२ महीने के बच्चे को दस्त होने पर क्या करें - 2 maheene ke bachche ko dast hone par kya karen

शिशु या बच्‍चों को दस्‍त होने पर माता पिता को चिंता होना स्‍वाभा‍विक है। दस्‍त के कारण शिशु को कमजोरी और थकान हो सकती है। वैसे ताे दस्‍त लगने पर बच्‍चों को कुछ नहीं खिलाना चाहिए लेकिन शरीर में पानी की कमी होने से बचाने के लिए उन्‍हें कुछ न कुछ खिलाते-पिलाते रहना जरूरी है।

ऐसे कुछ विशेष फूड्स हैं जिन्‍हें दस्‍त लगने पर शिशु को खिलाना फायदेमंद रहता है। ये फूड्स हल्‍के होते हैं और आसानी से पच जाते हैं।

​दस्‍त में बच्‍चे कैसे खिलाएं

२ महीने के बच्चे को दस्त होने पर क्या करें - 2 maheene ke bachche ko dast hone par kya karen

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छह महीने से कम उम्र के बच्‍चे को दस्‍त लगने पर सिर्फ मां का दूध या फॉर्मूला मिल्‍क देना चाहिए। छह महीने से अधिक उम्र के बच्‍चे को दिन में थोड़ी थोड़ी देर में खिलाते रहें। ऐसे में हल्‍का आहार लेना सही रहता है।

बच्‍चे को जबरदस्‍ती खिलाने की कोशिश न करें। इसकी बजाय उसे उसकी पसंद का खाना खिलाएं। बच्‍चों को पोटैशियम से युक्‍त फल खिलाएं।दस्‍त होने पर जब भी मोशन आए तो बच्‍चे को स्‍तनपान करवाएं या फॉर्मूला मिल्‍क दें। बच्चे को दस्‍त लगने पर डॉक्‍टर की सलाह पर ओआरएस देना चाहिए। इससे शिशु के शरीर में पानी की कमी नहीं होती है।

​केला

२ महीने के बच्चे को दस्त होने पर क्या करें - 2 maheene ke bachche ko dast hone par kya karen

केले में उच्‍च मात्रा में फाइबर होता है जो मल को सख्‍त करने में मदद करता है। दस्‍त के दौरान शरीर में इलेक्‍ट्रोलाइट की कमी हो जाती है जिसे केला पूरी करता है।

आप शिशु को केले की प्‍यूरी बनाकर खिला सकती हैं। बच्‍चों को केला भी खिला सकती हैं। छह महीने के बच्‍चे के लिए दस्‍त का घरेलू उपाय केला है।

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​चावल का पानी

२ महीने के बच्चे को दस्त होने पर क्या करें - 2 maheene ke bachche ko dast hone par kya karen

छह महीने के शिशु को दस्‍त होने पर घरेलू उपाय के तौर पर चावल का पानी देना चाहिए। बच्‍चों में दस्‍त के घरेलू इलाज के तौर पर चावल के पानी का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

ये दस्त का कारगर और आसान घरेलू नुस्‍खा है। दस्‍त लगने पर शरीर में पानी और तरल पदार्थों की कमी हो जाती है जिसे चावल का पानी पूरी कर सकता है। इससे मल कम आता है।

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​दही या छाछ

२ महीने के बच्चे को दस्त होने पर क्या करें - 2 maheene ke bachche ko dast hone par kya karen

ये नुस्‍खा 7 महीने के बच्‍चे के लिए है। दही, छाछ या लस्‍सी में प्रोबायोटिक होते हैं जो पेट में गुड बैक्‍ट‍ीरिया को बनाने में मदद करते हैं। इससे पेट खराब की समस्‍या दूर हो सकती है।

कुछ रिसर्च में भी सामने आया है कि प्रोबायोटिक्‍स से आधे या लगभग दो दिनों में संक्रमण से पैदा हुए डायरिया को खत्‍म किया जा सकता है। आप शिशु या बच्‍चे को सादी दही, लस्‍सी या छाछ दे सकती हैं।

