होना अनिवार्य है। जल निकायों के पर्यावरण प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव कम करने और मानव गतिविधियों की वजह से प्रभावित क्षेत्रों पर इसके प्रभाव को कम करने के लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इसके लिए सामूहिक भागीदारी जरूरी है। तमाम विकसित देश सामूहिक भागीदारी के जरिए अपने पेयजल को शुद्ध बनाने की प्रक्रिया में लगे हैं, लेकिन विकसित देशों में जागरुकता का अभाव होने की वजह से पेयजल शुद्धता पर उस तरह का ध्यान नहीं दिया जा सका है, जिसकी जरूरत है। हालाँकि सुनियोजित जल और स्वच्छता हस्तक्षेप ने अनेक रोगों को कम करने में प्रभावी असर दिखाया है। अकसर एक धारणा है कि घर के आसपास के खेतों में शौच जाने का सम्बन्ध जल शुद्धता से नहीं है, लेकिन 1990 में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि ग्रामीण इलाके में जहाँ बच्चे घर में ही अथवा घर के आसपास के खेत में शौच जाते हैं वहाँ बीमारी फैलने की सम्भावना ज्यादा रही है। कई अध्ययनों में परिवार में दस्त (अतिसार) और निवास स्थान के आसपास के क्षेत्रों में बच्चों के शौच करने की घटनाओं के बीच बीमारी बढ़ने का सीधा सम्बन्ध पाया गया है। जब इन परिवारों ने व्यक्तिगत स्वच्छता अपनाई तो बीमारी में कमी भी पाई गई। व्यक्तिगत और घरेलू स्वच्छता को बढ़ावा देने वाले हस्तक्षेप भी रोग को कम करने में प्रभावी रहे। विशेष रूप से, बच्चों के मल का निपटान करने, बच्चों को खाना खिलाने से पहले और भोजन तैयार करने से पहले साबुन से हाथ धोने से डायरिया में 33 प्रतिशत कमी पायी गई। पेयजल की गुणवत्तायदि हम पेयजल की गुणवत्ता की बात करें तो इसे दो हिस्से में बांटा गया है। एक रासायनिक, भौतिक और दूसरा सूक्ष्म जीवविज्ञानी। रासायनिक व भौतिक मानदंड़ों में भारी धातु, कार्बनिक यौगिकों का पता लगाकर ठोस पदार्थ (टीएसएस) और टर्बिडिटी (गंदलापन) को दूर करना है, तो सूक्ष्म जीव विज्ञान में कोलिफाॅर्म बैक्टीरिया, ई. कोलाई और जीवाणु की विशिष्ट रोगजनक प्रजातियाँ वायरस और प्रोटोजोन परजीवी को खत्म करना है। रासायनिक मानदंड में नाइट्रेट, नाइट्राइट और आर्सेनिक की मात्रा अधिक हुई तो स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं, जबकि सूक्ष्मजीवी सीधे-सीधे रोगजनक होते हैं। रोग उत्पन्न करने वाले जीवों के अतिरिक्त अनेक प्रकार के विषैले तत्व भी पानी के माध्यम से हमारे शरीर में पहुँचकर स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इन विषैले तत्वों में प्रमुख हैं- कैडमियम, लेड, मरकरी, निकल, सिल्वर, आर्सेनिक आदि। जल में लोहा, मैंगनीज, कैल्शियम, बेरियम, क्रोमियम, काॅपर, सीलियम, यूरेनियम, बोरान, तथा अन्य लवणों जैसे नाइट्रेट, सल्फेट, बोरेट, कार्बोनेट आदि की अधिकता से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जल में मैग्नीशियम व सल्फेट की अधिकता से आंतों में जलन पैदा होती है। नाइट्रेट की अधिकता बच्चों में मेटाहीमोग्लाबिनेमिया नामक बीमारी हो जाती है। तथा आंतों में पहुँचकर नाइट्रोसोएमीन में बदलकर पेट का कैंसर उत्पन्न कर देती है। प्लोरीन की अधिकता से फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो जाती है। इसी प्रकार कृषि क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली कीटनाशी दवाईयों एवं उर्वरकों के विषैले अंश जलस्रोतों में पहुंचकर स्वास्थ्य की समस्या को भयावह बना देते हैं। प्रदूषित गैसें कार्बन-डाई-आक्साइड तथा सल्फर- डाई-आक्साइड जल में घुसकर जलस्रोत को अम्लीय बना देते हैं।
