महाविद्या पाठ करने से क्या लाभ होता है? - mahaavidya paath karane se kya laabh hota hai?

विषयसूची

  • 1 महाविद्या पाठ कब करना चाहिए?
  • 2 महाविद्या का पाठ क्यों कराया जाता है?
  • 3 महाविद्या का पाठ करने से क्या फायदा होता है?
  • 4 10 महाविद्याओं की उत्पत्ति कैसे हुई?
  • 5 दस महाविद्या कौन हैं?
  • 6 भैरवी साधना कैसे की जाती है?
  • 7 मां धूमावती कौन है?
  • 8 काली माता के कितने रूप?

महाविद्या पाठ कब करना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंचतुर्थ संध्याकाल में मां छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती की सिद्ध प्राप्त हो जाती है। कृष्ण और रक्त गुणों की देवियां इनकी सहचरी हैं। पलास और बेलपत्रों से छिन्नमस्ता महाविद्या की सिद्धि की जाती है।

महाविद्या का पाठ क्यों कराया जाता है?

इसे सुनेंरोकेंमां को प्रसन्न करने के लिए तांत्रिक साधकों द्वारा यह पूजा की जाती है। ये दस महाविद्याएं इस प्रकार है- काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। सभी 10 महाविद्याओं में काली को प्रथम रूप माना जाता है। माता दुर्गा ने राक्षसों का वध करने के लिए माता ने यह रूप धारण किया था।

महाविद्या का पाठ करने से क्या फायदा होता है?

दस महाविद्या पूजा के लाभ (Benefits of Das Mahavidya Puja in Hindi)

  • दस महाविद्या पूजा द्वारा पार्वती माँ की दिव्य कृपा प्राप्त होती है।
  • इस पूजा द्वारा रोगों से सुरक्षा होती है और पुराने रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • दस महाविद्या पूजा से स्वास्थ्य, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

महाविद्या का जाप कैसे किया जाता है?

इसे सुनेंरोकेंसमय- रात्रि, दिशा- पूर्व। ‘ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण का‍लिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा। इनके भैरव महाकाल हैं जिनका जप दशांस किया जाना चाहिए। इस महाविद्या से विद्या, लक्ष्‍मी, राज्य, अष्टसिद्धि, वशीकरण, प्रतियोगिता विजय, युद्ध-चुनाव आदि में विजय मोक्ष तक प्राप्त होता है।

धूमावती साधना कैसे करें?

इसे सुनेंरोकेंधूमावती जयंती इस बार दस जून की है तो सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करके जल, पुष्प, सिन्दूर, कुमकुम, अक्षत, फल, धूप, दीप तथा नैवैद्य से मां का पूजन करना चाहिए। इस दिन मां धूमावती की कथा का श्रवण करना चाहिए। पूजा के बाद अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए मां से प्रार्थना जरूर करनी चाहिए।

10 महाविद्याओं की उत्पत्ति कैसे हुई?

इसे सुनेंरोकेंव्यास बताते हैं कि देवी भागवत पुराण में उल्लेख है कि महाविद्या की उत्पत्ति भगवान शिव व उनकी प|ी सती से हुई। सती के पिता दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का अपमान करने के उद्देश्य से यज्ञ का आयोजन किया। दस दिशाओं में रोकने के सती ने दस रूप धरे। यही दस रूप दस महाविद्या कहलाती हैं।

दस महाविद्या कौन हैं?

इसे सुनेंरोकेंयह हैं दस महाविद्याएं: काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। इन देवियों को दस महाविद्या कहा जाता हैं। इनका संबंध भगवान विष्णु के दस अवतारों से हैं। मसलन भगवान श्रीराम को तारा का तो श्रीकृष्ण को काली का अवतार माना जाता हैं।

भैरवी साधना कैसे की जाती है?

इसे सुनेंरोकेंभैरवी चक्र साधना में स्त्रियों का महत्व साधना में स्त्रियों को शक्ति के रूप में स्थान दिया गया है। इस बात पर जोर दिया गया है कि चक्रानुष्ठान में साधक को अपनी पत्नी के साथ बैठना चाहिए। पत्नी को भी दीक्षा लेनी चाहिए और उसके साथ साधना करनी चाहिए। देवी को जो फल, मूल या पत्र चढ़ाए जाते हैं, उनका भी शोधन किया जाना चाहिए।

तारा साधना कैसे करें?

