मानव व अन्य स्तनधारी प्राणियों मे कर्ण या कान श्रवण प्रणाली का मुख्य अंग है। कशेरुकी प्राणियों मे मछली से लेकर मनुष्य तक कान जीववैज्ञानिक रूप से समान होता है सिर्फ उसकी संरचना गण और प्रजाति के अनुसार भिन्नता का प्रदर्शन करती है। कान वह अंग है जो ध्वनि का पता लगाता है, यह न केवल ध्वनि के लिए एक ग्राहक (रिसीवर) के रूप में कार्य करता है, अपितु शरीर के संतुलन और स्थिति के बोध में भी एक प्रमुख भूमिका निभाता है। "कान" शब्द को पूर्ण अंग या सिर्फ दिखाई देने वाले भाग के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। अधिकतर प्राणियों में, कान का जो हिस्सा दिखाई देता है वह ऊतकों से निर्मित एक प्रालंब होता है जिसे बाह्यकर्ण या कर्णपाली कहा जाता है। बाह्यकर्ण श्रवण प्रक्रिया के कई कदमो मे से सिर्फ पहले कदम पर ही प्रयुक्त होता है और शरीर को संतुलन बोध कराने में कोई भूमिका नहीं निभाता। कशेरुकी प्राणियों मे कान जोड़े मे सममितीय रूप से सिर के दोनो ओर उपस्थित होते हैं। यह व्यवस्था ध्वनि स्रोतों की स्थिति निर्धारण करने में सहायक होती है। कर्ण मानव जीवन मे अत्यंत महत्वपूर्ण भुमिका निभाता हैं यह हमे श्रवन के साथ साथ हमारे शरीर को संतुलित भी बनाये रखता हैं साथ ही यह हमारे संवेदनशील अंग का मुख्य हिस्सा भी होता हैं कर्ण हमे तरह तरह की धव्नी को पहचानने मे भी मदद करता हैं भाग[संपादित करें]मानवीय कान के तीन भाग होते हैं-
अब जन्म से बहरे बच्चों का भी काॅक्लियर इम्पलांट सर्जरी के माधयम से आॅपरेशन करके उन्हें ठीक किया जा सकता है और बे बच्चे भी सुन सकते हैं और बोल भी सकते हैं
आतंरिक कर्ण:- इसे लैबरंथ भी कहते है आंतरिक कान या लैबरिंथ शंखनुमा संरचना होती है। इस शंख में द्रव भर रहता है। यह आवाज़ के कम्पनों को तंत्रिकाओं के संकेतों में बदल देती है। ये संकेत आठवीं मस्तिष्क तंत्रिका द्वारा दिमाग तक पहुँचाती है। आन्तर कर्ण (लैबरिंथ) की अंदरूनी केशनुमा संरचनाएँ आवाज़ की तरंगों की आवृति के अनुसार कम्पित होती हैं। आवाज़ की तरंगों को किस तरह अलग-अलग किया जाता है यह समझना बहुत ही मज़ेदार है। आन्तर कर्ण (लैबरिंथ) में स्थित पटि्टयों का संरचना हारमोनियम जैसे अलग-अलग तरह से कम्पित होती हैं। यानि आवाज़ की तरंगों की किसी एक आवृत्ति से कोई एक पट्टी कम्पित होगी। और दिमाग इसे एक खास स्वर की तरह समझ लेता है। इस ध्वनिज्ञान के विषय में और भी कुछ मत है। बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
कान के अंदर क्या क्या रहता है?कीप या कर्णपाली से आवाज़ की तरंगें इकट्ठी करके कान के पर्दे तक पहुँचाती है। इससे कान के पर्दे में कम्पन होता है। बाहरी कान के गुफानुमा रास्ते की त्वचा आम त्वचा जैसे एक चिकना पदार्थ स्वात्रित करती है। यही पदार्थ इकट्ठा होकर कान की मोम बनाता है।
कान में कौन सा लिक्विड पाया जाता है?कान का मैल कई पदार्थों का मिश्रण होता है. करीब 1,000 से 2,000 के बीच ग्रंथियां एंटी-माइक्रोबियल पेप्टाइड बनाती हैं. बालों की कोशिकाओं के करीब मौजूद वसा की ग्रंथियां मिश्रित एल्कोहल, स्कुआलीन नाम का तेल, कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड बनाती हैं.
कान किसका बना होता है?इसे सुनेंरोकेंइसका बाहरी एक तिहाई भाग कार्टिलेज का बना होता है तथा शेष भीतरी दो तिहाई भाग एक नली के रूप में टेम्पोरल अस्थि में चला जाता है, जो अस्थि निर्मित होता है। समस्त बाह्य कर्णकुहर रोमिल त्वचा से अस्तरित होता है, जो कर्णपाली को आच्छादित करने वाली त्वचा के सातत्य में ही रहता है।
कान में मैल क्यों होता है?'कान के मैल' का काम
ये कर्ण नलिकाओं के ऊपर जमी परत को सूखने या उनमें दरार पड़ने से रोकता है. ये कान को धूलकणों और पानी से बचाता है जिससे संक्रमण को रोकने में मदद मिलती है. ज्यादातर समय हमारी कर्ण नलिकाएं खुद ही अपनी सफाई कर लेती हैं.
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