कल-कारखाने आबादी से दूर हो। जानवरों-मवेशियों के लिए अलग-अलग टैंक और तालाब की व्यवस्था हो। नदियों, झरनों और नहरों के पानी को दूषित होने से बचाया जाए। इसके लिए घरेलू और कल-कारखानों के अवशिष्ट पदार्थोंं को जलस्रोत में मिलने से पहले भली-भांति नष्ट कर देना चाहिए। डिटर्जेंट्स का प्रयोग कम करके प्राकृतिक वनस्पति पदार्थ का प्रचलन करना होगा। इन प्रदूषणों को रोकने के लिए कठोर नियम बनाना होगा और उनका कठोरता से पालन करना होगा। मोटे तौर पर घरेलू उपयोग में पानी का प्रयोग करने से पहले यह आश्वस्त हो जाना चाहिए कि वह शुद्ध है या नहीं? यदि संदेह हो कि यह शुद्ध नहीं है तो उचित तरीकों से इसे शुद्ध कर लेना चाहिए। आर्सेनिक का मानकभूजल में आर्सेनिक के खतरनाक हद तक घुले होने के चलते कैंसर, लीवर फाइब्रोसिस, हाइपर पिगमेंटेशन जैसी लाइलाज बीमारियाँ हो जाती हैं। संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक आर्सेनिक युक्त भूजल के कारण एक लाख से ज्यादा लोग मौत के मुँह में चले गए और करीब तीन लाख के बीमार होने की पुष्टि हो चुकी है। भारतीय मानक ब्यूरो ने प्रति लीटर 0.05 मिलीग्राम तक को मानव जीवन के लिए उपयुक्त माना है। जबकि डब्ल्यूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पीने के पानी के प्रति एक लीटर में अधिकतम 0.01 मिलीग्राम आर्सेनिक की मौजूदगी को एक हद तक सुरक्षित मानक माना है। ऐसे में संसदीय समिति ने भूजल में आर्सेनिक की मात्रा के सुरक्षित मानक को ध्यान में रखते हुए डब्ल्यूएचओ के मानक को लागू करने की सिफारिश की है। पानी की गुणवत्ता में सामुदायिक भागीदारीपानी में प्रदूषण न हो इसके लिए सामुदायिक स्तर पर उपाय करने चाहिए। हैण्डपम्प से जल निकास के लिए पुख्ता नालियां बनाएं एवं उसके पास गन्दगी न होने दें। खुले कुएं के पानी को ब्लीचिंग पाउडर डालकर नियमित रूप से जीवाणु रहित कर पानी को काम में लें। प्राइवेट टैंकरों द्वारा वितरित जल में वितरण से आधा घंटा पूर्व टैंकर की क्षमता के अनुसार ब्लीचिंग पाउडर का घोल बनाकर डालें। जलसंग्रह की टंकी के आसपास स्वच्छ वातावरण रखें। एक अनुभवी पानी के ठेकेदार की पहचान करके रखें जो जरूरत के समय सामुदायिक टैंक व अन्य टैंक में आपके लिए तुरन्त पानी की व्यवस्था कर सके। जल में जीवणु का नाश करने के लिए 15 लीटर में 2 क्लोरीन की गोलियाँ (500 मिलीग्राम) या हर 1000 लीटर पानी में 3 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर का घोल बनाकर डाले एवं आधे घंटे बाद उपयोग में लें। बच्चों के सन्दर्भ में स्वच्छता की स्थितिभारत में 14 साल की उम्र के बच्चों में से 20 फीसदी से अधिक बच्चे असुरक्षित पानी, अपर्याप्त स्वच्छता या अपर्याप्त सफाई के कारण या तो बीमार रहते हैं या मौत का शिकार हो जाते हैं। इसी तरह सफाई के अभाव के कारण डायरिया से होने वाली मौतों में 90 फीसदी पांच साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं। डाइस रिपोर्ट 2013-14 के अनुसार, अभी भी देश के करीब 20 प्रतिशत प्राथमिक स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय नहीं हैं। ऐसी