भारत में सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाला राज्य कौन सा है? - bhaarat mein sabase jyaada karj lene vaala raajy kaun sa hai?

नई दिल्ली. कर्ज के बोझ में डूबे पड़ोसी देश श्रीलंका की आज जो हालत है वैसी ही स्थिति देश के कुछ राज्यों की भी हो सकती है. अगर ये राज्य भारतीय संघ का हिस्सा नहीं होते तो अब तक कंगाल हो चुके होते. इसकी वजह है राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों में की जाने वाली लोकलुभावन घोषणाएं जिसे पूरा करने के लिए उन्हें जरूरत से ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है.

देश के कई शीर्ष नौकरशाहों ने पीएम नरेंद्र मोदी को अपनी इस चिंता से अवगत कराया है. प्रधानमंत्री के साथ पिछले हफ्ते शनिवार को केंद्र सरकार के विभिन्न विभाग के सचिवों की लंबी बैठक हुई थी. इसी बैठक में कुछ सचिवों ने खुलकर इस बारे में अपनी चिंता जताई.

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इनमें से कई सचिव कई राज्यों में महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रह चुके हैं. उनके मुताबिक, कई राज्यों की वित्तीय सेहत काफी खस्ता है. राज्य सरकारों की लोकलुभावन योजनाओं को लंबे समय तक चलाना मुमकिन नहीं है.  अगर इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगाई गई तो कई राज्य आर्थिक रूप से बेहाल हो जाएंगे.

किन राज्यों पर है ज्यादा कर्ज

जिन राज्यों पर कर्ज का बोझ सबसे ज्यादा है उनमें पंजाब, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इन राज्यों की लोकलुभावन घोषणाओं की वजह से इनकी वित्तीय सेहत खराब हो चुकी है. इसी तरह छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने की घोषणा की है. कई राज्य मुफ्त बिजली दे रहे हैं जो सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ा रहे हैं. भाजपा ने भी उत्तर प्रदेश और गोवा में मुफ्त रसोई गैस देने के साथ ही दूसरी कई लुभावनी घोषणाएं चुनाव में की थीं जिसे पूरे करने का वादा किया गया है.

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राज्यों पर कितना है कर्ज

विभिन्न राज्यों के बजट अनुमानों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में सभी राज्यों का कर्ज का कुल बोझ 15 वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंच चुका है. राज्यों का औसत कर्ज उनके जीडीपी के 31.3 फीसदी पर पहुंच गया है. इसी तरह सभी राज्यों का कुल राजस्व घाटा के 17 वर्ष के उच्च स्तर 4.2 फीसदी पर पहुंच गया है. वित्त वर्ष 2021-22में कर्ज और जीएसडीपी (ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) का अनुपात सबसे ज्यादा पंजाब का 53.3 फीसदी रहा.

इसका मतलब यह है कि पंजाब का जितना जीडीपी है उसका करीब 53.3 फीसदी हिस्सा कर्ज है. इसी तरह राजस्थान का अनुपात 39.8 फीसदी, पश्चिम बंगाल का 38.8 फीसदी, केरल का 38.3 फीसदी और आंध्र प्रदेश का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 37.6 फीसदी है. इन सभी राज्यों को राजस्व घाटा का अनुदान केंद्र सरकार से मिलता है. महाराष्ट्र और गुजरात जैसे आर्थिक रूप से मजबूत राज्यों पर भी कर्ज का बोझ कम नहीं है. गुजरात का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 23 फीसदी तो महाराष्ट्र का 20 फीसदी है.

पूरे भारत के मुकाबले दक्षिण के पांच राज्यों के लोग सबसे ज्यादातर कर्जदार हैं. 2013-2019 के अखिल भारतीय कर्ज और निवेश सर्वेक्षण (AIDIS) के आंकड़ों के हवाले से घरेलू एजेंसी इंडिया रेटिंग्स ने कहा कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में घरेलू कर्ज भारत के बाकी हिस्सों की तुलना में दक्षिणी राज्यों में अधिक था.

दरअसल, देश के अन्य हिस्सों की तुलना में दक्षिणी राज्यों में घरेलू कर्ज अधिक है.न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक साल 2019 में 67.2 फीसदी के साथ तेलंगाना में ग्रामीण परिवारों का सबसे अधिक कर्ज का अनुपात था और 6.6 फीसदी के साथ नागालैंड में ग्रामीण परिवारों का सबसे कम कर्ज था.

रिपोर्ट के मुताबिक केरल में करीब 47.8 फीसदी शहरी परिवार कर्जदार थे, जबकि मेघालय में सबसे कम 5.1 फीसदी शहरी परिवार कर्जदार थे. आंकड़ों की मानें तो अन्य बड़े राज्यों में उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में कर्जदार परिवारों का सबसे कम अनुपात था, जबकि शहरी क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ का अनुपात सबसे कम था. 

