Vitamin D Deficiency: हमारे शरीर को कई तरह के विटामिन्स और पोषक तत्वों की जरूरत होती है. विटामिन कई तरह के होते हैं जिनमें से एक है विटामिन डी. बाकी सभी विटामिन के अलावा हमारे शरीर को विटामिन डी की भी बहुत जरूरत होती है. विटामिन डी हमारी हेल्थ के लिए काफी जरूरी माना जाता है. सूरज की धूप से हमारे शरीर में विटामिन डी बनता है. लेकिन आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में अधिकतर लोगों में विटामिन डी की कमी पाई जाती है. शरीर में विटामिन डी की कमी से कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आइए जानते हैं विटामिन डी से जुड़ी सभी चीजों के बारे में और यह भी कि किन लोगों में इसकी सबसे ज्यादा कमी पाई जाती है. Show शरीर में विटामिन डी की कमी होना क्या है? विटामिन डी की कमी का मतलब है कि आपके शरीर में इस खास विटामिन की मात्रा बेहद कम है. हमारा शरीर सूरज की रोशनी के संपर्क में आकर विटामिन डी बनाता है. लेकिन आजकल के समय में लोगों की स्किन बेहद कम धूप के संपर्क में आती है जिससे शरीर विटामिन डी नहीं बना पाता और इससे बॉडी में इसकी कमी होने लगती है. क्यों जरूरी होता है विटामिन डी? विटामिन डी हमारी हड्डियों और दांतों के लिए काफी जरूरी होता है. बच्चों में विटामिन डी की कमी को रिकेट्स के नाम से जाना जाता है जिसमें हड्डियां काफी सॉफ्ट हो जाती हैं और आसानी से टूटने लगती हैं. वहीं, वयस्कों में विटामिन डी की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस, या हड्डियों के पतले होने का खतरा बढ़ जाता है. इससे आसानी से हड्डियां टूटने लगती है. हड्डियों को मजबूत करने के अलावा विटामिन डी और भी महत्वपूर्ण काम करता है जैसे- - मसल्स हेल्थ को करता है मजबूत - इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत बनाकर , इंफेक्शन से लड़ने में करता है मदद - कई तरह के कैंसर से करता है बचाव - डिप्रेशन और खराब मूड को करता है ठीक - एनर्जी लेवल को करता है मेंटेन
- ऑयली फिश शरीर में विटामिन डी की कमी के लक्षण - शिशुओं में विटामिन डी की कमी के लक्षण- शिशुओं में विटामिन डी की भारी कमी होने पर ऐंठन, दौरे पड़ना, और सांस लेने में समस्या का सामना करना पड़ सकता है. - बच्चों में विटामिन डी की कमी के लक्षण- विटामिन डी की कमी से बच्चों में रिकेट्स रोग हो सकता है. जिस कारण हड्डियां काफी सॉफ्ट और कमजोर हो जाती हैं. इससे बच्चों के पैरों में टेढ़ापन और चलने में दिक्कत भी आती है. साथ ही बच्चों के दांत काफी आसानी से टूटने लगते हैं इसका असर दूध के दांतों पर भी पड़ता है. - वयस्कों में विटामिन डी की कमी के लक्षण- विटामिन डी की कमी के चलते कुछ लोग थकान, दर्द की शिकायत करते हैं. विटामिन डी की भारी कमी होने पर लोगों को सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत और मसल्स पेन की समस्या का सामना भी करना पड़ता है. विटामिन डी की कमी से हड्डियों में दर्द अक्सर पीठ के निचले हिस्से, कूल्हों, पेल्विस, हिप्स और पैरों में भी होता है. इन लोगों में सबसे ज्यादा पाई जाती है विटामिन डी की कमी 1. ऑफिस जाने वाले लोग सबसे ज्यादा विटामिन डी की कमी के शिकार होते हैं. ऑफिस जाने वाले लोगों को धूप में बैठने का समय नहीं मिल पाता. जिस कारण इन लोगों में विटामिन डी की कमी काफी ज्यादा पाई जाती है. 