महादेव घाट किस लिए प्रसिद्ध है - mahaadev ghaat kis lie prasiddh hai

आज हम अपने IQ HINDI की इस पोस्ट में राजधानी रायपुर से कुछ दूरी पर स्थित हाटकेश्वर महादेव नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव के एक मंदिर के बारे में बात करेंगेे।

हाटकेश्वर महादेव रायपुर। Hatkeshwar Mahadev Raipur.

महादेव घाट किस लिए प्रसिद्ध है - mahaadev ghaat kis lie prasiddh hai


यह प्रसिद्ध मंदिर महादेव घाट पर बना हुआ हैै। यह रायपुर से कुछ ही दूरी पर रायपुर पाटन वाले रोड पर रोड के किनारे में बनाया गया हैै।

वैसे तो छत्तीसगढ़ में भगवान शिव पर आधारित कई मंदिर हैं और सबकी अपनी अलग-अलग मान्यताएं भी हैं। लेकिन आप इस मंदिर की मान्यता सुनकर दंग रह जाएंगे।

अगर लोगों की माने तो कहा जाता है कि जो लोग बाबा के दर्शन करने उज्जैन के महाकाल में नहीं जा सकते वे श्रद्धालु यदि ब्रह्म मुहूर्त में सच्चे दिल से यहां पर मन्नते मांगे तो उनकी प्रार्थना स्वीकार होती है और भोलेनाथ उनकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं।

 भोलेनाथ के भक्तों की आस्था के कारण महादेव घाट स्थित इस महादेव के मंदिर में सप्ताह के सातों दिन काफी भीड़ देखी जाती हैं।

इसके साथ ही यहां पर आने वाले भक्तों की संख्या में सावन के माह में अचानक वृद्धि देखी जाती है और यहां पर दूर-दूर से लोग बाबा के दर्शन के लिए पाने के लिए आते हैं।

 महादेव घाट में स्थित इस मंदिर को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं लेकिन यह मंदिर रायपुर और दुर्ग जिला के लोगों के लिए मुख्य आकर्षणों में से एक है।

यहां पर आकर भोलेनाथ के दर्शन मात्र से ही भक्तों के कष्ट दूर होने लगते हैं। इस मंदिर का गर्भगृह मंदिर में प्रवेश करने के कई सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने पर दिखाई देगा।

मंदिर के गर्भगृह तक जाने के रास्ते में आपको कई मूर्तियां देखने को मिलेंगे। जब लोग इस मंदिर पर दर्शन के लिए जाते हैं तो वे अपने साथ थोड़ा सा चावल लेकर जाते हैं और गर्भगृह तक जाते-जाते सभी मूर्तियों में थोड़ा थोड़ा चावल चढ़ाते हुए जाते हैं।

आपको बता दें कि इस मंदिर के बाहर प्रतिवर्ष कार्तिक माह में पुन्नी मेला लगता है। यह मेला 2 दिनों का होता है जो कि पूरे प्रदेश में महादेव घाट मेला के नाम से प्रसिद्ध है।

2 दिन के मेले में लोग छत्तीसगढ़ के सभी कोनो से आते हैं। इस मेले के दौरान हजारों लोग इकट्ठा होते हैं।

मेले में शामिल होने वाले अधिकतर लोग भोलेनाथ के दर्शन के लिए मंदिर में अवश्य प्रवेश करते हैं। वहीं कुछ लोग केवल मेला घूम कर वापस चले जाते हैं।

मेले के अलावा हर वक्त इस मंदिर के बाहर छोटी-छोटी दुकानें लगी होती है जहां से लोग भगवान शिव की मूर्ति प्रसाद आदि खरीदते हैं।

 इस मंदिर की खास बातों में से एक बात यह है कि यहां पर विगत 500 वर्षों से एक पुराने अखंड ज्योति धुमा प्रज्ज्वलित की जा रही है।

 लोगों का मानना है कि इस अखंड ज्योति के दर्शन से लोगों के कष्ट दूर होते हैं तो वहीं कुछ लोग इस ज्योति के ताव से अपने रुद्राक्ष को सिद्ध करते हैं।

 माना जाता है कि इस पूरे मंदिर परिसर का निर्माण कलचुरी वंश के राजाओं द्वारा कराया गया था। कलचुरी वंश के राजाओं ने छत्तीसगढ़ में कई सारी मंदिर बनवाई है। इनमें से यह एक है।

लक्ष्मण झूला महादेव घाट। Laxman Jhula Mahadev Ghat.

