न्यूज़ कहानी के आधार पर बताइए कि लेखक की मां ने पाठशाला जाने में लेकर की क्या सहायता की? - nyooz kahaanee ke aadhaar par bataie ki lekhak kee maan ne paathashaala jaane mein lekar kee kya sahaayata kee?

‘जूझ’ कहानी में पिता को मनाने के लिए माँ और दत्ता जी राव की सहायता से एक चाल चली गई है। क्या ऐसा कहना ठीक है? क्यों?


लेखक पाठशाला जाने के लिये तड़पता है। उसके पिता ने उसे स्कूल जाने से रोक दिया है। पिता को मनाने में लेखक और उसकी माँ सफल नहीं हो पाते हैं। गाँव के सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति दत्ताजी राव अंतिम उपाय थे। लेखक और उसकी माँ उनके पास जाते हैं। उनसे दबाव डलवाने के लिये उन्हें एक झूठ का सहारा लेना पड़ता है। इसके बाद दत्ताजी राव के कहने पर लेखक के पिता उसको पड़ाने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेखक पाठशाला जाना शुरू कर देता है। वहाँ दूसरे लड़कों से उसकी दोस्ती होती है। वह पढ़ने के लिए हर तरह का प्रयास करता है। मराठी के एक बहुत अच्छे अध्यापक के प्रभाव में वह कविता भी रचने लगता है। अगर वह झूठ नहीं बोला जाता तो ये सारे घटनाक्रम घटित ही नहीं होते।

झूठ न बोलने से दत्ता जी राव उसके पिता के ऊपर दबाव नहीं दे पाते। उसके पिता अपनी तरह से लेखक के जीवन को ढालता। लेखक का संबंध पढ़ाई-लिखाई से नहीं हो पाता। उसके संघर्ष की कहानी ही नहीं बन पाती। आज जो कहानी हमें जूझने की प्रेरणा देती है, वह आज हमारे सामने नहीं होती। इस तरह झूठ का सहारा लेने से जीवन और सपनों का विकास होता है जिसके आधार पर लेखक अपनी आत्मकथा लिख पाता है।

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श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की ‌‌उन विशेषताओं को रेखांकित करें, जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई।

अथवा

कविता के प्रति रुचि जगाने में शिक्षक की भूमिका पर ‘जूझ’ कहानी के आधार पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री सौंदलगेकर के व्यक्तित्व की उन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए जिनके कारण ‘जूझ’ के लेखक के मन में कविता के प्रति लगाव उत्पन्न हुआ।

अथवा

श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं का उल्लेख करें जिन्होंने कविताओं के प्रति ‘जूझ’ पाठ के लेखक के मन में रुचि जगाई।


श्री सौंदलगेकर मराठी के अध्यापक थे। पढ़ाते समय वे स्वयं में रम जाते थे। उनके कविता पड़ाने का अंदाज बहुत ही अच्छा था। वह सुरीले गले के साथ छंद की बढ़िया चाल के साथ कविता पढ़ाते थे। उन्हें नयी-पुरानी मराठी एवं अंग्रेजी कविताएँ अच्छी तरह याद थीं। कविताओं से संबंधित अनेक छंदों की लय, गति और ताल पर उनकी अच्छी पकड़ थी। पढ़ाते समय पहले कविता गाकर सुनाते थे। फिर छात्रों को अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण कराते थे। उसी भाव में किसी अन्य कवि की कविता भी सुनाते थे। कविता पढ़ाते हुए मराठी के प्रसिद्ध कवियों जैसे-कवि यशवंत, बा. भ. बोरकर, भा. रा. ताम्बे, गिरीश, केशव कुमार आदि के साथ अपनी मुलाकात की बातें छात्रों को बताते थे। श्री सौंदलगेकर मराठी भाषा में स्वयं कविता भी लिखते थे। कभी-कभी छात्रों को अपनी कविता भी सुनाते थे। उनके अध्यापन की इन विशेषताओं का लेखक के बालपन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा। उनकी कक्षा में पढ़ते हुए उसे स्वयं का भी ध्यान नहीं रहता था। इस तरह उसके मन में कविता के प्रति रुचि पैदा हो गई।

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‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?