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​नींबू पानी और नारियल पानी

२ महीने के बच्चे को दस्त होने पर क्या करें - 2 maheene ke bachche ko dast hone par kya karen

नींबू पानी से आंतों को आराम मिलता है और दस्‍त पैदा करने वाले पैथोजीन नष्‍ट होते हैं। एक गिलास गुनगुने पानी में एक नींबू का रस और एक चुटकी नमक या चीनी मिलाकर बच्‍चे को दें। एक साल से कम उम्र के बच्‍चे के लिए नींबू पानी में चीनी या नमक न डालें।

आठ महीने के शिशु के लिए दस्‍त का इलाज नारियल पानी भी है। ये शरीर में डिहाइड्रेशन से बचाता है और दस्‍त की वजह से बॉडी में नष्‍ट हुए प्राकतिक नमक की पूर्ति करता है।

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In this article

  • मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरे शिशु को दस्त (डायरिया) है?
  • शिशुओं में दस्त (डायरिया) किस वजह से होते हैं?
  • शिशु के दस्त का उपचार कैसे करना चाहिए?
  • क्या स्तनपान करने वाले शिशुओं में दस्त होने की संभावना कम होती है?
  • क्या शिशु को ठोस आहार खिलाना बंद कर देना चाहिए?
  • यदि शिशु पानी जैसा पतला मलत्याग करे तो मुझे डॉक्टर से कब संपर्क करना चाहिए?
  • मैं शिशु की असहजता कैसे कम कर सकती हूं?
  • मैं शिशु को दोबारा दस्त होने से कैसे बचा सकती हूं?

मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरे शिशु को दस्त (डायरिया) है?

कभी-कभार पतला मल होना सामान्य है। मगर, यदि आपके शिशु के मलत्याग के तरीके में अचानक बदलाव आता है और वह बार-बार पानी जैसा पतला मलत्याग कर रहा है, जिसमें कोई ढेले नहीं हैं तो हो सकता है शिशु को डायरिया हुआ हो। मल विस्फोटक तरीके से बाहर आसपास छींटे मारता हुआ निकलता है।

दस्त के अन्य लक्षणों पर भी ध्यान दें। इनमें शामिल हैं उल्टी, बुखार और कभी-कभार शिशु के मल में खून या श्लेम आना।

नवजात शिशु बहुत बार मलत्याग करते हैं, इसलिए आप इसे दस्त मानकर चिंतित न हों। वास्तव में उसकी उम्र के शिशु के लिए यह सामान्य है। साथ ही, आपका शिशु कितना बार मलत्याग करता है, वह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि शिशु स्तनपान करता है या फॉर्मूला दूध पीता है।

सामान्य मल के कुछ और संकेत निम्नांकित हैं:

  • स्तनपान करने वाले नवजात शिशुओं का मल आमतौर पर पीला और नरम या पतला होता है। शिशु रोजाना पांच बार तक अपनी लंगोट गंदी कर सकता है।
  • कई बार स्तनपान करने वाले शिशु हर बार स्तनपान करने के दौरान या इसके तुरंत बाद मलत्याग करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जैसे ही उसका पेट भरता है, दूध उसकी पूरी आन्त्र प्रणली को उत्तेजित कर देता है, जिससे मलत्याग करने की इच्छा होती है।

एक महीने के अंदर स्तनपान करने वाले शिशु हर दिन काफी बार मलत्याग करना जारी रखेंगे। मगर उनका वजन बढ़ना भी जारी रहेगा और उनके मल में कोई खून नहीं होना चाहिए। कई बार स्तनपान करने वाले कुछ शिशु एक सप्ताह तक मलत्याग नहीं करते। मगर, जब वे करते हैं, तो भी उनका मल नरम ही होता है।

फॉर्मूला दूध पीने वाले शिशु दिन में एक बाद मलत्याग करते हैं। इनका मल कुछ ठोस और बदबूदार होता है।
बहरहाल, हर शिशु अलग होता है और वयस्कों की तरह उनके मलत्याग की प्रक्रिया में भी बदलाव आ सकते हैं।

जब तक शिशु का मल नरम हो और उसका वजन बढ़ रहा हो, तब तक मलत्याग में आने वाले सभी बदलाव सामान्य माने जाते हैं।

शिशु के मल के बारे में क्या सामान्य है और क्या नहीं, हमारे इस लेख में जानें।

शिशुओं में दस्त (डायरिया) किस वजह से होते हैं?

