पंडित विष्णु दिगंबर का जन्म कब हुआ? - pandit vishnu digambar ka janm kab hua?

Pandit Vishnu Digambar Paluskar was a Hindustani musician. He sung the original version of the bhajan Raghupati Raghava Raja Ram, and founded the Gandharva Mahavidyalaya in 1901.

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Vishnu Digambar Paluskar का जन्म किस साल में हुआ था?

Vishnu Digambar Paluskar की जन्म तिथि क्या है?

उनकी जन्म तिथि Sunday, August 18, 1872 है।

Vishnu Digambar Paluskar का जन्म कहाँ हुआ था?

Vishnu Digambar Paluskar की उम्र कितनी है?

Vishnu Digambar Paluskar की उम्र 151 वर्ष है।

Vishnu Digambar Paluskar का जन्म कब हुआ था?

Vishnu Digambar Paluskar की राष्ट्रीयता क्या है?

यह जानकारी उपलब्ध नहीं है।

Vishnu Digambar Paluskar का चरित्र राशिफल

Vishnu Digambar Paluskar ने अपने जीवन का आरम्भ अनुकूल वातावरण में किया था। यह कहा जा सकता है कि Vishnu Digambar Paluskar एक उत्तम जन्मकुण्डली लेकर पैदा हुए हैं। साधारणतः Vishnu Digambar Paluskar की स्मरणशक्ति उत्तम है और Vishnu Digambar Paluskar एहसान को कभी नहीं भूलते हैं। Vishnu Digambar Paluskar आवश्यकता से अधिक उदार हैं। Vishnu Digambar Paluskar एक व्यवस्थित व्यक्ति हैं, जोकि Vishnu Digambar Paluskar के काम में झलकता भी है, खासकर Vishnu Digambar Paluskar के पहनावे और निवास-स्थान में।Vishnu Digambar Paluskar व्यक्तिगत रूप से आकर्षक, शालीन और सुलझे हुए हैं। Vishnu Digambar Paluskar बड़े दिल वाले और खुले दिमाग के व्यक्ति हैं। Vishnu Digambar Paluskar विपरीत परिस्थितियों में भी विचारवान रहते हैं। Vishnu Digambar Paluskar दृढ़चरित्र है।जन्म से ही Vishnu Digambar Paluskar के अन्दर नेतृत्व का गुण विद्यमान है, किन्तु Vishnu Digambar Paluskar इसका दिखावा पसन्द नहीं करते। Vishnu Digambar Paluskar का दृष्टिकोण व्यापक है और Vishnu Digambar Paluskar छोटी-छोटी बातों की परवाह नहीं करते हैं।Vishnu Digambar Paluskar एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं और अपने लिये ऊंचे लक्ष्य रखते हैं। प्रायः Vishnu Digambar Paluskar लक्ष्य से दूर रह जाते हैं, लेकिन जो Vishnu Digambar Paluskar को प्राप्त होता है वह भी सामान्य से अधिक होता है।

Vishnu Digambar Paluskar का सौभाग्य व संतुष्टि राशिफल

Vishnu Digambar Paluskar सकारात्मक सोच वाले और आत्मविश्वासी व्यक्ति हैं। Vishnu Digambar Paluskar सदैव कार्यों के सही होने की आशा करते हैं व वर्तमान परिणाम को जाने देने की क्षमता रखते हैं। Vishnu Digambar Paluskar दयालु तथा सहिष्णु हैं, व्यावहारिक हैं एवं सूक्ष्म गहराइयों में जाकर किसी भी अवधारणा को पूर्णतः समझते हैं। जीवन के प्रति Vishnu Digambar Paluskar विश्वास और दार्शनिक दृष्टिकोण रखते हैं, जो कि जीवन मेें Vishnu Digambar Paluskar को कई मौके देता है और सफलता पाने में Vishnu Digambar Paluskar की मदद करता है।Vishnu Digambar Paluskar के अंदर गजब की फुर्ती है और Vishnu Digambar Paluskar जीवन में कुछ प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन अपने स्वयं के बनाए विरोधाभासों में फँस कर Vishnu Digambar Paluskar अपनी शिक्षा से विमुख हो सकते हैं। ऐसे में Vishnu Digambar Paluskar को इन सभी बातों को त्याग कर खुले दिल से सोचना चाहिए। Vishnu Digambar Paluskar को यह समझना चाहिए कि जो Vishnu Digambar Paluskar हैं, Vishnu Digambar Paluskar उससे भी बेहतर हो सकते हैं और उसके लिए Vishnu Digambar Paluskar को अपनी शिक्षा का दायरा बढ़ाना होगा। यदि Vishnu Digambar Paluskar एक योजना बना कर शिक्षा प्राप्त करेंगे तो Vishnu Digambar Paluskar को जबरदस्त सफलता हासिल होगी। Vishnu Digambar Paluskar जो कुछ भी जानते हैं उसे अन्य लोगों के समक्ष प्रस्तुत करना पसंद करते हैं। वास्तव में यहीं से Vishnu Digambar Paluskar सीखना प्रारंभ कर रहे हैं। क्योंकि जब Vishnu Digambar Paluskar थोड़ा भी जान जाते हैं और उसे लोगों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं तो ऐसा करने से वह Vishnu Digambar Paluskar के चित्त की स्मृतियों में अंकित हो जाता है और यही Vishnu Digambar Paluskar को अपनी शिक्षा में मदद करता है। Vishnu Digambar Paluskar वास्तव में ऐसी शिक्षा प्राप्त करेंगे जो जीवन में Vishnu Digambar Paluskar को एक अच्छा मुकाम दिलाने में सहायक होगी और Vishnu Digambar Paluskar को मानसिक रुप से भी संतुष्टि प्रदान करेगी।