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इस मंदिर को एक अलग पहचान देने के लिए यहां पर छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लक्ष्मण झूला महादेव घाट पर बनाया गया है।

आपको बता दें कि मंदिर से निकलकर कुछ कदम पैदल चलने के पश्चात आपको यह लक्ष्मण झूला देखने को मिलेगा। इसे लक्ष्मण झूला महादेव घाट के नाम सेे पूरे प्रदेश में जता है।

यह झूला छत्तीसगढ़ राज्य का पहला सस्पेंशन ब्रिज है और यह ब्रिज ऋषिकेश में गंगा नदी पर बने लक्ष्मण झूले के नकल से बनाया गया है।

आपको बता दें कि झूला के निर्माण में लगभग 6 करोड़ की लागत आई है। इस ब्रिज का निर्माण छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के कार्यकाल में कराया गया था।

 इस लक्ष्मण झूले को देखने के लिए भी दूर दूर से लोग आते हैं और यह रायपुर के पास में स्थित है। इसलिए यहां पर आने वाले लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी देखी जाती है।

 अगर आप पाटन रोड से रायपुर जा रहे हैं तो आपको रास्ते में ही लक्ष्मण झूला महादेव घाट का दर्शन हो जाएगा।

 इसके दूसरे ओर एक गार्डन भी बनाया गया है इस गार्डन का निर्माण इस प्रकार कराया गया है कि लक्ष्मण झूला से उतरते गार्डन तक पहुंचा जा सके।

हाटकेश्वर महादेव मंदिर कैसे पहुंचे? How to reach Hatkeshwar Mahadev Temple?

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हवाई जहाज से - इस मंदिर तक पहुंचने के लिए सभी माध्यम उपलब्ध है। सभी माध्यम से इस मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता। बात करे इस मंदिर तक हवाई जहाज़ से पहुंचने की बात की तो यहां से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा रायपुर में स्थित है। जो कि केवल 4 से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

रायपुर। जयस्तंभ चौक से 10 किलोमीटर और रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड से 12 किलोमीटर की दूरी पर कलकल, छलछल बहती है खारुन नदी। इसी के किनारे स्थित है पर्यटन और धार्मिक आस्था का केंद्र महादेव घाट। यहां प्राचीन हटकेशवर महादेव मंदिर है।

महादेव घाट पर एक ओर जहां भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए लोग उमड़ते हैं, वहीं पिकनिक मनाने के लिए भी परिवार समेत लोग पहुंचते हैं। हरिद्वार की तर्ज पर खारुन नदी के ऊपर बना लक्ष्मण झूला और नौकायन का आनंद भी यहां का विशोष आकर्षण है।

लक्ष्मण झूला के नीचे पर्यटकों के लिए 50 से अधिक सजी-धजी नौकाओं की व्यवस्था है। इन नौकाओं में बैठकर पर्यटक नदी की बीच धारा तक जाकर प्रकृति के अद्भुत नजारे का आनंद ले सकते हैं। नौका में संगीत की मधुर धुनें गूंजती रहती हैं। एक यात्री मात्र 20 रुपये अदा करके नौकायन का लुत्फ उठा सकता है। कुल पांच लोग नौका में सवार होते हैं।

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झूले के ऊपर से होकर नदी के उस पार जाने पर मनमोहक गार्डन देखने को मिलता है। यहां बच्चों के साथ पिकनिक मनाने का आनंद लिया जा सकता है। इस पुल के बीच में खड़े होकर लोग बहती नदी एवं प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा लेते नजर आते हैं। गार्डन में अनेक झूले और सेल्फी जोन है, जहां से युवक-युवतियां प्रकृति के बीच रहकर फोटो खिंचाने में रुचि लेते हैं।

एक किमी लंबी सीढ़ियों पर बैठकर देखें नजारा

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महादेव घाट की ऊंची सीढ़ियों के किनारे बैठकर भी नदी का मनमोहक नजारा देखा जा सकता है। लगभग एक किलोमीटर तक लंबी सीढ़ियों पर रविवार एवं पर्व त्योहारों के दिन भीड़ रहती है, दूर-दूर तक बैठकर लोग नौकायन कर रहे सैलानियों के वापस आने का इंतजार करते हैं, ताकि वे भी जा सकें। खारुन के किनारे साल में तीन बार भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

