नैतिक एवं मूल्य शिक्षा क्या है? - naitik evan mooly shiksha kya hai?

नैतिक एवं मूल्य शिक्षा क्या है? - naitik evan mooly shiksha kya hai?
Moral Value in Hindi

Moral Value in Hindi – जीवन के समस्त गुणों, ऐश्वर्यों, समृद्धियों और वैभवों की आधारशिला चरित्र और नैतिक मूल्य है | वैदिक मन्त्रों में हमारे ऋषियों ने इसीलिए भगवान् से प्रार्थना की है कि – “असतो मा सद् गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृत गमय |” अर्थात हे ईश्वर, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलों, अंधकार से मुझे प्रकाश की ओर ले चलों |

असत्य और अंधकार इनका संबंध मनुष्य के अनैतिकता अर्थात “असत्य” मार्ग से ही है | नैतिक मूल्य से इस भूमि पर चरित्रवान व्यक्ति का निर्माण किया जा सकता है, परन्तु इसके अभाव में व्यक्ति अपने कुकृत्यों से इस पवित्र धरती को नरक बना देता है |

नैतिक मूल्य मनुष्य के आधारस्तम्भ हैं जो मानवता को जीवित रखा है और इनका व्यक्ति के जीवन में बड़ा महत्व हैं | इसलिए यहां मैं नैतिक मूल्यों पर बात करने से पहले मूल्य, नैतिक मूल्य और चरित्र तीनों का अर्थ समझाना आवश्यक समझती हूँ इसका एक फायदा यह भी होगा कि आपको चरित्र और नैतिकता का संबंध मालूम पड़ जायेगा |

मूल्य और नैतिक मूल्य का अर्थ

मूल्य” को अमूर्त प्रत्यय कहा गया हैं, जो व्यक्ति या परिवार या समुदाय आदि के लिए लक्ष्य प्राप्ति के साधनों को निर्धारित करते हैं | मूल्यों को व्यक्ति धीरे – धीरे ग्रहण करता है और अंततोगत्वा, मूल्यों को अपने चरित्र और आचरण की निजी कसौटी बना लेता है |

मूल्य कई प्रकार के हो सकते हैं जिनमें कुछ मूल्य इस प्रकार हैं –  नैतिक मूल्य, धार्मिक मूल्य, कलात्मक मूल्य, राजनैतिक मूल्य, आर्थिक मूल्य और  सैद्धांतिक मूल्य | भिन्न – भिन्न मूल्य भिन्न – भिन्न व्यक्तियों, भिन्न – भिन्न मात्रा और आवृत्ति में विकसित होते हैं | इन सभी मूल्यों में नैतिक मूल्यों का विकास अधिक आवश्यक है |

“नैतिक मूल्य” को सामाजिक नैतिक मूल्य भी कहते है | सामाजिक नैतिक मूल्य के अन्तर्गत अनेक मूल्य आते हैं, जिसमें उचित अनुचित की भावना, आज्ञा पालन, सत्य – असत्य का ज्ञान, ईमानदारी, दया, सत्यवादिता, भक्ति, निष्पक्षता, आत्म नियंत्रण, विश्वसनीयता और उत्तरदायित्व की भावना है | व्यक्ति के इन्हीं सामाजिक नैतिक मूल्यों के समूह को “चरित्र” कहते हैं, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व का नैतिक पक्ष है |

नैतिक चरित्र के बारे में यह उक्ति उपयुक्त ही है कि –

नैतिकता के अभाव में जाती, प्रतिष्ठा की डाल सूख |

बचती न कोई पूंजी, न कोई रसूख ||

मूल्य और नैतिक मूल्य में अन्तर जानने के बाद आप यह समझ ही गए होंगे कि नैतिक मूल्य का हमारे जीवन में क्या महत्व है और यह कितना आवश्यक है | 

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बच्चा अपने जन्म के समय न तो नैतिक होता है और न अनैतिक, बल्कि वह समाज के प्रति उदासीन होता है | आयु बढने के साथ – साथ वह सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार करना सीखता है जो की एक मंद और लम्बी प्रक्रिया है, परन्तु बच्चे से यह आशा की जाती है कि वह स्कूल जाने से पहले थोड़ा – थोड़ा उचित अनुचित बातों को जान ले, समझ ले | और बाल्यावस्था की समाप्ति से पहले यह आशा की जाती है कि उसमें कुछ मूल्यों का इनता विकास हो जाएँ कि वह स्वयं नैतिक चयन कर सके जबकि किशोरावस्था के बालकों से यह उम्मीद होती है कि उसमें नैतिक मूल्यों के साथ अनुरूपता स्थापित करने का गुण विकसित हो जाएँ | पर नैतिक शिक्षा का मूल उद्देश्य है – ‘नोइंग एंड डूइंग’ | अर्थात नैतिक मूल्यों की महत्ता को स्वीकार करते हुए व्यक्ति एवं समाज के स्तर को उत्कृष्टता के उस शिखर पर ले जाना, जिसमें सहयोग, सहकार, सामाजिक उत्तरदायित्व, श्रम प्रतिष्ठा, ईमानदारी, सहनशीलता, देशभक्ति तथा विश्वबंधुत्व एवं वसुधैव कुटुम्बकम् की भावनाओं को प्रोत्साहन मिले | साथ ही साथ सत्यता के सिद्धांतों को, मानवीय जीवनमूल्यों को भी ढूंढ निकालना नैतिक शिक्षा का उद्देश्य है |