बता दें, दक्षिणी राज्यों में प्रति व्यक्ति आय देश के अन्य राज्यों की तुलना में अधिक थी, फिर भी इन राज्यों में ग्रामीण और शहरी दोनों परिवारों में अधिक कर्जदार थे. 

रिपोर्ट की मानें तो इस द्विभाजन को समझने के तरीकों में से एक घरेलू कर्ज की औसत राशि, घरेलू संपत्ति का औसत मूल्य और कर्ज-परिसंपत्ति अनुपात को देखना है, क्योंकि अक्सर कर्ज की मात्रा संपत्ति से जुड़ी होती है.

गौरतलब है कि देश के 5 ऐसे दक्षिणी राज्य हैं, जहां ग्रामीण और शहरी दोनों परिवारों के लिए संपत्ति अनुपात का उच्चतम कर्ज है, उनमें से चार राज्य आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना हैं, जबकि पांचवां कर्नाटक का संपत्ति अनुपात अखिल भारतीय औसत से अधिक है. यह बताता है कि दक्षिणी राज्यों में परिवारों का एक उच्च अनुपात कर्जदार है.

एक सिम्पल सा गणित है. अगर खर्च ज्यादा और आमदनी कम है, तो कर्ज लेना ही पड़ेगा. लेकिन खर्च और कर्ज का प्रबंधन सही तरह से नहीं किया, तो हालात ऐसे हो सकते हैं कि न तो कमाई का कोई जरिया बचेगा और न ही कर्ज लेने के लायक बचेंगे. ऐसा ही श्रीलंका के साथ हुआ. श्रीलंका कर्ज पर कर्ज लेता चला गया और आज कंगाल हो चुका है. उस पर 51 अरब डॉलर का कर्ज है. न खाने-पीने का सामान है, न गैस है और न ही पेट्रोल-डीजल. 

श्रीलंका के इस आर्थिक संकट ने दुनियाभर की सरकारों को चेता दिया है. मंगलवार को ऑल पार्टी मीटिंग में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि श्रीलंका से सबक लेते हुए 'मुफ्त के कल्चर' से बचना चाहिए. जयशंकर ने कहा कि श्रीलंका जैसी स्थिति भारत में नहीं हो सकती, लेकिन वहां से आने वाला सबक बहुत मजबूत है. ये सबक है वित्तीय विवेक, जिम्मेदार शासन और मुफ्त की संस्कृति नहीं होनी चाहिए.

जयशंकर के बयान से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 'मुफ्त की रेवड़ी कल्चर' पर सवाल उठाए थे. 16 जुलाई को बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'हमारे देश में रेवड़ी कल्चर को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है. मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है. ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है.'

मुफ्त की रेवड़ी कल्चर पर पीएम मोदी के बयान पर सियासत भी हुई. हालांकि, एक महीने पहले ही आई रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्य सरकारें मुफ्त की योजनाओं पर जमकर खर्च कर रहीं हैं, जिससे वो कर्ज के जाल में फंसती जा रहीं हैं. 

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि हाल ही में पंजाब सरकार ने हर परिवार को हर महीने 300 यूनिट फ्री बिजली और हर वयस्क महिला को हर महीने 1 हजार रुपये देने की योजना शुरू की है. इन दोनों योजनाओं पर 17 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. लिहाजा, 2022-23 में पंजाब का कर्ज 3 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान है. आरबीआई ने चेताया है कि अगर खर्च और कर्ज का प्रबंधन सही तरह से नहीं किया तो स्थिति भयावह हो सकती है.

'स्टेट फाइनेंसेस: अ रिस्क एनालिसिस' नाम से आई आरबीआई की इस रिपोर्ट में उन पांच राज्यों के नाम दिए गए हैं, जिनकी स्थिति बिगड़ रही है. इनमें पंजाब, राजस्थान, बिहार, केरल और पश्चिम बंगाल है.

कैसे कर्ज के जाल में फंस रहे हैं राज्य?

आरबीआई ने अपनी इस रिपोर्ट में CAG के डेटा के हवाले से बताया है कि राज्य सरकारों का सब्सिडी पर खर्च लगातार बढ़ रहा है. 2020-21 में सब्सिडी पर कुल खर्च का 11.2% खर्च किया था, जबकि 2021-22 में 12.9% खर्च किया था. 

रिपोर्ट के मुताबिक, सब्सिडी पर सबसे ज्यादा खर्च झारखंड, केरल, ओडिशा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में बढ़ा है. गुजरात, पंजाब और छत्तीसगढ़ की सरकार ने अपने रेवेन्यू एक्सपेंडिचर का 10% से ज्यादा खर्च सब्सिडी पर किया है. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि अब राज्य सरकारें सब्सिडी की बजाय मुफ्त ही दे रहीं हैं. सरकारें ऐसी जगह पैसा खर्च कर रहीं हैं, जहां से उन्हें कोई कमाई नहीं हो रही है. फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री यात्रा, बिल माफी और कर्ज माफी, ये सब 'freebies' हैं, जिन पर राज्य सरकारें खर्च कर रहीं हैं.

