कृषि विकास आर्थिक विकास की कुंजी है कैसे - krshi vikaas aarthik vikaas kee kunjee hai kaise

किसी भी देश के आर्थिक विकास में कृषि का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है। कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है। कृषि से केवल भोजन तथा कच्चे माल की प्राप्ति नहीं होती है, बल्कि जनसंख्या के एक बड़े भाग को रोजगार की उपलब्ध कराता है। कृषि तथा उद्योग परस्पर एक दूसरे पर निर्भर करते है। एक क्षेत्र का विकास होने पर दूसरे क्षेत्र का भी विकास होता है। एक क्षेत्र का उत्पादन दूसरे क्षेत्र के लिए आगत बन जाता है। एक क्षेत्र के विकास होने का अर्थ है दूसरे क्षेत्र को अधिक आगतों का प्रवाह। ‘‘दूसरे की सहायता करो यदि आप अपनी सहायता चाहते है।’’ यही दोनों क्षेत्रों की निर्भरता का सारांश है। जैसे-जैसे किसी देश का आर्थिक विकास होता है, वैसे-वैसे कृषि की भूमिका में भी परिवर्तन आ जाता है। जब द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों का विकास होता है तो कृषि की महत्ता कम हो जाती है। कुछ समय पश्चात् कृषि क्षेत्र का राष्ट्रीय आय में हिस्सा भी कम हो जाता है, परन्तु कृषि क्षेत्र का अन्य क्षेत्रों पर निर्भरता बढ़ जाती है।

कृषि तथा उद्योग दोनों एक दूसरे के पूरक है, प्रतियोगी नहीं। बिना कृषि के आधुनीकरण के औद्योगिक विकास सम्भव नहीं है क्योंकि यदि कृषि विकास नहीं होगा तो अधिकतर जनसंख्या के पास क्रयशक्ति नहीं होगी तथा बाजार का विस्तार भी नहीं होता। अतः यह बात भी सत्य है कि बिना औद्योगिकरण के कृषि विकास भी सम्भव नहीं है। अतः कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र का साथ-साथ विकास होना चाहिए। किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में कृषि का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है।

कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है। कृषि से केवल कच्चे माल की प्राप्ति नहीं होती, बल्कि जनसंख्या के एक बड़े भाग को रोजगार भी उपलब्ध भी कराता है। निम्न तथ्यों को पढ़ने के बाद आप समझ जायेंगे कि आर्थिक विकास में कृषि का क्या महत्व है या आर्थिक विकास में कृषि किस प्रकार सहायक होता है।

आर्थिक विकास में कृषि का महत्व

1. भोजन आवश्यकता की पूर्ति

सभी देश अपनी भोजन सम्बन्धी आवश्यकता को पूरा करने को पहली प्राथमिकता देते है। कोई भी देश अपनी सभी खाद्य आवश्यकताओं को दूसरे देश से आयात करके पूरा नहीं कर सकता है। अगर कोई देश अपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है तो उसे बहुत अधिक मात्रा में आय को खर्च करना पडे़गा और खाद्य वस्तुओं पर ज्यादा ब्यय से सभी योजनाएं बिगड़ सकती है। इसलिए सरकार को खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। 

2. कच्चे माल की उपलब्धता

आर्थिक विकास की प्रारम्भिक अवस्था में कृषि से सम्बन्धित उद्योगों का विकास होता है। जैसे चीनी, सूती वस्त्र, जूट उद्योग इत्यादि केवल तभी सफल हो सकते है जब उन्हें कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता हो। अतः इन उद्योगों के तीव्र विकास के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चे माल की उपलब्धता होनी चाहिए। 

3. क्रय शक्ति

यदि किसी देश की कृषि की स्थिति ठीक नही है तो कृषकों की आय भी कम होगी। कृषकों की आय कम होने से औद्योगिक वस्तुओं को नहीं खरीद पायेगें तथा औद्योगिक विकास रूक जायेगा। कृषि क्षेत्र की सम्पन्नता से ही औद्योगिक विकास होता है। किसी उद्योग का प्रमुख उद्देश्य अधिक से अधिक वस्तुओं का विक्रय करना होता है और यह तभी सम्भव है जब कृषि क्षेत्र विकसित हो। 

