होम /न्यूज /साहित्य /जन्मदिन विशेष: शिवमंगल सिंह 'सुमन'- 'क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं' Show
शिवमंगल सिंह 'सुमन' को‘मिट्टी की बारात’ के लिए 1974 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार और 1974 में पद्मश्री तथा 1999 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया. शिवमंगल सिंह 'सुमन' ने 1968-78 के दौरान उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में काम किया. सुमन जी ने उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष, भारतीय विश्वविद्यालय संघ के अध्यक्ष, कालिदास अकादेमी के कार्यकारी अध्यक्ष आदि के रूप में अपनी सेवा दीं.अधिक पढ़ें ...
हिंदी काव्यधारा के बड़े हस्ताक्षर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की आज जयंती है. प्रगतिशील लेखन के अग्रणी कवि सुमन जी का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था. उनके पिता का नाम ठाकुर बख्श सिंह था. उनका परिवार कई पीढ़ियों से देश की सेवा में समर्पित रहा है. शिवमंगल सिंह सुमन के दादा ठाकुर बलराज सिंह रीवा सेना में कर्नल थे और परदादा ठाकुर चन्द्रिका सिंह 1857 की क्रांति में वीरगति को प्राप्त हुए थे. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ अपनी रचनाओं के माध्यम से सीधे-सपाट शब्दों में संवाद करते हैं. इस जीवन में बैठे ठाले ऐसे भी क्षण आ जाते हैं तन खोया-खोया-सा लगता मन उर्वर-सा हो जाता है लगता; सुख-दुख की स्मृतियों के कुछ
बिखरे तार बुना डालूं कवि की अपनी सीमाएं है कहता जितना कह पाता है यों ही चलते-फिरते मन में बेचैनी सी क्यों उठती है? जो भी आया था जीवन में यदि चला गया तो रोना क्या? जीवन में काम हजारों हैं मन रम जाए तो क्या कहना! कुछ खाली खाली होगा ही जिसमें निश्वास समाया था फिर भी सूनापन साथ रहा तो गति दूनी करनी होगी जो भी अभाव भरना होगा चलते-चलते भर जाएगा यह भी पढ़ें- कभी दिल से जुदा नहीं हो पाएंगे शकील बदायूंनी के गीत, सदियों तक गुनगुनाए जाएंगे शिवमंगल सुमन की कविताओं की अभिव्यंजनता भी कविता के सौन्दर्य का एक गुण है. साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से सुमन जी खुद को एक प्रगतिशील कवि के रूप में प्रस्तुत करते हैं- मैं बढ़ा ही जा रहा हूं, पर तुम्हें भूला नहीं
हूं। सुमन जी की रचनाएं दलित, उत्पीड़ित, शोषित और बेसहारा मजदूर वर्ग के पक्ष में न केवल खड़ी नजर आती हैं बल्कि उनमें ऊर्जा का नया संचार करती हैं- तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार आज सिन्धु ने विष उगला है तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार लहरों के स्वर में कुछ बोलो तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार यह असीम, निज सीमा जाने तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार सागर की अपनी क्षमता है तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार शिवमंगल सुमन अपनी कविताओं में समसामयिक मुद्दों पर चर्चा करते नजर आते हैं. उनकी रचनाओं में मजबूत आस्था और विश्वास का स्वर है- हम पंछी उन्मुक्त गगन के हम बहता जल पीनेवाले स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में ऐसे थे अरमान कि उड़ते होती सीमाहीन क्षितिज से नीड़ न दो, चाहे टहनी का यह भी पढ़ें- Book Review: भारत के पसंदीदा ‘एडमैन’ की ग्रैटिट्यूड डायरी है ‘पांडेमोनियम’ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी ने हिंदी साहित्य की लगभग हर विधाओं में साहित्य सृजन किया है. गद्य और कविता के साथ उन्होंने नाटक भी लिखे हैं. उनका कविता संग्रह हिल्लोल (1939), जीवन के गान (1942), युग का मोल (1945), प्रलय सृजन (1950), विश्वास बढ़ता ही गया (1948), विध्य हिमालय (1960), मिट्टी की बारात (1972), वाणी की व्यथा (1980), कटे अंगूठों की वंदनवारें (1991) बहुत चर्चित हुए हैं. मिट्टी की बारात काव्य संग्रह की एक कविता ‘इनको चूमो’- कीचड़-कालिख से सने हाथ श्रम-सीकर से लथपथ चेहरे कुश-कंटक से क्षत-विक्षत पग पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने भाषणों में अक्सर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविताओं का उल्लेख किया करते थे. अटल बिहारी वाजपेयी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे उनकी सरकार केवल 13 दिन दिन ही चल पाई. मई,1996 में सदन में बहुतमत साबित करने के दौरान उन्होंने अपने भाषण में शिवमंगल सिंह सुमन जी पंक्तियों को दोहराया था- ‘क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं। संघर्ष पथ में जो मिले, यह भी सही, वह भी सही।’ ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी| Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature, Poem FIRST PUBLISHED : August 05, 2022, 14:21 IST क्या हार में क्या जीत में किसकी कविता है?शिवमंगल सिंह 'सुमन' : क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं
क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं कर्तव्य पथ पर जो भी मिला?“क्या हार में, क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं कर्तव्य पथ पर जो मिला यह भी सही वो भी सही वरदान नहीं मांगूंगा हो कुछ, पर हार नहीं मानूँगा।” — #अटल_बिहारी_वाजपेयी #जन्मदिवस की ढेरों शुभकामनायें अटल जी!! #AtalBihariVajpayee ji.
वरदान मांगूगा नहीं इसके लेखक कौन है?वरदान माँगूँगा नहीं / शिवमंगल सिंह 'सुमन'
यह भी सही वह भी सही का क्या आशय है?'यह भी सही वह भी सही' कहने से कवि का सुख-दुख की ओर संकेत है। कर्त्तव्य-पथ पर डटे रहने के लिए कवि को क्या-क्या स्वीकार है? कर्त्तव्य-पथ पर डटे रहने के लिए कवि को किसी के द्वारा दिये जाने वाले कष्ट, अभिशाप और सब कुछ स्वीकार है।
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