इसके संभावित कारणों की सूची बहुत लंबी है। आपके शिशु को विषाणुजनित (​वायरल) या जीवाणुजनित (बैक्टीरियल) इनफेक्शन की वजह से डायरिया हो सकता है। इसके अलावा इसके कारण कोई परजीवी भी हो सकता है, शिशु ने कोई एंटीबायोटिक दवाएं ली हो या फिर कुछ खाया हो।

वायरल इनफेक्शन
बहुत से विषाणु जैसे कि रोटावायरस, एडीनोवायरस, कैलिसिवायरस, एस्ट्रोवायरस और इन्फ्लूएंजा डायरिया के साथ-साथ उल्टी, पेट दर्द, बुखार और बदन दर्द का कारण हो सकते हैं।

दस्त होने का सबसे आम कारण एक विषाणु है, जिसका नाम है रोटावायरस। यह विषाणु अंतड़ियों को संक्रमित करता है, जिससे गैस्ट्रोएंटेराइटिस होता है। यह आंत की अंदरुनी परत को क्षति पहुंचाता है। इस क्षतिग्रस्त परत से तरल पदार्थ का रिसाव होता है और पोषक तत्वों का समाहन किए बिना भोजन इसमें से निकल जाता है। कुछ मामलों में रोटावायरस गंभीर मल संक्रमण और शरीर में पानी की कमी की वजह से होता है (डिहाइड्रेशन) का कारण बन सकता है।

रोटावायरस से सुरक्षा के लिए शिशु के टीकाकारण के तहत टीका लगाया जाएगा। यह एक अनिवार्य टीका है। शिशु को कौन सी वैक्सीन लगाई जा रही है, इसे देखते हुए उसे दो या तीन खुराक मिलनी चाहिए। पहली खुराक उसे छह से आठ हफ्ते की उम्र में मिलनी ​चाहिए, दूसरी खुराक 10 से 16 हफ्तों के बीच और तीसरी खुराक करीब 14 से 24 हफ्तों के बीच लगनी चाहिए।

ध्यान रखें कि छह हफ्ते से कम उम्र और चार महीने से अधिक उम्र के शिशु को इस टीके की पहली खुराक नहीं दी जा सकती है। यदि आपने यह टीका शिशु को नहीं लगवाया है, तो शिशु के डॉक्टर से बात करें।

अधिकांश वायरल डायरिया एक हफ्ते में ठीक हो जाते हैं। चूंकि ये वायरस की वजह से होते हैं, इसलिए इनका उपचार एंटिबायोटिक्स से नहीं किया जा सकता। इस दौरान अपने शिशु को स्तनपान करवाती रहें। डॉक्टर शायद शिशु को पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ, जिसमें ओआरएस का घोल भी शामिल है, पिलाने की सलाह दे सकते हैं, ताकि शिशु को जलनियोजित रखा जा सके। दस्त की अवधि को कम करने के लिए डॉक्टर जिंक अनुपूरक लेने की सलाह भी दे सकते हैं।

कई बार वायरल डायरिया गंभीर हो सकता है और इससे डिहाइड्रेशन हो सकता है। यदि ऐसा हो, तो शिशु को आईवी यानि नसों के जरिये (इंट्रावीनस)  तरल लेने की जरुरत हो सकती है।

बैक्टीरियल इनफेक्शन

जीवाणु जैसे कि साल्मोनेला,​ शिगेला, स्टेफिलोकोकस, कैम्फीलोबेक्टर या ई. कोली भी दस्त पैदा कर सकते हैं। यदि आपके शिशु को बैक्टीरियल संक्रमण हो, तो उसे गंभीर डायरिया के साथ-साथ मरोड़, मल में खून और बुखार भी हो सकता है। उसे उल्टी हो भी सकती है और नहीं भी।

