जूनागढ़ कौन सा राज्य में पड़ता है? - joonaagadh kaun sa raajy mein padata hai?

जूनागढ़
Junagadh
જુનાગઢ

जूनागढ़ कौन सा राज्य में पड़ता है? - joonaagadh kaun sa raajy mein padata hai?

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जूनागढ़ कौन सा राज्य में पड़ता है? - joonaagadh kaun sa raajy mein padata hai?

जूनागढ़

गुजरात में स्थिति

निर्देशांक: 21°31′12″N 70°27′47″E / 21.520°N 70.463°Eनिर्देशांक: 21°31′12″N 70°27′47″E / 21.520°N 70.463°E
देश
जूनागढ़ कौन सा राज्य में पड़ता है? - joonaagadh kaun sa raajy mein padata hai?
 
भारत
प्रान्तगुजरात
ज़िलाजूनागढ़ ज़िला
जनसंख्या (2011)
 • कुल3,19,462
भाषा
 • प्रचलितगुजराती
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)

जूनागढ़ कौन सा राज्य में पड़ता है? - joonaagadh kaun sa raajy mein padata hai?

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जूनागढ़ कौन सा राज्य में पड़ता है? - joonaagadh kaun sa raajy mein padata hai?

दामोदर कुण्ड से गिरनार का दृश्य

जूनागढ़ कौन सा राज्य में पड़ता है? - joonaagadh kaun sa raajy mein padata hai?

जूनागढ़ (Junagadh) भारत के गुजरात राज्य के जूनागढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।[1][2][3]

विवरण[संपादित करें]

जूनागढ़ शहर गिरनार पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है। मंदिरों की भूमि जूनागढ़ गिरनार हिल की गोद में बसा हुआ है। यह मुस्लिम शासक बाबी नवाब के राज्य जूनागढ़ की राजधानी था। गुजराती भाषा में जूनागढ़ का अर्थ होता है प्राचीन किला। इस पर कई वंशों ने शासन किया। यहां समय-समय पर हिंदू, बौद्ध, जैन और मुस्लिम, इन चार प्रमुख धर्मों का प्रभाव रहा है। विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक शाक्तियों के समन्वय के कारण जूनागढ़ बहुमूल्य संस्कृति का धनी रहा है। इसका उदाहरण है जूनागढ़ की अनोखी स्थापत्य कला, जिसकी झलक जूनागढ़ में आज भी देखी जा सकती है। जूनागढ़ का क्षेत्र 160 किमी वर्ग (60 वर्ग मील) है।[[4]] जूनागढ़ का क्षेत्र रैंक 7th है।[[5]] डाक कोड 362001 - 36004 है।[[6]] टेलीफोन कोड 0285 है।[[7]] वाहन पंजीकरण GJ-11 है।

जूनागढ़ दो भागों में विभक्‍त है। एक मुख्‍य शहर है जिसके चारो ओर दीवारों से किलेबन्‍दी की गई है। दूसरा पश्‍िचम में है जिसे अपरकोट कहा जाता है। अपरकोट एक प्राचीन दुर्ग है जो शहर से बहुत ऊपर स्थित है। यह किला मौर्य और गुप्त शासकों के लिए बहुत मजबूत साबित हुआ क्योंकि इस किले ने विशिष्ट स्थान पर स्थित होने और दुर्गम राह के कारण पिछले 1000 वर्षो से लगभग 16 आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया। अपरकोट का प्रवेशद्वार हिंदू तोरण स्थापत्य कला का अच्छा नमूना है। बौद्ध गुफा और बाबा प्यारा की गुफा (दूसरी शताब्दी), अड़ी-काड़ी वाव, नवघन कुआं और जामी मस्जिद यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल है।

इतिहास[संपादित करें]