एक बार जब बालक सत्य, ईमानदारी, आज्ञा – पालन आदि को समझ जाता है तथा दैनिक जीवन में इनका महत्व व इस्तेमाल करना जान जाता है तो वह निश्चय ही नैतिक गुणों का सम्मान करता है और अपने मूल्यों पर दृढ़ रहता है | जीवन जीने की कला सीख जाता है, रोजमर्रा की परिस्थितियों का व्यवहारिक ज्ञान उसे हो जाता | इसके विपरीत बालक जब नैतिक मूल्यों को अर्जित नहीं कर पाता है तो वह धीरे – धीरे समाज का एक अनुपयुक्त अंग समझा जाने लगता है |

अत: घर और विद्यालय दोनों का कर्तव्य है कि नैतिक मूल्यों का विकास करे | विशेष रूप से बचपन में नैतिक मूल्यों का विकास होना ही चाहिए क्योंकि देश के भावी कर्णधार वे ही है | उन्हें ही देश का भार अपने कन्धों पर रखना है |

यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि केवल घर पर मिले संस्कारों के माध्यम से नैतिक शिक्षा संभव नहीं हैं | नैतिक मूल्यों के उत्थान में शिक्षकों की अहम् भूमिका होती है | बच्चों में नैतिक मूल्यों के बीज बचपन से ही बोने की आवश्यकता होती है | आज तो सिर्फ थोड़े – से घंटो के लिए दो – चार घंटे के लिए बच्चे स्कूल में पढ़ने जाते हैं |

इन दो – चार घंटे के स्कूल में भी कोई नैतिक मूल्यों की सीख देने वाला पिरीयड होता नहीं, चारित्रिक शिक्षण होता नहीं | व्यक्तित्व का निर्माण करने की कोई बात होती नहीं और न इस प्रकार की कोई व्यवस्था ही वहाँ पर होती है। केवल, भूगोल, गणित, अंग्रेजी, इतिहास वगैरह पढ़ा दिए जाते है | और इसके लिए भी ढेरों अध्यापक होते है | पैंतालीस – पैंतालीस मिनट का तमाशा दिखा करके नट और कठपुतलियों के तरीके से अध्यापक भाग जाते हैं।

आजकल के माता – पिता यही सोचते है कि अमुक जगह, अमुक कॉलेज, अमुक विद्यालय या अमुक स्कूल में भेज देंगे तो हमारे बच्चे योग्य, चरित्रवान और संस्कारवान बन जाएँगे | पर जब तक हम बच्चों को स्कूल – कॉलेज में पढ़ने के लिए भेजते हैं, उस समय तक उसकी वह उम्र समाप्त हो जाती है, जिसमें बच्चे का निर्माण किया जाना संभव है |

दोस्तों ! उनसे यह आशा करना व्यर्थ है कि ये हमारे बच्चे को कुछ नैतिक मूल्यों को सीखा सकते हैं और पढ़ा सकते हैं | लेकिन नैतिक मूल्य तो माता – पिता के संस्कारों एवं गुरुजनों के शुभाशीष से ही मिल पाती हैं |

नैतिक मूल्यों का पतन होने से रोकने के लिए सर्वप्रथम सुशिक्षित एवं सुसंस्कृत अध्यापकों की आवश्यकता है | कहानी – किस्से, भाषण – संभाषण तथा वाद – विवाद आदि विधियाँ मात्र निर्देश भर है | इसी तरह खेल – कूद, अनुकरण, नाट्य, पूछताछ, शंका – समाधान, वर्ग योजनाएँ, प्रयोगात्मक प्रणालियाँ आदि सभी बच्चों के मस्तिष्कीय विकास के लिए आवश्यक, अनिवार्य और श्रेयष्कर विधियाँ है, जिनका प्रयोग होना चाहिए |