इसे सुनेंरोकेंहवन में कमल गट्टे, शुद्ध घी व् हवन सामग्री को मिलाकर आहुति दें ! हवन के बाद तारा यंत्र को अपने घर के मंदिर या तिजोरी में लाल वस्त्र से बांधकर एक वर्ष तक संभाल कर रख दें और बाकि बची हुई पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जन कर आयें ! ऐसा करने से साधक की Tara Sadhana पूर्ण हो जाती हैं !

महाकाली की सिद्धि कैसे प्राप्त करें?

इसे सुनेंरोकेंरात के समय ऐसे करें काली सहस्त्रनाम का प्रयोग साधक स्वयं लाल आसन का ही प्रयोग करे । हाथ मे किसी भी प्रकार का लाल पुष्प लेकर अपना कामना बोलकर पुष्प को मातारानी के चरणों मे समर्पित करें। रुद्राक्ष माला से ऊँ क्रीं कालिके स्वाहा ऊँ मंत्र का एक माला जाप सहस्त्रनाम पाठ से पूर्व और अंत मे करे तो शीघ्र सफलता प्राप्त होती है।

मां धूमावती कौन है?

इसे सुनेंरोकेंकौन है माता धूमावती : माता धूमावती 10 महाविद्याओं में से एक सातवीं उग्र शक्ति हैं। कहते हैं कि धूमावती का कोई स्वामी नहीं है। इसलिए यह विधवा माता मानी गई है। मां धूमावती महाशक्ति स्वयं नियंत्रिका हैं।

काली माता के कितने रूप?

इसे सुनेंरोकेंमां काली के 4 रूप हैं- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली। राक्षस वध : माता ने महिषासुर, चंड, मुंड, धूम्राक्ष, रक्तबीज, शुम्भ, निशुम्भ आदि राक्षसों के वध किए थे।

महाविद्या पाठ करने से क्या लाभ होता है? - mahaavidya paath karane se kya laabh hota hai?

दस महाविद्याओं की साधना करने वाला व्यक्ति सभी भौतिक सुखों को प्राप्त कर बंधन से भी मुक्त हो जाता है।

हमारे शास्त्रों में दस महाविद्याओं का उल्लेख किया गया है। तंत्र क्रिया में विद्या में इन 10 महाविद्याओं का विशेष महत्व होता है।  इन 10 विद्याओं की साधना और उपासना से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ये महाविद्याओं को दशावतार माना गया है। 10 महाविद्याएं मां दुर्गा के ही रूप है जिसे सिद्धि देने वाली मानी जाती है। मां दुर्गा के इन दस महाविद्याओं की साधना करने वाला व्यक्ति सभी भौतिक सुखों को प्राप्त कर बंधन से भी मुक्त हो जाता है। मां को प्रसन्न करने के लिए तांत्रिक साधकों द्वारा यह पूजा की जाती है। 

ये दस महाविद्याएं इस प्रकार है- काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। 

महाविद्या का पाठ क्यों कराया जाता है?

मां को प्रसन्न करने के लिए तांत्रिक साधकों द्वारा यह पूजा की जाती है। ये दस महाविद्याएं इस प्रकार है- काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। सभी 10 महाविद्याओं में काली को प्रथम रूप माना जाता है। माता दुर्गा ने राक्षसों का वध करने के लिए माता ने यह रूप धारण किया था।

महाविद्या का पाठ करने से क्या होता है?

महाविद्या स्तुति का पाठ करने से धन , लाभ , कीर्ति , प्रसिद्धि , विजय , यश , समृद्धि , पौरुष और बल आदि की प्राप्ति होती हैं ! और साथ ही ज्ञानश्चेतना , प्राणश्चेतना , समाधि , ब्रह्मज्ञान , मोक्ष और पूर्णता भी प्राप्त होती है ।

महाविद्या का मंत्र क्या है?

ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा।। ऐं ऊँ ह्रीं क्रीं हूं फट्।। श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा।। ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क ए ह ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं महाज्ञानमयी विद्या षोडशी मॉं सदा अवतु।।

10 महाविद्या कौन कौन से हैं?

यह हैं दस महाविद्याएं: काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। इन देवियों को दस महाविद्या कहा जाता हैं। इनका संबंध भगवान विष्णु के दस अवतारों से हैं। मसलन भगवान श्रीराम को तारा का तो श्रीकृष्ण को काली का अवतार माना जाता हैं