धारा 364 में जमानत कैसे मिलती है - dhaara 364 mein jamaanat kaise milatee hai

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अपराध जमानती है तो हाईकोर्ट में अर्जी नहीं

बिलासपुर | हाईकोर्टने कहा है कि जमानती अपराध के लिए दर्ज मामले में सीआरपीसी की धारा 438 के तहत हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी प्रस्तुत नहीं की जा सकती। आईपीसी की धारा 363 के तहत मामला दर्ज होने पर हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी लगाई गई थी। हाईकोर्ट ने इसे चलने योग्य नहीं माना।

रायपुर के उरला थाने के बीरगांव में रहने वाले वीरेंद्र कुमार चतुर्वेदी के खिलाफ आईपीसी की धारा 363 के तहत मामला दर्ज किया गया था। सेशन कोर्ट से अग्रिम जमानत नहीं मिलने के बाद उसने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। उसकी ओर से कहा गया कि मामला जमानती है, लेकिन सेशन कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए आईपीसी की धारा 366 लागू होने को लेकर कुछ टिप्पणी की है। इस वजह से अग्रिम जमानत अर्जी हाईकोर्ट में मंजूर किए जाने योग्य है। उधर, राज्य शासन की ओर से अर्जी का विरोध िकया गया।

करते हुए कहा गया कि जमानतीय मामलों में सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत अर्जी नहीं लगाई जा सकती। ऐसे मामलों में थाने से ही मुचलके पर जमानत का प्रावधान है। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय के. अग्रवाल की सिंगल बेंच में हुई। हाईकोर्ट ने आरके कृष्ण कुमार विरुद्ध आसाम राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि जमानतीय मामलों में सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल नहीं की जा सकती। हाईकोर्ट ने अर्जी को हाईकोर्ट में चलने योग्य नहीं ठहराते हुए अर्जी खारिज कर दी।

हाईकोर्ट ने कहा

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  • आईपीसी की धारा 364ए को लेकर सुप्रीम कोर्ट का कमेंट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किडनैप और मर्डर के केस में मौत की सजा जायज

नई दिल्ली. फिरौती के लिए किडनैप के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए सख्त सजा देना जरूरी है। फिर चाहे ये किडनैपिंग पैसे के लालच में साधारण अपराधियों ने किया हो या आतंकी संगठनों ने। सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 364ए के तहत मौत की सजा को जायज ठहराते हुए यह कमेंट किया।

जस्टिस टी.एस. ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा- संसद ने यह कानून देश के नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया था। इसे तैयार करते वक्त देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता की सुरक्षा पर चिंता जताई गई थी। ऐसे में धारा 364ए के तहत मौत की सजा को अपराध की तुलना में ज्यादा क्रूर करार नहीं दिया जा सकता। इसे असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।' फैसला एक दोषी की याचिका पर आया है। जिसे अपहरण के बाद हत्या के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई है।

तिहाड़ में महिला कैदियों के हालात पर दिल्ली हाईकोर्ट ने जताई चिंता

तिहाड़जेल में विचाराधीन महिला कैदियों के हालात पर दिल्ली हाईकोर्ट ने चिंता जताई है। यहां करीब 152 महिला कैदी हैं, जिन पर कोई गंभीर आरोप नहीं हैं। करीब आधी महिला कैदी तो ऐसी हैं जो जेल में रहते हुए अपने जुर्म के लिए तय सजा का आधा हिस्सा जेल में काट चुकी हैं। कोर्ट ने कहा, 'विचाराधीन महिला कैदियों को बिना मुकदमा चलाए जेल में रखने पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। इस अदालत (हाईकोर्ट) ने भी कई बार ध्यान दिलाया। इस संबंध में निर्देश भी जारी किए गए। लेकिन हमें दुख है कि इसके बावजूद इनको जेल में रखा गया है।'

चीफ जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने यह टिप्पणी की। साथ ही दिल्ली स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी (डीएसएलएसए) से कहा कि ऐसी महिला कैदियों को तुरंत रिहा करने के लिए जरूरी कदम उठाएं।

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 364 ए के तहत 'फिरौती के लिए अपहरण' के अपराध के लिए किसी व्यक्ति के अपहरण को साबित करना ही पर्याप्त नहीं है। यह भी साबित किया जाना चाहिए कि अपहृत व्यक्ति को मौत या चोट पहुंचाने का खतरा था या अपहरणकर्ता ने अपने आचरण से एक उचित आशंका को जन्म दिया कि ऐसे व्यक्ति को मौत के घाट उतारा जा सकता है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ धारा 364 ए आईपीसी (शेख अहमद बनाम तेलंगाना राज्य) के तहत एक व्यक्ति की सजा के खिलाफ दायर आपराधिक अपील पर विचार कर रही थी।

अपीलकर्ता, एक ऑटो-रिक्शा चालक, को ऑटो में सवार एक स्कूली लड़के का अपहरण करने और उसके पिता से 2 लाख रुपये की फिरौती मांगने के लिए दोषी ठहराया गया था।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए मुद्दे

सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित मुद्दों पर विचार किया:

I. आईपीसी की धारा 364 ए के तहत एक आरोपी की सजा हासिल करने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा उचित संदेह से परे साबित करने के लिए धारा 364 ए के आवश्यक तत्व क्या हैं?

II.क्या धारा 364 ए के तहत उल्लिखित प्रत्येक सामग्री को धारा 364 ए के तहत दोषसिद्धि हासिल करने के लिए साबित करने की आवश्यकता है और किसी भी शर्त की गैर-स्थापना धारा 364 ए आईपीसी के तहत दोष सिद्धि को समाप्त कर सकती है?