कुछ जीवाण्विक संक्रमण अपने आप ठीक हो जाते हैं, मगर कुछ जैसे कि ई. कोलाई से होने वाले इनफेक्शन गंभीर हो सकते हैं। ई. कोलाई अधपके मांस और भोजन के अन्य स्त्रोतो में पाया जा सकता है। इसलिए यदि आपके शिशु में ये लक्षण हों, तो उसे डॉक्टर के पास ले जाएं। वह शिशु की जांच करेंगे और शायद बैक्टीरियल इनफेक्शन के संकेतों के लिए स्टूल कल्चर की जांच करना चाहेंगे।

कान का संक्रमण
कुछ मामलों में कान में इनफेक्शन (जो कि वायरल या बैक्टीरियल कुछ भी हो सकता है) दस्त की वजह बन सकता है। यदि आपके शिशु के साथ ऐसा हो, तो आप यह भी पाएंगी कि शिशु चिड़चिड़ा है और अपने कान खींचता रहता है। उसे उल्टी हो सकती है और उसकी भूख कम हो सकती है। हो सकता है उसे हाल ही में सर्दी-जुकाम हुआ हो। उसे बुखार भी हो सकता है।

परजीवी
परजीवी (पैरासाइट) संक्रमण भी डायरिया का कारण हो सकता है। उदाहरण के तौर पर जियाडाएसिस एक अति सूक्ष्म परजीवी की वजह से होता है, जो आंत में रहता है। इसके लक्षणों में गैस, फुलावट, दस्त और चिकना मल शामिल है।

इस तरह के इनफेक्शन डे केयर या समूूहों में आसानी से फैलते हैं और इनके उपचार के लिए विशेष दवा होती है, इसलिए शिशु को डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

क्रिप्टोस्पोरिडियम भी आसानी से फैलता है और वायरल संक्रमणों की तरह डायरिया पैदा कर सकता है। यह अपने आप ठीक हो जाता है, मगर शिशु की डॉक्टरी जांच की जरुरत होती।

शिशु में कीड़ों के संक्रमण के बारे में यहां और अधिक जानें।

अनुचित मात्रा में तैयार किया फॉर्मूला दूध
फॉर्मूला फीड अगर सही ढंग से तैयार न किया जाए तो दस्त का कारण बन सकता है। इसलिए, सुनिश्चित करें कि आप उचित मात्रा में पानी और फॉर्मूला मिलाएं। हमेशा फिल्टर किया हुआ पीने का पानी उबाल कर दूध तैयार करने में इस्तेमाल करें।

एंटिबायोटिक्स
यदि आपके शिशु को एंटिबायोटिक दवाओं के कोर्स के दौरान या इसके बाद दस्त होता है, तो यह उस दवा की वजह से हो सकता है जो आंतों में समस्या पैदा करने वाले जीवाणुओं के साथ-साथ अच्छे ​जीवाणुओं को भी मार देती है। इन दवाओं की मात्रा कम करने से यह समस्या करीबन एक हफ्ते में ठीक हो सकती है।

बहुत ज्यादा जूस
अधिक मात्रा में फलों के रस (खासकर सॉर्बिटॉल और उच्च मात्रा में फ्रुक्टॉस वाले जूस)  या बहुत ज्यादा मीठे पेय शिशु के पेट में गड़बड़ी कर सकते हैं। ध्यान रखें कि डॉक्टर शिशु को दो साल की उम्र से पहले जूस देने की सलाह नहीं देते।

भोजन एलर्जी

भोजन एलर्जी यानि फूड एलर्जी में ​शरीर की प्रतिरक्षण प्रणाली उन खाद्य प्रोटीनों के प्रति प्रतिक्रिया करती है, जो सामान्य तौर पर कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। भोजन एलर्जी होने के हल्के या गंभीर प्रभाव तुरंत या फिर एक-दो घंटों में दिखाई दे सकते हैं। इसके लक्षणों में दस्त, गैस, पेट में दर्द और मल में खून आना शामिल है। कुछ और गंभीर मामलों में एलर्जी से पित्ती (हाइव्स), चकत्ते, सूजन और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।