जूनागढ़ के प्राचीन शहर का नामकरण एक पुराने दुर्ग के नाम पर हुआ है। यह गिरनार पर्वत के समीप स्थित है। यहाँ पूर्व-हड़प्पा काल के स्थलों की खुदाई हुई है। इस शहर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था। यह [[चूड़ासमा[8][9][10][11] की राजधानी थी। यह एक रियासत थी। गिरनार के रास्ते में एक गहरे रंग की बेसाल्ट चट्टान है, जिस पर तीन राजवंशों का प्रतिनिधित्व करने वाला शिलालेख अंकित है। मौर्य शासक अशोक (लगभग 260-238 ई.पू.) रुद्रदामन (150 ई.) और स्कंदगुप्त (लगभग 455-467)। यहाँ 100-700 ई. के दौरान बौद्धों द्वारा बनाई गई गुफाओं के साथ एक स्तूप भी है। शहर के निकट स्थित कई मंदिर और मस्जिदें इसके लंबे और जटिल इतिहास को उद्घाटित करते हैं। यहाँ तीसरी शताब्दी ई.पू. की बौद्ध गुफाएँ, पत्थर पर उत्कीर्णित सम्राट अशोक का आदेशपत्र और गिरनार पहाड़ की चोटियों पर कहीं-कहीं जैन मंदिर स्थित हैं। 15वीं शताब्दी तक राजपूतों का गढ़ रहे जूनागढ़ पर 1472 में गुजरात के महमूद बेगढ़ा ने क़ब्ज़ा कर लिया, जिन्होंने इसे मुस्तफ़ाबाद नाम दिया और यहाँ एक मस्जिद बनवाई, जो अब खंडहर हो चुकी है।

कृषि और खनिज[संपादित करें]

जूनागढ़ के प्रमुख कृषि उत्पादों में मुंगफली, कपास, ज्वार-बाजरा, दलहन, तिलहन और गन्ना शामिल हैं। वेरावल तथा पोरबंदर यहाँ के प्रमुख बंदरगाह हैं और यहाँ मछली पकड़ने का काम भी होता है। इस नगर में वाणिज्यिक एवं निर्माण केंद्र हैं।

शिक्षा[संपादित करें]

यहाँ गुजरात कृषि विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालय हैं। यहाँ के शैक्षणिक संस्थानों में कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी और द जे.सी ई. टी. एस. कामर्स कॉलेज शामिल हैं।

प्रमुख आकर्षण[संपादित करें]

अशोक के शिलालेख (आदेशपत्र)[संपादित करें]

गिरनार जाने के रास्ते पर सम्राट अशोक द्वारा लगवाए गए शिलालेखों को देखा जा सकता है। ये शिलालेख विशाल पत्‍थरों पर उत्‍कीर्ण हैं। अशोक ने कुल चौदह शिलालेख लगवाए थे। इन शिलालेखों में राजकीय आदेश खुदे हुए हैं। इसके अतिरिक्‍त इसमें नैतिक नियम भी लिखे हुए हैं। ये आदेशपत्र राजा के परोपकारी व्यवहार और कार्यो का प्रमाणपत्र है। अशोक के शिलालेखों पर ही शक राजा रुद्रदाम तथा [स्‍कंदगुप्‍त] के खुदवाये अभिलेखों को देखा जा सकता है। रुद्रदाम ने 150 ई. में तथा स्‍कंदगुप्‍त ने 450 ई. में ये अभिलेख खुदवाये थे। इस अभिलेख की एक विशेषता यह भी है कि रुद्रदाम के अभिलेख को ही संस्‍कृत भाषा का प्रथम शिलालेख माना जाता है।

उपरकोट किला[संपादित करें]

माना जाता है कि इस किले का निर्माण यादवों ने द्वारिका आने पर करवाया था (जो कृष्ण भगवान से संबंधित थे)। अपरकोट की दीवारें किसी-किसी स्थान पर 20 मीटर तक ऊंची है। किले पर की गई नक्‍काशी अभी भी सुरक्षित अवस्‍था में है। इस किले में बहुत सी रूचिजनक और दर्शनीय वस्तुओं में पश्चिमी दीवार पर लगी दो तोपे हैं। इन तोपों का नाम नीलम और कांडल है। इन तोपों का निर्माण मिस्र में हुआ था। इस किले के चारों ओर 200 ईस्वी पूर्व से 200 ईस्वी तक की बौद्ध गुफाएं है।

सक्करबाग प्राणीउद्यान[संपादित करें]