Vishnu Digambar Paluskar का जीवन शैली राशिफल

Vishnu Digambar Paluskar के जीवन में Vishnu Digambar Paluskar के मित्र प्रेरणा का काम करते हैं। Vishnu Digambar Paluskar को उनके सहयोग एवं उत्साहवर्धन की जरूरत है। अतः सफलता प्राप्ति के लिये Vishnu Digambar Paluskar को उन क्षेत्रों में कार्य करना चाहिए, जहाँ पर Vishnu Digambar Paluskar के मित्र Vishnu Digambar Paluskar के प्रगति देख सकें।

विष्णु दिगंबर पलुस्कर ने छोटी-बडी सब मिलाकर 50 पस्तकें लिखीं तथा लाहौर व मुंबई आदि स्थानों पर संगीत विद्यालय खुलवाए और संगीत शिक्षा को जनसामान्य तक पहुँचाया। इनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है संगीत के प्रचलित स्वरूप के अनुसार उसकी शास्त्रीय जानकारी एकत्रित करना। इन्होंने संगीत के कलापक्ष और शास्त्रीय पक्ष में तालमेल स्थापित किया। राग-रागिनी पद्धति के स्थान पर ठाठ राग पद्धति का प्रचार किया। सभी रागों का दस ठाठों में वर्गीकरण किया तथा रागों के प्रचलित स्वरूप के अनुसार उनका परिचय प्रस्तुत किया। इस प्रकार जीवनभर संगीत-कार्य करते हुए वर्ष 1931 में इनका निधन हो गया।....अगला सवाल पढ़े

Tags : स्वरलिपि

Web Title : Vishnu Digambar Paluskar Ka Janm Kab Hua Tha

महात्मा गांधी की जय की गर्जना से आकाश गूंज रहा था । अखिल भारतीय कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन के अवसर पर स्वयंसेवकों की सब व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो उठी थी। चारों तरफ से चरणधूलि के लिए व्याकुल भक्तों ने बापू को घेर लिया था । जनसमुद्र की लहर पर लहर क्रमशः समीप आती जा रही थी | सहसा एक दिव्य ध्वनि ने सभी का ध्यान बरबस अपनी ओर खींच लिया।

“रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम” घनगंभीर किंतु अत्यंत आकर्षक स्वर में उच्चारण किए जाने वाले इस महामंत्र ने जादू का काम किया। सारी जनता मानो मंत्रमुग्ध होकर उसी दिशा को खिंची चली जा रही थी, जहां से इस दिव्य ध्वनि का गायन कर रहे थे - महान संगीतज्ञ पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर। उनकी सामयिक सूझ ने उस समय राष्ट्र को एक घोर आपत्ति से बचा लिया।

पंडित विष्णु दिगंबर का जन्म कब हुआ? - pandit vishnu digambar ka janm kab hua?