2. 50 साल से ज्यादा उम्र होने पर शरीर में कई तरह की विटामिन्स की कमी होने लगती है जिसमें से विटामिन डी भी एक है. इस उम्र में शरीर सूरज की धूप से विटामिन डी नहीं बना पाता. जिस कारण इस उम्र के लोगों को बाकी तरीकों से शरीर में विटामिन डी की कमी को पूरा करने की जरूरत होती है. 3. NIH की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिन लोगों का बॉडी मास इंडेक्स 30 से ज्यादा होता है या बॉडी में फैट की मात्रा अधिक होती है उन्हें भी विटामिन डी की कमी का सामना करना पड़ सकता है. उम्र के अनुसार जानें किसे होती है विटामिन डी की कितनी जरूरत 0-12 माह- 10mcg ये भी पढ़ें:
रिकेट्स की समस्या (सूखा रोग) बच्चों में होने वाली एक चिंताजनक स्थिति का नाम रिकेट्स (rickets) है। इसे सूखा रोग के नाम से भी जाना जाता है। जिस तरह बड़े उम्र के लोगों में अस्थिमृदुता या ऑस्टियोमलेशिया (Osteomalacia) नामक हड्डी-संबंधी समस्या पाई जाती है, उसी तरह रिकेट्स के दौरान बच्चों की हड्डियां कमजा़ेर और मुलायम हो जाती हैं। अब क्योंकि बच्चे का बढ़ती उम्र का दौर है, इस तरह की समस्या होना भविष्य में कई तरह की चिंताओं को बढ़ावा दे सकता है। मेवाड़ हॉस्पिटल की टीम आज आपको रिकेट्स से परिचित कराने की कोशिश करेगी। इसमें मुख्य रूप से हम इसके कारण, लक्षण एवं इलाज के बारे में बात करेंगे। उसके पहले आइए जानते हैं रिकेट्स से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु1. मुख्य तौर पर यह बीमारी विटामिन डी की कमी के कारण होती है जो कि स्वस्थ हड्डियों के विकास के लिए बहुत ज़रूरी है। जानिए रिकेट्स के कारणों के बारे में1. विटामिन डी की कमी-एक अहम कारण शरीर में फॉस्फोरस और कैल्शियम के मेटाबॉलिज़्म के लिए विटामिन डी की ज़रूरत पड़ती है। हड्डियों में कैल्शियम जमा होने की गतिविधि को विटामिन डी प्रभावित करता है। कैल्शियम और फास्फेट के लेवल को कंट्रोल करने में विटामिन डी का अहम योगदान होता है। अगर बात की जाए खाने की, तो कुछ रसीले फल, दूध, मछली (जैसे सालमन) अंडे की ज़र्दी आदि में भी विटामिन डी पाया जाता है। 2. अन्य समस्याएं रिकेट्स में दिखने वाले लक्षणरिकेट्स के लक्षण प्रमुख रूप से कुछ इस प्रकार हैं:- रिकेट्स के लक्षण में से एक यह भी है कि यदि विटामिन डी की कमी का उपचार ना किया जाए तो लंबी हड्डियों के सिरे बढ़ जाते हैं और पैरों में टेढ़ापन / क्लब फुट या असामान्य बनावट दिखने लगती है। यदि रिकेट्स गंभीर अवस्था में आ जाए जिसका उपचार ना हो तो ऐसे मौकों पर हड्डियों के टूटने का खतरा काफी बढ़ जाता है और कुछ बच्चों को