दूध का प्रोटीन एलर्जी पैदा करने वाला सबसे आम तत्व है। शिशु को एक साल का होने से पहले गाय का दूध नहीं पिलाना चाहिए, मगर यदि आपके शिशु को दूध के प्रोटीन से एलर्जी हो तो गाय के दूध से बना फॉर्मूला या ठोस आहार शुरु करने पर डेयरी उत्पादों से बना भोजन खाने से प्रतिक्रिया हो सकती है। कुछ मामलों में तो यदि माँ डेयरी उत्पादों का सेवन करे तो स्तनदूध से भी शिशु को यह एलर्जी हो सकती है।

एलर्जी पैदा करने वाले अन्य आम खाद्य पदार्थों (इनमें से अधिकांश अभी आपके शिशु के आहार में शामिल नहीं हुए होंगे) में शामिल है अंडे, मूंगफली, सोया, गेहूं, मेवे, मछली और सीपदार मछली। यदि आपको लगे कि आपके शिशु को शायद फूड एलर्जी है, तो डॉक्टर से बात करें।

भोजन के प्रति असहिष्णुता
भोजन एलर्जी के विपरीत भोजन असहिष्णुता (फूड इनटोलरेंस), जिसे कभी-कभी भोजन के प्रति संवेदनशीलता भी कहा जाता है। यह एक असामान्यत प्रतिक्रिया है, जिसमें आपकी प्रति​रक्षण प्रणाली शामिल नहीं होती। भोजन के प्रति संवेदनशीलता का एक उदाहरण है लैक्टॉस असहिष्णुता।

लैक्टॉस असहिष्णुता शिशुओं में होना काफी असामान्य बात है, मगर यदि यह आपके शिशु को हो तो इसका मतलब है कि उसके शरीर में पर्याप्त लैक्टेस का उत्पादन नहीं हो रहा। यह एक ऐसा एन्जाइम है, जिसकी जरुरत लैक्टॉस को पचाने में होती है। गाय के दूध और अन्य डेयरी उत्पादों में मौजूद शर्करा को लैक्टॉस कहा जाता है।

जब बिना पचा हुआ लैक्टॉस आपकी आंत में रहता है, तो इससे दस्त, पेट में मरोड़, फुलावट और गैस जैसे लक्षण हो सकते हैं। ये लक्षण आमतौर पर दूध से बने उत्पादों के सेवन के आधे घंटे से दो घंटों के बीच शुरु होते हैं।

वैसे अगर आपके शिशु की डायरिया की स्थिति बहुत गंभीर हो, तो उसे अस्थाई तौर पर लैक्टेस के उत्पादन में दिक्कत हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप उसे एक या दो हफ्ते तक लैक्टॉस असहिष्णुता के लक्षण हो सकते हैं।

विषाक्तता
यदि आपके शिशु ने कोई जहरीली या न खाने योग्य चीज जैसे दवाई, कोई पौधा या कैमिकल निगल लिया हो तो उसे दस्त व उल्टी हो सकती है। यदि शिशु बेहोश हो या उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही हो तो तुरंत अस्पताल जाएं। इसके अन्य लक्षणों में थकान और दौरे पड़ना है।

दस्त एन्जाइम की कमी से भी हो सकते हैं, हालांकि ऐसा होना दुर्लभ है।

शिशु के दस्त का उपचार कैसे करना चाहिए?