III.क्या सत्र न्यायाधीश के साथ-साथ उच्च न्यायालय ने कोई निष्कर्ष दर्ज किया कि अभियोजन द्वारा धारा 364 ए के सभी तत्व साबित किए गए थे?

IV.क्या निचली अदालतों द्वारा कोई सबूत या निष्कर्ष था कि आरोपी ने पीड़ित को मौत या चोट पहुंचाने की धमकी दी थी या उसके आचरण से क्षेत्र में आशंका पैदा हुई थी कि पीड़ित को मौत या चोट पहुंचाई जा सकती है?

धारा 364 ए आईपीसी की सामग्री

कोर्ट ने माना कि धारा 364ए आईपीसी के तहत अपराध साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा साबित किए जाने वाले आवश्यक तत्व इस प्रकार हैं:

(i) किसी व्यक्ति का अपहरण या अगवा करना या ऐसे अपहरण या अगवा करने के बाद किसी व्यक्ति को हिरासत में रखना; तथा

(ii) ऐसे व्यक्ति को मौत या चोट पहुंचाने की धमकी देना, या उसके आचरण से एक उचित आशंका पैदा होती है कि ऐसा व्यक्ति मौत या चोट पहुंचाई जा सकती है या;

(iii) सरकार या किसी विदेशी राज्य या किसी सरकारी संगठन या किसी अन्य व्यक्ति को कोई कार्य करने या उससे दूर रहने या फिरौती देने के लिए मजबूर करने के लिए ऐसे व्यक्ति को चोट या मृत्यु का कारण बनता है।

कोर्ट ने कहा कि "और" शब्द का प्रयोग पहली और दूसरी स्थितियों के बीच किया जाता है। तो केवल पहली शर्त साबित करना पर्याप्त नहीं है।

"इस प्रकार, पहली शर्त स्थापित करने के बाद, एक और शर्त पूरी करनी पड़ती है क्योंकि पहली शर्त के बाद, इस्तेमाल किया गया शब्द "और" है। इस प्रकार, पहली शर्त के अतिरिक्त या तो शर्त (ii) या (iii) को साबित करना होगा, जिसमें विफल रहने पर धारा 364 ए के तहत दोषसिद्धि को कायम नहीं रखा जा सकता, " न्यायमूर्ति अशोक भूषण द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया है।

कोर्ट ने कहा,

"दूसरी शर्त भी एक शर्त है, जिसे आईपीसी की धारा 364ए को लागू करने के लिए संतुष्ट होना जरूरी है।"

कोर्ट ने कहा कि संयोजन "और" के उपयोग का अपना आशय और उद्देश्य हैं। यह नोट किया गया कि धारा 364 ए नौ बार "या" शब्द का उपयोग करती है लेकिन पूरे खंड में केवल एक "और" होता है, जो पहली और दूसरी स्थितियों के बीच होता है।

"इस प्रकार, धारा 364 ए के तहत एक अपराध को कवर करने के लिए, पहली शर्त की पूर्ति के अलावा, दूसरी शर्त, यानी, "और ऐसे व्यक्ति को मौत या चोट पहुंचाने की धमकी" को भी साबित करने की आवश्यकता है यदि मामला बाद में खंड "या" से जुड़े होने के तौर पर कवर नहीं किया जाता है।"

मामले के तथ्यों पर साबित नहीं हुई दूसरी शर्त

मामले के तथ्यों पर आते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों सत्र न्यायालय और साथ ही उच्च न्यायालय ने धारा 364 ए आईपीसी की दूसरी शर्त साबित करने की आवश्यकता पर ध्यान नहीं दिया।

शीर्ष अदालत ने पीड़ित और उसके पिता की गवाही का हवाला दिया, जो इस आशय के थे कि अपहरण की अवधि के दौरान अपीलकर्ता ने पीड़ित को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया।

पीड़ित के पिता ने जिरह में कहा कि उनके बेटे पर शारीरिक हमला नहीं किया गया था या उसके साथ बुरा व्यवहार नहीं किया गया था। पीड़ित लड़के ने कहा कि उसके साथ "अच्छे तरीके से व्यवहार किया गया।"

ऐसी परिस्थितियों में, सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मामले में धारा 364 ए आईपीसी की दूसरी शर्त साबित नहीं हुई थी।

इसलिए, आईपीसी की धारा 364ए के तहत दोषसिद्धि और उम्रकैद की सजा को रद्द कर दिया गया। हालांकि, अपहरण का तथ्य साबित होने के बाद, अदालत ने दोषसिद्धि को धारा 363 आईपीसी में बदल दिया, जिसमें अधिकतम 7 साल की कैद की सजा है।

मामले का विवरण

केस : शेख अहमद बनाम तेलंगाना राज्य

पीठ: जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी

उद्धरण: LL 2021 SC 272

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

धारा 364 में कितनी सजा है?

सजा - आजीवन कारावास या दस वर्ष कठिन कारावास और आर्थिक दण्ड। यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है।

364 धारा का मतलब क्या होता है?

धारा 364 भा. द. वि. किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण उसकी हत्या करने के उद्देश्य से करना ।

363 में जमानत कैसे मिलती है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 363 अपहरण के अपराध के सम्बंधित होती है, ऐसे अपराध में अपराधी को उसके जुर्म के अनुसार उचित दंड भी दिया जाता है, भारतीय दंड संहिता की धारा 363 का अपराध एक संज्ञेय अपराध माना जाता है, तथा यह अपराध जमानतीय अपराध भी होता है, जिसमे आवेदंड करने पर अपराधी को जमानत पर रिहा करने का प्रावधान भी होता है, ...

फिरौती में कौन सी धारा लगती है?

धारा 364क आईपीसी (IPC Section 364क in Hindi) - फिरौती, आदि के लिए व्यपहरण।