मंथरा ने कैकेयी से क्या कहा - manthara ne kaikeyee se kya kaha

वाल्मीकि कृत रामायण में मंथरा की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका बताई गई थी। उसी के कारण प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष के लिए वनवास भोगना पड़ा था। मंथरा और रानी कैकेयी केकय देश की थीं। आओ जानते हैं कि आखिर यह मंथरा कौन थीं।

कैकय नरेश अश्वपति सम्राट की पुत्री कैकयी राजा दशरथ की तीसरे नंबर की पत्नी थीं। बहुत ही सुंदर होने के साथ ही वीरांगना भी थी। संभवत: इसीलिए वह राजा दशरथ को प्रिय थी। कहते हैं कि विवाह के समय कैकयी की दासी मंथरा भी उसके साथ आ गई थी।

एक कथा के अनुसार कैकेयी देश के राजा अश्वपति का एक भाई था जिसका नाम वृहदश्व था। उसकी विशाल नैनों वाली एक बेटी थी जिसका नाम रेखा था, वह बचपन से ही कैकेयी की अच्छी सहेली थी। वह राजकन्या थी और बुद्धिमति थी, परंतु बाल्यावस्था में उसे एक बीमारी हुई। इस बीमारी में उसका पूरा शरीर पसीने से तर हो जाता था जिसके कारण उसे बड़ी जोर की प्यास लगती थी। एक दिन प्यास से अत्यंत व्याकुल हो उसने इलायची, मिश्री और चंदन से बनी शरबत को पी लिया। उस शरबत के पीते ही उसके शरीर के सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया। तत्काल ही उसके पिता ने प्रसिद्ध चिकित्सकों से अपनी लाडली बेटी की चिकित्सा करवाई। चिकित्सा से बच तो गई लेकिन उसकी रीढ़ की हड्डी सदा के लिए टेढ़ी हो गई। इस कारण से उसका नाम मंथरा पड़ गया। उसके इस शारीरिक दुर्गुण के कारण वह आजीवन अविवाहित रही। जब कैकेयी का विवाह हो गया तो वह अपने पिता की अनुमति से कैकेयी की अंगरक्षिका बनकर उसके राजमहल में रहने लगी।

किवदंतियों के अनुसार पूर्वजन्म में मंथरा दुन्दुभ नाम की एक गन्धर्व कन्या थी। एक अन्य कथा के अनुसार लोमश ऋषि के अनुसार मंथरा पूर्वजन्म में प्रह्लाद के पुत्र विरोचन की कन्या थी। वाल्मीकि रामायण में इंद्र द्वारा भेजी गई अप्सरा माना है, जो भगवान राम को वनवास दिलाने आई थी।

मंथरा कथा : महाराजा दशरथ ने जब चैत्र मास में अपने ज्येष्ठ पुत्र राम के राज्याभिषेक की बात की तो देवप्रेरित कुबड़ी मन्थरा ने आकर कैकयी को यह समाचार सुनाया। यह सुनकर कैकयी आनंद में डूब गयीं और इस समाचार के एवज में मंथरा को एक गहना भेंट किया।

मंथरा ने वह गहना फेंककर कैकयी को बहुत कुछ उल्टा सीधा समझाया। लेकिन कैकयी मंथरा की बात नहीं मानकर कहती है कि यह तो रघुकुल की रीत है कि ज्येष्ठ पुत्र ही राज्य संभालता है और मैं कैसे अपने पुत्र के बारे में सोचूं? राम तो सभी के प्रिय हैं।


तब मंथरा के बहकाने पर कैकयी को अपने दो वरदानों की याद आई और कैकयी के मन में कपट समा गया। दरअसल, एक बार राजा दशरथ ने देवासुर संग्राम में इंद्र के कहने पर भाग लिया था। इस युद्ध में उनकी पत्नी कैकयी ने उनका साथ दिया था। युद्ध में दशरथ अचेत हो गए थे। राजा के अचेत होने पर कैकेयी उन्हें रणक्षेत्र से बाहर ले आयी थी, अत: प्रसन्न होकर दशरथ ने दो वरदान देने का वादा किया था। तब कैकेयी ने कहा था कि वक्त आने पर मांगूगी।

बाद में मंथरा के कान भरने पर कैकयी ने मंथरा के कहने पर कोप भवन में जाकर राजा दशरथ को अपने दो वरदानों की याद दिलाई। राजा दशरथ ने कहा कि मांग लो वरदान। तब कैकेयी ने अपने वरदान के रूप में राम का वनवास और भरत के लिए राज्य मांग लिया। यह वरदास सुनकर राजा दशरथ भीतर तक टूट गए।

जब शत्रुघ्न को यह पता चला कि मंथरा के कारण ही मेरे राम को वनवास हुआ तो शत्रुघ्न ने कुबड़ी दासी मंथरा के कूबड़ पे लात मार दी थी।

Ask King Dasharatha for both Boons of Kaikeyi: दासी मंथरा द्वारा महारानी कैकेयी के कान भरने का असर धीरे धीरे होने लगा. मंथरा ने महारानी को समझाने का प्रयास किया कि राम का राज्याभिषेक होते ही कौशल्या पटरानी बन कर बैठ जाएगी और फिर राम को भरत को जेल में डाल देंगे और आपको कौशल्या की नौकरानी बन कर रहना होगा. कौशल्य ने इन सबकी पहले ही योजना बना ली है तभी उसने महाराज दशरथ से कह कर इस मौके पर भरत को ननिहाल भिजवा दिया है. राजतिलक की तैयारियां शुरू हुए पंद्रह दिन बीत गए फिर भी तुम्हें कोई खबर नहीं दी गई. 