स्थिति में सरकार ने स्वच्छता अभियान के तहत स्थानीय स्तर पर पंचायतों को जिम्मेदारी दी है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2013-14 में 80.57 प्रतिशत लड़कियों के स्कूलों में उनके लिए अलग शौचालय थे। जबकि 2012-13 में यह संख्या सिर्फ 69 प्रतिशत थी। लेकिन समस्या का समाधान केवल यही नहीं है कि टाॅयलेट्स बना दिए जाएं, बल्कि इसके लिए पानी और मल-उत्सर्जन की एक प्रणाली विकसित किए जाने की भी जरूरत है। इनके अभाव में टाॅयलेट भी किसी काम के नहीं रह जाते। यानी शौचालयों का संचालन और सुविधाओं का रखरखाव भी जरूरी है। हर साल दम तोड़ते हैं 1.36 मिलियन बच्चेभारत में हर वर्ष 1.36 मिलियन बच्चों की मौत होती है। इसमें करीब दो लाख बच्चों की मृत्यु डायरिया के कारण होती है। हालांकि भारत में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) और पांच वर्ष से कम आयु के शिशु मृत्यु दर में निरंतर कमी आ रही है। डब्ल्यूएचओ के 2012 के आंकड़ों के अनुसार, प्रत्येक वर्ष पांच वर्ष से कम आयु के शिशुओं की मृत्यु में 11 प्रतिशत मृत्यु डायरिया के कारण होती हैं। एक अनुमान के मुताबिक यदि स्वच्छ पेयजल और बेहतर सफाई व्यवस्था मुहैया कराई जाए, तो प्रत्येक 20 सेकेंड में एक बच्चे की जान बचायी जा सकती है। इन आधारभूत सुविधाओं में सुधार कर रुग्णता और बीमारियों का 80 फीसदी तक कम किया जा सकता है। साथ ही, तेजी से बढ़ती शिशु मृत्युदर को घटाया जा सकता है। पेयजल का मानक: जल में मौजूद हानिकारक पदार्थ: पानी में पाए जाने वाले तत्व उच्चतम निर्धारित सीमा (मि. ग्रा. प्रति लीटर) जलजनित बीमारियों की रोकथाम के उपायपानी जीवन है। ऐसे में पानी के दूषित होने का मतलब है जीवन का खतरा। पानी की वजह से जान भी चली जाती है। जलजनित रोग मानव अथवा पशु मल अथवा रोगजनक बैक्टीरिया अथवा दूषित पानी को पीने के कारण हो सकते हैं। इनमें हैजा, टायफाइड, अमीबिया और जीवाणु दस्त एवं अन्य अतिसारीय रोग शामिल हैं। दूषित जल से रोग जनक जीवों से उत्पन्न रोग1. विषाणु-पीलिया, पोलियो, गैस्ट्रो-इंटराइटिस, जुकाम, चेचक। लैप्टाइरल वाइल्स रोगजल आधारित रोग: धुलाई से सम्बन्धित रोगजैसे हम हाथ, मुंह अथवा आंख की धुलाई कर रहे हैं तो उस जल का भी स्वच्छ होना जरूरी है क्योंकि गंदे पानी का प्रयोग कई बीमारियों का बढ़ा सकता है। यही वजह है कि पेयजल के साथ ही व्यक्तिगत स्वच्छता में भी स्वच्छ जल पर जोर दिया जाता है। धुलाई से सम्बन्धित होने वाले रोग से तात्पर्य है कि दूषित पानी से त्वचा या आंख धोने के कारण उत्पन्न होते हैं। इनमें खुजली, ट्रेकोमा और पिस्सू रोग शामिल हैं। जलभराव से होने वाले
रोग: डायरिया से बचाव: पानी को शुद्ध करने के प्रमुख उपायपरंपरागत तकनीक से शुद्ध पानी: पानी को उबालना: कैंडल वाटर फिल्टर: पानी को साफ करने के लिए दूसरा मुफीद तरीका है, कैंडल वाटर फिल्टर। इसमें समय-समय पर कैंडल बदलने की जरूरत होती है, ताकि पानी बेहतर तरीके से साफ हो सके। मल्टीस्टेज शुद्धिकरण: क्लोरीनेशन: हैलोजन टैबलेट: आरओ सिस्टम: यूवी रेडिएशन सिस्टम: भारत में पेयजल की स्थितिभारत की स्थिति देखें तो यहां हर साल दूषित पानी से औसतन 3 करोड़ 77 लाख व्यक्ति जलजनित बीमारियों यानी काॅलरा, पोलियो, पेचिश, टायफाइड एवं हेपेटाइटिस से प्रभावित होते हैं और करीब 15 लाख बच्चों की अकेले डायरिया के कारण मृत्यु हो जाती है। इसके अतिरिक्त पानी में मिले फ्लोराइड एवं आर्सेनिक आदि से होने वाली बीमारियां जैसे कि फ्ल्यूरोसिस से 6 करोड़ 60 लाख, कैंसर से 1 करोड़ तथा बड़ी संख्या में लोग त्वचा रोगों से प्रतिवर्ष प्रभावित होते हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2005-06 के अनुसार करीब आधे शहरी परिवारों के घर में अन्दर पाइप के पानी की आपूर्ति होती है। 