हृदय-संबंधी बीमारी भी हो सकती है खासतौर से जब खून में विटामिन डी की कमी के कारण कैल्शियम की मात्रा बहुत ज्यादा कम हो जाए। खून में कैल्शियम के लेवल की कमी के कारण बच्चों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जिसमें सांस लेने में तकलीफ, ऐंठन आदि शामिल है। यदि हालात गंभीर हो जाते हैं तो ऐसे मौकों पर हृदय-संबंधी परेशानियांे के अलावा निमोनिया, विकलांगता, हड्डी का आसानी से टूटना एवं हड्डी की स्थाई रूप से अनियमितता आदि जटिलताएं सामने आ सकती हैं। इसलिए ध्यान देने की बहुत ज़रूरत है। कुछ अन्य लक्षणों में शामिल है दांत-संबंधी
समस्या जैसे कि कैविटी, रीड की हड्डी या सिर (खोपडी़) के आकार का असामान्य मुडा़व, पसलियों का असामान्य आकार, आदि। रिकेट्स की जांचरिकेट्स की जांच के लिए आप मेवाड़ हॉस्पिटल के डॉक्टर्स से संपर्क कर सकते हैं। इस समस्या का पता लगाने के लिए पहले बच्चे का फिजिकल एक्जाम किया जाता है। इसके अलावा यदि बच्चे की हड्डी में दर्द है तो उसे दबा कर भी देखा जा सकता है। कुछ अन्य टेस्ट भी है जिनकी मदद से रिकेट्स की जांच हो सकती है, जिसमें प्रमुख है ब्लड टेस्ट। इससे कैल्शियम और फॉस्फेट का खून में लेवल मालूम किया जाता है। खून के अलावा पेशाब की जांच भी की जा सकती है। शरीर के कुछ अंग, जैसे कि खोपड़ी, पैर, कलाई और टखनों आदि पर ध्यान दिया जाता है जिससे असामान्यता का पता लगाया जा सके। इसके अलावा एक्स-रे की मदद ली जाती है जिससे हड्डी-संबंधित परेशानी का पता लगाया जाता है। कुछ मौकों पर बोन बायोप्सी भी की जा सकती है जिसमें हड्डी का एक छोटा टुकड़ा निकाला जाता है और उसे जांच के लिए भेजा जाता है। रिकेट्स में काम आने वाले उपचार विकल्पयदि रिकेट्स का पता जल्दी लग जाए, तो अधिकतर मौकों पर इसका इलाज संभव है। बच्चे की स्थिति के आधार पर उपचार किया जाता है। रिकेट्स के इलाज के लिए विभिन्न विकल्प मौजूद हैं। ऊपर दी गई जानकारी से आपको यह पता चल गया होगा कि विटामिन डी का शरीर में कितना महत्व है। इसलिए सबसे पहले बात की जाए विटामिन डी की, इसकी कमी को पूरा करने के लिए डॉक्टर प्रतिदिन कुछ डोज़ लेने की सलाह देंगे। इसके अलावा कैल्शियम युक्त पदार्थों के सेवन की सलाह भी दी जा सकती है। यदि विटामिन डी की कमी कैल्शियम की कमी की वजह से है, तो एक लंबे समय के लिए (कुछ महीने) कैल्शियम-संबंधी सप्लीमेंट दिए जा सकते हैं जो रिकेट्स के इलाज में काफी फायदेमंद साबित होते हैं और उनके माध्यम से हड्डियों का उपचार हो सकता है। एक दूसरा महत्वपूर्ण इलाज विकल्प है-सूरज की रोशनी।