कैकेयी बोलीं, मुझे तो इन स्थितियों में कुछ नहीं सूझ रहा

मंथरा ने अपनी बात को सिद्ध करने के लिए महारानी कैकेयी को तरह तरह की कहानियां सुनाईं. मंथरा की बात का इतना प्रभाव पड़ा कि महारानी बोलीं, मुझे तेरी बातें सत्य समझ में आ रही हैं. मेरी दाहिनी आंख रोज फड़का करती है, मुझे रात में बहुत ही बुरे सपने आया करते हैं किंतु अपनी अज्ञानता कारण किसी से चर्चा नहीं करते हैं. उन्होंने दासी को सखी बताते हुए पूछा कि अब मुझे क्या करना चाहिए क्योंकि मुझे तो कुछ सूझ ही नहीं रहा है. वह बोलीं मैंने अपने होश में तो कभी किसी का बुरा नहीं किया है फिर न जाने किस पाप के कारण यह दुख मिल रहा है.रानी ने दीन भावना से कहा कि वह तो अपने नैहर में जाकर रह लेंगी लेकिन अपनी सौत की गुलामी नहीं करेंगी.

मंथरा ने कैकेयी से कहा, तुम दुख न करो

मंथरा ने कैकेयी से कहा कि तुम क्यों दुख करती हो, तुम्हारा सुख और सुहाग तो दिन दूनी और रात चौगुना होगा. फल तो उसे ही मिलेगा जिसने तुम्हारी बुराई सोची है. उसने अपनी बताते हुए कहा कि जब से यह समाचार उसे सुनाई पड़ा है तब से न तो दिन में भूख लगती है और न ही रात में नींद आती है, बस दिन रात भरत की चिंता सताती रहती है. ज्योतिषियों ने बी कुंडली बांच कर यही कहा है कि भरत ही राजा होंगे.

राजा दशरथ से वर मांगने का यही समय है

मंथरा ने रानी कैकेयी को सुझाव देते हुए कहा कि यदि तुम राजी हो तो एक रास्ता है क्योंकि राजा तुम्हारे वश में हैं. कैकेयी ने मंथरा पर विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि तुम कहोगी तो कुएं में भी कूद सकती है,पुत्र और पति को भी छोड़ सकती हैं क्योंकि तुम ही तो सच्ची हितैषी हो. मंथरा ने कैकेयी को याद दिलाया कि एक बार महाराजा ने उनसे दो वरदान मांगने को कहा था. वह मांगने का यही समय है. एक से भरत को अयोध्या का राज और दूसरे से राम को वनवास मांग लो. बस इस वरदान को मांगने के लिए तुम अभी से कोपभवन में चली जाओ और जब राजा मनाने आए तो राम की सौगंध रखाने के बाद मांग लेना.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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मंथरा ने कैकई को क्या कहा?

मंथरा ने कैकेयी को बहकाया, राम को मिला वनवास | मंथरा ने कैकेयी को बहकाया, राम को मिला वनवास - Dainik Bhaskar.

मंथरा ने रानी कैकेयी को क्या समझाया?

मंथरा ने कैकेयी से कहा कि यदि वह राजा दशरथ से मिले दो वर आज मांग ले तो यह समस्या समाप्त हो सकती है। वह दो वर थे राम को 14 वर्ष का वनवास व भरत को अयोध्या का राजा बनाना। रानी कैकेयी को मंथरा का यह सुझाव पसंद आया व उन्होंने ऐसा ही किया।

मंथरा ने रानी कैकेयी को क्या उपाय बताया?

मंथरा ने रानी कैकेयी को क्या उपाय बताया? उत्तर: मंथरा ने रानी कैकेयी से कहा कि वह मैले कपड़े पहनकर कोप भवन में चली जाए। महाराज आएँ तो उनकी ओर मत देखना, बात मत करना।

मंथरा ने रानी कैकेयी को क्या याद दिलाया?

मंथरा ने कैकेयी को याद दिलाया कि एक बार महाराजा ने उनसे दो वरदान मांगने को कहा था. वह मांगने का यही समय है. एक से भरत को अयोध्या का राज और दूसरे से राम को वनवास मांग लो. बस इस वरदान को मांगने के लिए तुम अभी से कोपभवन में चली जाओ और जब राजा मनाने आए तो राम की सौगंध रखाने के बाद मांग लेना.