80 प्रतिशत से अधिक शहरी गरीब परिवारों में पानी नल, हैंडपंप या अन्य स्रोतों से भरकर रखा जाता है। जो कि अधिकांशतः पहले से ही दूषित होता है। भारत जल की गुणवत्ता के मासले में 122 देशों में से 120 वें स्थान पर आता है। पेयजल उपलब्ध कराने की दिशा में जल संसाधन मंत्रालय, शहरी विकास एवं गरीबी उपशमन मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नगर निकाय एवं राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय विकास संस्थाएं विभिन्न भूमिकाएं निभाती हैं। इसके बाद भी लोगों को शुद्ध एवं मानकयुक्त पानी उपलब्ध कराना चुनौती है। (लेखिका स्वतंत्र पत्रकार एवं शोधार्थी हैं), ईमेल - Tags The problem of drinking water inHindi Language , The essay on the problem of drinking water in Hindi Language , Water crisis in Hindi Language , water problem in Hindi Language, Information about problem of drinking water, Problem of drinking water and Health in Hindi Language, Essay on drinking water and Health in Hindi Language, national research council drinking water and health in Hindi Language, drinking water book in Hindi Language, how much water should be consumed daily in Hindi Language. पीने का पानी रखने का सबसे सुरक्षित तरीका क्या है?फिल्टर किया हुआ पानी उबले हुए पानी की तुलना में ज्यादा सुरक्षित माना जाता है। फिल्टर दूषित या नल के पानी से अशुद्धियों, रसायनों और सूक्ष्म जीवों को दूर करने में मदद कर सकता है। और इसे रोग मुक्त बनाता है। आरओ से लेकर यूवी वॉटर प्यूरीफायर तक, ऐसी कई तकनीकें हैं जो पानी को शुद्ध करने और पीने योग्य बनाने में मदद करती हैं।
पानी कौन से बर्तन पीना चाहिए?Copper Water Benefits: तांबे के बर्तन में रखा पानी सेहत के लिए बहुत लाभकारी होता है. यह हमारे देश की एक प्राचीन परंपरा का अंग भी है और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धिति का भाग भी. तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से उन कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है, जो दूषित पानी पीने से होती हैं.
पानी में क्या डालकर पीने लायक बनाया जाता है?जब पानी तेज गर्म होकर उबलने लगे तो उसे लगभग 5 मिनट तक ऐसे ही उबलने दें, उसके बाद पानी को ठंडा करने के लिए रख दें. इससे पानी में मौजूद सारे कीटाणु मर जाएंगे और पानी पीने योग्य हो जाएगा. 2. फिटकरी का प्रयोग – पीने को पानी को साफ करने का सस्ता और आसान तरीका का फिटकरी का इस्तेमाल भी है.
कौन सी बोतल में पानी पीना चाहिए?इसलिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए। लोग आमतौर पर पानी पीने के लिए प्लास्टिक की बोतल का इस्तेमाल करते हैं. क्योंकि यह आसानी से और बहुत कम कीमत में भी मिल जाता है और इसको कैरी करना भी आसान होता होता है.
|