Show और उपयोगी साबित होते गांधी के विचार, सभ्यता और जीवन की रक्षा के लिए इनको अपनाना है जरूरीगांधी जी का मानना था कि सत्य से चंचल मन स्थिर होता है। जो आदमी झूठ सोचता या बोलता है वह अपने मन को काबू में नहीं रख सकता न ही अपने व्यवहार पर ही नियंत्रण कर पाता है। [गिरीश्वर मिश्र]। कभी हम कहते थे सच को आंच नहीं, पर अब आंच से ही सच बनाया जा रहा है। पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में एक राजनीतिक दल ने ट्रक पर लादकर एक ट्रैक्टर पहुंचाया, फिर उसमें आग लगा दी। यह सब किसानों के पक्ष में लड़ाई को व्यक्त करने के लिए किया गया। भारत की राजनीति में सत्य के साथ ऐसे छल के जाने कितने उदाहरण मिल जाएंगे। यह व्यापक चिंता का विषय है। खासतौर पर आज जब हम सत्य के राही राष्ट्रपिता की जयंती मना रहे हैं तो हमें यह मंथन करना होगा कि हम सब किस दिशा में जा रहे हैं? सत्य यानी जीवन और अस्तित्व की लड़ाई में हम कहां खड़े हैं? देखा जाए तो आज की दुनिया में सत्य यानी यथार्थ को लेकर मारा-मारी बहुत बढ़ गई है और सत्य को साबित करने का बाजार भी तेजी से बढ़ा है। आज सत्य के लिए उसके होने से ज्यादा जरूरी हो गया है, उसके होने का सुबूत जुटाना। सत्य का कारोबार आज का सबसे बड़ा और महंगा व्यापार बन चुका है। आज सारे टीवी चैनल अपने-अपने सत्य को स्थापित करने के लिए बेताब हैं। राजनीतिक दल सत्य के विभिन्न संस्करणों के साथ अपने सत्य को बड़ा सत्य साबित करने के तर्क प्रस्तुत करने में लगे हैं। सभी खेमों के अपने-अपने सच हैं और किसका सच बाजी मार ले जाएगा, यह उसके लिए उपलब्ध तकनीक पर निर्भर करता है। वे जीवित महापुरुषों और महादेवियों के कंधे पर चढ़कर जनता को सत्य का दर्शन करा रहे हैं। सरकारों को अपने सत्य के विज्ञापन के लिए बजट में अच्छी खासी रकम की व्यवस्था करनी होती है। नेतागण सत्य की झलक दिखलाने वाले नारों और वायदों के साथ जनता का मार्गदर्शन कराते रहते हैं। सत्य भी वैकल्पिक है त उसे कैसे चुना जाए कहने का आशय यह कि सत्य कितना भी पारदर्शी क्यों न हो, अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अब तरह-तरह की बैसाखियों पर निर्भर रहने लगा है। उत्तर आधुनिक मन सत्य को लेकर बड़ा उदार है। इसने सत्य की रचना में विविधता की अगणित किस्मों को जन्म दिया है और उनके लिए गुंजाइश बनाता है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि अगर सत्य भी वैकल्पिक है (अर्थात उसका होना ही काफी नहीं है) तो उसे कैसे चुना जाए? अस्तित्व के ऐसे प्रश्न चिरंतन हैं और वे बापू के सामने भी थे और उन्होंने समाधान भी ढूंढ़ा था। यह देखना और समझना जरूरी है कि उनकी दृष्टि क्या थी। जो सत्य को प्राप्त कर पाता है, वही पूर्ण को पाता है गांधी जी का मानना था कि सत्य से चंचल मन स्थिर होता है। जो आदमी झूठ सोचता या बोलता है, वह अपने मन को काबू में नहीं रख सकता, न ही अपने व्यवहार पर ही नियंत्रण कर पाता है। इसलिए जो सत्य को प्राप्त कर पाता है, वही पूर्ण को पाता है। अत: सत्य बोलना और उसके अनुसार आचरण करना हमारा स्वभाव होना चाहिए। सत्य के बगल में असत्य ज्यादा देर तक नहीं ठहर सकता। सत्यवादी के लिए जरूरी है कि उसमें विनय और नम्रता हो। तब उसका आचरण और लोगों के लिए मिसाल हो जाता है। सत्य ही ईश्वर है गांधी जी आरंभ में सत्य को ईश्वर का नाम कहते थे, परंतु धीरे-धीरे उन्हें यह अनुभव हुआ कि सारे विश्व की व्यवस्था में परिलक्षित नियम सत्य है। अंतत: वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सत्य ही ईश्वर है। सत्य रूपी ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव उन्हें होता रहा। इस सत्य की झलक उन्हें मिलती रही। सत्य के प्रति गांधी जी की निष्ठा दिन-प्रतिदिन बलवती होती गई। सत्य की ओर उनकी यात्रा में यह भी प्रकट हुआ कि इसकी राह अहिंसा से होकर ही आगे बढ़ती है। अहिंसा प्रेम के अर्थ में एक सकारात्मक प्रवृत्ति है। दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। सत्य का साधक शांतिप्रिय होता है। सत्य की प्राप्ति हिंसा से नहीं हो सकती, क्योंकि हिंसा सत्य से विचलित कर देती है। अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए सत्य तक पहुंचने की व्वस्था है अनिवार्य गांधी जी के अनुसार प्रकृति और मनुष्य के कल्याण के लिए अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए सत्य तक पहुचने की व्यवस्था अनिवार्य है। वह साध्य साधन को इतना निकट मानते थे कि उन्हें प्रेम (अहिंसा), सत्य और ईश्वर प्रीति में एकत्व की अनुभूति होने लगी। सत्य का मार्ग सीधा तो था, पर संकरा था। यही बात अहिंसा पर भी लागू होती है। इसके लिए आत्म शुद्धि जरूरी होती है। इसके लिए अहंकार को गलाना पड़ता है। अहिंसा या प्रीति स्वाभाविक मानवीय अनुभव है, जो मां और शिशु के बीच दिखता है। गांधी जी अहिंसा/प्रेम में इसी तरह के पारस्परिक प्रीति और सद्भाव की प्रवृत्ति का विकास देखते थे। यह एक कठोर साधना है, जिसके लिए साहस चाहिए। अपने परिपक्व रूप में अहिंसा का आचरण एक स्वायत्त व्यवहार का रूप ले लेता है। तभी सत्याग्रह में शामिल होने के लिए अहिंसा को अनिवार्य बनाया गया था। अस्वाद और ब्रह्मचर्य को अपनाया गया अवज्ञा भी करनी हो तो सविनय। अहिंसक प्रतिरोध के लिए आत्मिक बल का आधार जरूरी था। इन सबके पोषण के लिए अस्तेय (चोरी न करना), अपरिग्रह (आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना), अस्वाद और ब्रह्मचर्य को अपनाया गया। गांधी जी ने अपने आश्रमवासियों के लिए इन्हें अनिवार्य बना रखा था। सभी के लिए शरीर श्रम और समाजोन्मुख आत्मिक विकास में संलग्नता स्वाभाविक रूप से अपनाई गई। सत्य तक हमें हिंसा नहीं पहुंचा सकती अपने प्रयोगशील जीवन में गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका और भारत में तपी हुई साम्राज्यवादी सत्ता के साथ सत्य के बल पर लोहा लिया। सत्य के संधान के लिए कठिन राह अंगीकार की। अपमान, जेल, यातना के अनुभवों के साथ परंपरा और आधुनिकता की अपने ढंग से व्याख्या की और एक सात्विक दृष्टि विकसित की, जो सर्वोदय की भावना से प्रेरित थी, जिसमें सबके लिए जगह थी। इन सबके मूल में गांधी जी का सत्य का प्रबल आग्रह था। वह कहते थे, ‘यदि सत्य पर विजय प्राप्त करनी है तो सिर्फ अहिंसा के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। अहिंसा में वह गुण है, जो सत्य तक हमें पहुंचा सकता है। सत्य तक हमें हिंसा नहीं पहुंचा सकती। हिंसा के द्वारा तो सिर्फ पतन ही होता है।’ आज विश्व के सामने विविध रूपों में हिंसा प्रकट हो रही है और मनुष्य तथा प्रकृति सभी त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। ऐसे में सभ्यता और जीवन की रक्षा के लिए गांधी जी के विचारों का अपनाना जरूरी है, जो विकास के दंभ और अहंकार के कोलाहल में अनसुने हो रहे हैं। हमारे पास इनका कोई विकल्प भी नहीं है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सीमाएं जाहिर हैं। (लेखक पूर्व कुलपति एवं पूर्व प्रोफेसर हैं) [लेखक के निजी विचार हैं] Edited By: Dhyanendra Singh सत्य और अहिंसा के बीच क्या संबंध है?अहिंसा जब मैं निराश होता हूं तब मैं याद करता हूं कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है किंतु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हतयारे भी हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजय लगते थे किंतु अंत में उनका पतन ही होता है -इसका सदैव विचार करें।
गांधी जी के अनुसार सत्य और अहिंसा क्या है?उन्होंने जो किया है और जो दिया है उनका प्रभाव भारतीय जीवन पर कदाचित युग-युग तक बना रहेगा। महात्मा गांधी ने सत्य, अहिंसा, न्याय, शोषण का न होना, मानवीय करुणा और शांति जैसे जिन मूल्यों पर जोर दिया है वे समय एवं स्थान की सीमाआें से परे हैं।
सत्य अहिंसा का मतलब क्या होता है?जिस व्यक्ति में अहिंसा और सत्य के गुणों का समावेश हो जाता है। वह निरंतर सफलता प्राप्त करता चला जाता है। सत्य और अहिंसा का पालन करने में ही ईश्वरत्व की महिमा को समझना संभव है। इन गुणों के पालन से व्यक्ति में समरूपता, सहयोगी, मैत्री, करुणा, विनम्रता आदि के सद्गुण होते हैं।
सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलने से क्या लाभ मिलता है?
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