सुनिश्चित करें कि आपका शिशु अधिक मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करे, ताकि उसके लक्षणों में सुधार आए और शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) न हो।

अगर आपका शिशु उचित मात्रा में स्तनपान या फॉर्मूला दूध पी रहा है, तो ये जारी रखें। इसके साथ-साथ, थोड़े बड़े शिशुओं को बीच-बीच में पानी, ओरल रिहाइड्रेशन सोल्यूशन (ओआरएस) घोल के घूंट भी पिलाए जा सकते हैं। दस्त के कारण शिशु के शरीर से जो तरल और लवण निकल जाते हैं, ओआरएस उनकी भरपाई करने में मदद करता है। साथ ही, शिशु जब भी उल्टी करे और पेशाब या मलत्याग करे तो उसे ओआरएस के घोल की कुछ घूंट पिलाएं।

डॉक्टर डायरिया की अवधि कम करने के लिए जिंक अनुपूरक लेने के लिए भी कह सकते हैं। आमतौर पर एंटिबायोटिक्स उन बच्चों को दी जाती है, जिनके मल में खून आ रहा हो।

शिशु जो अतिरिक्त तरल पदार्थ खो रहा है, उसकी पूर्ति करने के लिए उसे अतिरिक्त स्तनपान करवाएं। उसे फुल-स्ट्रेंथ फॉर्मूला दूध भी पिलाती रहें, यानि उसके दूध में निश्चित मात्रा से अतिरिक्त पानी मिलाकर उसे पतला न करें। फॉर्मूला दूध पीने वाले और ठोस आहार खाना शुरु कर चुके शिशुओं को उबालकर ठंडा किया पानी भी पिलाया जा सकता है।

ठोस आहार खाने वाले शिशुओं को नारियल पानी भी पिलाया जा सकता है, क्योंकि यह इलैक्ट्रोलाइट्स का भरपूर स्त्रोत है। शिशु को फलों के रस, ग्लूकोस और सोडायुक्त पेय न दें। जो शक्कर अवशोषित नहीं होती वह आंत में पानी इकट्ठा करती है और दस्त को बढ़ा सकती है।

शिशु को एंटि-डायरिया दवा न दें। 12 साल से कम उम्र के शिशुओं को यह दवा नहीं देनी चाहिए, क्योंकि इसके गंभीर साइड इफेक्ट हो सकते हैं। यदि आप इसे लेकर चिंतित हों, या आपके मन में कोई सवाल हो तो हमेशा अपनी डॉक्टर से बात करें।

साथ ही, आपके शिशु की वजह से दूसरे बच्चों में भी डायरिया फैल सकता है। इसलिए जब उसने आखिरी बार पतला मलत्याग किया हो उसके कम से कम 48 घंटों बाद तक ​उसे डेकेयर या क्रेश न भेजें। इसके बाद दो हफ्तों तक शिशु को स्विमिंग के लिए न ले जाएं।

क्या स्तनपान करने वाले शिशुओं में दस्त होने की संभावना कम होती है?

हां। स्तनदूध में मौजूद विशेष तत्व और एंटिबॉडीज डायरिया पैदा करने वाले जीवों को बढ़ने से रोक सकते हैं। साथ ही, स्तनपान करने वाले शिशु पीने के पानी, दूध की बोतलों या सही तरीके से या साफ-सफाई से तैयार न किए गए फॉर्मूला दूध की वजह से होने वाले इनफेक्शन के प्रति ज्यादा सुरक्षित होते हैं।

क्या शिशु को ठोस आहार खिलाना बंद कर देना चाहिए?

नहीं। एक सामान्य सेहतमंद आहार शिशु के दस्त के दौर की अवधि घटाने में मदद कर सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि स्वस्थ भोजन से शरीर को जरुरी पोषक तत्व मिलते हैं, जो इनफेक्शन से लड़ने के लिए जरुरी हैं।

यदि आपके शिशु की उम्र छह महीने या इससे अधिक है और वह बार-बार उल्टी नहीं कर रहा, तो आप उसे ठोस आहार खिलाना जारी रख सकती हैं।

यदि शिशु ने हाल ही में ठोस आहार खाना शुरु किया है तो आप उसे चावल, मूंग दाल की खिचड़ी, केले, सेब की प्यूरी और सूखे टोस्ट खिला सकती हैं।

थोड़े बड़े शिशु या बच्चे को आप थोड़ी मात्रा में चिकन या स्टार्चयुक्त भोजन जैसे कि मसले हुए आलू और पास्ता दे सकती हैं।

