कौन सी किशोरावस्था की विशेषता नहीं है? - kaun see kishoraavastha kee visheshata nahin hai?

किशोरावस्था विशेषताएं,The characteristics which are reflected in adolescence

कौन सी किशोरावस्था की विशेषता नहीं है? - kaun see kishoraavastha kee visheshata nahin hai?

Ø  किशोरावस्था में जो विशेषताएं परिलक्षित होती है, वे निम्न प्रकार से हैं-

1)   शारीरिक परिवर्तन ----शारीरिक परिवर्तन शैशवावस्था की भांति तीव्र गति से होते है.

2)   मानसिक तथा बौद्धिक विकास ---- इस अवस्था में मानसिक विकास भी तीव्रगति से होता है तथा चरम बिंदु पर पहुँच जाता है.

3)      कल्पना की बहुलता ---- दिवा स्वप्न किशोरों को प्रेरणा देते है तथा इस आधार पर वे रचनात्मक कार्य करते हैं. अधिकता हानिकारक भी होता है.

4)      संवेगात्मक विकास --- इस अवस्था में किशोर अत्यधिक भावुक होता है. सुखात्मक संवेग से शक्ति का स्रोत फूट परता है तथा उत्साह में वृद्धि हो जाती है. दुखात्मक संवेग से उसके कार्यो में जल्दबाजी तथा निरुध्येश्यता रहती है. आत्म सम्मान तथा आत्म चेतना की भावना भी अधिक प्रबल होती है. इनके ठेस पहुँचाने पर वह अत्यधिक दुखी अथवा कुंठित हो जाता है.

5)      चिन्ताओ में वृद्धि --- किशो अपने भविष्य के प्रति तथा शारीरक सुन्दरता के सन्दर्भ में अधिक चिंतित रहते है. समूह, समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कने की तीव्र अभिलाषा भी रहती है.

6)      वीर पूजा ---- किशोर आदर्श पुरुष का चयन कर उसका अनुकरण करने लगते है.

7)      स्वतंत्रता तथा विद्रोह की भावना ---- किशोरों में स्वाभिमान की भावना का विकास हो जाता है. वह अभिभावकों तथा अध्यपको के नियंत्रण को पसंद नहीं करता है.

8)      विविधतापूर्ण विशेष रुचियाँ ----- आयु में वृद्धि के साथ-साथ किशोरों के रूचि में विविधता तथा परिवर्तन शीलता  बनी रहती है. यह परिवर्तन शीलता १५ -१६ वर्ष आयु तक रहती है.

9)      सामाजिक भावना , समूह की प्रवृति तथा यौन विकास . 
The characteristics which are reflected in adolescence are as follows:
1) Physical changes ---- Physical changes are as fast as infancy.
2) Mental and intellectual development ---- At this stage, mental development also occurs rapidly and reaches the extreme point.
3) Multiplicity of imagination ---- Divya dream gives inspiration to adolescents and they work on creative basis. Excessiveness is also harmful.
4) Sensitive development --- At this stage, the adolescent is very emotional. The source of power moves from a blissful moment and increases in enthusiasm. It is humbling and inefficient in his work with sad moments. Self-esteem and spirit of self-consciousness are even stronger. When he gets hurt, he becomes very unhappy or frustrated.
5) Growth in anxiety- Kisho is more worried about his future and physical beauty. The group, the important places in the society, have a strong desire too.
6) Veer pooja ---- The adolescent begins to follow the ideal man and follow him.
7) Freedom and sense of rebellion ---- The feeling of self-respect among the adolescents develops. She does not like the control of parents and teachers.
8) Diversified special interests ----- As well as increase in age, diversity and change in adolescence interest persist. This change persists till 15 to 16 years of age.
9) Social emotion, group tendency and sexual development