4. बचत तथा पूंजी निर्माण

कृषि क्षेत्र के समृद्ध होने से कृषकों की आय में वृद्धि होती है। आय में वृद्धि होने से कृषकों की बचत में वृद्धि होती है और बचत कृषकों द्वारा बैंकों व अन्य बचत संस्थाओं में जमा होता है। इन बचतों का प्रयोग पूंजी निर्माण के लिए किया जाता है, जिससे आर्थिक विकास होता है। अगर कृषकों की आय कम होगी तो बचत भी कम होगी तथा पूंजी निर्माण भी कम होगा। आर्थिक विकास की प्रारम्भिक अवस्था में जनसंख्या का अधिकत्तर भाग कृषि में कार्यरत होता है, अतः औद्योगिक क्षेत्र के तीव्र विकास के लिए कृषि क्षेत्र की सम्पन्नता ज्यादा जरूरी है। 

5. श्रम-शक्ति की पूर्ति

कृषि क्षेत्र में जनसंख्या का दबाव बहुत अधिक है। कृषि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होने से कृषि उत्पादन भी विपरीत रूप से प्रभावित होता है। इसलिए जनसंख्या के कुछ हिस्से को हटाकर औद्योगिक क्षेत्र में लगाया जा सकता है, इससे औद्योगिक क्षेत्र का भी तेजी से विकास होगा। अधिक विकसित कृषि में श्रम की आवश्यकता कम होती है। 

6. विदेशी मुद्रा की प्राप्ति

कृषि प्रधान देशों में औद्योगिक वस्तुएं अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतियोगिता नहीं कर पाती है, क्योंकि औद्योगिक वस्तुएं घटिया किस्म की होती है। अतः कृषि वस्तुएं ही ऐसी है जो कि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतियोगिता का सामना कर सकती है तथा विदेशी मुद्रा प्राप्त कर सकती है।

Agriculture

किसान दिवस: आर्थिक विकास में कृषि की भूमिका

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने 1979 में प्रकाशित पुस्तक ‘भारत की अर्थनीति: गांधीवादी रूपरेखा’ में एक लेख लिखा था, जिसके अंश आज भी प्रासंगिक हैं

By DTE Staff
Published: Monday 24 December 2018

कृषि विकास आर्थिक विकास की कुंजी है कैसे - krshi vikaas aarthik vikaas kee kunjee hai kaise
Credit: Agnimirh Basu

...दुर्भाग्य से जो भारत लगभग 1925 तक खाद्यान्नों का निवल निर्यात करता था, (1943 के) बंगाल दुर्भिक्ष के बाद से वह उनका आयात करने लगा है। 1970 तक के बीस वर्ष में खाद्य-सामग्री के आयात पर हमें औसतन 207.8 करोड़ रुपया प्रतिवर्ष खर्च करना पड़ा। और 1970 के बाद के पांच वर्षों में अर्थात 1971-76 में इस मद में खर्च बढ़कर 441.14 करोड़ वार्षिक हो गया। 1974, 1975 तथा 1976 के तीन वर्षाें की अवधि में ही 187,96,000 मीट्रिक टन खाद्यान्न का आयात किया गया, जिसका मूल्य 2,503 करोड़ रुपए हुआ। (इसमें 461 करोड़ रुपये किराया भी सम्मिलित है।)

इसमें भारत-अमेरिकी समझौते, विश्व खाद्य कार्यक्रम, केयर इत्यादि के समान कार्यक्रमों के अन्तर्गत उपहार के रूप में प्राप्त खाद्य सम्मिलित नहीं है। 1965-67 के दो वर्षों के दौरान 45,76,000 मीटरी टन गेहूं भेंट के रूप में मिला। 1975 में केवल कनाडा से 37.8 करोड़ रुपये मूल्य का 2,50,000 मीटरी टन गेहूं भेंट में मिला। हमें केवल खाद्यान्न ही नहीं, कृषि से प्राप्त होने वाले कच्चे माल का भी आयात करना पड़ा—मिसाल के लिए, कपड़ा, भोजन के बाद मनुष्य के लिए सबसे अधिक आवश्यक वस्तु है, उसके उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चा माल भी हमें बाहर से मंगाना पड़ा। 1971-72 तक विश्व मण्डी में लम्बे रेशे की कपास के मुख्य खरीदारों में भारत की गिनती होती थी।

विकासोन्मुख कृषि से उत्पन्न अतिरिक्त खाद्य-पदार्थ व कच्चा माल हमें विदेशी मुद्रा कमाने में बहुत मदद दे सकते हैं और इस विदेशी मुद्रा से हम औद्योगिक विकास के लिए पूंजीगत माल का आयात कर सकते हैं—ऐसे पूंजीगत माल का जिसकी आवश्यकता हर देश को होती है चाहे उसकी अर्थव्यवस्था कैसी भी हो। कनाडा ने अपने उद्योगों का निर्माण इमारती लकड़ी का निर्यात करके किया था और जापान ने रेशम का निर्यात करके।