हालांकि, हो सकता है आपके बच्चे की ज्यादा खाने की इच्छा न हो। उसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में समय-समय पर खाना खिलाने से फायदा हो सकता है। उसके भोजन में आप ​थोड़ा तेल, घी या मक्खन मिलाकर इसे और अधिक कैलोरी समृद्ध बना सकती है।

इस बात के कुछ प्रमाण हैं कि दही में पाए जाने वाले जीवित बैक्टीरियल कल्चर दस्त की मात्रा और अवधि को कम करने का सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। यदि आपका शिशु पहले से ही ठोस आहार खा रहा है, तो सादा, बिना मीठे का फुल क्रीम दूध से बना दही उसे दे सकती हैं। यह डायरिया के उपचार का आसान तरीका है, खासकर यदि शिशु को इसका स्वाद पसंद आता है तो। आप शिशु को लस्सी या छाछ भी दे सकती हैं। बस आप यह सुनिश्चित करें कि दही में लक्टोबेसिलस या जीवित कल्चर हो।

कुछ डॉक्टर शिशु को प्रोबायोटिक अनुपूरक देने की भी सलाह देते हैं। इस बारे में अपने डॉक्टर से अधिक जानकारी लें। वे बता सकेंगे कि आपके शिशु के लिए कौन सा अनुपूरक सही रहेगा और कितने समय त​क शिशु को यह देने की जरुरत है। मगर यदि शिशु खाना न चाहे, तो भी फिक्र न करें। ज्यादा जरुरी यह है कि वह पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ लेता रहे, ताकि उसके शरीर में पानी की कमी न हो।

यदि शिशु पानी जैसा पतला मलत्याग करे तो मुझे डॉक्टर से कब संपर्क करना चाहिए?

यदि आपको लगे कि शिशु की तबिय​त ठीक नहीं है, तो हमेशा डॉक्टर से बात करें, खासकर यदि शिशु छह महीने से छोटा है तो।

पतले, पानी जैसे दस्त के बारे में डॉक्टर को तुरंत बताना चाहिए। दस्त होने से सबसे बड़ी चिंता शरीर में पानी की कमी होने की होती है। इसलिए यदि शिशु के शरीर में तरल पदार्थ की कमी के निम्न संकेत दिखाई दें तो चिकित्सकीय सलाह लेने में देर न करें:

  • रुखी त्वचा या होंठ
  • सुस्ती
  • बिना आंसुओं के रोना
  • धंसे हुए कलांतराल (फॉन्टानेल)
  • हाथों और पैरों की रंगत फीकी होना
  • दुर्गंध वाला पीला पेशाब
  • सामान्य से कम लंगोट गीली होना

इनके अलावा, अगर शिशु में नीचे दिए गए ये लक्षण भी दिखाई दें, तो आपको शिशु के डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। हालांकि ये लक्षण इतने आम नहीं हैं, मगर फिर भी इन पर ध्यान देने की जरुरत है। जैसे कि:

  • उल्टी, जो 24 घंटो से ज्यादा जारी रहे
  • बुखार, जो 24 घंटो से ज्यादा जारी रहे
  • शिशु कोई तरल पदार्थ नहीं ले रहा है
  • उसके मल में खून आ रहा है
  • काला मल
  • पेट पर सूजन
  • अत्याधिक रोना

मैं शिशु की असहजता कैसे कम कर सकती हूं?

यदि दस्त कुछ घंटों से ज्यादा के लिए बने रहे तो आपको चिंता हो सकती है, मगर आमतौर पर ये अपने आप ठीक हो जाते हैं।

जितना हो सके शिशु को प्यार-दुलार करें और ज्यादा से ज्यादा आराम देने का प्रयास करें। शिशु के नितंबों को सूखा रखें। उसकी लंगोट (नैपी) भी बहुत सौम्यता से बदलें, क्योंकि दस्त की वजह से उसके नितंबों में नैपी रैश की वजह से दर्द हो सकता है।

अगर, दस्त एक दिन से ज्यादा समय तक रहें, तो नितंबों में असहजता कम करने के लिए बैरियर क्रीम का इस्तेमाल करें। अगर हो सके तो ज्यादा चिंता न करें, सही देखभाल से आपका लाडला फिर से पहले की तरह खिल उठेगा।

मैं शिशु को दोबारा दस्त होने से कैसे बचा सकती हूं?