उपर्युक्त विधियों के प्रयोग करने का एक कारण यह भी है, कि नैतिक शिक्षा के मुल्यायांकन का क्षेत्र  व्यापक और जटिल हैं | इसलिए नैतिक शिक्षण हेतु उसी के अनुरूप व्यक्तियों की जरुरत पड़ती है | इसके लिए प्रभावशाली एवं सच्चरित्र अध्यापकों का होना पहली प्राथमिकता है | दुसरे ऐसी समाजसेवी संस्थाओं, धार्मिक संगठनों, नागरिक और स्कूल – क्लबों जैसे जनजागरण के केन्द्रों की गणना सर्वोपरी श्रेणी में आती हैं, जो गिरते नैतिक मूल्यों के उत्थान और बच्चों के चरित्र निर्माण में अहम् भूमिका निभा सकते है |

इसलिए एक राष्ट्र को मजबूत और आजाद रखने के लिए हर बालक में बचपन से ही नैतिकता का समावेश करना आवश्यक होता है | जब तक मूल्यों और चरित्रों को बालक में कायम रखा जायेगा, एक राष्ट्र और उसके लोग सदैव जीवित रहेंगे |

यह नैतिक मूल्य ही है जो मनुष्य को उन मूल्यों या नैतिक आदतों को प्राप्त करने में मदद करने के लिए संदर्भित करती है जो उन्हें व्यक्तिगत रूप से अच्छी जिंदगी जीने में मदद करता है और उन्हें इतना योग्य बनाता है कि वह एक समुदाय का सदस्य के रूप में अपना योगदान दे सके |

दूसरें शब्दों में कहे तो “नैतिक मूल्य” दो अलग-अलग कार्यों और दृष्टिकोण के लिए एक छत्र शब्द है सबसे पहला, जिसे बेहतर “नैतिकता” या “प्रशिक्षण” कहा जा सकता है, बच्चों को उन गुणों और मूल्यों में पोषण करने का कार्य है जो उन्हें अच्छा नागरिक बनाते हैं और दूसरा सुचरित्र संपन्न व्यक्ति अपने समाज और देश की धरोहर होता है जिससे और लोग अपने अंदर अच्छे गुणों का विकास करते है |

कई देशों ने नैतिक शिक्षा का आधार न केवल धार्मिक माना है, वरन चरित्र निर्माण पर भी बल दिया है | अत: शिक्षा में  नैतिक शिक्षा को व्यापक स्थान देना होगा |  नैतिकता वस्तुतः जीवन जीने की कला है |

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नैतिक शिक्षा और मूल्य शिक्षा क्या है?

लेकिन सही अर्थ में नैतिकता सामाजिक गुण है, जिसे समाज द्वारा किसी व्यक्ति में प्रतिस्थापित किया जा सकता है। इस तरह अपराध नियंत्रण में नीतिपरक शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। नीति और मूल्य आधारित शिक्षा द्वारा चरित्र निर्माण होने पर सरकार को अपराध नियंत्रण पर कोई अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ेगा।

नैतिक शिक्षा का मूल्य क्या है?

नैतिक शिक्षा बालक के व्यक्तित्व का संतुलित विकास करती हैं। नैतिक शिक्षा के अभाव मे बालक योग्य और आदर्श नागरिक नही बन सकता। वह अपने उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों को न तो भली-भाँति समाझ सकता है, न वह स्वयं की उन्नति कर सकता है और न समाज व देश की समुचित सेवा ही। नैतिक शिक्षा मानव जीवन का आधार हैं।

मूल्य शिक्षा का क्या अर्थ है?

मूल्य शिक्षा का अर्थ है, दैनिक जीवन में कौशल, व्यक्तित्व के सभी दौरों को समझना। इसके माध्यम से छात्र जिम्मेदारी, अच्छी या बुरी दिशा में जीवन का महत्व, लोकतांत्रिक तरीके से जीवन यापन, संस्कृति की समझ, महत्वपूर्ण सोच आदि को समझ सकते हैंमूल्य शिक्षा का मुख्य उद्देश्य अधिक नैतिक और लोकतांत्रिक समाज बनाना है।

नैतिक मूल्य का क्या अर्थ होता है?

नैतिक मूल्य क्या है ? (What is Moral value?) सच्चाई, ईमानदारी, प्रेम, दयालुता, मैत्री आदि को नैतिक मूल्य कहा जाता है। सच्चाई को स्वतः साध्य मूल्य कहा जाता है यह अपने आप में ही मूल्यपूर्ण है। इसका प्रयोग साधन की भांति नहीं किया जाता, बल्कि यह स्वतः साध्य है। सभी विवादों में भी सत्य के अन्वेषण का प्रयास किया जाता है।