अनुक्रम (Index)[छुपाएँ]

पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर की जीवनी

पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर का जन्म | पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर का घराना

पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर की शिक्षा

पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के साथ दुर्घटना

पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर की संगीत शिक्षा

गांधर्व महाविद्यालय की स्थापना

पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के संगीत

पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के संगीत संबंधी पुस्तके

श्री रामनाथ आधार आश्रम की स्थापना

पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर की मृत्यु


“रघपति राघव राजा राम” का यह मंत्र बापू के जीवन में अंत तक कायम रहा। यही नहीं, इस मंत्र का सतत् पाठ करने तथा आश्रम में भक्ति संगीत की व्यवस्था करने के लिए महात्मा जी के अनुरोध पर पंडित जी ने अपने प्रिय शिष्य नारायण मोरेश्वर खरे को उन्हीं को सौंप दिया था।


पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर का जन्म | पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर का घराना


बालक विष्णु का जन्म २० अगस्त १८७२ को महाराष्ट्र की कुरुंदवाह रियासत में हुआ था। पिता दिगंबरबुवा कीर्तनकार थे। इसीलए स्वाभाविक रूप से शुरू से ही संगीत के प्रति उसका अनुराग था।


पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर की शिक्षा


बालक विष्णु कुशाग्रबुद्धि था। संभवतः पढ़ लिखकर और बड़ा होकर वह प्रोफेसर, वकील या डाक्टर अथवा राजनीतिक नेता बनता। किंतु देववश उसके जीवन में ऐसी घटना घटी जो उस समय कुटुंबी जनों को अभिशाप प्रतीत हुई, पर भारतीय संगीत जगत के लिए वही वरदान सिद्ध हुई।


पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के साथ दुर्घटना


एक बार पटाखे चलाते हुए एक चिनगारी विष्णु की आंख में जा लगी बहुत इलाज करने पर भी दृष्टि इस योग्य न हो पाई कि पढ़ाई-लिखाई और आगे जारी रखी जा सकती। सोच-विचार कर निश्चय हुआ कि उसे संगीत सिखाया जाए।


पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर की संगीत शिक्षा


ग्वालियर से शास्त्रीय संगीत का अध्ययन करके आए हुए सुविख्यात गायक पं. बालकृष्णबुवा इचलकरंजीकर उन दिनों मिरज नरेश की सेवा में थे, उन्हीं के पास विष्णु की संगीत शिक्षा आरंभ हुई। स्वयं महाराज भी इस बात का पूरा ध्यान रखते थे, उसकी संगीत शिक्षा ठीक तरह से हो। सुपात्र देखकर गुरु ने भी विद्यादान में कोई कसर न उठा रखी। बारह वर्ष तक बारह-बारह घंटे रोज रियाज करके संगीत साधना करने के बाद तरुण कलाकार ने गुरुगृह से विदा लेकर देशाटन प्रारंभ किया |

संगीत के इस रूप से वह अपरिचित थे कि वह स्वर और लय के माध्यम से रससृष्टि करने वाला या हृदय के सूक्ष्मतम भावों को व्यक्त करने वाला होना चाहिए। स्वर और लय की कठिनाइयां दिखाकर सारंगी वाले या तबलिये को पराजित कर देना ही कलाकार की सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण माना जाता था।

उन दिनों न तो संगीत का कोई योजनाबद्ध पाठ्यक्रम था, न शास्त्रपक्ष या क्रियापक्ष संबंधी संगीत की पुस्तकें थीं। संगीत विद्यालय भी प्रायः नहीं के बराबर थे, बरसों सेवा पूजा के बाद उस्ताद की तबीयत में आता तो वह कुछ सिखा देते थे। रागों का शास्त्रीय परिचय तो बहुत दूर की बात है, कई बार तो राग का नाम तक भी नहीं बताया जाता था। स्थायी सिखा दिया तो अंतरे का पता नहीं। देशभर में भ्रमण करते हुए इन सभी समस्याओं पर पंडितजी ने सूक्ष्मता से विचार किया।


गांधर्व महाविद्यालय की स्थापना


सौराष्ट्र में एक साधु से प्रेरणा पाकर ५ मई १९०१ को उन्होंने पंजाब के लाहौर नगर में गांधर्व महाविद्यालय की स्थापना की। विद्यालय को चलाने में शुरू-शुरू में काफी विघ्न-बाधाएं आई, पर हिम्मत के धनी पंडित विष्णु दिगंबर ने सबका मुकाबला धैर्य के साथ किया। धीरे-धीरे विद्यालय चल निकला। इस सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने १९०८ में बंबई में भी विद्यालय की शाखा खोल दी। क्रमशः देश के और भी अनेक स्थानों पर विद्यालय की शाखाएं खुल गई।