किशोरावस्था मनुष्य के जीवन का बसंतकाल माना गया है। यह काल बारह से उन्नीस वर्ष तक रहता है, परंतु किसी किसी व्यक्ति में यह बाईस वर्ष तक चला जाता है। यह काल भी सभी प्रकार की मानसिक शक्तियों के विकास का समय है। भावों के विकास के साथ साथ बालक की कल्पना का विकास होता है। उसमें सभी प्रकार के सौंदर्य की रुचि उत्पन्न होती है और बालक इसी समय नए नए और ऊँचे ऊँचे आदर्शों को अपनाता है। बालक भविष्य में जो कुछ होता है, उसकी पूरी रूपरेखा उसकी किशोरावस्था में बन जाती है। जिस बालक ने धन कमाने का स्वप्न देखा, वह अपने जीवन में धन कमाने में लगता है। इसी प्रकार जिस बालक के मन में कविता और कला के प्रति लगन हो जाती है, वह इन्हीं में महानता प्राप्त करने की चेष्टा करता और इनमें सफलता प्राप्त करना ही वह जीवन की सफलता मानता है। जो बालक किशोरावस्था में समाज सुधारक और नेतागिरी के स्वप्न देखते हैं, वे आगे चलकर इन बातों में आगे बढ़ते है।

पश्चिम में किशोर अवस्था का विशेष अध्ययन कई मनोवैज्ञानिकों ने किया है। किशोर अवस्था काम भावना के विकास की अवस्था है। कामवासना के कारण ही बालक अपने में नवशक्ति का अनुभव करता है। वह सौंदर्य का उपासक तथा महानता का पुजारी बनता है। उसी से उसे बहादुरी के काम करने की प्रेरणा मिलती है।

किशोर अवस्था शारीरिक परिपक्वता की अवस्था है। इस अवस्था में बच्चे की हड्डियों में दृढ़ता आती है; भूख काफी लगती है। कामुकता की अनुभूति बालक को 13 वर्ष से ही होने लगती है। इसका कारण उसके शरीर में स्थित ग्रंथियों का स्राव होता है। अतएव बहुत से किशोर बालक अनेक प्रकार की कामुक क्रियाएँ अनायास ही करने लगते हैं। जब पहले पहल बड़े लोगों को इसकी जानकारी होती है तो वे चौंक से जाते हैं। आधुनिक मनोविश्लेषण विज्ञान ने बालक की किशोर अवस्था की कामचेष्टा को स्वाभाविक बताकर, अभिभावकों के अकारण भय का निराकरण किया है। ये चेष्टाएँ बालक के शारीरिक विकास के सहज परिणाम हैं। किशोरावस्था की स्वार्थपरता कभी कभी प्रौढ़ अवस्था तक बनी रह जाती है। किशोरावस्था का विकास होते समय किशोर को अपने ही समान लिंग के बालक से विशेष प्रेम होता है। यह जब अधिक प्रबल होता है, तो समलिंगी कामक्रियाएँ भी होने लगती हैं। बालक की समलिंगी कामक्रियाएँ सामाजिक भावना के प्रतिकूल होती हैं, इसलिए वह आत्मग्लानि का अनुभव करता है। अत: वह समाज के सामने निर्भीक होकर नहीं आता। समलिंगी प्रेम के दमन के कारण मानसिक ग्रंथि मनुष्य में पैरानोइया नामक पागलपन उत्पन्न करती है। इस पागलपन में मनुष्य एक ओर अपने आपको अत्यंत महान व्यक्ति मानने लगता है और दूसरी ओर अपने ही साथियों को शत्रु रूप में देखने लगता है। ऐसी ग्रंथियाँ हिटलर और उसके साथियों में थीं, जिसके कारण वे दूसरे राष्ट्रों की उन्नति नहीं देख सकते थे। इसी के परिणामस्वरूप द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ा।

किशोर बालक उपर्युक्त मन:स्थितियों को पार करके, विषमलिंगी प्रेम अपने में विकसित करता है और फिर प्रौढ़ अवस्था आने पर एक विषमलिंगी व्यक्ति को अपना प्रेमकेंद्र बना लेता है, जिसके साथ वह अपना जीवन व्यतीत करता है।

कामवासना के विकास के साथ साथ मनुष्य के भावों का विकास भी होता है। किशोर बालक के भावोद्वेग बहुत तीव्र होते हैं। वह अपने प्रेम अथवा श्रद्धा की वस्तु के लिए सभी कुछ त्याग करने को तैयार हो जाता है। इस काल में किशोर बालकों को कला और कविता में लगाना लाभप्रद होता है। ये काम बालक को समाजोपयोगी बनाते हैं।

किशोर बालक सदा असाधारण काम करना चाहता है। वह दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है। जब तक वह इस कार्य में सफल होता है, अपने जीवन को सार्थक मानता है और जब इसमें वह असफल हो जाता है तो वह अपने जीवन को नीरस एवं अर्थहीन मानने लगता है। किशोर बालक के डींग मारने की प्रवृत्ति भी अत्यधिक होती है। वह सदा नए नए प्रयोग करना चाहता है। इसके लिए दूर दूर तक घूमने में उसकी बड़ी रुचि रहती है।