आरबीआई का कहना है कि 2021-22 से 2026-27 के बीच कई राज्यों के कर्ज में कमी आने की उम्मीद है. राज्यों की ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GSDP) में कर्ज की हिस्सेदारी घट सकती है. गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक और ओडिशा की सरकारों का कर्ज घटने का अनुमान है. 

हालांकि, कुछ राज्य ऐसे भी जिनका कर्ज 2026-27 तक GSDP का 30% से ज्यादा हो सकता है. इनमें पंजाब की हालत सबसे खराब होगी. उस समय तक पंजाब सरकार पर GSDP का 45% से ज्यादा कर्ज हो सकता है. वहीं, राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल का कर्ज GSDP के 35% तक होने की संभावना है.

भारत में सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाला राज्य कौन सा है? - bhaarat mein sabase jyaada karj lene vaala raajy kaun sa hai?

आमदनी से ज्यादा खर्च ने और बनाया कर्जदार

चाहे राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, हर किसी को कर्ज की जरूरत पड़ती है. दुनियाभर की सरकारें भी कर्ज लेकर ही देश चलातीं हैं. लेकिन जब ये कर्ज बढ़ता जाता है तो उससे दिक्कतें बढ़नी शुरू हो जाती हैं. ऐसा ही श्रीलंका के साथ हुआ. श्रीलंका कर्ज लेता रहा और एक समय ऐसा आया कि वो उसे चुकाने की स्थिति में नहीं रहा और उसने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया. 

हमारे देश में भी सरकारों का राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है. केंद्र सरकार का भी और राज्य सरकार का भी. देश में एक भी ऐसा राज्य नहीं है, जिसका खर्च उसकी आमदनी से कम हो. हर सरकार अपनी आमदनी से ज्यादा ही खर्च कर रही है. इस खर्च को पूरा करने के लिए कर्ज लेती है. 

आरबीआई के मुताबिक, देशभर की सभी राज्य सरकारों पर मार्च 2021 तक 69.47 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. सबसे ज्यादा कर्जे में तमिलनाडु सरकार है. उस पर 6.59 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज है. इसके बाद उत्तर प्रदेश पर 6.53 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. मार्च 2021 तक देश में 19 राज्य ऐसे थे, जिन पर 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज था.

भारत में सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाला राज्य कौन सा है? - bhaarat mein sabase jyaada karj lene vaala raajy kaun sa hai?

तो क्या करें फिर सरकारें?

आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में श्रीलंका के आर्थिक संकट का उदाहरण देते हुए सुझाव दिया है कि राज्य सरकारों को अपने कर्ज में स्थिरता लाने की जरूरत है, क्योंकि कई राज्यों के हालात अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं. 

आरबीआई का सुझाव है कि सरकारों को गैर-जरूरी जगहों पर पैसा खर्च करने से बचना चाहिए और अपने कर्ज में स्थिरता लानी चाहिए. इसके अलावा बिजली कंपनियों को घाटे से उबारने की जरूरत है. इसमें सुझाव दिया गया है कि सरकारों को पूंजीगत निवेश करना चाहिए, ताकि आने वाले समय में इससे कमाई हो सके.

भारत में सबसे कर्जदार राज्य कौन सा है?

सबसे ज्यादा कर्जे में तमिलनाडु सरकार है. उस पर 6.59 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज है. इसके बाद उत्तर प्रदेश पर 6.53 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. मार्च 2021 तक देश में 19 राज्य ऐसे थे, जिन पर 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज था.

भारत के किस राज्य पर कितना कर्ज है list?

इन राज्यों पर सबसे अधिक कर्ज: इस मामले में भारत के सबसे अग्रणी माने जाने वाले राज्य सबसे ऊपर हैं। भारत सरकार के व्यय विभाग के अनुसार तमिलनाडु पर कर्ज 6.6 लाख करोड़ रुपए, महाराष्ट्र पर 6 लाख करोड़ रुपए, पश्चिम बंगाल पर 5.6 लाख करोड़ रुपए, राजस्थान पर 4.7 लाख करोड़ रुपए और पंजाब पर 3 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है।

दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार देश कौन है?

1/5. जापान 2015 से ही जापान कर्ज में डूबा हुआ है। ... .
2/5. ग्रीस जापान के बाद ग्रीस का स्थान विश्व में दूसरे नंबर पर आता है। ... .
3/5. पुतर्गाल ... .
4/5. इटली ... .
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5/5. भूटान.

2022 में भारत पर कितना कर्ज है?

बीते वित्त वर्ष में भारत का विदेशी कर्ज बढ़ गया है। सरकार की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक 31 मार्च, 2022 तक भारत का विदेशी कर्ज 620.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो मार्च 2021 के अंत में रहे 573.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कर्ज से 8.2 प्रतिशत अधिक है।