पंडितजी का गांधर्व महाविद्यालय संगीत शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परीक्षण था । यह वास्तव में आधुनिक सामुदायिक शिक्षा प्रणाली तथा प्राचीन गुरुकुल प्रणाली का अपूर्व समन्वय था। जहां विद्यालयों में हजारों ऐसे विद्यार्थी लाभ उठाते थे, जो दिन में किसी निश्चित समय पर संगीत सीखने शौकीया तौर पर आते थे, वहां ऐसे भी अनेक विद्यार्थी थे जो संगीत को जीवन व्यवसाय के रूप में अंगीकृत करना चाहते थे। ऐसे विद्यार्थियों को एक निश्चित अवधि तक विद्यालय में चोबीस घंटों गुरू के साथ रहकर संगीत सीखने का बांड भरना होता था। इनके सर्वांगीण बौद्धिक तथा शारीरिक विकास का पंडितजी को पूर्ण ध्यान रहता था, इनमें जो विद्यार्थी योग्य रामझे जाते थे उनके लिए स्कूल और कालिज की पढ़ाई की व्यवस्था की जाती थी। चरित्र संबंधी छोटी-सी त्रुटि को भी पंडितजी सहन नहीं करते थे। वाद्य निर्माण तथा मरम्मत के लिए विद्यालय का अपना ही कारखाना तथा पुस्तकें छापने के लिए अपना ही एक प्रेस थी। इस कारखाने तथा प्रेस में हर एक आश्रमवासी विद्यार्थी को काम सीखना तथा करना पड़ता था। पंडितजी ने अपनी संस्था में हजारों संगीत रसिक पैदा किए | यह कोई छोटा काम नहीं था, पर इसके साथ ही उन्होंने पं. ओकारनाथ ठाकुर, पं. बिनायक राव पटवर्धन, पं. वामन राव पाध्ये और पं. नारायण राव व्यास जैसे कलाकार भी पैदा किए, जिनका संगीत जगत में विशिष्ट स्थान है।


पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के संगीत


गायन में बहुत-सी पुरानी बंदिशें ऐसी थीं जो निरर्थक, नीरस, रसविरुद्ध या भ्रष्ट अर्थों वाली थीं। शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने के लिए पंडित जी ने इन बंदिशों के स्थान पर संतों की अमरवाणी का आश्रय लिया। मीरा, सूर, तुलसी आदि भक्तों की रचनाएं उचित रागताल में बांधकर गाने की परिपाटी उन्होंने ही चलाई। इस प्रकार शास्त्रीय संगीत की बारीकियों से अपरिचित व्यक्ति भी उसका आनंद लेने लगे। जीवन के अंतिम दिनों में तो उन्होंने ख्याल गायन प्रायः छोड़ दिया था। महात्मा गांधी की प्रिय राम धुन “रघुपति राघव राजा राम” का शुरू में प्रचार पंडितजी ने ही किया था ।

पंडितजी देश-भक्ति में भी किसी से पीछे नहीं थे महात्मा गांधी, स्वामी श्रद्धानंद, लाला लाजपतराय और पं. मदनमोहन मालवीय आदि तत्कालीन राष्ट्रीय नेताओं से उनका निकट संपर्क था। राष्ट्रीय गीत “वन्दे मातरम्” की स्वर रचना, उन्होंने की थी और प्रायः कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में स्वयं उपस्थित होकर वह उसका गायन किया करते थे। कांग्रेस के साथ ही राष्ट्रीय संगीत सम्मेलन की परिपाटी भी उन्होंने आरंभ की थी।


पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के संगीत संबंधी पुस्तके


एक वैज्ञानिक स्वर-लेखन पद्धति का आविष्कार भी पडितजी की बड़ी देन है। संगीत-बालप्रकाश, संगीत बोलबोध, संगीत तत्वदर्शक, रागप्रवेश आदि पचास से ऊपर ग्रंथ उन्होंने इस पद्धति के अनुसार लिखे और प्रकाशित किए, उत्तर और दक्षिण के पारस्परिक निकट संपर्क द्वारा राष्ट्रीय समन्वय को ध्यान में रखते हुए उन्होंने “कर्नाटक-संगीत” नामक पुस्तक में कर्नाटक पद्धति के अनेक राग और बंदिशें लिखकर प्रकाशित की । भाषणकला में भी यह प्रवीण थे। गायन के साथ ही संगीत के सिद्धांतों की सरल भाषा में जानकारी सामान्य जनता को देना अपना कर्तव्य समझते थे।

