Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़ Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf. GSEB Class 10 Hindi Solutions लखनवी अंदाज़ Textbook Questions and Answers प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4.
रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 5. उसकी फाँके काटकर तौलिया बिछाकर उसे करीने से सजा देते हैं। फिर कटी हुई फांकों पर जीरा मिश्रित नमक-मिर्च छिड़का। इस प्रकार नवाब साहब खीरा खाने की तैयारी करते हैं। किन्तु मन-ही-मन उसका रसास्वादन करते हैं। एक-एक खीरे की फांको उठाकर सूंघते हैं और खिड़की के बाहर फेंकते जाते हैं।” ख. किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं? प्रश्न
6. प्रश्न 7. पढ़ने की सनक सवार होना । धर्मवीर भारती को बचपन से पढ़ने की सनक सवार थी। खाना खाने बैठते तब भी पढ़ते रहते थे। पुस्तकालय में जब तक उनको कहा न जाय तब तक पुस्तकालय से बाहर नहीं निकलते थे। आगे चलकर वे हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार बने। भाषा-अध्ययन प्रश्न 8. Hindi Digest Std 10 GSEB लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers अतिरिक्त प्रश्नोत्तर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए : प्रश्न 1. कल्पना करने से उदर-पूर्ति नहीं हो सकती। उनकी नवाबी शान अब नहीं रही यह इस बात से पता चलता है कि वे सेकन्ड क्लास में यात्रा कर रहे थे। फिर भी न जाने क्यों नवाब लोग अपनी नवाबी अंदाज या परंपरा का दिखावा करते हैं। लेखक ने इस पर करारा व्यंग्य करते हुए कहा कि यदि बिना खाये व्यक्ति की भूख शांत हो सकती है, तो बिना विचार, घटना और पात्र के कहानी भी लिखी जा सकती है। प्रश्न 2. प्रश्न 3. वे चाहते तो खुद पहल करके नवाब साहब से बातचीत प्रारंभ कर शिष्टाचार का परिचय दे सकते थे। किन्तु उन्होंने तो बातचीत करने के बजाय आखें चुरा ली। नवाब साहब दो बार उनसे खीरा खाने का आग्रह करते हैं, यहाँ पर भी लेखक के भावों में कोई परिवर्तन नहीं आता और वे इन्कार कर देते हैं। यहाँ पर लेखक अपने घमण्डी स्वभाव का प्रदर्शन करता है। अत: मेरे अनुसार नवाब साहब का स्वभाव लेखक से अच्छा है। प्रश्न 4. जबकि वास्तविकता यह है कि भूख केवल सूंघने से शांत नहीं होगी। उसके लिए भोजन आवश्यक है। लेखक बताना चाहते हैं कि व्यक्ति को यथार्थ में जीना चाहिए। हमें बनावटीपूर्ण जीवन-शैली या झूठा दिखावा करने की आदत छेड़ देनी चाहिए। हमें हर मनुष्य को समान मानकर उसके साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए कि हम दूसरों के उपहास के पात्र बने। लेखक यही संदेश इस पाठ के द्वारा देना चाहते हैं। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 1. मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नयी कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए टिकट सेकंड क्लास का हौ ले लिया। गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खोरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कूद जाने से सज्जन की आखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. 2. नवाब साहब ने संगीत के लिए उत्साह नहीं दिखाया। हमनें भी उनके सामने की बर्थ पर बैठकर आत्मसम्मान में आँखे चुरा लीं। ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब को असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिलकुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और सब गंवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मंझले दर्जे में सफर करता देखे। अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खौरे खरौदे होंगे और अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएं? हम कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे। नवाब साहब कुछ देर गाड़ी की खिड़की से बाहर देखकर स्थिति पर गौर करते रहे। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 3. लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचनेवाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं। ग्राहक के लिए जीरा-मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाजिर कर देते हैं। नवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फांकों पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुखी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे से रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था। हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नजरों से बच सकने के ख्याल में अपनी असलियत पर उतर आए हैं। नवाब साहब ने फिर एक बार हमारी ओर देख लिया, ‘वल्लाह, शौक कीजिए, लखनऊ का बालम खीरा है!’ नमक-मिर्च छिड़क दिए जाने से ताजे खीरे को पनियाती फाँकें देखकर पानी मुंह में जरूर आ रहा था, लेकिन इनकार कर चुके थे। आत्मसम्मान निबाहना ही उचित समझा। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 4. नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फांकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में पलके मुंद गईं। मुंह में भर आए पानी का घुट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फांक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फांकों को नाक के पास ले जाकर वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गए। नवाब साहब ने खीरे की सब फांकों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आंखों से हमारी ओर देख लिया मानो कह रहे हों यह है खानदानी रईसों का तरीका ! नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल में थककर लेट गए। हमें तसलीम में भी खम कर लेना पड़ा – यह है खानदानी तहजीब, नफासत और नज़ाकत ! हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका जरूर कहा जा सकता है। परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है? नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊंचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लजीज होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’ प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. अति लघुत्तरी-प्रश्नोत्तर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनकर लिखिए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. सविग्रह समासभेद बताइए :
भाववाचक संज्ञा बनाइए:
विलोम शब्द लिखिए :
दो-दो समानार्थी शब्द दीजिए :
संधि-विच्छेद कीजिए:
उपसर्ग/प्रत्यय अलग कीजिए :
विशेषण बनाइए:
पाठ से संयुक्त क्रियाएं छोटिए :
लखनवी अंदाज़ Summary in Hindiलेखक- परिचय : यशपाल का जन्म सन् 1903 में पंजाब के फिरोजपुर छावनी में हुआ था। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा काँगड़ा से ग्रहण किया। बाद में लाहौर के नेशनल कॉलेज से उन्होंने बी.ए. किया। वहाँ की क्रांतिकारी धारा से जुड़ने के बाद कई बार जेल भी गए । उनको मृत्यु सन् 1976 में हुई। यशपाल हिन्दी साहित्य के आधुनिक कथाकारों में प्रमुख हैं। इनकी रचनाओं में आम व्यक्ति के सरोकारों की उपस्थिति है। इन्होंने यथार्थवादी शैली में अपनी रचनाएँ लिखी हैं। इनकी रचनाओं में सामाजिक विषमता, राजनैतिक पाखण्ड और रूढ़ियों के खिलाफ करारा प्रहार दिखलाई पड़ता है। उनकी कहानियों में ‘ज्ञानदान’, ‘तर्क का तूफान’, ‘पिंजरे की उड़ान’, ‘वो दुलिया’, ‘फूलों का कुर्ता’, ‘देशद्रोही’ उल्लेखनीय है। ‘झूठा सच’ इनका प्रसिद्ध उपन्यास है जो देशविभाजन की त्रासदी पर आधारित है। इसके अतिरिक्त अमिता’, ‘दिव्या’, ‘पार्टी कामरेड’, ‘दादा कामरेड’, ‘मेरी तेरी उसकी बात’ आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं। भाषा की स्वाभाविकता और जीवन्तता इनकी रचनाओं की विशेषता है। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में इनके योगदान के लिए भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। प्रस्तुत पाठ ‘लखनवी अंदाज’ में दिखावा पसंद लोगों की शैली का वर्णन किया है। एक नवाब जो ट्रेन में इनके साथ सफर करता है वह अपनी नवाबी का प्रदर्शन करते हुए खीरे की फांकों को खाने की जगह सूंघकर रसास्वादन करता हैं और सूंघते हुए खीरे की एक-एक फाँक को खिड़की के बाहर फेंकते जाते है। इसके बाद डकार लेकर तृप्त होने का नाटक करता है। इस व्यवहार को देख लेखक सोचते हैं कि बिना घटना, विचार और पात्रों के नई कहानी भी लिखी जा सकती है। पाठ का सार (भाव) : लेखक की रेलयात्रा : लेखक सेकन्ड क्लास में जाना नहीं चाहते थे क्योंकि उसके दाम अधिक थे। किन्तु वहाँ भीड़ कम होगा और वे अपनी नई कहानी के संबंध में सोच सकेंगे और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य को देख सकेंगे इसलिए उन्होंने सेकन्ड क्लास की टिकट लेकर यात्रा करने लगे। गाड़ी छूटनेवाली थी। दौड़कर डिब्बे में चढ़ गए। लेखक को अनुमान था कि डिब्बा खाली होगा, उसने देखा कि एक बर्थ पर लखनऊ के नवावी अंदाज में एक सफेदपोश सज्जन पालथी मारकर बैठे हैं, जिनके सामने तौलिए पर