शीर्षक किसी भी रचना का महत्वपूर्ण अंग होता है। शीर्षक वह केन्द्र बिन्दु है जिससे पाठक को विषयवस्तु का सामान्य एवं आकर्षक बोध हो जाता है। ‘जूझ’ शीर्षक भी अपने आप में हर तरह से औचित्यपूर्ण है। ‘जूझ’ का शाब्दिक अर्थ है-’संघर्ष’। यह शीर्षक आत्मकथा के मूरल स्वर के रूप में सर्वत्र दिखाई देता है। यह एक किशोर के देखे और भागे हुए गँवई जीवन के खुरदरे यथार्थ और परिवेश को विश्वसनीय ढंग से प्रतिबिम्बित भी करता है।

कथानायक अपने जीवन में शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई स्तर पर जूझता है। वह स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर, पारिवारिक स्तर पर, सामाजिक स्तर पर, विद्यालय के माहौल के स्तर पर, आर्थिक स्तर पर आदि इस तरह के कई स्तर पर उसका संघर्ष दिखाई देता है। स्पष्ट है कि यह शीर्षक कथानायक के पढ़ाई के प्रति जूझने की भावना को उजागर करता है। लेखक ने अपनी आत्मकथा अपनी इसी चारित्रिक विशेषता को केन्द्र में रखकर की है।

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स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?

अथवा

‘जूझ’ कहानी के लेखक में कविता-रचना के प्रति रुचि कैसे उत्पन्न हुई? पाठ के आधार पर बताइए।


लेखक की पाठशाला में मराठी के मास्टर थे जिनका नाम न. वा. सौंदलोकर था। वह कविता के अच्छे रसिक एव मर्मज्ञ थे। उनकी कविता पड़ाने के अंदाज ने लेखक को कविता रचने की ओर आकर्षित किया। वह कविता पड़ता है। धीरे-धीरे उसके मन में कविता रचने की भी प्रतिभा पैदा हुई। शुरू में उसके मन मे एक डर बैठा हुआ था। उसे कवि किसी दूसरे लोक के लगते थे। सौदलगेकर मास्टर एक कवि थे। उन्होंने दूसरे कवियों के बारे में भी बताया था। इसके बाद उसे विश्वास हुआ कि कवि उसी की तरह आदमी ही होते हैं। यह विश्वास पैदा होने के बाद ही उसके मन में स्वयं कविता रच लेने का आत्म विश्वास पैदा हुआ। वह अपने आस-पास के वातावरण से जुड़ी चीजों पर तुकबंदी भी करने लगा।

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कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?

अथवा

‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए कि कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?


कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक को ढोर चराते हुए, खेतों में पानी लगाते हुए या दूसरे काम करते हुए अकेलेपन की स्थिति बहुत खटकती थी। उसे कोई भी काम करना तभी अच्छा लगता था जबकि उसके साथ कोई बोलने वाला, गपशप करने वाला या हँसी-मजाक करने वाला हो। कविता के प्रति लगाव हो जाने के बाद उसकी मानसिकता में बदलाव आ गया था। उसे अब अकेलेपन से कोई ऊब नहीं होती थी। वह अपने आप से खेलना सीख गया था। पहले से उलट वह अकेला रहना अच्छा मानने लगा था। अकेले रहने से उसे ऊँची आवाज में कविता गाने अभिनय करने या नाचने की स्वतंत्रता का अनुभव होता था जो उसे असीम आनंद से भर देते थे।

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आपके ख्याल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

अथवा

आपके विचार से पड़ाई-लिखाई के संबंध में ‘जूझ’ पाठ के लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दीजिए।


लेखक विपरीत परिस्थितियों के बाद भी पढ़ना चाहता है। दत्ताजी राव उसकी उस भावना से सहमत थे। पढ़ाई-लिखाई के संबंध में इन दोनों का रवैया हर तरह से सही हैं जबकि लेखक के पिता खुद अपने बेटे को नहीं पढ़ाना चाहते हैं। आधुनिक समाज में एवं किसी भी व्यक्ति के जीवन में शिक्षा के महत्त्व से इंकार नहीं किया जा सकता है। शिक्षा के महत्त्व को लेखक व दत्ता जी राव दोनों अच्छी तरह जानते हैं। लेखक के पिता के लिए खेती ही सबसे महत्वपूर्ण है जबकि आधुनिक जीवन में खेती का महत्त्व लगातार कम होता जा रहा है। अत: यह सिद्ध होता है कि दत्ता जी राव और लेखक का ही रवैया सही था।

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लेखक की मां ने पाठशाला जाने में लेखक की क्या सहायता की?

उत्तर: लेखक के पिता उसे पढ़ाना नहीं चाहता था जबकि लेखक व उसकी माँ पिता के रवैये से सहमत नहीं थे। उन्होंने दत्ताजी राव की सहायता से यह कार्य करवाया। लेखक पाठशाला जाना शुरू कर देता है।

10जूझ कहानी के आधार पर बताइए कि लेखक की मां ने पाठशाला जाने में लेखककी क्या सहायता की 2?

लेखक पाठशाला जाना शुरू कर देता है। वहाँ दूसरे लड़कों से उसकी दोस्ती होती है। वह पढ़ने के लिए हर तरह का प्रयास करता है। मराठी के एक बहुत अच्छे अध्यापक के प्रभाव में वह कविता भी रचने लगता है।