जूनागढ़ का यह प्राणीउद्यान गुजरात का सबसे पुराना प्राणीउद्यान है। यह प्राणीउद्यान गिर के विख्यात शेर के अलावा चीते और तेंदुआ के लिए प्रसिद्ध है। गिर के शेरों को लुप्‍तप्राय होने से बचाने के लिए जूनागढ़ के नवाब ने 1863 ईस्वी में इस प्राणीउद्यान का निर्माण करवाया था। यहां शेर के अलावा बाघ, तेंदुआ, भालू, गीदड़, जंगली गधे, सांप और चिड़िया भी देखने को मिलती है। यह प्राणीउद्यान लगभग 500 एकड़ में फैला हुआ है।

गिर वन्यजीव अभयारण्य[संपादित करें]

वन्य प्राणियों से समृद्ध गिर अभयारण्य लगभग 1424 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस वन्य अभयारण्य में अधिसंख्‍य मात्रा में पुष्प और जीव-जन्तुओं की प्रजातियां मिलती है। यहां स्तनधारियों की 30 प्रजातियां, सरीसृप वर्ग की 20 प्रजातियां और कीडों- मकोडों तथा पक्षियों की भी बहुत सी प्रजातियां पाई जाती है। दक्षिणी अफ्रीका के अलावा विश्‍व का यही ऐसा एकलौता स्थान है जहां शेरों को अपने प्राकृतिक आवास में रहते हुए देखा जा सकता है। जंगल के शेर के लिए अंतिम आश्रय के रूप में गिर का जंगल, भारत के महत्वपूर्ण वन्य अभयारण्यों में से एक है। गिर के जंगल को सन् 1969 में वन्य जीव अभयारण्य बनाया गया और 6 वर्षों बाद इसका 140.4 वर्ग किलोमीटर में विस्तार करके इसे राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित कर दिया गया। यह अभ्‍यारण्‍य अब लगभग 258.71 वर्ग किलोमीटर तक विस्तृत हो चुका है। वन्य जीवों को सरक्षंण प्रदान करने के प्रयास से अब शेरों की संख्या बढकर 312 हो गई है।

सूखें पताड़ वाले वृक्षों, कांटेदार झाड़ियों के अलावा हरे-भरे पेड़ों से समृद्ध गिर का जंगल नदी के किनारे बसा हुआ है। यहां के मुख्य वृक्षों में सागवान, शीशम, बबूल, बेर, जामुन, बील आदि है।

भारत के सबसे बड़े कद का हिरण, सांभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा और बारहसिंगा भी यहां देखा जा सकता है साथ ही यहां भालू और बड़ी पूंछ वाले लंगूर भी भारी मात्रा में पाए जाते है। कुछ ही लोग जानते होंगे कि गिर भारत का एक अच्छा पक्षी अभयारण्य भी है। यहां फलगी वाला बाज, कठफोडवा, एरीओल, जंगली मैना और पैराडाइज फलाईकेचर भी देखा जा सकता है। साथ ही यह अधोलिया, वालडेरा, रतनघुना और पीपलिया आदि पक्षियों को भी देखने के लिए उपयुक्त स्थान है। इस जंगल में मगरमच्छों के लिए फॉर्म का विकास किया जा रहा है जो यहां के आकर्षण को ओर भी बढा देगा।

दर्शकों के लिए गिर वन्य अभयारण्य मध्य अक्टूबर महीने से लेकर मध्य जून तक खोला जाता है लेकिन मानसून के मौसम में इसे बन्द कर दिया जाता है।

बौद्ध गुफा[संपादित करें]

बौद्ध गुफा चट्टानों को काट कर बनायी गई है। इस गुफा में सुसज्जित खंभे, गुफा का अलंकृत प्रवेशद्वार, पानी के संग्रह के लिए बनाए गए जल कुंड, चैत्य हॉल, वैरागियों का प्रार्थना कक्ष, चैत्य खिडकियां स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण पेश करती हैं। शहर में स्थित खापरा-कोडिया की गुफाएं भी देखने लायक है।

अड़ी-कड़ी वाव और नवघन कुआं[संपादित करें]