अपने शिशु को स्वस्थ रखने के लिए यह जरुरी है कि उसे अच्छा पालन-पोषण मिले। सुनिश्चित करें कि आप शिशु का टीकाकरण समय पर कराएं। यदि आपको टीकों को लेकर कोई चिंता या सवाल हैं तो डॉक्टर से बात करेंं।

उचित साफ-सफाई डायरिया होने की आशंका को कम करने में मदद करती है, क्योंकि इसे पैदा करने वाले कीटाणु आसानी से हाथों से मुंह में चले जाते हैं। इसलिए गंदी नैपी बदलने या शौचालय के बाद अपने हाथ साबुन से अवश्य धोएं।

साथ ही, खाना बनाने और कच्चे मांस और सब्जियों का काम करने के बाद आप अपने हाथ अवश्य धोएं। सुनिश्चित करें कि आप खाना तैयार करने और पकाने के सुरक्षित तरीकों का पालन करें।

अपने शिशु के हाथ भी अक्सर धोना याद रखें। आपका शिशु अपनी उंगलियां मुंह में लेकर डायरिया पैदा करने वाले इनफेक्शन की चपेट में आ सकता है। इसी कारण शिशु के खेलने की जगह पर गंदा पानी या गंदे खिलौने या कोई अन्य दूषित चीज नहीं होनी चाहिए।

यदि आपके घर में पालतू जानवर है, तो सुनिश्चित करें कि वे घर में मलत्याग न करें। अस्वस्थ जानवर को पशुओं के डॉक्टर के पास ले जाएं और पूरी तरह ठीक होने तक उसे शिशु के कमरे में न आने दें।

यदि आपके घर में कामवाली या आया शिशु की देखभाल करती है तो उसे भी साफ-सफाई की मूल बातों का पालन करने के लिए कहें।

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हमारे लेख पढ़ें:

  • शिशुओं में कब्ज (कॉन्स्टिपेशन)
  • गैस क्या है और यह शिशु को क्यों होती है?
  • शिशुओं में कॉलिक (उदरशूल)

References

AAFP. 2009. American Academy of Family Physicians. Vomiting and Diarrhea: Helping Your Child Through Sickness. familydoctor.org

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Quigley MA, Kelly YJ, Sacker A. 2007. “Breastfeeding and hospitalisation for diarrhoeal and respiratory infection in the UK millennium cohort study”. Pediatrics. 119: 837–842

2 महीने के बच्चे को दस्त लगे तो क्या करें?

आज हम आपको ऐसे घरेलू उपाय बता रहे हैं जिनसे शिशु के दस्त को ठीक किया जा सकता है..
शिशु को दस्त लगने से परेशानी ... .
शिशु के दस्त ठीक करने के लिए घरेलू उपाय.
1- नारियल पानी- शिशु को दस्त लगने पर उसे हाइड्रेट रखना बहुत जरूरी है. ... .
2- नमक चीनी का पानी- किसी को भी दस्त लगने की समस्या होने पर नमक-चीनी का घोल पीने की सलाह दी जाती है..

बच्चे के दस्त रोकने के लिए क्या करें?

बच्चों में दस्त बन सकते हैं जानलेवा, ये आसान घरेलू नुस्खे बनेंगे....
​नींबू-अदरक का रस नींबू के रस में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। ... .
​दही-चावल हमारे यहां दही चावल बहुत चाव से खाए जाते हैं। ... .
​जीरा पानी जीरा पानी बच्चे के लिए ओआरएस की तरह काम करता है। ... .
​सेब रोजाना एक सेब खाना सेहत के लिए बहुत जरूरी है। ... .