सत्तारूढ़ दल ने यद्यपि कृषि की उपेक्षा की, फिर भी 1974-75 तक में हमारे देश से निर्यात हुए मुख्य माल का पूरा दो-तिहाई ऐसा माल था जो कृषि की उपज था—कच्ची उपज तथा प्रक्रमणित माल मिलाकर। कृषि में मत्स्य, वन तथा पशुपालन क्षेत्र के उत्पाद शामिल हैं। उस वर्ष हमारे देश से निर्यात हुए माल का 79 प्रतिशत ऐसा माल था जिसे हमारे यहां का मुख्य निर्यात-माल कहा जाता है और शेष 21 प्रतिशत ऐसा निर्यात था जिसे छोटा-मोटा समझना चाहिए। इस छोट-मोटे निर्यात में कृिष व कृषितर दोनों क्षेत्रों का ही माल था। 1950-51 में मुख्य निर्यात का 77 प्रतिशत कृषि का उत्पाद था और छोटा-मोटा निर्यात 23 प्रतिशत था।

इसके अतिरिक्त, औद्योगिक विकास भी तभी हो सकता है जब कृषि में समृद्धि हो या बहुत हुआ तो दोनों साथ-साथ हो सकते हैं। लेकिन औद्योगिक विकास पहले हो, बाद को कृषि में खुशहाली आये—यह नहीं हो सकता। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि जिस राजनीतिक दल ने देश पर तीस वर्ष तक शासन किया उसकी नेताशाही समझती थी और शायद अभी तक समझती है कि औद्योगिक विकास पहले हो सकता है। जब कृषक के पास क्रय-शक्ति हो तभी औद्योगिक व कृषीतर क्षेत्र के माल व सेवाओं (जैसे शिक्षा, परिवहन, विद्युत) की मांग पैदा हो सकती है।

क्रय-शक्ति कृषि की उपज बेचकर ही उत्पन्न हो सकती है—चाहे बिक्री देश में हो या चाहे देश के बाहर। जितना अधिक बिक्री के लिए अतिरिक्त उत्पादन होगा, उतनी ही बेचने वाले अथवा कृषि के उत्पादक की क्रय-शक्ति बढ़ेगी। जहां जनसाधारण की क्रय-शक्ति नहीं बढ़ती, अर्थात जहां कृषकों के उपयोग से अधिक अतिरिक्त उत्पादन नहीं होता, वहाँ कोई औद्योगिक संवृद्धि नहीं हो सकती।

कृषि विकास से एक ओर तो जन-समुदाय को क्रय-शक्ति मिलेगी, जिससे वह तैयार माल व सेवाएं खरीद सकेंगे, दूसरी ओर कामगारों को अवसर मिलेगा जिससे वे औद्योगिक तथा रोजगार कर सकें।...

साभार: चौधरी चरण सिंह आर्काइव्स

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भारत के आर्थिक विकास में कृषि का क्या योगदान है?

किसी भी देश के आर्थिक विकास में कृषि का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है। कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है। कृषि से केवल भोजन तथा कच्चे माल की प्राप्ति नहीं होती है, बल्कि जनसंख्या के एक बड़े भाग को रोजगार की उपलब्ध कराता है। कृषि तथा उद्योग परस्पर एक दूसरे पर निर्भर करते है।

आर्थिक विकास का अर्थ क्या होता है?

आर्थिक विकास से आशय उस प्रक्रिया से है जिसके परिणामस्वरूप देश के समस्त उत्पादन साधनों का कुशलतापूर्वक दोहन होता है। साथ ही साथ राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में निरंतर एवं दीर्घकालिक वृद्धि होती है तथा जीवन स्तर एवं मानव विकास सूचकांक में सुधार की स्थिति उत्पन्न होती है।

भारत के विकास में कृषि का क्या महत्व है?

कृषि के माध्यम से खाद्यान्न तो उपलब्ध होता ही है, साथ ही अनेक प्रमुख उद्योगों के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध होता है (सूती वस्त्र उद्योग, जूट उद्योग, चीनी उद्योग, चाय उद्योग, सिगरेट उद्योग और तम्बाकू उद्योग, आदि)। कृषि राष्ट्रीय आय का एक प्रधान स्रोत है।

आर्थिक विकास का क्या उद्देश्य है?

चूँकि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य जन सामान्य के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना है अतः यह कहा जा सकता है कि “आर्थिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थव्यवस्था की प्रति व्यक्ति शुद्ध आय दीर्घकाल में बढ़ती है।" संक्षेप में यह भी कहा जा सकता है कि "मानव का सर्वागीण विकास ही आर्थिक विकास है।"