क्योंकि इससे हमारा शरीर प्राकृतिक रूप से विटामिन डी को बनाता है। इसलिए जरूरी है कि बच्चों को कुछ देर बाहर ले जाए जाए या फिर उस जगह पर थोड़े समय के लिए बैठा दिया जाए जहां उन्हें सूरज की रोशनी लगे। कभी-कभी ब्रेसिंग के माध्यम से भी विकृति को कम या दूर किया जा सकता है। रिकेट्स के समाधान के लिए कौनसे डॉक्टर की सहायता लें?आपको बताते चलें कि जिस तरह अलग-अलग विभागों में डॉक्टर्स की महारत होती है, उसी तरह ऑर्थोपेडिक विभाग में भी बच्चों के मस्क्यूलोस्केलेटल-संबंधी समस्याओं के लिए पीडाइएट्रिक ऑर्थोपेडिक डॉक्टर (pediatric orthopedic doctor) की उपस्थिति रहती है। ये मुख्य रूप से बच्चों में होने वाली समस्याओं का निवारण करते हैं। एक सामान्य ऑर्थोपेडिक डॉक्टर के मुकाबले इन्हें बच्चों से संबंधित परेशानियों को ज़्यादा अच्छी तरह से पहचानने, समझने और उसका इलाज करने की काबिलियत होती है। यदि आपके बच्चे को रिकेट्स की समस्या हो गई है, तो आप पीडाइएट्रिक ऑर्थोपेडिक डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं। ये नवजात से लेकर बड़े बच्चों तक विभिन्न प्रकार की परेशानियों के उपचार में अपना योगदान दे सकते हैं। मेवाड़ हॉस्पिटल में अनुभवी एवं होनहार पीडाइएट्रिक डॉक्टर आपकी पूर्ण रूप से सहायता करने के लिए उपस्थित हैं। उनकी सेवाओं के माध्यम से आज कई ऐसे बच्चे हैं जिन्हें समय पर सटीक उपचार मिला और वे एक स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। और यदि रिकेट्स के अलावा भी आपके बच्चों को किसी स्थिति के कारण तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है, तो हमारी टीम से ज़रूर संपर्क करें और हमारे डॉक्टर से बात करें। क्या रिकेट्स से बचा जा सकता है?1. बच्चों के शारीरिक विकास को बढ़ाने में मां-बाप का अहम योगदान होता है। यदि
वे शुरू से ही अपने बच्चे के स्वास्थ्य पर ध्यान देंगे, तो इससे आने वाली कई परेशानियों से वे बच सकते हैं। जैसे कि अगर बात की जाए हड्डियों के स्वास्थ्य की, इन पर यदि जीवन के शुरुआती दौर में ध्यान दे दिया जाए तो हड्डी-संबंधित कई परेशानियों से बच्चा दूर रह सकता है। रिकेट्स के उपचार के दौरान बच्चे को ठीक होने में कुछ महीनों का समय लग सकता है। पैरों से संबंधित विकृति को बिना सर्जरी के और हड्डियों में उपस्थित विकृति को एक निश्चित समय के अंदर ठीक किया जा सकता है। मेवाड़ हॉस्पिटल की टीम का संदेशहम उम्मीद करते हैं कि बताई गई जानकारी के माध्यम से आप रिकेट्स के बारे में काफी परिचित हो गए होंगे। जीवन में की गई कुछ लम्हों की लापरवाही आपके और आपके बच्चे को आगे जाकर कष्ट दे सकती है। जिस तरह बच्चे की पढ़ाई पर, उसकी परवरिश पर ध्यान दिया जाता है, ठीक उसी तरह कोशिश करें कि उसके खान-पान और स्वास्थ्य पर भी खास नज़र रखी जाए। जैसे हम उम्मीद करते हैं कि बच्चे का दिमाग मज़बूत हो, हमें कोशिश करनी चाहिए कि उसकी हड्डियां भी शुरू से मज़बूत रहें। अपने बच्चों को सही मार्गदर्शन दें और
उन्हें छोटी उम्र से ही पोषक तत्वों के लाभ के बारे में परिचित कराएं जिससे उनके शरीर का विकास अच्छी तरह से हो। आप हमसे Facebook, Instagram, Twitter, Linkedin, YouTube & Pinterest पर भी जुड़ सकते हैं। अपने ट्रीटमेंट्स से जुड़े सवाल पूछने के लिए आज ही देश की सर्वश्रेष्ठ ऑर्थोपेडिक टीम से बात करें। Call now 0294 6633330 |