उन दिनों आम जनता के लिए किसी बड़े कलाकार को कला का रसास्वादन करना दुर्लभ था। बड़े-बड़े राजा-महाराजा या अमीर-उमराव ऊंची दक्षिणा देकर जो महफिलें करते थे उनमें उनके कृपापात्र गिने-चुने व्यक्ति ही प्रवेश पा सकते थे। सुलभ मूल्य पर टिकट लगाकर संगीत के जलसे करने की परिपाटी उन्होंने ही चलाई। समय की पाबंदी का उन्हें विशेष ध्यान रहता था। उनके द्वारा आयोजित कार्यक्रम ठीक समय पर अवश्य आरंभ हो जाते थे, चाहे कोई श्रोता हाजिर हो या न हो।

ग्वालियर घराने की सभी विशेषताएं उनकी कला में प्रतिबिंबित थी “शुद्ध-मुद्रा” और “शुद्धवाणी” के नियम का वह दृढ़ता से पालन करते थे। उनकी आवाज गोल, बुलंद और तीनों सप्तकों में आसानी से घूमने वाली थी। उस जमाने में जब कि “माइक” का उपयोग आरंभ नहीं हुआ था, पंडितजी का गायन २०-२० हजार लोगों की सभा में अंतिम छोर तक सुना जा सकता था। अत्यंत विकट और क्लिष्ट तानें वह नहीं लेते थे, पर जो भी तान लेते थे उनकी तैयारी और सफाई बेजोड़ होती थी। आलाप, बोल, तान और सरगम सभी प्रकारों का अपूर्व समन्वय उनकी गायकी में था। भजन गाते समय वह स्वयं तल्लीन हो जाते थे और सैंकड़ों-हजारों श्रोताओं को भी भावविहल कर देते थे।


श्री रामनाथ आधार आश्रम की स्थापना


धीरे-धीरे पंडितजी द्वारा स्थापित विद्यालय की शाखाएं देश के अनेक शहरों में आरंभ हो गई। इन सबको चलाने का आर्थिक भार कुछ कम न था। अत्यधिक परिश्रम से उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे गिरता गया। बंबई से आकर नासिक में उन्होंने “श्री रामनाथ आधार आश्रम” की स्थापना की और वह अपना अधिकांश समय भगवद् भजन में ही बिताने लगे।


पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर की मृत्यु


२१ अगस्त १९३१ को उनकी जीवनलीला समाप्त हुई। पंडितजी ने लाखों कमाए और लाखों लुटाए, पर अपने ऐशो आराम पर नहीं बल्कि सैंकड़ों-हजारों गरीब विद्यार्थियों को अन्न-वस्त्र और विद्यादान देने पर। यहां तक कि अंत में मरते समय अपने इकलौते पुत्र दत्तात्रेय पलुस्कर को देने के लिए उनके पास एकमात्र आशीर्वाद ही शेष था ।

दुर्भाग्यवश दत्तात्रेय की भी मृत्यु भरी जवानी में हो गई। पैंतीस वर्ष की छोटी आयु में भी सुयोग्य पिता की सुयोग्य संतान ने भी कम नाम नहीं कमाया।

पंडितजी की मृत्यु के बाद उनके शिष्यों ने उनके नाम और काम को आगे चलाने के लिए अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्यालय मंडल की स्थापना की। इस समय तक इस संस्था का रूप बहुत व्यापक हो चुका है। दो सौ से ऊपर संगीत विद्यालय मंडल से संबद्ध हैं तथा हजारों विद्यार्थी मंडल की परीक्षाओं में प्रतिवर्ष सम्मिलित होते हैं। यही नहीं मंडल के प्रकाशन विभाग की ओर से संगीत विषयक अनेक ग्रंथों के अतिरिक्त “संगीत कला विहार” नामक मासिक भी प्रकाशित किया जाता है।

पंडित विष्णु दिगंबर जी का जन्म कब हुआ था?

V d पलुस्कर' (१८ अगस्त १८७२ - २१ अगस्त १९३१) हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक विशिष्ट प्रतिभा थे, जिन्होंने भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी की मृत्यु कब हुई *?

विष्णु दिगम्बर पलुस्कर (अंग्रेज़ी: Vishnu Digambar Paluskar, जन्म: 18 अगस्त, 1872; मृत्यु: 21 अगस्त, 1931) हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक विशिष्ट प्रतिभा थे, जिन्होंने भारतीय संगीत में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

पलुस्कर जी का जन्म स्थल कहाँ है?

कुरुन्द्वाद, भारतविष्णु दिगंबर पलुस्कर / जन्म की जगहnull