अड़ी-काड़ी वेव और नवघन कुआं का निर्माण चूडासमा राजपूतों ने कराया था। इन कुओं की संरचना आम कुओं से बिल्‍कुल अलग तरह की है। पानी के संग्रह के लिए इसकी अलग तरह की संरचना की गई थी। ये दोनों कुएं युद्ध के समय दो सालों तक पानी की कमी को पूरा कर सकते थे। अड़ी-कड़ी वाव तक पहुंचने के लिए 120 पायदान नीचे उतरना होता है जबकि नवघन कुंआ 52 मीटर की गहराई में है। इन कुओं तक पहुंचने के लिए गोलाकार सीढियां बनी हुई है। नवघन कुंआ महाराजा नवघन रा खंगार एवं रानी की वाव उदयमति जो महाराजा रा खंगार की पुत्री के द्बारा सोलंकी शासक भीम प्रथम की स्मृति में 1063 में करवाया गया था, जो भी स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण है!

जामी मस्जिद[संपादित करें]

जामी मस्जिद मूलत:महाराजा रा खंगार की महारानी रानकदेवी का रानीवास था,जिसमें महारानी अपनी दासियों सहित निवास करती थी । गुजरात के शाषक राजा मोहम्मद बेगड़ा ने जूनागढ़ फतह के दौरान (1470 ईस्वी) अपनी विजय की याद में इस स्थान पर बेहद ही विशालकाय मस्जिद का निर्माण कराया एवं उसका नाम जामी मस्जिद जुनागढ़ रखा था। यहां अन्य आकर्षणों में नीलम तोप है जिसे तुर्की के राजा सुलेमान के आदेश पर पुर्तगालियों से लड़ने के लिए बनवाया गया था। यह तोप मिस्र से दीव के रास्ते जुनागढ़ आई थी।

अन्य दर्शनीय स्थल[संपादित करें]

अम्बे माता का मंदिर[संपादित करें]

अम्बे माता का मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है। यहां पर नवविवाहित जोड़े शादी के बाद अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए माता का आशीर्वाद लेने आते है।

मल्लिनाथ का मंदिर[संपादित करें]

9वें जैन तीर्थंकर मल्लिनाथ की याद में 1177 ईस्वी पूर्व में दो भाईयों ने इस त्रिमंदिर का निर्माण करवाया था। उत्सवों के समय यह मंदिर साधुओं के रहने का पंसदीदा स्थान होता है। नवंबर-दिसम्बर महीने की कार्तिक पूर्णिमा पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।

जूनागढ संग्रहालय[संपादित करें]

जू में स्थित इस संग्रहालय में हस्तलिपि, प्राचीन सिक्के, चित्रकला और पुरातत्वीय साहित्य के साथ-साथ प्राकृतिक इतिहास का एक विभाग है।

आयुर्वेदिक कॉलेज[संपादित करें]

जूनागढ़ के पूर्व नवाब के राजमहल सदरबाग में स्थित यह महाविद्यालय आयुर्वेदिक दवाईयों का एक छोटा संग्रहालय है।

दरबार हॉल संग्रहालय[संपादित करें]

यह वह हॉल है जहां जूनागढ़ के नवाब अपने दरबार का आयोजन करते थे। यहां पर चित्रों, पालकियों और शस्त्रों के प्रर्दशन के बहुत से विभाग बने हुए है।

नरसिंह मेहता का चबूतरा[संपादित करें]

यह एक विशाल स्‍थान है। यह सादगीपूर्ण तरीके से बना हुआ है। इसी जगह पर 15वीं शताब्दी में महान संत कवि नरसिंह मेहता के प्रवचनों और सभाओं का आयोजन होता था। यहां पर गोपनाथ का एक छोटा मंदिर तथा श्री दामोदर राय जी और नरसिंह मेहता की प्रतिमाएं भी है।

दामोदर कुंड[संपादित करें]

इस पवित्र कुंड के चारों ओर घाट (नहाने के लिए) का निर्माण किया गया है। ऐसा विश्‍वास किया जाता है कि इस घाट पर भगवान श्री कृष्ण ने महान संत कवि नरसिंह मेहता को फूलों का हार पहनाया था।

आवागमन[संपादित करें]

