नाटक कितने प्रकार के होते है? - naatak kitane prakaar ke hote hai?

GkExams on 12-05-2019

नाटक की गिनती काव्यों में है। काव्य दो प्रकार के माने गये हैं— श्रव्य और दृश्य। इसी दृश्य काव्य का एक भेद नाटक माना गया है। पर दृष्टि द्वारा मुख्य रूप से इसका ग्रहण होने के कारण दृश्य काव्य मात्र को नाटक कहने लगे हैं।

भरतमुनि का नाट्यशास्त्र इस विषय का सबसे प्राचीन ग्रंथ मिलता है। अग्निपुराण में भी नाटक के लक्षण आदि का निरूपण है। उसमें एक प्रकार के काव्य का नाम प्रकीर्ण कहा गया है। इस प्रकीर्ण के दो भेद है— काव्य और अभिनेय। अग्निपुराण में दृश्य काव्य या रूपक के 27 भेद कहे गए हैं—

नाटक, प्रकरण, डिम, ईहामृग, समवकार, प्रहसन, व्यायोग, भाण, वीथी, अंक, त्रोटक, नाटिका, सट्टक, शिल्पक, विलासिका,दुर्मल्लिका, प्रस्थान, भाणिका, भाणी, गोष्ठी, हल्लीशक, काव्य, श्रीनिगदित, नाटयरासक, रासक, उल्लाप्यक और प्रेक्षण।

साहित्यदर्पण में नाटक के लक्षण, भेद आदि अधिक स्पष्ट रूप से दिए हैं।

ऊपर लिखा जा चुका है कि दृश्य काव्य के एक भेद का नाम नाटक है। दृश्य काव्य के मुख्य दो विभाग हैं— रूपक और उपरूपक। रूपक के दस भेद हैं— रूपक, नाटक, प्रकरण, भाण, व्यायोग, समवकार, ड़िम, ईहामृग, अंकवीथी और प्रहसन। उपरूपक के अठारह भेद हैं— नाटिका, त्रोटक, गोष्ठी, सट्टक, नाटयरासक, प्रस्थान, उल्लाप्य, काव्य, प्रेक्षणा, रासक, संलापक, श्रीगदित, शिंपक, विलासिका, दुर्मल्लिका, प्रकरणिका, हल्लीशा और भणिका।

उपर्युक्त भेदों के अनुसार नाटक शब्द दृश्य काव्य मात्र के अर्थ में बोलते हैं। साहित्यदर्पण के अनुसार नाटक किसी ख्यात वृत्त (प्रसिद्ध आख्यान, कल्पित नहीं) की लेकर लिखाना चाहिए। वह बहुत प्रकार के विलास, सुख, दुःख, तथा अनेक रसों से युक्त होना चाहिए। उसमें पाँच से लेकर दस तक अंक होने चाहिए। नाटक का नायक धीरोदात्त तथा प्रख्यात वंश का कोई प्रतापी पुरुष या राजर्षि होना चाहिए। नाटक के प्रधान या अंगी रस शृंगार और वीर हैं। शेष रस गौण रूप से आते हैं। शांति, करुणा आदि जिस रुपक में में प्रथान हो वह नाटक नहीं कहला सकता। संधिस्थल में कोई विस्मयजनक व्यापार होना चाहिए। उपसंहार में मंगल ही दिखाया जाना चाहिए। वियोगांत नाटक संस्कृत अलंकार शास्त्र के विरुद्ध है।


नाटक के प्रमुख तत्व[]

  • कथावस्तु
नाटक की कथावस्तु पौराणिक, ऐतिहासिक, काल्पनिक या सामाजिक हो सकती है।
  • पात्र
पात्रों का सजीव और प्रभावशाली चरित्र ही नाटक की जान होता है। कथावस्तु के अनुरूप नायक धीरोदात्त, धीर ललित, धीर शांत या धीरोद्धत हो सकता है।
  • रस
नाटक में नवरसों में से आठ का ही परिपाक होता है। शांत रस नाटक के लिए निषिद्ध माना गया है। वीर या शृंगार में से कोई एक नाटक का प्रधान रस होता है।
  • अभिनय
अभिनय भी नाटक का प्रमुख तत्व है। इसकी श्रेष्ठता पात्रों के वाक्चातुर्य और अभिनय कला पर निर्भर है। मुख्य प्रकार से अभिनय 4 प्रकार का होता हॅ।
  • 1 - आंगिक अभिनय (शरीर से किया जाने वाला अभिनय),
  • 2 - वाचिक अभिनय (संवाद का अभिनय [रेडियो नाटक ],
  • 3 - आहार्य अभिनय (वेषभूषा, मेकअप, स्टेज विन्यास्, प्रकाश व्यवस्था आदि),
  • 4 - सात्विक अभिनय (अंतरात्मा से किया गया अभिनय [ रस आदि ]।

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Comments द्स्फड्स on 15-03-2022

क्फव्स्फ़

Minakshi Minakshi on 12-03-2022

नाटक के नाम

Sunita kumari meena on 28-01-2022

Bhartiya natak ke kon kon se prkar h tha vibeen prkaro ke vishay main aap kya jante h vistaar se bataiye

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natak kitne prakar ke hote Hain

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Natak ke kitne prakar hain?

अंजली on 02-05-2019

नाटक कितने प्रकार के होते हैं??

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Natak Aour Rangamanch Ka sambhand

Mahavir v vibhute on 09-03-2019

Rangamanch ke prakar

Suresh yadav on 18-10-2018

Natak kitne prakar me hote hai


नाटक के प्रकार कितने होते हैं?

उपरूपक के अठारह भेद हैं— नाटिका, त्रोटक, गोष्ठी, सट्टक, नाटयरासक, प्रस्थान, उल्लाप्य, काव्य, प्रेक्षणा, रासक, संलापक, श्रीगदित, शिंपक, विलासिका, दुर्मल्लिका, प्रकरणिका, हल्लीशा और भणिका। उपर्युक्त भेदों के अनुसार नाटक शब्द दृश्य काव्य मात्र के अर्थ में बोलते हैं

नाटक के कितने अंग हैं?

पाश्चात्य विद्वानों ने भी नाटक की पाँच अवस्थाएँ ही स्वीकार की हैं- प्रारम्भ, विकास, चरमसीमा, उतार और अन्त। अर्थ प्रकृतियाँ भी पाँच ही हैं- बीज, बिन्दु, पताका, प्रकरी और कार्य। कथावस्तु के अंगों को समन्वित करने वाली सन्धियाँ भी आचार्यों ने पाँच ही स्वीकार की हैं

नाटक के विभिन्न प्रकार कौन कौन से हैं समझाइए?

आंगिक, (२) वाचिक, (३) आहार्य, और (४) सात्विक। अभिनय में अंगों के संचालन और विभिन्न शारीरिक चेष्टाओं को आंगिक अभिनय कहा जाता है।

नाटक किसे कहते हैं इसके कितने तत्व हैं?

नाटक‍ का अर्थ क्‍या है ( Natak kise kehte hai ) नाटक की परिभाषा :- नाटक एक अभिनय परक एवं दृश्य काव्य विधा है जिसमें संपूर्ण मानव जीवन का रोचक एवं कुतूहलपूर्ण वर्णन होता है । वास्तव में नाटक के मूल में अनुकरण या नकल का भाव है। यह शब्द 'नट्' धातु से बना है।