दो चिकने खीरे रखे हैं। लेखक का सहसा वहाँ आ जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा। नवाब साहब ने लेखक में कोई रूची नहीं दिखलाई और न लेखक ने अपनी ओर से कोई प्रयास किया। नवाब साहब का लेखक के प्रति उदासीनता : लेखक सामने बैठे नवाब साहब के विषय में सोचने लगा कि नवाब साहब ने किफायत की दृष्टि से सेकन्ड क्लास का टिकट खरीदा होगा। अब उन्हें अच्छा नहीं लग रहा होगा कि कोई सेकन्ड क्लास में सफर करता हुआ उन्हें देखे। सफर का वक्त काटने के लिए उन्होंने खीर लिए होंगे। हो सकता है उन्हें किसी के सामने खीरा खाने में संकोच हो रहा होगा। नवाब साहब लेखक के प्रति उदासीन होकर खिड़की के बाहर देखते रहे। नवाब साहब का भाव परिवर्तन : अचानक नवाब साहब ने लेखक को देखकर संबोधन किया ‘आदाब-अर्ज’, जनाब खीरे का शौक फरमाएगे, नवाब का यह भाव-परिवर्तन लेखक को अच्छा नहीं लगा। लेखक समझ गए कि वे मात्र औपचारिकता के लिए पूछ रहे हैं। लेखक ने ‘शुक्रिया, किबला शौक फरमाए’ कहकर इन्कार कर दिया। नवाब साहब का खीरा काटना : नवाब साहब ने दृढ़ निश्चयता के साथ खीरे के नीचे बिछे तौलिया को सामने बिछाया। खिड़की के बाहर खीरे को धोया, तौलिए से पोछा और अपनी जेब से चाकू निकालकर खीरे का सिर काट कर चाकू से खूब गोदा, झाग निकाला, झागवाला भाग काटकर खीरे को छीला फिर उसकी फाके काटकर तौलिए पर करीने से रख दिया। नवाब साहब ने फाको पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुखी बुरक दी। लेखक उनकी भाव-भंगिमा देख रहे थे। लेखक को नवाब साहब ने फिर खाने के लिए कहा किन्तु एक बार मना करने पर अपना स्वाभिमान बचाए रखने के लिए इन्कार कर दिया। यद्यपि, ताजे खीरे के पनियारी फाँकों को देख लेखक के मुंह में पानी आ गया। खीरे के फाके को खिड़की के बाहर फेंकना : नवाब साहब ने नमक-मिर्च लगी खीरे की फांकों की ओर एक बार फिर देखा, फिर खिड़की के बाहर देखा । लम्बी साँस ली। फिर एक फांक उठाई, उसे होंठो तक ले गए. सूघा, स्वाद के आनंद में पलके मुंद गई। मुंह में भर आए पानी को गले में उतार लिया और फांक को खिड़की के बाहर फेंक दिया। इस तरह एक-एक फांक उठाते, सूंघते और बाहर फेंकते जाते । उसके बाद तौलिए से हाथ और होंठ पोंछकर गर्व से लेखक की ओर देखने लगे। इसके बाद वे जैसे इस काम को करने से थक गए हों, वे लेट गए। थोड़ी ढेर में डकार भी ले ली। लेखक की सोच और प्रेरणा : लेखक नवाब की इस प्रक्रिया को देख शर्म महसूस कर रहे थे। वे सोच रहे थे कि खीरों के प्रयोग की नई प्रक्रिया अच्छी जरूर है किन्तु क्या इस तरह से उदर की तृप्ति हो सकती है ? नवाब साहब के डकार से लेखक के ज्ञान-चक्षु खुल गए । सोचने लगे कि खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से पेट भर जाने का डकार आ सकता हैं तो बिना विचार, घटना और पात्रों के, लेखक की इच्छा मात्र से नई कहानी क्यों नहीं बन सकती? शब्दार्थ और टिप्पणी:
मुहावरे और अर्थ :
वाक्य प्रयोग :
लेखक नवाब साहब की और कैसे देख रहे थे *?उत्तर: जब लेखक अपनी सीट पर बैठा तो नवाब साहब उनसे नजरें मिलाने से बच रहे थे। नवाब साहब खिड़की के बाहर देख रहे थे। इन हाव भावों से पता चलता है कि नवाब साहब लेखक से बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं थे। प्रश्न 2: नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंतत: सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया।
नवाब साहब को कनखियों से कौन देख रहा था?Answer: नवाब साहब खिडकी से बाहर देख रहे थे और इस नायाब इस्तेमाल से थककर लेट गए। लेखक ने सोचा कि खीरा लेखक कनखियों से उनकी ओर देख रहे थे।
लेखक कौन से तरीके पर गौर कर रहे थे?लेखक को नवाब साहब द्वारा खीरे के इस्तेमाल की विधि पर अपना सिर झुकाना पड़ा कि किस प्रकार से अपनी खानदानी शिष्टता, स्वच्छता और कोमलता प्रदर्शित करते हुए नवाब साहब ने खीरे का आनंद मात्र सूंघ कर लिया था। लेखक जिस डिब्बे में चढ़ा वहाँ पहले से ही एक सज्जन पालथी लगाए बैठे थे। उनके सामने दो खीरे रखे थे।
लेखक को कैसे ज्ञात हुआ कि नवाब साहब उनसे बातचीत के लिए उत्सुक नहीं हैं?लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भाव से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं? खिड़की से बाहर झाँकते रहे और लेखक को न देखने का नाटकीय प्रदर्शन करते रहे। नवाब साहब के इन हाव-भावों को देखकर लेखक अनुमान लगा रहा था कि वे बातचीत करने के लिए किंचित भी उत्सुक नहीं हैं।
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