किशोर बालक का बौद्धिक विकास पर्याप्त होता है। उसकी चिंतन शक्ति अच्छी होती है। इसके कारण उसे पर्याप्त बौद्धिक कार्य देना आवश्यक होता है। किशोर बालक में अभिनय करने, भाषणा देने तथा लेख लिखने की सहज रुचि होती है। अतएव कुशल शिक्षक इन साधनों द्वारा किशोर का बौद्धिक विकास करते हैं।

किशोर बालक की सामाजिक भावना प्रबल होती है। वह समाज में सम्मानित रहकर ही जीना चाहता है। वह अपने अभिभावकों से भी सम्मान की आशा करता है। उसके साथ 10, 12 वर्ष के बालकों जैसा व्यवहार करने से, उसमें द्वेष की मानसिक ग्रंथियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जिससे उसकी शक्ति दुर्बल हो जाती है और अनेक प्रकार के मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

बालक का जीवन दो नियमों के अनुसार विकसित होता है, एक सहज परिपक्वता का नियम और दूसरा सीखने का नियम। बालक के समुचित विकास के लिए, हमें उसे जल्दी जल्दी कुछ भी न सिखाना चाहिए। सीखने का कार्य अच्छा तभी होता है जब वह सहज रूप से होता है। बालक जब सहज रूप से अपनी सभी मानसिक अवस्थाएँ पार करता है तभी वह स्वस्थ और योग्य नागरिक बनता है। कोई भी व्यक्ति न तो एकाएक बुद्धिमान होता है और न परोपकारी बनता है। उसकी बुद्धि अनुभव की वृद्धि के साथ विकसित होती है और उसमें परोपकार, दयालुता तथा बहादुरी के गुण धीरे धीरे ही आते हैं। उसकी इच्छाओं का विकास क्रमिक होता है। पहले उसकी न्यून कोटि की इच्छाएँ जाग्रत होती हैं और जब इनकी समुचित रूप से तृप्ति होती है तभी उच्च कोटि की इच्छाओं का आविर्भाव होता है। यह मानसिक परिपक्वता के नियम के अनुसार है। ऐसे ही व्यक्ति के चरित्र में स्थायी सद्गुणों का विकास होता है और ऐसा ही व्यक्ति अपने कार्यों से समाज को स्थायी लाभ पहुँचाता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • बालविकास
  • यौन शिक्षा
  • यौवनारम्भ

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • किशोरावस्था की परिभाषा
  • किशोरी स्वास्थ्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां Archived 2013-01-17 at the Wayback Machine

निम्नलिखित में से कौन किशोरावस्था की विशेषता नहीं है?

ऊपर से, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि मैत्रीपूर्ण संबंधों में उच्च कमी किशोरावस्था की विशेषता नहीं है।

किशोरावस्था की विशेषताएं कौन कौन सी है?

किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएं.
१. खुद पर सबसे ज्यादा भरोसा : ... .
२. विद्रोही प्रवृत्ति: ... .
३. आक्रोश एवं हिंसक प्रवृत्ति : ... .
४. धार्मिक भेदभाव एवं छुआछूत से दूर : ... .
५. अपने कैरियर के प्रति निष्ठा : ... .
६. मित्र समूह की भूमिका : ... .
७.एकता एवं सहयोग की भावना का विकास : ... .

निम्नलिखित में से किसका विकास किशोरावस्था में नहीं होता है?

इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि किशोरावस्था में 'अहम केन्द्रिकता' विकसित नहीं होती है। 'अहम केन्द्रिकता': यह बाल्यावस्था में विकसित किया गया है।

किशोरावस्था में कौन कौन से परिवर्तन होते हैं?

आइए, सबसे पहले जान लेते हैं कि किशोरावस्था होती क्या है।.
आपके चेहरे और शरीर पर मुंहासे हो सकते हैं।.
पसीना अधिक आने लगता है और शरीर से पसीने की दुर्गंध भी आ सकती है।.
आर्मपिट में बाल उगने लगते हैं।.
जननांगों के आसपास बाल उगने लगते हैं – इसे प्यूबिक हेयर भी कहा जाता है।.