हवाई मार्ग

जूनागढ़ से तकरीबन 40 किलोमीटर की दूरी पर केशोद और 113 किलोमीटर की दूरी पर पोरबन्दर एयरपोर्ट है। राजकोट भी हवाई मार्ग से इससे जुड़ा हुआ है।

रेल मार्ग

जूनागढ़ रेलवे स्टेशन अहमदाबाद और राजकोट रेलवे लाईन पर पड़ता है

सड़क मार्ग

जूनागढ़ राजकोट से (102 किलोमीटर), पोरबंदर से (113 किलोमीटर) और अहमदाबाद से (327 किलोमीटर) की दूरी पर स्थित है। साथ ही यह वरावल से भी जुड़ा हुआ है। स्थानीय परिवहन: ऑटो रिक्शा और स्थानीय बसों से आसानी से जूनागढ़ पहुंचा जा सकता है। प्राइवेट और राज्य परिवहन की लक्जरी बसें आसानी से उपलब्ध हो जाती है और विभिन्न प्रकार की कार भी किराये पर मिलती है।

जनसंख्या[संपादित करें]

2001 की जनगणना के अनुसार जूनागढ़ शहर की जनसंख्या 1,68,686 है और जूनागढ़ ज़िले की जनसंख्या 24,48,427 है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • जूनागढ़ ज़िला

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • जूनागढ़ का कृषि विश्वविद्यालय
  • जूनागढ़ और गिरनार पहाड़ी की चित्रदीर्घा
  • जूनागढ़ पर्यटन सूचना

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Gujarat, Part 3," People of India: State series, Rajendra Behari Lal, Anthropological Survey of India, Popular Prakashan, 2003, ISBN 9788179911068
  2. "Dynamics of Development in Gujarat," Indira Hirway, S. P. Kashyap, Amita Shah, Centre for Development Alternatives, Concept Publishing Company, 2002, ISBN 9788170229681
  3. "India Guide Gujarat," Anjali H. Desai, Vivek Khadpekar, India Guide Publications, 2007, ISBN 9780978951702
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 3 जनवरी 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2020.
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 6 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2020.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 16 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2020.
  7. https://junagadh.nic.in/std-pin-codes/
  8. http://books.google.co.in/books?id=bPNEAAAAIAAJ Archived 2014-11-04 at the Wayback Machine Book Junagadh-page-10
  9. "The Glory that was Gūrjaradeśa, Volume 2". Bharatiya Vidya Bhavan, 1943. पृ॰ 136. अभिगमन तिथि 8 Nov 2006.
  10. "Power, profit, and poetry: traditional society in Kathiawar, western India - Harald Tambs-Lyche - Google Books". मूल से 4 नवंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2019.
  11. Singh, Virbhadra (1994). The Rajputs of Saurashtra. Popular Prakashan. पृ॰ 35. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-8-17154-546-9.

जूनागढ़ का राजा कौन था?

जूनागढ़ के इन नवाब का नाम था नवाब मोहम्मत महाबत खानजी तृतीय रसूल खानजी.

जूनागढ़ क्यों प्रसिद्ध है?

कभी भारत की बड़ी रियासत रह चुका जूनागढ़ अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। जूनागढ़ की ऐतिहासिक संरचनाएं देखने लायक हैं। राज्य की राजधानी से लगभग 341 किमी की दूरी पर बसा जूनागढ़ अपने नवाबी इतिहास के साथ सैलानियों को यहां आने के लिए मजबूर करता है। यहां की वास्तुकला प्राचीन शैली को भली भांति प्रदर्शित करती हैं।

जूनागढ़ का वर्तमान नाम क्या है?

भारत के विभाजन के समय इस उपमहाद्वीप में ऐसी कई रियासतें थीं जहां नवाबों का शासन था. गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित जूनागढ़ ऐसी ही एक रियासत थी.

जूनागढ़ में किसका मंदिर है?

श्री गिरनार जी गुजरात में जूनागढ़ के पास समुद्र तल से 3100 फुट ऊंची पर्वतावली हैं। गगनचुम्बी पर्वत मालाओं के बीच परिनिर्मित यह पावन तीर्थ जैन धर्म और हिन्दू धर्म दोनों का आराध्य स्थल है।