आसपास के ग्रामीण इलाकों से हजारों लोग मेला घूमने आते हैं। मनोरंजन के लिए झूले, खेल तमाशा के साथ खरीदारी करते हैं। पहला मेला महाशिवरात्रि, दूसरा हिंदू संवत्सर के माघ महीने की पूर्णिमा और तीसरा मेला कार्तिक पूर्णिमा पर लगता है। शरद्धालु नदी में पुण्य की डुबकी लगाते हैं और महादेव का दर्शन लाभ लेते हैं।

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हटकेशवर नाथ मंदिर में लगती है कांवरियों की भीड़

महादेवघाट में सैकड़ों साल पुराने हटकेशवर नाथ महादेव मंदिर में सावन के महीने में खासकर रविवार, सोमवार को हजारों कांवरिए शिवलिंग पर जल अर्पण करने आते हैं। हटकेशवर महादेव मंदिर के पुजारी पं. सुरेश गिरी गोस्वामी ने बताया कि शरीमद्भागवत गीता के पांचवें स्कंध के 16 वें और 17वें शलोक में हटकेशवर नाथ का उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि हटकेशवर नाथ अतल लोक में अपने पार्षदों के साथ निवास करते हैं। जहां स्वर्ण की खान पाई जाती है। मान्यता है कि हजारों साल पहले मंदिर के किनारे स्वर्ण पाया जाता था।

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द्वापर युग की द्वारकी नदी है खारुन नदी

वर्तमान में बहने वाली खारुन नदी को द्वापर युग में द्वारकी नदी के नाम से जाना जाता था। कालांतर में महाकौशल प्रदेश के हैहयवंशी राजा ब्रह्मदेव जब नदी किनारे स्थित घनघोर जंगल में शिकार करने आए थे, तब नदी में बहता हुआ पत्थर का शिवलिंग नजर आया। इस शिवलिंग पर नागदेवता लिपटे थे। राजा ने नदी किनारे मंदिर बनवाकर शिवलिंग स्थापित करवाया। ऐसी मान्यता है कि बाद में 1402 में कल्चुरि शासक भोरमदेव के पुत्र राजा रामचंद्र ने मंदिर का नव निर्माण करवाया।

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हर की पौड़ी की तरह अस्थि विसर्जन

खारुन नदी के किनारे ही शमशानघाट है, जहां अंतिम संस्कार के बाद लोग खारुन नदी में उसी तरह अस्थियों का विसर्जन करते हैं, जैसे हरिद्वार स्थित हर की पौड़ी में किया जाता है। महादेव घाट को छत्तीसगढ़ का मिनी काशी भी कहा जाता है। नदी के उस पार 20 फीट ऊंची खारुणेशवर महादेव की प्रतिमा दर्शनीय है। समीप ही वैष्णो धाम मंदिर निर्माणाधीन है, इस मंदिर की शीघ्र ही प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी।

छोटे-बड़े करीब 50 से अधिक मंदिर

महादेवघाट शिव मंदिर के आसपास छोटे-बड़े करीब 50 से अधिक मंदिर हैं। इनमें काली मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, कुम्हार मंदिर, संगमरमर से बना हनुमान मंदिर, सांई मंदिर, संत कबीरदासजी के चार कानों वाले घोड़े की समाधि आदि प्रसिद्ध है। इसे चौकन्नो घोड़े की समाधि कहा जाता है। इस समाधि का गुंबद संत कबीर साहेब की टोपी के रूप में बनाया गया है।

कैसे पहुंचें

मुंबई-हावड़ा रेलवे मार्ग पर भिलाई स्टील प्लांट से 20 किलोमीटर दूर रायपुर रेलवे स्टेशन उतरकर टैक्सी से महादेव घाट जाया जा सकता है। स्टेशन और पुराना बस स्टैंड दोनों ही जगह से घाट की दूरी 10 किलोमीटर है। भाठागांव स्थित नए बस स्टैंड से पांच किलोमीटर दूरी पर है।