लैला की शादी के कहानीकार कौन है - laila kee shaadee ke kahaaneekaar kaun hai

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लैला-मजनू की प्यास की आस में तड़प-तड़पकर यहां हुई थी मौत, कुछ ऐसी है दोनों के इश्क की कहानी

श्रीगंगानगर(जयपुर). हर साल 15 जून काे लैला-मजनू की याद में अनूपगढ़ के बिंजौर में सालाना मेला लगता है। पूरे देश के हजारों प्रेमी जोड़े यहां आकर चादर चढ़ाते हैं और मन्नतें मांगते हैं। आखिर इस मेले की शुरुआत भारत-पाक सीमा पर बसे बिंजौर गांव से हुई कैसे? लैला-मजनूं का इस गांव से रिश्ता क्या था? दोनों की मजार यहां बनी कैसे? लैला-मजनूं आखिर हिंदुस्तान आए कैसे? जैसे कई सवाल थे, जिनका जवाब किसी के पास नहीं था। एक साथ दफना दिया था दोनों को...

- भास्कर टीम ने 15 दिन तक इंटरनेट पर विभिन्न साइट्स खंगाली, इतिहासकारों से बातचीत की। बिंजौर गांव जाकर वहां के बुजुर्गों तथा उस समय के बीएसएफ में रहे अधिकारियों से बात की।

- हालांकि सबके अलग-अलग मत थे लेकिन ज्यादातर का यही मत था कि उस समय पाकिस्तान में जन्मे लैला-मजनूं अंतिम समय में अनूपगढ़ के बिंजौर गांव ही आए थे।

- लैला के भाई दोनों को मारने के लिए उनके पीछे पड़े हुए थे। दोनों छिपते-छिपाते पानी की तलाश में यहां पहुंचे और दोनों की प्यास से ही मौत हो गई और यहीं दोनों को एक साथ दफना दिया गया।

- दोनों की इस प्रेम कहानी व कब्रों का राज यहां आजादी के बाद खुला फिर 1960 के बाद से यहां मेला भरने लगा, जो आज तक जारी है।

लैला-मजनू का जन्म 11वीं शताब्दी में हुआ

- लैला-मजनू 11 वीं शताब्दी में पैदा हुए थे। उस समय भारत-पाक एक ही थे।पाक स्थित सिंध प्रांत में मजनू का जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ था। मजनू का नाम कायस इब्न अल-मुलाव्वाह था। मान्यता है कि मजनू के जन्म के समय ही ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी कर दी थी कि इसे प्रेम रोग होगा और यह दर-दर भटका करेगा।

मदरसे में तालीम के दौरान इश्क हुआ

- मदरसे में तालीम (पढ़ाई) के दौरान ही मुलाव्वाह को लैला नाम की एक लड़की से इश्क हो गया और लैला भी उसे चाहने लगी। मुलाव्वाह कविताओं में रुचि रखता था। ऐसे में अब वो जो भी कविता लिखता, सबमें लैला का जिक्र जरूर होता। मजनू ने लैला के परिवार वालों से उसका हाथ मांगा, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया।

नाराज परिवार ने लैला की शादी

- अमीर व्यापारी से की| लैला के परिवार ने उसकी शादी एक अमीर व्यापारी से करवा दी। लैला भी इस शादी से खुश नहीं थी और उसने अपने पति को मजनू के बारे में सब बता दिया। खफा होकर पति कैफी ने उसे तलाक दे दिया और उसके पिता के घर छोड़ दिया। जब मजनू ने लैला को फिर देखा तो दोनों घर से भाग गए। 

लैला-मजनू घर से भागे तो परिवार जान के प्यासे

लैला के मजनू के साथ भागने का पता उसके परिवार को लगा तो उसके भाई गुस्सा हो गए और भाई दोनों को ढूंढने लगे। वहीं, परिवार से डरते-डरते लैला-मजनू दर-दर भटकने लगे। बताया जाता है कि भागते-भागते वे श्रीगंगानगर की अनूपगढ़ तहसील के गांव बिंजौर (6एमएसआर) में पहुंच गए।

- यहीं रेगिस्तानी क्षेत्र में पानी नहीं मिलने से दोनों की मौत हो गई और लोगों ने उन्हें एक साथ दफना दिया।

ये है वो पहली कविता है, जो मजनू ने लैला के लिए लिखी

"मैं इन दीवारों से गुजरता जाऊंगा, जिनसे लैला गुजरती है और मैं उस दीवार को चूमा करूंगा, जिनसे लैला गुजरती है
यह मेरे दिल में दीवारों के प्रति प्यार नहीं है, जो मेरे दिल को खुश करता है लेकिन जो उन दीवारों के पास से चलकर मेरा ध्यान आकर्षित करती है, उससे मुझे प्यार है।"

मजार में हिन्दू-मुस्लिम दोनों की आस्था, बस नाम अलग
 

- लैला-मजनू मजार में हिंदू और मुस्लिम दोनों की जबरदस्त आस्था है। दोनों समुदायों के लोग यहां आकर सिर झुकाते हैं और मन्नत मांगकर धागा बांधते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि दोनों समुदायों ने यहां का नाम भी अलग रखा हुआ है। मुस्लिम इसे लैला-मजनू की मजार कहते हैं तो हिंदू लैला मजनू की समाधि कहकर पूजते हैं। पांच दिन के इस मेले में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों से प्रेमी जोड़े यहां मन्नतें मांगने आते हैं।

बीएसएफ भी देती है दोनों काे सम्मान, सीमा चौकी का नाम पर भी मजनू पर

- देश में बीएसएफ की संभवत: यहां पहली सीमा चौकी है, जो प्यार करने वालों के नाम पर बनी है। सीमा पर बसे इस गांव में बीएसएफ की सीमा चौकी का नाम पहले लैला-मजनू था, जिसका नाम बाद में मजनू कर दिया गया।

- पहले यहां पाकिस्तान से बड़ी संख्या में प्रेमी आया करते थे, लेकिन भारत-पाक में मतभेद बढ़े तो यहां तारबंदी कर दी गई और वहां से प्रेमियों का यहां आना भी बंद हो गया।

- ये दोनों फोटो 1960 के हैं और सेना के ही रिटायर्ड अधिकारियों ने उपलब्ध कराए हैं। लैला-मजनू की मजार पहले कच्ची हुआ करती थी। 

लैला-मजनूँ की अमर प्रेम-कहानी

अरब के प्रेमी युगल लैला-मजनूँ सदियों से प्रेमियों के आदर्श रहे हैं और रहें भी क्यों नहीं, इन्होंने अपने अमर प्रेम से दुनिया को दिखा दिया है कि मोहब्बत इस जमीन पर तो क्या जन्नत में भी जिंदा रहती है। अरबपति शाह अमारी के बेटे कैस की किस्मत में यह प्रेमरोग हाथ की लकीरों में ही लिखा था। उसे देखते ही ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि कैस प्रेम दीवाना होकर दर-दर भटकता फिरेगा। ज्योतिषियों की भविष्यवाणी को झुठलाने के लिए शाह अमारी ने खूब मन्नतें कीं कि उनका बेटा इस प्रेमरोग से महरूम रहे, लेकिन कुदरत अपना खेल दिखाती ही है।


दमिश्क के मदरसे में जब उसने नाज्द के शाह की बेटी लैला को देखा तो पहली नजर में उसका आशिक हो गया। मौलवी ने उसे समझाया कि वह प्रेम की बातें भूल जाए और पढ़ाई में अपना ध्यान लगाए, लेकिन प्रेम दीवाने ऐसी बातें कहाँ सुनते हैं। कैस की मोहब्बत का असर लैला पर भी हुआ और दोनों ही प्रेम सागर में डूब गए। नतीजा यह हुआ कि लैला को घर में कैद कर दिया गया और लैला की जुदाई में कैस दीवानों की तरह मारा-मारा फिरने लगा। उसकी दीवानगी देखकर लोगों ने उसे 'मजनूँ' का नाम दिया। आज भी लोग उसे मजनू के नाम से जानते हैं और मजनू मोहब्बत का पर्याय बन गया है।
लैला-मजनूँ को अलग करने की लाख कोशिशें की गईं लेकिन सब बेकार साबित हुईं। लैला की तो बख्त नामक व्यक्ति से शादी भी कर दी गई। लेकिन उसने अपने शौहर को बता दिया कि वह सिर्फ मजनूँ की है। मजनूँ के अलावा उसे और कोई नहीं छू सकता। बख्त ने उसे तलाक दे दिया और मजनूँ के प्यार में पागल लैला जंगलों में मजनूँ-मजनूँ पुकारने लगी। जब मजनूँ उसे मिला तो दोनों प्रेमपाश में बँध गए। लैला की माँ ने उसे अलग किया और घर ले गई। मजनूँ के गम में लैला ने दम तोड़ दिया। लैला की मौत की खबर सुनकर मजनूँ भी चल बसा।

उनकी मौत के बाद दुनिया ने जाना कि दोनों की मोहब्बत कितनी अजीज थी। दोनों को साथ-साथ दफनाया गया ताकि इस दुनिया में न मिलने वाले लैला-मजनूँ जन्नत में जाकर मिल जाएँ। लैला-मजनूँ की कब्र आज भी दुनियाभर के प्रेमियों की इबादतगाह है। समय की गति ने उनकी कब्र को नष्ट कर दिया है, लेकिन लैला-मजनूँ की मोहब्बत जिंदा है और जब तक दुनिया है जिंदा रहेगी।




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लैला के शादी के कहानी कौन है?

लैला की तो बख्त नामक व्यक्ति से शादी भी कर दी गई। लेकिन उसने अपने शौहर को बता दिया कि वह सिर्फ मजनूँ की है। मजनूँ के अलावा उसे और कोई नहीं छू सकता। बख्त ने उसे तलाक दे दिया और मजनूँ के प्यार में पागल लैला जंगलों में मजनूँ-मजनूँ पुकारने लगी।

मजनू का असली नाम क्या था?

लैला-मजनूं का जन्म 11वीं शताब्दी में हुआ पाक स्थित सिंध प्रांत में मजनू का जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ था। मजनूं का नाम कायस इब्न अल-मुलाव्वाह था

लैला कौन थी?

कैस को एक लड़की से मोहब्बत हो गई, जिसका नाम लैला था। इस प्रेम कहानी के बारे में बताने वाले कई लोगों ने इस बात का जिक्र किया है कि लैला एक सियाहफाम यानी काली लड़की थी और लैला पर एक गोरे नौजवान कैस का दिल आ गया था। लोगों ने जब मजनू से पूछा कि तुमने इस लड़की में क्या देखकर मोहब्बत की है, यह तो काली है और तुम गोरे हो।

लैला मजनू कौन सी सन में आई थी?

लैला मज़नू 1976 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।